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डॉक्टर की फीस छोड़ हर खर्च मरीज की जेब से

आनंद तिवारी : शहर के बड़े अस्पतालों में शामिल नालंदा मेडिकल कॉलेज अस्पताल (एनएमसीएच) गरीब मरीजों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर रहा. यह सरकारी अस्पताल है. पर सरकारी नुमाइंदे ही सरकार की किरकिरी करा रहे हैं. यहां की व्यवस्था संभालनेवाले ही यहां की बदहाली से गाफिल हैं. यहां सही मायने में न तो मरीजों […]

आनंद तिवारी : शहर के बड़े अस्पतालों में शामिल नालंदा मेडिकल कॉलेज अस्पताल (एनएमसीएच) गरीब मरीजों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर रहा. यह सरकारी अस्पताल है. पर सरकारी नुमाइंदे ही सरकार की किरकिरी करा रहे हैं. यहां की व्यवस्था संभालनेवाले ही यहां की बदहाली से गाफिल हैं. यहां सही मायने में न तो मरीजों को पूरी दवाइयां मिल रही हैं और न ही समय पर इलाज मिल रहा है. मरीजों को ट्रॉली से लेकर दवाओं के लिए रुपये देने पड़ते हैं. यहां तक कि भर्ती मरीजों को डॉक्टर साहब के दर्शन भी बहुत कम ही होते हैं.

