36.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

नये साल में अर्थव्यवस्था और कारोबार

साल 2019 में अर्थव्यवस्था और कारोबार से जुड़ी ज्यादातर खबरें परेशान करनेवाली थीं. जिस तरह एक के बाद एक रिपोर्ट में आर्थिकी के कमजोर पड़ने के संकेत उभर रहे थे, उससे लोगों के जेहन में कई तरह के सवाल थे. सरकारी स्तर पर भले ही भरोसा दिलाया गया, लेकिन सवालों का सटीक हल होता नहीं […]

साल 2019 में अर्थव्यवस्था और कारोबार से जुड़ी ज्यादातर खबरें परेशान करनेवाली थीं. जिस तरह एक के बाद एक रिपोर्ट में आर्थिकी के कमजोर पड़ने के संकेत उभर रहे थे, उससे लोगों के जेहन में कई तरह के सवाल थे. सरकारी स्तर पर भले ही भरोसा दिलाया गया, लेकिन सवालों का सटीक हल होता नहीं दिखा.

ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि नये साल में अर्थव्यवस्था के सुधार की तस्वीर कहीं अधिक साफ हो पायेगी. वर्तमान में अर्थव्यवस्था के समक्ष तमाम तरह की चुनौतियां हैं, कुछ घरेलू स्तर पर, तो कुछ वैश्विक स्तर पर आये ठहराव और गतिरोध की वजह से. कुछ ऐसे सवालों को समझने की कोशिश हैं यहां…
अर्थव्यवस्था में सुधार की उम्मीद
सं घर्ष कर रही अर्थव्यवस्था पिछले छह साल के निम्नतम स्तर पर पहुंच चुकी है. मौजूदा आंकड़े इस बात की तस्दीक कर रहे हैं कि निकट भविष्य में सुधार के कोई स्पष्ट संकेत नहीं हैं. अर्थव्यवस्था के तीनों प्रमुख क्षेत्रों- उपभोग, निवेश और निर्यात में हालात चिंताजनक हैं.
अब सुधार मुख्य रूप से उपभोक्ताओं के बर्तावों पर निर्भर है, क्योंकि वैश्विक मांग की गिरावट के चलते निर्यात मंदा पड़ चुका है और निवेश के विभिन्न स्तरों पर तमाम तरह की चुनौतियां हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि नये साल में भी अर्थव्यवस्था में खपत की चिंता बरकरार रहेगी. आय में कमी, ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मांग में गिरावट और ऋण मांग में कमी की समस्या बनी रहेगी. खुदरा महंगाई, विशेषकर खाद्य कीमतों में बढ़ोतरी आमजन के लिए चिंताजनक हो सकती है.
हालांकि, महंगाई कम होने से भले ही मध्यम वर्ग के लिए राहत हो, लेकिन निचले स्तर पर कॉरपोरेट और किसानों के लिए यह स्थिति चुनौतीपूर्ण हो सकती है. बढ़ती कीमतें मध्यवर्ग के लिए भले ही थोड़ी मुश्किलें पैदा करें, लेकिन इससे किसानों की आमदनी और मांग में बढ़त हो सकती है.
अगले कुछ दिनों में पेश होनेवाला आम बजट महत्वपूर्ण होगा. व्यक्तिगत आयकर की दरों में कटौती से मध्य वर्ग को राहत मिल सकती है. इसके अलावा वैश्विक स्तर पर ब्रेक्जिट, अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध जैसे हालात भी अर्थव्यवस्था पर असर डालेंगे. कुल मिलाकर आनेवाला साल अर्थव्यवस्था के लिए बिल्कुल भी आसान नहीं होने जा रहा है.
क्या औपचारिक क्षेत्र शुरू करेगा निवेश
नये साल में पूंजी निर्माण के लिए सरकार को कड़ी मशक्कत करनी होगी. औपचारिक क्षेत्र अपनी क्षमता के अ‌नुसार निवेश करेगा, इस बात की संभावना बहुत कम है. दिसंबर माह में भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी मौद्रिक नीति समीक्षा में कहा था कि औपचारिक क्षेत्र द्वारा अपनी क्षमता से 70 प्रतिशत से भी कम निवेश किये जाने की संभावना है.
निवेश में बढ़ोतरी के दो संभावित रास्ते हैं, पहला रीयल एस्टेट के माध्यम से और दूसरा सड़कों, रेलवे, खनन, जल परिवहन, हवाई अड्डों, तेल और गैस पाइपलाइनों, बिजली पारेषण ग्रिड आदि के माध्यम से. सार्वजनिक वित्त और बेहतर नीति के माध्यम से इसमें निवेश बढ़ सकता है.
