लंदन : आपको सुनने में ये बात किस्से-कहानियों सी लग सकती है लेकिन ये सच है कि एक हजार साल पुराने अंग्रेजी नुस्खे से अनुसंधानकर्ताओं ने दुनिया के सबसे खतरनाक माने जा रहे सुपर बग में से एक एमआरएसए के खात्मे का नुस्खा ढूंढ निकाला है.
क्या है एमआरएसए सुपर बग
एमआरएसएसुपर बग असल में बैक्टीरिया की एक प्रजाति ‘स्टेफाइलोकोकस’ से उपजी हुई प्रजाति है, जिस पर अब तक मौजूद सभी तरह के एंटी-बायोटिक का इलाज बेअसर हो गया है. पूरी दुनिया के चिकित्सक और वैज्ञानिक इस बैक्टीरिया के ऊपर दवाओं के बेअसर होने से चिंतित थे क्योंकि भविष्य में ऐसा होने कि सम्भावना थी कि शरीर पर एक फोड़ा होने पर भी आदमी की जान चले जाने का खतरा होने का डर पैदा हो गया था. ज्यादातर एमआरएसए इन्फेक्शन फोड़े के तौर पर ही होते हैं जो दिखने में लाल, सूजे हुए और बहुत दर्द देने वाले होते हैं. पहली नजर में वे किसी कीड़े या मकड़ी के काटने जैसे नजर आते हैं मगर जल्द ही उनका असली रूप सामने आने लगता है, जब किसी भी दवा का असर उनपर नहीं होता है. ये इन्फेक्शन ज्यादातर शरीर की बाहरी त्वचा, पहले से कटे या छिले अंगों या बालों से ढके हिस्सों जैसे – दाढ़ी, कांख या जांघ के जोड़ में होते हैं.
कैसे मिला इलाज
लंदन की ब्रिटिश लाइब्रेरी में दसवीं शताब्दी की एक चिकित्सा विज्ञान की किताब ‘बाल्ड्स लीचबुक’ मिली, जिसे आमतौर पर चिकित्सा जगत की सबसे पुरानी किताबों में से एक माना जाता है. इस किताब में आंखों के इन्फेक्शन और बीमारियों के इलाज का एक नुस्खा लिखा मिला था.
ये किताब इंगलैंड की प्राचीन एंग्लो-सैक्सन काल की भाषा में लिखी हुई थी. इंगलैंड के ही नाटिंघम विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ़ इंग्लिश की एंग्लो-सैक्सन समाज की विशेषज्ञ क्रिस्टीना ली ने इस पुरानी पांडुलिपि का अनुवाद किया. हालांकि, अनुवाद के दौरान उन्हें कई जगह भाषा की पेचीदगियों और अस्पष्टता का सामना करना पड़ा मगर फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी.
अनुवाद के बाद ली खुद इसमें मिली जानकारी से इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने इस पर आगे शोध के लिए अपनी यूनिवर्सिटी के माइक्रो बायोलोजिस्ट्स की मदद ली.
घोल जैसी इस दवा को बनाने के नुस्खे में लहसुन और हरे प्याज के साथ गाय या बैल के पेट से निकाले हुए पित्त को पुरानी वाइन के साथ मिलाकर किसी तांबे के बर्तन मे तैयार करने की बात लिखी हुई थी. ऐसे नुस्खे ने रिसर्च करने वाली टीम को आश्चर्य में डाल दिया था मगर फिर भी इन लोगों ने पूरी सावधानी के साथ बाल्ड की इस किताब में दिए गए नुस्खे के अनुसार दवा तैयार करना शुरू किया. शोधकर्ताओं के मुताबिक इस किताब में दवा के मिश्रण को तैयार करने के लिए सही अनुपात की बहुत सटीक जानकारी दी गयी थी. किताब के मुताबिक दवा तैयार करने के पहले इस मिश्रण का सही तरीके से तैयार होना जरुरी था.
इस बारे में बताते हुए माइक्रो बायोलोजिस्ट फ्रेया हैरिसन ने बताया कि इस जानकारी को पढने के बाद हमने बहुत सावधानी के साथ इस मिश्रण को तैयार करने का काम किया. फ्रेया हैरिसन ही वो शख्स हैं जिन्होंने स्कूल की प्रयोगशाला में इस अनुसंधान की अगुवाई की थी.
