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झारखंड के पांच दिग्गजों के रोचक संस्मरणों की बेहतरीन दस्तावेज
अनुज कुमार सिन्हा वीर भारत तलवार झारखंड आंदाेलन के शिल्पकार, रणनीतिकार, एक्टिविस्ट, बाैद्धिक खुराक देनेवाले आंदाेलनकारी और जेएनयू के प्राेफेसर रहे हैं.हाल ही में उनकी किताब आयी है- झारखंड में मेरे समकालीन. इस पुस्तक में डॉ रामदयाल मुंडा, डॉ वीपी केशरी, कुमार सुरेश सिंह, डॉ निर्मल मिंज और डॉ दिनेश्वर प्रसाद के बारे में विस्तार […]
अनुज कुमार सिन्हा
वीर भारत तलवार झारखंड आंदाेलन के शिल्पकार, रणनीतिकार, एक्टिविस्ट, बाैद्धिक खुराक देनेवाले आंदाेलनकारी और जेएनयू के प्राेफेसर रहे हैं.हाल ही में उनकी किताब आयी है- झारखंड में मेरे समकालीन. इस पुस्तक में डॉ रामदयाल मुंडा, डॉ वीपी केशरी, कुमार सुरेश सिंह, डॉ निर्मल मिंज और डॉ दिनेश्वर प्रसाद के बारे में विस्तार से चर्चा है. झारखंड के इन पांचाें दिग्गजाें काे शायद पहली बार किसी पुस्तक में इतने विस्तार से जगह मिली है.
दरअसल इन पांचाें के साथ लेखक वीर भारत तलवार के निजी आैर गहरे संबंध रहे हैं. पुस्तक में उन्हीं संंबंधाें-घटनाआें का जिक्र किया गया है. पुस्तक की खासियत यह है कि लेखक ने बड़ी दिलेरी, ईमानदारी से संबंधाें-घटनाआें की व्याख्या की है. अगर कभी विचाराें में असहमति हुई है, ताे उसका भी उल्लेख किया है. बेहतर आैर निजी संबंध हाेने के बावजूद सिर्फ तारीफ के पुल नहीं बांधे हैं, बल्कि जरूरत पड़ने पर दायरे में रह कर अालाेचना की है.
पुस्तक पढ़ने से पता चलता है कि लेखक तलवार आैर ये पांचाें एक-दूसरे के प्रति आदर का भाव रखते थे आैर असहमति हाेने पर भी इसका संबंधाें पर नकारात्मक असर नहीं पड़ता था. इस पुस्तक से डॉ मुंडा, डॉ केशरी, कुमार सुरेश सिंह के साथ-साथ झारखंड आंदाेलन के बारे में कई नयी जानकारियां भी मिलती हैं. इन पांचाें पर एक-एक अध्याय है, पर एनई हाेराे पर अध्याय नहीं हाेना थाेड़ा अजीब लगा. हालांकि पुस्तक में हाेराे आैर उनके व्यक्तित्व पर पर्याप्त सामग्री है, लेकिन एक जगह नहीं.
पुस्तक से न सिर्फ डॉ मिंज, डॉ मुंडा, डॉ केशरी, कुमार सुरेश सिंह आैर दिनेश्वर प्रसाद के याेगदान, स्वभाव-व्यवहार, काम करने के तरीके, उनकी कृतियां, बाैद्धिक प्रतिभा, उनके गुण के बारे में जानकारी मिलती है, बल्कि खुद लेखक के बारे में ढेर सारी जानकारियां मिलती हैं. आरंभ के दिनाें में लेखक तलवार कैसे काम करते थे, प्रतिक्रिया व्यक्त करते थे, परिणाम साेचे बगैर कैसे अपनी बात साफगाेई से रखते थे.
झारखंड आंदाेलन के दाैरान ‘शालपत्र’, ‘सामयिक वार्ता’ के प्रकाशन से लेकर बुद्धिजीवी सम्मेलन के आयाेजन का इसमें जिक्र है. इसी क्रम में निर्मल मिंज के संपर्क में आना आैर संकट के दाैर में डॉ मिंज द्वारा उन्हें शिक्षक की नाैकरी देने अाैर मामूली बात पर नाैकरी से इस्तीफा देने की घटना का भी उल्लेख है.
लेखक ने डॉ केशरी के साथ पारिवारिक संबंधाें का भी उल्लेख किया है कि कैसे पूरा परिवार उनके हर निर्णय में साथ खड़ा हाेता था. लिखते हैं कि केशरी जी व्यावहारिक व्यक्ति थे. झारखंड आंदाेलन के साथ-साथ नागपुरी भाषा के उत्थान में उनका बड़ा याेगदान है.
डॉ केशरी के साथ लेखक तलवार हाेराे की झारखंड पार्टी में भी थे. इस पुस्तक से पता चलता है कि 1978 में हाेराे साहब ने काेल्हान से सीधी कार्रवाई का जाे आंदाेलन छेड़ा था, उसका सुझाव तलवार ने ही दिया था. डॉ केशरी काे सांस्कृतिक आंदाेलन का अगुवा बताते हुए लेखक उनके एक निर्णय से सहमत नहीं थे.
वह था डाेमेसाइल नीति का समर्थन करना. डॉ मुंडा पर ताे बड़े विस्तार से चर्चा की गयी है. लेखक ने डॉ मुंडा के बारे में लिखा है कि वह बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे आैर देश के सबसे बड़े आदिवासी बाैद्धिक व्यक्ति. पुस्तक में डॉ मुंडा की किताबाें, मुंडारी व हिंदी कविता, उनके निजी जीवन के साथ-साथ उनके सांस्कृतिक-राजनीतिक कार्याें का भी उल्लेख किया है.
पुस्तक में कुमार सुरेश सिंह के कामाें का उल्लेख है. बिरसा मुंडा पर किये गये उनके कार्य की प्रशंसा ताे की गयी है, पर सिमडेगा गाेलीकांड के असली कारणाें काे भटकाने पर लेखक ने सवाल भी उठाया है.
इस बात का उल्लेख किया है कि कैसे उन्हाेंने थीसिस नहीं लिखने की बात दिनेश्वर प्रसाद से कह दी थी, हालांकि बाद में उन्हें कहने के तरीके पर अफसाेस हुआ था. लेखक की इस बात के लिए सराहना की जानी चाहिए कि उन्हाेंने कुछ छिपाया नहीं. सभी के याेगदान काे सामने लाया, पर किसी काे छाेड़ा भी नहीं, खुद काे भी नहीं.
पुस्तक का नाम : झारखंड में मेरे समकालीन
लेखक : वीरभारत तलवार
प्रकाशक : अनुज्ञा बुक्स, दिल्ली
कीमत : रुपये 250.00
पृष्ठ : 211
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