10.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

सामान्य राजनेता नहीं हैं जॉनसन!

बोरिस जॉनसन का राजनीतिक करियर तमाम उतार-चढ़ाव से भरा हुआ है. ब्रिटेन के आम चुनाव में ऐतिहासिक सफलता हासिल करने से पहले जॉनसन लंबी राजनीतिक पारी खेल चुके हैं. लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के पॉलिटिकल साइंटिस्ट जोनाथन हॉपकिन ने एक बार कहा था कि वह सामान्य नागरिक की तरह बिल्कुल प्रतीत नहीं होते. अपने मुताबिक […]

बोरिस जॉनसन का राजनीतिक करियर तमाम उतार-चढ़ाव से भरा हुआ है. ब्रिटेन के आम चुनाव में ऐतिहासिक सफलता हासिल करने से पहले जॉनसन लंबी राजनीतिक पारी खेल चुके हैं. लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के पॉलिटिकल साइंटिस्ट जोनाथन हॉपकिन ने एक बार कहा था कि वह सामान्य नागरिक की तरह बिल्कुल प्रतीत नहीं होते. अपने मुताबिक माहौल तैयार करने में उन्हें विशेषज्ञता हासिल है. उनका तरीका कई बार मजाकिया भी होता है, इससे वे पार्टी लाइन से इतर लोगों को आकर्षित कर पाने में सफल होते हैं.