बिना बिक्री और अधूरे पड़े प्रोजेक्ट रीयल एस्टेट की वर्तमान में सबसे बड़ी समस्या है. भारत सरकार द्वारा 25,000 करोड़ के वैकल्पिक निवेश कोष (एआईएफ) की व्यवस्था अच्छी है, लेकिन यह रीयल एस्टेट में निवेश आकर्षित करने के लिहाज से काफी कम है. लंबित प्रोजेक्ट को खरीदने और पूरा करने के लिए नये सिरे से प्लानिंग की जरूरत है. इसके अलावा वित्त और कानूनी प्रावधानों के स्तर पर भी काम करने की जरूरत है.
क्या उपभोक्ता मांग में होगी बढ़त
मौजूदा वित्त वर्ष की पहली छमाही में निजी उपभोग वृद्धि में गिरावट आयी है. इसकी प्रमुख वजह नौकरियों की कमी, आय में गिरावट और गैर-बैंकिंग वित्त क्षेत्र में आसान कर्ज की आयी कमी है. उपभोक्ताओं को बाजार की ओर आकर्षित करने के लिए जरूरी है कि उनके पास अतिरिक्त धन पहुंचे, जिसके लिए बजट में व्यक्तिगत आयकर दरों में कमी की जा सकती है.
एक धारणा है कि इस बचत का इस्तेमाल लोग सामानों को खरीदने और सेवाओं के लिए करेंगे, जिससे धीमी पड़ चुकी मौजूदा मांग में तेजी आयेगी.
हालांकि, इसका रिस्क भी है कि अगर उपभोक्ता खर्च की बजाय टैक्स बचत को बचाने का फैसला करें, तो इससे सरकारी खर्च क्षमता प्रभावित होगी. हालांकि, बीते कुछ महीनों से बढ़ती खाद्य महंगाई से उम्मीद की जा रही है कि इससे ग्रामीणों और किसानों को फसलों के अच्छे दाम मिलेंगे. महंगाई में बढ़ोतरी से शहरी क्षेत्रों में लोगों के वेतन मांग में वृद्धि होगी, जिससे उपभोक्ता मांग में बढ़ोतरी हो सकती है.
क्या आयकर और जीएसटी दरों में होगी कटौती
पिछले सितंबर महीने में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कॉरपोरेट कर की दरों में बड़ी कटौती कर लोगों को आश्चर्य में डाल दिया था. अब क्या वे बजट में व्यक्तिगत आयकर दरों में कटौती करने जैसा कदम उठा सकती है? क्या वे जीएसटी दरों में संरचनात्मक सुधार जैसा फैसला कर सकती हैं?
यह नये साल में बड़ा सवाल हो सकता है. आयकर दरों में कटौती से भले ही लोगों को सीधे तौर पर लाभ हो और मांग में बढ़त हो, लेकिन यह लंबी अवधि के लिए रिस्क भरा हो सकता है. इसका असर सरकारी खर्च पर पड़ेगा.
अगर करों में कटौती की जाती है, तो इससे राजस्व घटेगा और राजकोषीय घाटा तेजी से बढ़ जायेगा. बड़े स्तर पर आर्थिक गतिविधियां प्रभावित होंगी, विशेषकर नियंत्रित महंगाई और कम ब्याज दरें भी प्रभावित होंगी. कुल मिलाकर आयकर दरों में कटौती राजकोषीय घाटे के असर को बढ़ा सकती है.
ठीक इसी तरह जीएसटी की पांच दरों की बजाय दो दरों के संरचनात्मक सुधार को लेकर भी कई तरह के सवाल हैं. मौजूदा राजस्व मसला ऐसे सुधार के लिए बाधक है. इसी वजह से कुछ राज्यों ने भी ऐसे बदलाव की खिलाफत की है. हालांकि, अगर अर्थव्यवस्था गति पकड़ती है और राजस्व में बढ़त होती है, तो जीएसटी सुधार पर दांव
लगाया जा सकता है.
पिछले सितंबर महीने में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कॉरपोरेट कर की दरों में बड़ी कटौती कर लोगों को आश्चर्य में डाल दिया था. अब क्या वे बजट में व्यक्तिगत आयकर दरों में कटौती करने जैसा कदम उठा सकती है?
