संजीव कुमार
संपादक, युगवार्ता (साप्ताहिक पत्रिका)
कहते हैं आवश्यकता ही आविष्कार की जननी होती है. यह बात न्यू मीडिया के साथ बखूबी लागू होती है. अखबारों और पत्र-पत्रिकाओं से लोगों तक सूचना पहुंचाने के बाद हमने त्वरित गति से खबरें जन-जन तक पहुंचाने के लिए पहले रेडियो और उसके बाद टेलीविजन का आविष्कार कर उन्हें माध्यम बनाया. अखबारों और पत्र-पत्रिकाओं को छपने और लोगों तक पहुचाने में काफी समय लगता है, जबकि रेडियो और टेलीविजन के जरिये त्वरित गति से लोगों तक पहुंचायी जा सकती है.
बीसवीं सदी में कंप्यूटर के विकास के साथ-साथ एक नये माध्यम का आविष्कार हुआ, जो पूरी तरह डिजिटल है. पहले सीमित इंटरनेट सेवा की वजह से सिर्फ डाटा के आदान-प्रदान के लिए शुरू हुआ यह माध्यम अब विश्वव्यापी हो गया है. आज हम संचार क्रांति के युग में जी रहे हैं.
इंटरनेट और तकनीकी विकास ने एक और नये माध्यम को जन्म दिया. वह है वेब मीडिया. यह वेब मीडिया ही न्यू मीडिया है. यह पारंपरिक मीडिया की तुलना में अधिक व्यापक और वैश्विक है. पारंपरिक मीडिया कहे जानेवाले अखबार, पत्रिकाएं और टेलीविजन माध्यम आज इस न्यू मीडिया का बड़े पैमाने पर उपयोग कर रहे हैं.
इसलिए आज हर अखबार, पत्रिकाएं और टीवी चैनलों ने अपने यहां एक नया विभाग खोल दिया है. जिसे कहीं वेब सेक्शन, कहीं डिजिटल मीडिया सेक्शन, तो कहीं सोशल मीडिया या न्यू मीडिया सेक्शन के नाम से जाना जाता है. हर संस्थान में इस सेक्शन में भारी संख्या में लोग काम कर रहे हैं.
इस सेक्शन से सोशल मीडिया कही जानेवाली फेसबुक, ट्विटर आदि से खबरें भी ब्रेक की जाती है. वहीं यू-ट्यूब और सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे खबर, चित्र और विडियो को भी परंपरागत मीडिया प्रमुखता से स्थान देता है. आये दिन फेसबुक, ट्विटर और यू-ट्यूब को आधार बनाकर बड़े-बड़े मीडिया संस्थान अपने यहां खबरें देते हैं.
इसके साथ ही यह माध्यम किसी ट्रेन दुर्घटना या प्लेन क्रैश होने की जानकारी एनिमेशन के माध्यम से देता है. क्योंकि इस तरह की दुर्घटनाओं की वास्तविक तस्वीरें या विजुअल्स नहीं होते हैं, इसलिए काल्पनिक तस्वीरें और विजुअल्स के जरिये लोगों तक सूचनाएं पहुंचायी जाती हैं. यह मल्टीमीडिया का ही कमाल होता है.
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि परंपरागत मीडिया अब न्यू मीडिया का उपयोग सिर्फ खबरें ब्रेक करने के लिए ही नहीं करता, बल्कि लोगों तक अपनी खबरें सबसे पहले पहुंचाने के लिए भी करता है.
अखबार और पत्र-पत्रिकाएं अपनी स्टोरी फेसबुक, ट्विटर और व्हाॅट्सएप के जरिये शेयर अपने वेबसाइट और यू-ट्यूब चैनल पर आमंत्रित करते हैं. सिर्फ पत्र-पत्रिकाएं व अखबार ही नहीं, अपने आप को सबसे तेज कहनेवाला न्यूज चैनल भी लोगों तक जल्दी पहुंचने के लिए फेसबुक और ट्विटर का उपयोग करता है.
वहीं जो दर्शक उनका प्रोग्राम समय पर नहीं देख पाते, उन्हें अपने प्रोग्राम दिखाने के लिए यू-ट्यूब पर आमंत्रित करते हैं. आज न्यू मीडिया कितना तेज है इसका अंदाजा आप इससे भी लगा सकते हैं कि न्यूज एजेंसी भी फेसबुक और ट्विटर के जरिये सक्रिय है. यानी जो न्यूज एजेंसी अखबारों और न्यूज चैनलों को खबरें मुहैया कराती थी वह भी न्यू मीडिया के जरिये लोगों तक सबसे पहले पहुंचना चाहती है.
शायद इसलिए कहा जाता है कि प्रत्येक तीन मिनट में खबरें पुरानी हो जाती है. आज भारत की 58 प्रतिशत आबादी युवाओं की है. और वह औसतन 6-8 घंटे इंटरनेट और स्मार्ट फोन पर बिताता है. यह समय वह न्यू मीडिया पर ही बिताता है. न्यू मीडिया के आने से आखबारों और पत्र-पत्रिकाओं के सर्कुलेशन में भी कमी आयी है.
इसलिए अखबारी घरानें और न्यूज चैनल्स इन युवाओं को टारगेट बनाकर न्यू मीडिया माध्यमों के जरिये अपना प्रचार-प्रसार कर रहे हैं. लोग अब खबरें अपने मोबाइल पर या तो देखना पसंद करते या पढ़ना. अखबारों और चैनलों की खबरों के लिए गूगल न्यूज, यूसी न्यूज, डेली हंट, जियो न्यूज जैसी कई एप्स भी आ गये हैं. जहां रियल टाइम में कई अखबरों और चैनलों के खबरें पढ़ने को मिल जाते हैं.
यह न्यू मीडिया बाजार का भी एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है. अभी हाल ही में गूगल की तरफ से एक व्यक्ति ने मुझे संपर्क किया और फ्री में वेबसाइट बनाकर देने का वादा कर रहा था. इस न्यू मीडिया पर बाजार कितना हावी है कि गूगल विज्ञापन लगाने के लिए खुद एप्रोच करता है.
न्यू मीडिया ने मीडिया की हदबंदी तोड़ी है और ग्लोबल विलेज की अवधारणा को जन्म दिया है. इसलिए एक क्लिक करते ही आप पूरे विश्व में पहुंच जाते हैं, और क्षण में ही आपके लाखों-करोड़ों पाठक और दर्शक हो सकते हैं. यही वजह है यह अनेक देशों के लिए परेशानी का कारण बनता जा रहा है. हाल के वर्षों में हुए कई आंदोलनों में इस न्यू मीडिया की उपयोगिता स्पष्ट देखी गयी. हाल के वर्षों में न्यू मीडिया न केवल खुद सशक्त माध्यम बनकर उभरा है, बल्कि परंपरागत मीडिया को भी सशक्त बनाया है.