बचपन में एक बार उनके व्यवहार पर टीचर ने अभिभावकों से कहा था कि वे मेहनती नहीं है, लेकिन बहुत चालाक हैं. ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में वे ऑक्सफोर्ड यूनियन डिबेटिंग सोसाइटी के अध्यक्ष बने और इस दौरान वे बुलिंगडन क्लब के सदस्य बन गये, जो शराब और नशाखोरी के लिए बदनाम क्लब था.
पत्रकार से मेयर तक : ब्रुसेल्स में डेली टेलीग्राफ के युवा पत्रकार के रूप में बोरिस ने अपने संपादकों के साथ यूरोपीय समूह और रेड टेप पर अनेक रिपोर्ट की. इसका ब्रिटेन के राजनीतिक हलके में बड़ा प्रभाव पड़ा. बोरिस जॉनसन ने पत्रकारिता और राजनीति दोनों में अपनी छाप छोड़ी. उन्होंने एक पत्रिका के संपादक, विधि वेत्ता के रूप में और टीवी कॉमेडी शो में भी काम किया. साल 2008 में वे लंदन के मेयर चुने गये और 2016 तक वे इस पद पर रहे.
‘गेट ब्रेक्जिट डन’ के नारे के साथ चुनाव में :
जनमत संग्रह के बाद पूर्व प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने बोरिस जॉनसन को फॉरेन सेक्रेटरी का कार्यभार सौंपा. दो साल के अंदर ही उन्होंने ब्रेक्जिट ब्लूप्रिंट के विरोध में इस्तीफा दे दिया. इसके बाद जुलाई 2019 में वे कंजरवेटिव लीडरशिप जीतने में सफल हुए.
संसद द्वारा प्लान खारिज होने के बाद इसी दौरान थेरेसा मे ने इस्तीफा दे दिया. सत्ता प्राप्त करने के बाद बोरिस ने कंजर्वेटिव के साथ यह वादा किया कि वे 31 अक्तूबर के बाद ब्रेक्जिट टालने की बजाय ‘घाटी में मर जाना’ पसंद करेंगे.
इसके बाद शुरुआती तीन महीने उनके लिए निराशाजनक रहे. जनप्रतिनिधियों द्वारा घिरने के बाद उन्होंने संसद को स्थगित कर दिया, लेकिन इसे अवैध मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को खारिज कर दिया.
रिस्क लेकर मिली कामयाबी : उनके द्वारा थोपे जा रहे ब्रेक्जिट विधेयक को संसद ने खारिज कर दिया है और इसके लिए मजबूर किया कि वे यूरोपीय समूह से अतिरिक्त समय की मांग करें. ‘करो या मरो’ की नियत तिथि 31 अक्तूूबर, आयी और चली गयी.
इसके बाद जॉनसन ने बहुमत और जनादेश प्राप्त करने की उम्मीद में चुनाव का बड़ा रिस्क लिया. खास बात है कि यह उनके पक्ष में गया. उनकी असभ्य राजनेता की छवि होने के बावजूद पूरा कंजरवेटिव पार्टी का चुनाव प्रचार काफी अनुशासनात्मक और केंद्रित रहा. इस दौरान ‘गेट ब्रेक्जिट डन’ पर वे अडिग रहे.
क्या भारत के साथ रिश्तों में बढ़ेगी गर्मजोशी
ब्रिटेन में रह रहे भारतीय मूल के लोगों को पूरा विश्वास है कि बोरिस जॉनसन की वापसी के बाद भारत के साथ संबंध प्रगाढ़ होंगे. लोगों का मानना है कि जॉनसन ब्रेक्जिट के बाद शायद पहली विदेश यात्रा भारत की ही करें. बुनियादी तौर पर जॉनसन भारत के हिमायती रहे हैं. उनकी पूर्व पत्नी भारतीय थीं, जिससे उनका भारत से पुराना लगाव रहा है. लंदन के मेयर रहते हुए वे भारत की यात्रा कर चुके हैं. हालांकि, दोनों देशों के रिश्तों में गहराई की कमी दिखती रही है.
शुरू होंगे नये सिरे से व्यापारिक संबंध!
वर्तमान में द्विपक्षीय व्यापार करीब 17 अरब डॉलर के अासपास है, जो वर्षों से इसी के इर्द-गिर्द चल रहा है. इससे स्पष्ट है कि आर्थिक गतिविधियों को लेकर दोनों तरफ से उत्साह कम दिखाया गया है. भारत की यूरोपीय समूह के साथ व्यापारिक घनिष्ठता है. ऐसे में नये सिरे से व्यापारिक समझौते के लिए ब्रिटेन को ही पहल करनी होगी.
दुनिया की तरह ब्रिटेन का भी मानना है कि भारत बड़ा बाजार है, जिससे व्यापार उनके लिए हितकर होगा. वर्तमान में करीब 900 भारतीय कंपनियां यूरोप में सक्रिय हैं. यहां भी कई भारतीय कंपनियों का बड़ा निवेश है. पाकिस्तानी मूल के लोगों का भी मानना है बोरिस जॉनसन भारत के साथ रिश्तों को मजबूत करने को ज्यादा प्राथमिकता देंगे.
अलेक्जेंडर बोरिस डी फेफेल जॉनसन
1964 : अलेक्जेंडर बोरिस डी फेफेल जॉनसन का न्यूयार्क में जन्म.
1977 : एटॉन में दाखिला, जहां शिक्षकों ने कहा कि उनका बर्ताव ठीक नहीं है.
1983 : स्कॉलरशिप पर क्लासिक्स अध्ययन के लिए ऑक्सफोर्ड गये और इस दौरान बदनाम बुलिंगडन क्लब में शामिल हो गये.
1987 : 2:1 से स्नातक उपाधि मिली. टाइम्स में ग्रेजुएट ट्रेनी के तौर पर जुड़े और कुछ दिनों के बाद बाहर निकाल दिये गये.
1989 : ऑक्सफोर्ड यूनियन में डेली टेलॉग्राफ के संपादक मैक्स हैस्टिंग को वक्ता के तौर पर बुलाने के बाद डेली टेलॉग्राफ में नौकरी प्राप्त की. इसके बाद 25 साल की आयु में ब्रुसेल्स संवाददाता के रूप में प्रोन्नति मिली.
1994 : टेलीग्राफ के सहायक संपादक और मुख्य राजनीतिक स्तंभकार बने. उन्हें स्पेक्टेटर में कॉलम मिला.
1998 : ‘हैव आइ गॉट न्यूज’ पर प्रस्तोता के रूप में दिखे और गुप्पी टेप पर चर्चा करते हुए दर्शकों को हंसाया.
1999 : द स्पेक्टेटर के संपादक बने. यहां उनका चार साल का कार्यकाल रहा.
2001 : हेनले के लिए सांसद बने. वे 2008 तक इस पद पर रहे.
2008 : लंदन के मेयर बने. वे 2016 तक इस पद पर रहे.
2016 : विदेश सचिव बने. यहां 2018 तक रहे.
2019 : मई महीने में कंजरवेटिव पार्टी के नेता चुने गये.
Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel