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सही गलत सूचनाओं की पहचान करना है बड़ा संकट

राहुल कोतियाल रामनाथ गोयनका पुरस्कार से सम्मानित पत्रकार न्यू मीडिया के विस्तार से समाचारों की दुनिया में कई क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं. सबसे अहम तो यही है कि इसने बड़े मीडिया घरानों के एकाधिकार को लगभग समाप्त कर दिया है. हालांकि भारत में आज भी टीवी ही सूचनाओं का सबसे लोकप्रिय माध्यम है, जिसकी पहुंच […]

राहुल कोतियाल

रामनाथ गोयनका पुरस्कार से सम्मानित पत्रकार
न्यू मीडिया के विस्तार से समाचारों की दुनिया में कई क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं. सबसे अहम तो यही है कि इसने बड़े मीडिया घरानों के एकाधिकार को लगभग समाप्त कर दिया है. हालांकि भारत में आज भी टीवी ही सूचनाओं का सबसे लोकप्रिय माध्यम है, जिसकी पहुंच करीब 19.7 करोड़ घरों तक है.
वहीं, देश के लगभग हर दूसरे व्यक्ति के हाथ में चौबीसों घंटे सूचनाएं पाने का माध्यम भी है, जिससे वह अपने अनुसार सूचनाओं का उपभोग कर सकता है. अब सूचनाएं पहले के मुकाबले कहीं तेजी से देशभर में फैलने लगी हैं. निजी कंपनियों की गलतियों से लेकर स्थानीय प्रशासन की मनमानियों तक के खिलाफ अब आम नागरिक इसी माध्यम से अपनी आवाज उठाने लगा है.
न्यूज की दुनिया से जुड़े लोगों के लिए भी न्यू मीडिया के विस्तार ने कई नये विकल्प खोल दिए हैं. पत्रकारिता में बिलकुल नये लोग भी बेहतरीन ग्राउंड रिपोर्ट्स कर रहे हैं, तो इसका श्रेय न्यू मीडिया के विस्तार को ही जाता है. न्यू मीडिया ही अब पारंपरिक मीडिया का अजेंडा भी तय करने की क्षमता रखता है. लेकिन इसके कई नुकसान भी हैं. न्यू मीडिया और विशेषकर सोशल मीडिया पर अक्सर ऐसे मुद्दे सबसे ऊपर छाये रहते हैं, जिनकी न्यूज वैल्यू नगण्य होती है.
हाल ही में हुआ जोमेटो कंपनी का वाकया इसका बेहतरीन उदाहरण है. किसी सिरफिरे ने जोमेटो के एक कर्मचारी से सिर्फ उसके धर्म के कारण खाना लेने से इनकार कर दिया. ऐसे ही कई गैर-जरूरी मुद्दे देश की बड़ी समस्या के रूप में पेश होने लगे हैं और इसकी मूल वजह न्यू मीडिया का विस्तार ही है.
पत्रकारिता का एक मूल उद्देश्य उन लोगों को आवाज देना भी है, जिनकी कहीं सुनवाई न हो रही हो. लेकिन, न्यू मीडिया के विस्तार से अब खबरों में उन्हें ज्यादा जगह मिलने लगी है, जिनकी आवाज पहले ही सबसे बुलंद हो. इसके अलावा प्रॉपगैंडा के तहत होनेवाली पत्रकारिता भी न्यू मीडिया के चलते अपने शिखर पर पहुंच गयी है. आज सैकड़ों वेबसाइट न्यूज पहुंचाने का काम कर रही हैं, लेकिन इनके पंजीकरण की फिलहाल कोई व्यवस्था तक नहीं है.
लिहाजा झूठी खबरें देकर बच निकलने के रास्ते इनके लिए पूरी तरह से खुले हुए हैं. इन कारणों से फेक न्यूज का कारोबार इतनी तेजी से बढ़ रहा है कि अब कई संस्थाएं तो सिर्फ फेक न्यूज को पहचानने का ही काम चौबीसों घंटे कर रही हैं. सरकार के हर सही-गलत फैसले का बचाव करनेवाली कई वेबसाइट आज खुद को न्यूज वेबसाइट बताते हुए पाठकों के बीच पहुंच रही हैं.
भारत में मीडिया लिटरेसी की भारी कमी है, जबकि मीडिया के उपभोक्ताओं की बहुतायत. फर्जी सूचनाओं का विस्तार इतना मजबूत हो चला है कि इसने कई प्रतिष्ठित न्यूज संस्थाओं की विश्वसनीयता को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है. दुर्भाग्य से ऐसी वेबसाइटों की कोई कमी भी नहीं है, जो तथ्यों को पाठकों के पूर्वग्रह के अनुरूप तोड़-मोड़ कर परोस रही हैं. सही-गलत सूचनाओं की यह अति ही मौजूदा समय में न्यू मीडिया से पैदा हुआ सबसे बड़ा संकट बन पड़ा है.
जागरूकता की कमी के कारण अगर फेक न्यूज फैलती है, तो उसे यही सोशल मीडिया खत्म भी करता है. आम नागरिक के लिए यह वरदान से कम नहीं है कि आप अपने प्रधानमंत्री से लेकर सासंद, कलक्टर आदि को अपनी शिकायत सीधे कर सकते हैं, और कई बार उन पर त्वरित कार्रवाई भी होती है.

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