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बोल बम : श्रावण मास में बैद्यनाथ की नगरी में विल्वपत्र की होती है अद्भुत प्रदर्शनी

पं चैतन्य देव मिश्र श्रावण माह में बैद्यनाथधाम में विल्लवपत्र यानी बेलपत्र की प्रदर्शनी अद्भुत होती है. विल्लवपत्र प्रदर्शनी की परंपरा बहुत पुरानी है और इसे भी शिवभक्ति के प्रकार के रूप में देखा जाता है. इसकी एक बड़ी विशेषता यह है कि यही वह मौका होता है, जब आम आदमी पांच, सात और नौ […]

पं चैतन्य देव मिश्र
श्रावण माह में बैद्यनाथधाम में विल्लवपत्र यानी बेलपत्र की प्रदर्शनी अद्भुत होती है. विल्लवपत्र प्रदर्शनी की परंपरा बहुत पुरानी है और इसे भी शिवभक्ति के प्रकार के रूप में देखा जाता है.
इसकी एक बड़ी विशेषता यह है कि यही वह मौका होता है, जब आम आदमी पांच, सात और नौ पत्तों वाले बेलपत्र का दर्शन करता है. इस प्रदर्शनी के लिए देवघर के पंडा के लोग बड़ी तैयारी करते हैं. इसमें एक प्रकार की प्रतिस्पर्धा की भावना होती है. देवघर के आसपास के पहाड़ों और जंगलों से पंडा समाज के लोग खुद से भी बेलपत्र तोड़ कर लाते हैं.विल्लवपत्रों की प्रदर्शनी को लेकर देवघर के लोगों और यहां आने वाले श्रद्धालुओं में भी बड़ी उत्सुकता रहती है.
दरअसल, बैद्यनाथ धाम का स्मरण होते ही गंगा जल और बेलपत्र, ये दो तत्व उभरते हैं. ठीक वैसे ही, जैसे ‘शिव’ नाम में निहित दो शब्द- ‘शि’ एवं ‘व’. इन दोनों अक्षरों के योग से कल्याण (शिव) की अभिव्यक्ति होती है.
वह कल्याण गंगाजल एवं विल्वपत्र के समर्पण से प्राप्त होता है. इसलिए शिव की कृपा प्राप्ति के लिए जहां भक्त सुल्तानगंज से कांवर में जल भर कर बोल बम महामंत्र को जपते हुए श्रावण माह में देवघर पहुंचते हैं और बाबा बैद्यनाथ को अर्पित करते हैं. यह बात तो प्रथम तत्व ‘शि’ के संदर्भ में है.
शिव शब्द के दूसरे तत्व ‘व’ की विवेचना में विल्वपत्र सर्वोपरि है. ‘त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रयायुधम्, त्रिजन्म पाप संहारमं विल्वपत्रं शिवार्पणम्’, इस मंत्र से विल्वपत्र के माहात्म्य का संपूर्ण दर्शन होता है. साथ ही विल्वपत्र की विशिष्टता एवं इसमें निहित ईश्वरीय तत्व का बोध होता है. विल्व वृक्ष यानी बेल के पेड़ को श्रीवृक्ष भी कहते हैैं, जैसा कि लिंग पुराण में कहा गया है कि
विल्वपत्रे स्थिता लक्ष्मीः देवी लक्षण संयुता ।
नीलोत्पलंबिके साक्षात् उत्पले षण्मुखः स्वयम् ।।
अर्थात बेल पत्र में देवी के लक्षण से युक्त लक्ष्मी का वास होता है. नीलोत्पल में साक्षात अंबिका का वास होता है. उत्पल में षणमुख अर्थात कार्तिकेय का वास होता है. अन्यत्र यह भी कहा गया कि अमृतोद्भव श्रीवृक्षं शंकरस्य सदाप्रियम्, अर्थात श्रीवृक्ष अमृत से उत्पन्न शिव जी को सर्वदा प्रिय है.
विल्वपत्र की प्रियता एवं श्रेष्ठता का अनुमान सभी देवों की स्वीकार्यता से भी लगाया जा सकता है. ईश्वर सद्गुण से भरे हुए तत्वों को ग्रहण करते हैं. आयुर्वेद मैं इस विल्वपत्र को औषधीय गुणों से भरा पाया है. तभी तो बैद्वनाथ को न केवल बेलपत्र चढ़ाया जाता है, बल्कि बिल्व वृक्ष की टहनी को घिस कर प्रतिदिन सांध्यकालीन आरती के समय शिवलिंग पर लेप लगाया जाता है.
यह दूसरे दिन प्रातःकाल घाम चंदन के रूप में भक्तों को प्रसाद स्वरूप प्राप्त होता है. अतः बिल्व पत्र ही नहीं, बल्कि संपूर्ण वृक्ष पूजनीय है. शास्त्रकारों ने दुर्गोत्सव के विधान में पराम्बा भगवती दुर्गा के आवाह्न हेतु इसी वृक्ष को प्रशस्त पाया है और देवी पक्ष में षष्ठी तिथि को विल्व वृक्ष में देवी का आमंत्रण कर विशेष पूजा प्रारंभ की जाती है :
विल्ववृक्ष महाभाग सदात्वं शंकरप्रिय।
मम् विघ्न विनाशाय विल्ववृक्षायते नमः।
इसलिए आज भी देवघर का पंडा समाज श्रावण मास में शिवभक्ति के प्रति समर्पित होकर दुरूह पहाड़ियों पर जाकर सुंदर विल्वपत्रों को एकत्र करता है. बहरहाल, कर्क संक्रांति से लेकर सिंह संक्रांति तक के मध्य पड़ने वाली प्रत्येक सोमवारी को बैद्यनाथ मंदिर प्रांगण में विल्लवपत्र की प्रदर्शनली लगती है.
Prabhat Khabar Digital Desk
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