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अमेरिका ने दी हरी झंडी, 2030 में यह देश उतारेगा अपनी पहली न्यूक्लियर सबमरीन, पड़ोसी को दिखाएगा ‘दादागिरी’

South Korea First Nuclear Submarine: दक्षिण कोरिया ने अमेरिका की मंजूरी के बाद 2030 तक अपनी पहली न्यूक्लियर सबमरीन लॉन्च करने की योजना बनाई है. यह कदम एशिया में शक्ति संतुलन बदल सकता है. जानिए कैसे दक्षिण कोरिया अमेरिका की मदद से अपनी रणनीतिक क्षमता बढ़ा रहा है.

South Korea First Nuclear Submarine: कोरियाई प्रायद्वीप में तनाव है, उत्तर कोरिया खुलेआम कह चुका है कि वह “स्थिर न्यूक्लियर स्टेट” है. ऐसे माहौल में दक्षिण कोरिया कई सालों से एक ही सवाल पर अटका हुआ था कि क्या वह न्यूक्लियर-पावर्ड सबमरीन बना सकता है? अब इस सवाल का जवाब मिला है हां. अमेरिका ने ग्रीन सिग्नल दे दिया है. और यही से कहानी रोमांचक हो जाती है. बीते हफ्ते अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि उन्होंने दक्षिण कोरिया के न्यूक्लियर सबमरीन प्लान को “ग्रीन लाइट” दे दी है. ट्रंप ने अपने प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर लिखा कि सबमरीन अमेरिका के फिलाडेल्फिया शिपयार्ड में बनेगी यहीं यूएसए में.

अमेरिकी न्यूक्लियर सबमरीन टेक्नोलॉजी दुनिया की सबसे गोपनीय और सुरक्षित तकनीकों में गिनी जाती है. हालांकि, सियोल (दक्षिण कोरिया) ने ट्रंप के इस बयान पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है कि सबमरीन कहां बनेगी.

दक्षिण कोरिया का दावा- ‘अपनी तकनीक से भी बना सकते हैं’

दक्षिण कोरिया के वरिष्ठ रक्षा मंत्रालय अधिकारी वॉन चोंग-डे ने कैबिनेट मीटिंग में कहा कि देश के पास सबमरीन डिजाइन और निर्माण की विश्वस्तरीय क्षमता है. वॉन चोंग-डे के अनुसार कहें तो कोरिया ने कहा है कि अगर अमेरिका के साथ ईंधन की बात तय हो जाए और हम 2025 के अंत तक निर्माण शुरू करें, तो 2030 के मध्य या अंत तक पहली न्यूक्लियर सबमरीन लॉन्च कर सकते हैं. यानी दक्षिण कोरिया केवल अनुमति नहीं मांग रहा, बल्कि वह खुद को इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में सक्षम बता रहा है.

South Korea First Nuclear Submarine: फिलाडेल्फिया शिपयार्ड पर सवाल

ट्रंप ने जिस फिलाडेल्फिया शिपयार्ड का जिक्र किया, वह हन्वा महासागर, यानी दक्षिण कोरिया की कंपनी द्वारा चलाया जाता है. लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स कहती हैं कि यह शिपयार्ड अभी न्यूक्लियर सबमरीन बनाने की क्षमता नहीं रखता. यही वजह है कि हन्वा महासागर ने पिछले अगस्त में यहां 5 बिलियन डॉलर के निवेश का ऐलान किया था.

अमेरिकी रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ ने भी कोरिया की शिपबिल्डिंग क्षमता की तारीफ करते हुए कहा कि दक्षिण कोरिया की शिपबिल्डिंग इंडस्ट्री शानदार है, और हम आगे और साझेदारी की उम्मीद करते हैं.

डिन्यूक्लियराइजेशन? यह सपना है

कहानी यहां और दिलचस्प होती है. 2019 में किम जोंग उन और ट्रंप की मुलाकात विफल होने के बाद. उत्तर कोरिया ने खुद को “स्थिर न्यूक्लियर स्टेट” बताया. रूस से नजदीकियां बढ़ाईं, यूक्रेन युद्ध में सैनिक भी भेजे और दक्षिण कोरिया के डिन्यूक्लियराइजेशन प्लान को “पाइपड्रीम” यानी असंभव सपना बताया. दक्षिण कोरिया के रक्षा मंत्री आन ग्यू-बैक ने इस पर दो टूक कहा कि कोरियाई प्रायद्वीप का डिन्यूक्लियराइजेशन हमारी अटूट प्रतिबद्धता है. और दक्षिण कोरिया कभी न्यूक्लियर हथियार नहीं बनाएगा.

न्यूक्लियर सबमरीन है क्या और यह जरूरी क्यों?

डीजल सबमरीन को बार-बार सतह पर आना पड़ता है. न्यूक्लियर सबमरीन महीनों पानी के नीचे रह सकती हैं. यानी दुश्मन के लिए अनदेखी, अनसुनी लेकिन बेहद खतरनाक. उत्तर कोरिया के तेजी से बढ़ते हथियारों के बीच दक्षिण कोरिया के लिए यह कदम रणनीतिक रूप से बहुत बड़ा है.

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Govind Jee
Govind Jee
गोविन्द जी ने पत्रकारिता की पढ़ाई माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय भोपाल से की है. वे वर्तमान में प्रभात खबर में कंटेंट राइटर (डिजिटल) के पद पर कार्यरत हैं. वे पिछले आठ महीनों से इस संस्थान से जुड़े हुए हैं. गोविंद जी को साहित्य पढ़ने और लिखने में भी रुचि है.

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