क्या वे जीएसटी दरों में संरचनात्मक सुधार जैसा फैसला कर सकती हैं? यह नये साल में बड़ा सवाल हो सकता है. आयकर दरों में कटौती से भले ही लोगों को सीधे तौर पर लाभ हो और मांग में बढ़त हो, लेकिन यह लंबी अवधि के लिए रिस्क भरा हो सकता है. इसका असर सरकारी खर्च पर पड़ेगा.
अगर करों में कटौती की जाती है, तो इससे राजस्व घटेगा और राजकोषीय घाटा तेजी से बढ़ जायेगा. बड़े स्तर पर आर्थिक गतिविधियां प्रभावित होंगी, विशेषकर नियंत्रित महंगाई और कम ब्याज दरें भी प्रभावित होंगी. कुल मिलाकर आयकर दरों में कटौती राजकोषीय घाटे के असर को बढ़ा सकती है. ठीक इसी तरह जीएसटी की पांच दरों की बजाय दो दरों के संरचनात्मक सुधार को लेकर भी कई तरह के सवाल हैं.
मौजूदा राजस्व मसला ऐसे सुधार के लिए बाधक है. इसी वजह से कुछ राज्यों ने भी ऐसे बदलाव की खिलाफत की है. हालांकि, अगर अर्थव्यवस्था गति पकड़ती है और राजस्व में बढ़त होती है, तो जीएसटी सुधार पर दांव
लगाया जा सकता है.
क्या कर्ज सस्ते होंगे
अप्रैल के बाद दरों में कटौती आम आदमी के लिए राहत भरी हो सकती है. निवेशकों की उम्मीद के बावजूद भारतीय रिजर्व बैंक ने दिसंबर में ब्याज दरों में कटौती नहीं की. कर्जदारों के लिए स्थिति संतोषजनक नहीं है. हालांकि, जब अर्थव्यवस्था में कम कर्ज दरों की दरकरार है, तो ऐसे में बढ़ती कीमतें और राजस्व घाटा बाधक है. बीते फरवरी से 135 बेसिस प्वॉइंट की कटौती के बावजूद बेंचमार्क सरकारी बॉन्ड पर मुनाफा 6.59 प्रतिशत है, जिससे स्पष्ट है कि बाजार में सरकारी वित्त को लेकर भय की स्थिति है.
कम जीएसटी कलेक्शन की संभावनाओं के मद्देनजर भारत सरकार उधार लक्ष्य का अतिलंघन कर रही है. साल 2020 की पहली छमाही तक मुद्रास्फीति के तय लक्ष्य को 4 प्रतिशत के आसपास रखने के कारण दरों में बड़ी कटौती की गुंजाइश कम है.
हालांकि, आम आदमी के लिए ऋण अदायगी के बोझ के कम होने की संभावना है. इसकी वजह है कि अधिकांश खुदरा ऋण अब रेपो दर या सरकारी बॉन्ड जैसे बेंचमार्क से जुड़ चुके हैं. अप्रैल के बाद अगर आरबीआइ दरों में सीमित कटौती करता है, तो यह आम आदमी के लिए थोड़ी राहत भरी खबर हो सकती है.
क्या थमेगा रोजगार संकट
देश में हर साल कार्यबल का हिस्सा बन रहे एक से सवा करोड़ लोगों को रोजगार मुहैया कराने के लिए जरूरी है कि अर्थव्यवस्था की विकास दर लगभग दोहरे अंक में हो. मौजूदा विकास दर 4.5 प्रतिशत से 2020 में इसकी कल्पना नहीं की जा सकती है.
हालांकि, 2020 में उम्मीद की जा सकती है कि विभिन्न क्षेत्रों में जा रही नौकरियों का सिलसिला थमेगा और ठप पड़ी भर्ती की राह खुलेगी. कम आय वाली नौकरियों की वजह से संकट में आयी उच्च कौशल वाली नौकरियों के दिन बहुरने की आशा की जा सकती है.
हालांकि, ग्रामीण क्षेत्र में अर्धकुशल और अकुशल मजदूरों के लिए रोजगार का संकट कहीं अधिक चिंताजनक है. आर्थिक मंदी का असर यहां सबसे अधिक है. ऑटो मोबाइल सेक्टर, निर्माण, निर्यात क्षेत्रों में गिरावट और कृषि उद्योगों में मांग की कमी कम चिंताजनक नहीं है. आशा है कि 2020 में अर्थव्यवस्था में धीमा सुधार होगा, जिससे जॉब सेक्टर में कुछ राहत मिल सकती है.