क्या लिखा था किताब में
बाल्ड्स लीचबुक के मुताबिक, लहसुन, हरे प्याज और गाय के पेट से निकाले गए पित्त को वाइन में मिलाकर 9 दिनों तक तांबे के बर्तन मे छोड़ देना है. उसके बाद इस मिश्रण को कपड़े से छान लेना है. इसके लिए अनुसंधानकर्ताओं ने 9वीं शताब्दी की उसी वाइनयार्ड की वाइन का उपयोग किया, जिसका उल्लेख इस किताब में था.
इस प्रयोग का निष्कर्ष
इस तरह दवा के इस मिश्रण के तैयार हो जाने के बाद रिसर्चर्स ने इसका प्रयोग एमआरएसए (मेथिसिलीन रेसिस्टेंट स्टेफाइलोकोकस औरिअस) सुपर बग के कल्चर पर किया. प्रयोगशाला में किये जा रहे इस प्रयोग को लेकर वैज्ञानिक शुरू में ज्यादा उत्साहित नहीं थे लेकिन प्रयोग के परिणाम सामने आने के बाद पूरी टीम अचंभित रह गयी.
जो परिणाम उन्हें मिले वो बहुत रोचक थे. उन्होंने पाया कि बाल्ड के इस आंख की बीमारी के इलाज के नुस्खे ने एक अत्यंत शक्तिशाली एंटी-एंटीबायोटिक का काम किया, जिसकी वजह से एमआरएसए जैसा लाइलाज समझा जा रहा बैक्टीरिया खत्म हो गया.
इस बारे में और विस्तार से बताते हुए माइक्रो बायोलोजिस्ट फ्रेया हैरिसन ने बताया कि प्रयोग में हमने एक बहुत ही सुव्यवस्थित और घने तरीके से बसी हुई अरबों एमआरएसए सेल वाले बैक्टीरिया की कॉलोनी का उपयोग किया. इस कॉलोनी के ऊपर इस सुपर बग का बहुत ही मजबूत बायोफिल्म का कवच था, जिसे तोड़ पाना वर्तमान दवाओं से संभव नहीं हो पा रहा था.
इस कल्चर के ऊपर जब हमने इस दवा का प्रयोग किया तो अरबों सेल की एमआरएसए की ये आबादी जल्द ही महज कुछ हजार की रह गयी. ये परिणाम बहुत ही ज्यादा संतोषजनक माने जायेंगे. इससे हमारी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा.
टीम ने इस प्रयोग को जीवित प्राणी की कोशिका पर आजमाने के लिए अपने अमेरिकी को कहा और वहां जब इसे एक चूहे के घाव पर इसका प्रयोग किया गया तो इसका असर और ज्यादा दिखाई दिया.
इस प्रयोग के बाद वैज्ञानिकों को लगा कि कहीं ऐसा न हो कि फिर दुबारा कहीं सही तरीके से मिश्रण तैयार न होने से दवा का असर कामयाब न हो मगर अपने इस डर के समाधान के लिए उन्होंने तीन बार फिर से नए मिश्रण बनाये और हर बार इसका परिणाम एक जैसा आया. इसके अलावा ये बात भी सामने आई कि एक बार ये दवा तैयार होने के बाद इसे फ्रिज में रखने पर भी लम्बे समय तक इसका असर बना रहता है.
प्रयोग में इस दवा का असर इतना अचूक रहा कि जिन्दा चूहे के शरीर में घाव की बायोप्सी से पता चला कि दवा ने एमआरएसए सुपर बग का खात्मा 90 फीसदी तक कर दिया था. चिकित्सा विज्ञान में यह उपलब्धि बहुत बड़ी मानी जा रही है.
अनुसंधान करने वालों का कहना है कि हम अभी भी दावे के साथ ये नहीं बता सकते कि इस एक हजार साल पुराने एंटी-बायोटिक के नुस्खे में ऐसी कौन सी चीज थी, जिसकी वजह से एमआरएसए सुपर बग पर इसका जबरदस्त प्रभाव हुआ है. लहसुन और हरे प्याज का उपयोग तो हम रोजमर्रा की जिंदगी में करते ही हैं, हो सकता है इसमें वाइन के साथ गाय के पित्त और तांबे के बर्तन के उपयोग से कोई खास यौगिक बनता हो, जो इस सुपर बग के खिलाफ इतना असरदार एंटी-बायोटिक असर दिखाता है. सच चाहे जो हो लेकिन एक बात साफ़ है कि इस प्रयोग ने चिकित्सा जगत में छाई गहरी निराशा को मुस्कान में बदल दिया है.
आइये, नीचे दिए गए इस वीडियो में इस खोज की पूरी कहानी देखें –
