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मिस्र का सबसे बड़ा रहस्य हुआ उजागर, कर्नाक मंदिर के नीचे मिला 3000 साल पुराना पवित्र द्वीप

Egypt Karnak Temple Mystery: लक्सर के कर्णक मंदिर के नीचे छिपा 3,000 साल पुराना पवित्र द्वीप उजागर, जो नील नदी और मिस्र की आस्था की नींव को दर्शाता है. जानें कैसे पर्यावरण और वास्तुकला ने प्राचीन मिस्र के धर्म और शक्ति को आकार दिया.

Egypt Karnak Temple Mystery: मिस्र का नाम आते ही आंखों के सामने पिरामिड, स्फिंक्स और नील नदी की लहरें तैरने लगती हैं. लेकिन अब लक्सर के पास खड़ा कर्नाक मंदिर परिसर, जो सदियों से रहस्य और भव्यता का प्रतीक रहा है, एक बार फिर चर्चा में है. वजह उसके पैरों तले छिपा वो रहस्य, जिसने मिस्र की धार्मिक सोच और स्थापत्य कला दोनों को आकार दिया. हाल ही में आए एक नए शोध ने खुलासा किया है कि ये विशाल मंदिर किसी सामान्य जमीन पर नहीं, बल्कि नील नदी के एक प्राचीन द्वीप पर खड़ा था. और यहीं से मिस्र की आस्था की जड़ें समझ में आने लगती हैं.

कर्णक मंदिर- नदी के सीने में खड़ा एक पवित्र द्वीप

अक्टूबर 2025 में Antiquity जर्नल में प्रकाशित एक भू-पुरातात्विक अध्ययन ने कर्नाक मंदिर की नींव से जुड़ा बड़ा रहस्य उजागर किया. स्वीडन की उप्साला विश्वविद्यालय के डॉ एंगस ग्राहम और इंगलैंड साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के डॉ बेन पेनिंगटन के नेतृत्व में की गई इस स्टडी ने बताया कि मंदिर वास्तव में एक प्राकृतिक द्वीप पर बना था, जो करीब 3,000 साल पहले नील नदी के बहाव में बदलाव से बना था.

टीम ने मंदिर क्षेत्र से 61 तलछट कोर निकाले और हजारों मिट्टी के बर्तनों के टुकड़ों का विश्लेषण किया. नतीजा चौंकाने वाला था कि लगभग 2520 ईसा पूर्व, नील के पुराने चैनलों में बदलाव से एक ऊंचा द्वीप उभरा था, जो आगे चलकर कर्णक मंदिर का आधार बना.

Egypt Karnak Temple Mystery: ‘आदिम टीला’ और देवताओं की सृष्टि का प्रतीक

प्राचीन मिस्रवासियों के लिए यह कोई साधारण भूखंड नहीं था. वे इस द्वीप को “आदिम टीला” मानते थे. वह पवित्र भूमि, जहां से सूर्य देव रा (या अमुन-रा) आदिकालीन जल से प्रकट हुए थे. मिस्र की पौराणिक कथाओं में यह सृष्टि का आरंभिक क्षण था. इसलिए कर्णक का स्थान चुना गया तो केवल वास्तुकला या भूगोल के कारण नहीं, बल्कि ब्रह्मांडीय जन्म और पुनर्जन्म की गहरी धार्मिक भावना से प्रेरित होकर.

Egypt Karnak Temple Mystery: देवताओं के परिदृश्य की इंजीनियरिंग

समय के साथ नील नदी के प्रवाह और इंसानी हस्तक्षेपों, दोनों ने कर्नाक के पर्यावरण को बदल दिया. कभी नदी ने पवित्र द्वीप के चारों ओर नए रास्ते बनाए, तो कभी प्राचीन इंजीनियरों ने मंदिर परिसर के विस्तार के लिए रेगिस्तानी रेत और तलछट से जलमार्गों को भरा. इस तरह नील के प्राकृतिक विज्ञान और मानव की समझ का मेल हुआ, जिसने कर्णक को सिर्फ एक मंदिर नहीं, बल्कि भूगोल, खगोल और आस्था का संगम बना दिया.

तलछटों में दबी सभ्यता की कहानी

तलछट परतों और मिट्टी के बर्तनों के वितरण का विश्लेषण करने पर शोधकर्ताओं ने समझा कि नील नदी का बाढ़ क्षेत्र मिस्र की सभ्यता के साथ-साथ विकसित हुआ. इन नतीजों से पता चलता है कि कर्नाक मंदिर का निर्माण सिर्फ नव साम्राज्य काल का नहीं, बल्कि प्राचीन साम्राज्य काल (2591-2152 ईसा पूर्व) से जुड़ा है. यह शोध यह भी बताता है कि पर्यावरणीय बदलावों ने कैसे शहरी नियोजन और धार्मिक वास्तुकला दोनों को प्रभावित किया. मिस्रवासियों ने एक गतिशील, बदलते नदी परिदृश्य को सचमुच पवित्र भूमि में बदल दिया था.

मिस्र में पुरातात्विक खोजों की नई लहर

कर्नाक के ये रहस्य ऐसे वक्त में सामने आए हैं जब मिस्र में एक के बाद एक नई पुरातात्विक खोजें हो रही हैं. ड्रा अबू अल-नागा के पास हाल ही में 3,000 साल पुराने तीन मकबरे मिले हैं, जो प्राचीन साम्राज्य काल से जुड़े हैं. तपोसिरिस मैग्ना में मिली भूमिगत सुरंगों ने फिर से क्लियोपेट्रा के अंतिम विश्राम स्थल की खोज में नई जान डाल दी है. वहीं, मिस्र के जलमग्न बंदरगाह स्थलों की खुदाई ने उसकी समुद्री और अंत्येष्टि परंपराओं पर नई रोशनी डाली है. इन सब खोजों ने हमारी यह समझ बदल दी है कि नील नदी का बदलता भूगोल मिस्र के धर्म, सत्ता और संस्कृति को कैसे दिशा देता रहा.

कर्णक के नीचे दबा मिस्र का ब्रह्मांड

यह अध्ययन मिस्र विज्ञान के लिए मील का पत्थर है. यह दिखाता है कि आधुनिक विज्ञान कैसे पुरातत्व, भूविज्ञान और पौराणिक कथाओं के बीच पुल बना सकता है. कर्नाक अब सिर्फ एक स्थापत्य चमत्कार नहीं, बल्कि मिस्र के उस रिश्ते का प्रतीक बन गया है, जो उसने नील नदी और ब्रह्मांडीय सृष्टि के साथ जोड़ा था. शोधकर्ता मानते हैं कि लक्सर की रेत के नीचे अब भी कई रहस्य दबे हैं जो कि ऐसे रहस्य शायद बताएंगे कि मिस्र ने अपनी पवित्र शुरुआत कैसे रची थी.

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Govind Jee
Govind Jee
गोविन्द जी ने पत्रकारिता की पढ़ाई माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय भोपाल से की है. वे वर्तमान में प्रभात खबर में कंटेंट राइटर (डिजिटल) के पद पर कार्यरत हैं. वे पिछले आठ महीनों से इस संस्थान से जुड़े हुए हैं. गोविंद जी को साहित्य पढ़ने और लिखने में भी रुचि है.

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