निर्माण क्षेत्र में सरकारी स्तर पर सुधार की पहल अच्छा कदम है, जहां सबसे अधिक रोजगार मिलता है. अमेरिका-चीन तनातनी कम होने से भारतीय निर्यातकों को राहत मिल सकती है. सबसे अहम है कि बैंकिंग-एनबीएफसी संकट हल होने से मांग और निवेश में बढ़ोतरी की संभावना है.
क्या हैं एसआइपी की उम्मीदें
अगर मध्यम और लघु कंपनियां मौजूदा हालातों से उबरती हैं, तो एसआइपी हर महीने 10 हजार करोड़ रुपये को पार कर सकता है. खुदरा निवेशक स्टॉक मार्केट के बारे में ज्यादा नहीं जानते. ऐसे में सवाल है कि क्या वे इस समय धैर्य रख पायेंगे? निवेशकों के विभिन्न वर्गों द्वारा उदासीनता दिखाने के बावजूद खुदरा निवेशक इक्विटी म्युचुअल फंड (एमएफ) में हर महीने रिकॉर्ड रकम जमा करते हैं.
यह सच है कि इक्विटी स्कीम एसआइपी में तीन से चार साल पहले निवेश करनेवाले लोग अभी भी लाभ नहीं प्राप्त कर पाये हैं. इससे पहले भी जो लोग एसआइपी शुरू कर चुके हैं, उन्हें भी संतोषजनक और स्पष्ट लाभ नहीं मिल पाया है.
ऐसा इसलिए है कि रोजाना सेंसेक्स और निफ्टी की रिकॉर्ड बढ़त के बावजूद उनके इक्विटी म्युचुअल फंड को रिटर्न करने में संघर्ष करना पड़ रहा है. एसआइपी मुख्य रूप से मध्यम/लघु कैप फंड में केंद्रित है, जबकि शेयर बाजार में प्रमुखता बड़ी कैप की है. खुदरा निवेशक एसआइपी में खूब पैसा यह मानते हुए लगा रहे हैं कि वे कम दाम में ज्यादा हासिल कर रहे हैं.
इसमें कुछ निवेशक अपना धैर्य खो रहे हैं. इसका कुल मिलाकर असर इक्विटी स्कीम पर पड़ रहा है, जो नवंबर में बीते 41 महीनों में सबसे निचले स्तर 1312 करोड़ रुपये पर था. अगर मार्केट रिकवर नहीं होता है, तो कई निवेशक एसआइपी को बंद करने का फैसला कर सकते हैं. हालांकि, अगर सुधार होता है और मार्केट गति पकड़ता है, तो यहां उसका निश्चित ही असर पड़ेगा.
क्या सेंसेक्स पचास हजार तक पहुंच पायेगा
वित्तीय या स्टॉक मार्केट के बारे में पूर्वानुमान हमेशा से चुनौतीपूर्ण रहा है. फिर भी इस बात के पर्याप्त संकेत है कि 2020 में भारत में इक्विटी बाजार के लिए बेहतर संभावनाएं होंगी. लेकिन ऐसा तब होगा जब कर्ज की स्थितियां आसान होंगी और मांग में अचानक आयी गिरावट में बदलाव आयेगा.
व्यापक स्तर पर बाजार की कमजोरी और वृद्धि में गिरावट के बावजूद निफ्टी और सेंसेक्स बढ़ रहे हैं. साल 2020 में बाजार की स्थितियां सुधरेंगी. ऐसा इसलिए कि 2014 के बाद, किसी भी वर्ष की तुलना में पिछले वर्ष अधिक विदेशी धन स्टॉक में डाला गया था. लेकिन अर्थव्यवस्था की बेहतरी के लिए ऋण वसूली को लेकर महत्वपूर्ण सुधारात्मक कदम उठाने की आवश्यकता है.
गैर-बैंक ऋणदाता संकट को हल करने की जरूरत है, ताकि छोटे और मध्यम उद्यमों (एसएमई) को धन प्राप्त हो सके. इसके अतिरिक्त व्यक्तिगत आयकर में कटौती, अगर संभव हो तो अधिक ब्याज दर में कटौती जैसे कदम उठाने से बैंक और एनबीएफसी के स्टॉक में तेजी आयेगी और गिरते ऑटो सेक्टर को भी मदद मिलेगी. यह वर्ष इसलिए भी बेहतर हो सकता है क्योंकि अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों में कई सारे सकारात्मक कदम उठाये गये हैं

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें