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लोकांचल की अनमोल विरासत हैं पं शैलजा

डॉ उत्तम पीयूष uttampiyush2018@gmail.com संताल परगना मधुपुर क्षेत्र के गीतकार शैलजा झा अख्यात ही रहे. ग्राम बघनाडीह के रहने वाले शैलजा झा ‘पाथरोल ईस्टेट’ के प्रख्यात काली मंदिर से भी जुड़े रहे. बाबा बैधनाथ की महिमा गाने, भजनेवालों को कभी ख्याति भी मिली, परंतु शायद पूरे संताल परगना में महाकाली के ऐसे सिद्ध साधक गीतकार […]

डॉ उत्तम पीयूष
uttampiyush2018@gmail.com
संताल परगना मधुपुर क्षेत्र के गीतकार शैलजा झा अख्यात ही रहे. ग्राम बघनाडीह के रहने वाले शैलजा झा ‘पाथरोल ईस्टेट’ के प्रख्यात काली मंदिर से भी जुड़े रहे. बाबा बैधनाथ की महिमा गाने, भजनेवालों को कभी ख्याति भी मिली, परंतु शायद पूरे संताल परगना में महाकाली के ऐसे सिद्ध साधक गीतकार को वह नाम-सम्मान नहीं मिल पाया, जिसके वह हकदार थे.
पंडित शैलजा झा (1895–1973) मूलत: भजन लिखनेवाले लोक गीतकार थे. मधुपुर की अाराध्य देवी मां काली रही हैं पाथरोल वाली. गौर से देखा जाए, तो देवघर जिले की भक्तिधारा के दो केंद्र हैं- बाबा बैधनाथ और महाकाली पाथरोल वाली. लोक आस्थाओं को यदि समझना है, तो इन आस्था केंद्रों पर रचे गये साहित्य को भी देखना चाहिए. पं शैलजा झा अपनी माटी और अपनी माय का परिचय कुछ इस प्रकार से देते हैं –
देवघर क्षेत्रे मधुपुर निकट एक ग्राम हे
विख्यात हे सब जगह में पाथरोल तेहि को नाम हे
तहां विराजे भव्य भवन विशाल काली धाम हे
नर-नारी दर्श-पर्स से मगन आगे जान हे.
पं शैलजा झा के भक्तिगीत मधुपुर लोकांचल की बेशकीमती विरासत हैं, जिन्हें नयी पीढ़ी तक ले जाने का दायित्व भी समय के कांधों पर ही है. मूलत: मां काली को समर्पित उसके गीत लोकांचल के असंख्य जनों की वाणी बन जाती है.
जिसका सबकुछ हेरा गया है, जिनके छप्परों की छौनी बरसात से पहले न हो सकी, जिन किसानों के धान के बीज बिन पानी सूख गये या जिनकी आंखों की उजास मद्धिम पड़ने लगी, उन तमाम लोगों में शैलजा के भक्ति गीत उम्मीदों और सपनों के जगाने के गीत बन जाते हैं. रक्षाकाली, पाथरोल की वंदना करते हुए गीतकार कहते हैं :
काली भजहों नर-नारी
शैलजा सबहिं बिसारी.
लगभग दो सौ से अधिक गीत रचने वाले शैलजा झा का कोई संग्रह उपलब्ध नहीं हैं. विभिन्न ग्रामों की कुछ भजन मंडलियां हैं, जो विभिन्न मांगलिक अवसरों पर उनके लिखे-रचे गीत गाती हैं.
आज भी मधुपुर के दर्जनों ग्रामों में शैलजा झा के गीत लोककंठों में तो सुरक्षित हैं, परंतु इनका संकलन एवं प्रकाशन भविष्य के स्कॉलर्स और पाठकों के लिए जरूरी है. पं शैलजा झा ने न केवल मां काली पर भक्तिगीत रचे, बल्कि उन्होंने राधा-कृष्ण और नारायण भगवान पर भी गीत लिखे. श्रीकृष्ण को समर्पित शैलजा झा की पंक्तियां कुछ यूं हैं :
दीन दयाल प्रभु नंदकिशोर
विहुंसी प्रगट वहीं ठोरए
शैलजा पूजत युगल मुरतिया
बैइठी गेईला अष्टबांका चोर.
घेरा (घैरा), रास, वंदना, भजन में निष्णात पं शैलजा झा ने सरल-सीधी भाषा में ईश्वर की अराधना की है. वह लिखते हैं :
शैलजा भजत हरिनाम
उन बिन सब है बेकाम.
जब पं शैलजा झा जैसे गीतकार अपना सब कुछ बिसार कर मां काली और ईश्वर को भजते हैं, तो यह आवश्यक है कि इनके भजे और गाये गीतों को नये सोपान दिये जाएं. भक्ति का यह आलम है कि वह कह डालते हैं :
शैलजा द्विज गावत कर जोरी
हरि की महिमा मोरे अंग बसी री.
ग्राम सुग्गापहाड़ी के स्वर्गीय नारायण पंडित और जयदेव पंडित की भजन-मंडलियां आज भी गांव-गांव में पं शैलजा झा के गीत गाते हैं.
भक्ति के साथ-साथ सामाजिक सुधार पर भी उन्होंने गीत रचे, जिन्हें ढोलक, नाल, हारमोनियम, करताल, झाल के साथ जब लोकगायकों एवं भजन-मंडली की टीम सुर में गाती है, तो लगता है ऐसे गीतकार की सारी रचनाएं इकट्ठी पढ़ी जाएं, सुनी जाएं और ग्रामांचलों का इक अलग-सा मन मिजाज समझा जाए. भक्तिगीत में सामाजिक वेदना से भरी ये पंक्तियां पं शैलजा झा को समझने-जानने की नयी खिड़कियां खोलती हैं :
कैसे छुअब प्रभु के चरनियां हो
हम तो जाति के भिलनियां हो
नहिं सुनलौं भगवत गीता
हरि से नय कैलौं मीता
नहिं कैलों गंगा असननियां हो
कैसे छुअब प्रभु के चरनियां हो.
एक समाज को जानने-समझने के लिए उस समाज में रचे साहित्य से अवश्य गुजरना चाहिए. लोक-जीवन के स्वप्न, उनकी आशाएं, उनकी पीड़ा और कशमकश को हम गीतकार शैलजा झा जैसे रचनाकार को जाने बिना कैसे समझेंगे!
लेखक साहित्यकार एवं शोध अध्येता हैं.

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