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एक याचिका से हाइवे पर शराब दुकानें बंद

प्रेरक पहल : सुप्रीम कोर्ट के आदेश की वजह से हर महीने असंख्य जानें बचनी शुरू हुईं विश्व स्वास्थ्य संगठन के अध्ययन के अनुसार 30-35 फीसदी दुर्घटनाएं शराब पी कर गाड़ी चलाने की वजह से होती हैं. भारत की सड़कों पर हर चार मिनट में एक मौत होती है. दिसंबर 2016 में हाइवे पर शराब […]

प्रेरक पहल : सुप्रीम कोर्ट के आदेश की वजह से हर महीने असंख्य जानें बचनी शुरू हुईं
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अध्ययन के अनुसार 30-35 फीसदी दुर्घटनाएं शराब पी कर गाड़ी चलाने की वजह से होती हैं. भारत की सड़कों पर हर चार मिनट में एक मौत होती है. दिसंबर 2016 में हाइवे पर शराब दुकानें बंद करने से संबंधित सुप्रीम कोर्ट का कड़ा आदेश आया था. यह परिणाम है हरमान सिंह सिद्धू की 20 वर्ष की तपस्या का. पढ़िए एक रिपोर्ट.
अक्तूबर, 1996 की बात है. 26 वर्षीय हरमन सिंह सिद्धू अपने तीन दोस्तों के साथ अपनी गाड़ी से शाम में अपने घर चंडीगढ़ लौट रहे थे. रेणुका झील से लौटते हुए रास्ते में उन्हें चीते का एक बच्चा दिखा. उन्होंने और भी जंगली जानवरों को देखने के इरादे से कच्चे रास्ते का रुख कर लिया. कुछ देर बाद ही कच्चे रास्ते पर चलते हुए उनकी गाड़ी का संतुलन बिगड़ गया और गाड़ी लुढ़कती हुई नीचे खाई में गिर गयी. उनका दोस्त गाड़ी चला रहा था. सिद्धू पीछे की सीट पर बैठे थे. गाड़ी कई बार हवा में घूमती हुई 70 फीट नीचे गिरी थी.
इस दुर्घटना में सिद्धू की रीढ़ में काफी चोटें आयी. नतीजतन, गरदन के नीचे का हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया. लगभग दो वर्ष तक पीजीआइ हॉस्पिटल, चंडीगढ़ में इलाज चलता रहा. चलने-फिरने के लिए जिंदगी व्हीलचेयर पर निर्भर हो गयी. अस्पताल में इलाज के दौरान उन्होंने पाया कि अस्पताल के दस्तावेजों के अनुसार ज्यादातर दुर्घटनाएं आरटीआइ(रोड ट्रैफिक इंजुरी) की श्रेणी में आती हैं. ऐसी दुर्घटना के शिकार सिर्फ वही नहीं हुए हैं, इसका अहसास जैसे ही सिद्धू को हुआ, उन्हें जिंदगी का एक लक्ष्य मिल गया, सड़क-सुरक्षा पर काम करने का.
सिद्धू चाहते थे कि लोग अपने घर सुरक्षित लौटें. लोगों की दशा वैसी न हो, जैसी सिद्धू की हुई थी. पहले-पहल सोचा कि पारंपरिक तरीके का जागरुकता अभियान चलाया जाए, मगर एक आइपीएस ऑफिसर अमिताभ सिंह ढिल्लन(उन दिनों एसपी, ट्रैफिक थे) के साथ मुलाकात के बाद सिद्धू के सोच में बदलाव आ गया.
ढिल्लन ने सलाह दी कि अगर ज्यादा लोगों तक पहुंच बनाना चाहते हैं, तो एक ऐसा वेबसाइट बनाया जाए, जिसपर सुरक्षित और जवाबदेह ड्राइविंग से संबंधित सभी सूचनाएं उपलब्ध हों. सिद्धू ने चंडीगढ़ ट्रैफिक पुलिस के लिए एक वेबसाइट बनाया. लोगों का काफी रेस्पांस आया. तीन महीने के भीतर एक लाख से ज्यादा लोगों ने वेबसाइट विजिट किया. इस रेस्पांस से प्रभावित होकर सिद्धू ने अपनी एक संस्था बनायी- ‘एराइवसेफ’. इस संस्था के जरिये विश्व स्वास्थ्य संगठन और संयुक्त राष्ट्र के लिए सड़क सुरक्षा जागरुकता के लिए एक मॉड्यूल बनाया.
वर्ष 2007 में संयुक्त राष्ट्र ने उनपर एक डॉक्यूमेंटरी फिल्म बनायी. अपने काम के दौरान सिद्धू ने अपने सर्वेक्षण में पाया कि शराब के नशे में गाड़ी चलानेवालों की वजह से हुई दुर्घटनाओं की संख्या बहुत ही अधिक है.
दुर्घटनाओं के आंकड़े डरा देनेवाले हैं. भारत की सड़कों पर हर चार मिनट में एक मौत होती है. कई अध्ययनों में यह पाया गया कि असली दोषी तो शराब है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अध्ययन के अनुसार 30-35 फीसदी दुर्घटनाएं शराब पीकर गाड़ी चलाने की वजह से होती हैं. निमहांस ने अपने अध्ययन में पाया कि दुर्घटना के बाद इलाज के लिए आनेवाले पीड़ितों में से 44 फीसदी शराब के नशे में थे. पीजीआइ चंडीगढ़ ने 200 ड्राइवरों पर की गयी एक स्टडी में पाया कि इनमें से 40 फीसदी की हेड इंजुरी हुई थी, उन सब के खून में शराब का अंश पाया गया था. वर्ष 2012 में एक्साइज डिपार्टमेंट और नेशनल हाइवे ऑथरिटी ऑफ इंडिया से सूचना के अधिकार के तहत मांगी गयी सूचना से पता चला कि पानीपत से जालंधर के रास्ते में 291 किलोमीटर के बीच 185 शराब की दुकानें हैं. हर डेढ़ किलोमीटर पर एक दुकान. हाइवे पर की चमकदार शराब दुकानें इनसानी जिंदगी के लिए बहुत बड़े खतरे के रूप में सामने नजर आने लगी. इसी साल सिद्धू ने पंजाब व हरियाणा हाइकोर्ट में एक पीआइएल दाखिल कर दिया. याचिका में कहा गया कि नेशनल और स्टेट हाइवे पर चल रही सभी शराब की दुकानें बंद कर दी जाएं, क्यों कि भयानक दुर्घटनाओं की वजह शराब पीकर गाड़ी चलाना है. सिद्धू बताते हैं कि- “ याचिका दाखिल करने के बाद से मुझे अनजान नंबर से धमकी भरे फोन आने लगे. कुछ लोगों ने मुझे रिश्वत देने की कोशिश की.”
मार्च 2014 में कोर्ट का संतोषजनक फैसला आया. फैसले में था कि हाइवे पर एक भी शराब की दुकान नहीं दिखनी चाहिए. पंजाब और हरियाणा की 1000 से अधिक शराब की दुकानें बंद कर दी गयीं. मगर इस फैसले के खिलाफ पंजाब और हरियाणा सुप्रीम कोर्ट पहुंच गये. वर्ष 2016 में पंजाब सरकार ने अपनी एक्साइज पॉलिसी में बदलाव करके नेशनल हाइवे पर 20,000 से अधिक की आबादी वाले इलाके में शराब दुकान खोलने की इजाजत दे दी.
सिद्धू और उनकी टीम बिना परेशान हुए अपने काम में लगी रही. टीम पंजाब और हरियाणा के नेशनल हाइवे पर जाती और जांच करती कि कोर्ट के आदेश का पालन किया जा रहा है कि नहीं. लगभग 50,000 किलोमीटर की यात्रा की गयी. जहां भी आदेश का उल्लंघन होता हुआ दिखा, संबंधित सरकारी अधिकारियों को सूचित किया गया. दिसंबर 2016 में चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर के नेतृत्व वाली तीन सदस्यीय बेंच ने मामले को सुना. बेंच ने पाया कि हाइवे पर शराब की उपलब्धता पीनेवालों को अवसर देती है. बेंच ने यह भी पाया कि शराब की वजह से होनेवाले दुर्घटनाओं की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. बेंच ने जोर देकर कहा कि उपयुक्त कानून को लागू करने की जरूरत है ताकि शराब की वजह से होनेवाली दुर्घटनाएं रोकी जा सकें. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को भी फटकारा कि वे केंद्र सरकार की सलाह की अवहेलना कर रही हैं.
केंद्र के मना करने के वावजूद राज्य सरकारें हाइवे पर दुकान खोलने के लिए लाइसेंस दे रही है. बेंच ने कहा कि राजस्व पैदा करना पर्याप्त कारण नहीं है. शराब दुकान के लिए लाइसेंस देने का. बेंच ने कहा कि हाइवे पर कोई भी शराब की दुकान नहीं दिखनी चाहिए. हाइवे के 500 मीटर के अंदर कोई भी शराब दुकान न हो. शराब की दुकान का पता बतानेवाला कोई भी साइनबोर्ड हाइवे पर न हो.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश से सिद्धू की खुशियों का ठिकाना न रहा. वे बताते हैं कि इस आदेश की हर महीने असंख्य जानें बचेंगी. हाइवे पर शराब दुकानों के पूरी तरह से बंद होने में अभी थोड़ा वक्त लगेगा. तब तक मेरी जंग जारी रहेगी, क्योंकि अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है.
(इनपुट: द बेटरइंडिया डॉट कॉम)

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