ट्रॉली के लिए मरीज से लिये 50 रुपये
मंगलवार को सुबह के 9:20 बजे ओपीडी व इमरजेंसी में मरीजों की जबरदस्त भीड़ दिखी. शहर के गौरीचक से आयी सुदामी देवी गंभीर हैं और 17 अप्रैल को उनकी स्पाइन का ऑपरेशन भी हुआ है. जैसी ही वह ऑटो से परिसर में उतरती हैं, उनका बेटा रणधीर कुमार स्ट्रेचर (ट्रॉली) लाने के लिए दौड़ा. पांच छह की संख्या में बैठे ट्रॉली मैन के पास जैसे ही रणधीर गया, तो वहां ट्रॉली के लिए 50 रुपये मांगे गये. रणधीर गरीबी का परिचय देता है, तो ट्रॉली मैन 10 रुपये और कम कर 40 रुपये में ट्रॉली देने की बात कही. बेटा रुपये दे देता है. फिर ट्रॉली दी जाती है. सुदामी देवी की परेशानी यहीं खत्म नहीं होती, डॉ नजीर हुसैन के चेंबर के बाहर एक घंटे इंतजार के बाद उसे दूसरे डॉक्टर के पास रेफर किया गया.
मरीज करते रहे इंतजार, डॉक्टर का पता नहीं
डिपार्टमेंट ऑफ फिजिकल रिहेब्लिटेशन (पीएमआर) विभाग के पास मरीजों की लंबी लाइन लगी थी. यहां दो डॉक्टरों की ड्यूटी है. लेकिन सुबह के 9:40 बजे तक कुर्सी खाली थी और डॉक्टरों का पता नहीं था. हालांकि विभाग में नर्स उपस्थित थीं, लेकिन वे मरीजों को डॉक्टर के तुरंत आने का भरोसा दिला रही थीं. वहीं, दोनों कुर्सियां खाली देख मरीज व उनके परिजन कभी अंदर तो कभी बाहर डॉक्टर ही राह देख रहे थे. इस विभाग में सुविधा के नाम पर एक एसी लगा है, जबकि सभी उपकरण जर्जर हो चुके हैं.
मरीज के परिजन खुद निकाल रहे निडिल
इमरजेंसी वार्ड में मरीजों की जिंदगी के साथ खुलेआम खिलवाड़ किया जा रहा है. नर्सिंग स्टाफ के बजाय मरीज के परिजन ही हाथ में निडिल लगाने व निकालने का काम रह रहे हैं. बेड के अभाव में इमरजेंसी वार्ड में फर्श पर इलाज करा रही इंदिरा देवी को पानी की बोतल चढ़ायी जा रही है. बीपी शूगर लो होने के साथ ही शरीर फूलने की बीमारी से ग्रस्त इंदिरा की बहू शारदा देवी कई बार सिस्टर रूम में जाकर निडिल बदलने के लिए कह रही थी. लेकिन जब कोई नहीं आया तो शारदा खुद से ही निडिल्स लगाने लगी.
आम मरीजों की तरह टीबी मरीज को कर दिया भर्ती
टीबी जैसी गंभीर बीमारी का इलाज भी एनएमसीएच में आम मरीजों की तरह ही किया जा रहा है. ट्रेसर रूम के कमरा नंबर 13 में भर्ती दिनेश टीबी की चपेट में है. मुंह में मास्क लगाये दिनेश का सामान्य मरीजों की तरह इलाज किया जा रहा है. बेड पर चादर नहीं ऊपर के पंखे भी खराब हैं. मांग रानी ठाकुर कहती हैं कि रात को जब दिनेश को खांसी शुरू होती है, तो वह डॉक्टर के पास जाती हैं, लेकिन रात तो क्या दिन में भी राउंड लगाने खासकर सीनियर डॉक्टर नहीं आते हैं.
खाना ऐसा कि कैदी भी नहीं खाएं
एनएमसीएच परिसर में मुफ्त खाने की ट्रॉली की आवाज मिलते ही मरीज व उनके परिजन अपने-अपने हाथ में खाने का बरतन लेकर दौड़ते दिखे. पांच मिनट के अंदर मरीजों की लंबी लाइन लग गयी. खाने की ट्रॉली पर चार कर्मियों की ड्यूटी लगी थी. मरीज की थाली में मोटा चावल व पतली दाल परोसी जा रही थी, तो मरीज रामा यादव ने कहा कि ऐसा ही खाना अक्सर मिलता है.
मजबूर कर्मियों ने कहा कि जो खाने की मेस से खाना दिया जाता है वही खाना सभी मरीजों को दिया जाता है. खाना ले रहे मरीजों ने कहा कि हरी सब्जी के नाम पर सिर्फ आलू ही दिया जाता है, कभी-कभी परवल की सब्जी दे दी जाती है.
क्या हैं समस्याएं
  • डॉक्टर नहीं आते समय पर
  • ट्रॉली के लिए चुकाने पड़ते हैं रुपये
  • सभी तरह की दवाएं अस्पताल में नहीं मिलतीं
  • पंखे की भी नहीं है बेहतर व्यवस्था
  • खाने के लिए नहीं मिलता पौष्टिक भोजन
  • घर से पंखा लाने को मजबूर मरीज
एनएमसीएच में लगे अधिकांश पंखे खराब हो गये हैं. चिलचिलाती गर्मी में परेशान मरीज पहले तो डॉक्टर व नर्सों से शिकायत करते हैं, वहीं जब उनकी समस्या का समाधान नहीं हो पाता है, तो वह घर से या पास के मार्केट से पंखे खरीद अपने बेड पर लगाते हैं. छोटे पंखे लगाने का नजारा सबसे अधिक स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग, ड्रेसिंग रूम के कमरा नंबर 13, हड्डी रोग विभाग, शिशु रोग विभाग में देखने को मिल जाता है. वहीं कई मरीज हाथ के पंखे खरीद काम चला रहा हैं.
इनका कहना है
मेरी मां सुदामा देवी की स्पाइन की सर्जरी हुई है. दर्द बढ़ने के बाद मैं उन्हें गौरियाचक से एनएमसीएच ले आया. यहां आने के बाद ही ट्रॉली मैन के पास गया, लेकिन वहां स्ट्रेचर व ट्रॉली कुछ नहीं मिली. ट्रॉली मैन ने 50 रुपये की मांग की. जब मैंने 40 रुपये दिये, तो हमें ट्रॉली दी गयी.
दिनेश्वर यादव, परिजन
पत्नी रूबी देवी को कैंसर है. वह बाह्य रोग विभाग में भर्ती है. डॉक्टर ने जो दवा लिखी उनमें बहुत कम ही दवाएं अस्पताल के काउंटर से मिलीं. बाकी दवाएं बाहर से खरीदनी पड़ रही हैं. जबकि, कैंसर की जो दवाएं लिखी गयी हैं, वे महंगी आ रही हैं. मजबूरी में इलाज कराना पड़ रहा है.
अरविंद कुमार, पति
दवा काउंटर पर मरीजों व उनके परिजनों की काफी भीड़ रहने के कारण एक घंटा खड़े होने के बाद ही दवाएं मिलती हैं. अफरा-तफरी और हंगामे के बीच किसी तरह दवाएं दी जाती हैं. कई बार तो महिला लाइन में पुरुष भी आ जाते हैं. बावजूद सुरक्षाकर्मी सिर्फ तमाशा देखते रहते हैं.
मंजू देवी, मरीज
आग से लड़ने की व्यवस्था है ध्वस्त
आग पर काबू पाने के लिए इमरजेंसी से लेकर ओपीडी में फायर फाइटिंग सिस्टम की व्यवस्था की गयी है. लेकिन सभी सिस्टम की तारीख फेल हैं. 31 मार्च, 2018 को इश्यू सिस्टम के एक्सपायर होने की अंतिम तारीख 30 मार्च 2019 है, यानी सारे सिस्टम एक्सपायर हो गये हैं. एक्सपायर होने के तीन महीने बाद भी सिस्टम को बदलने की कोई पहल नहीं की जा रही है. बिजली के तार भी कई जगह खुले हैं.
टांका कटाने को दो दिनों से दौड़ रहा भरत
सड़क दुर्घटना में भरत के एक पैर में गंभीर मोच आयी है. साथ ही उसके सर व कान में चोट लगी है. 10 दिन पहले जैसे-तैसे डॉक्टरों ने पैर में प्लास्टर चढ़ाया व कान के पास छोटी सर्जरी की गयी. प्लास्टर व टांके कटवाने के लिए भरत पत्नी मंजूला देवी के साथ एनएमसीएच का चक्कर लगा रहा है. मरीज ने कहा कि उसे ट्रॉली नहीं मिली. पत्नी के कंधे के सहारे इमरजेंसी के फर्श पर लेटा है और टांके कटने का इंतजार कर रहा है.
कैंसर मरीज को भी बाहर की लिख रहे दवा
बाह्य कक्ष में भर्ती रूबी देवी कैंसर पीड़ित है. रूबी को पांच दिन भर्ती हुए हो गये. मरीज को अस्पताल परिसर से नहीं बल्कि बाहर की अधिकांश दवाएं लिखी जा रही हैं. मरीज के पति अरविंद कुमार कहते हैं रोजाना 200 की दवाएं वह बाहर से लाते हैं. पर्चे पर जो भी दवाएं डॉक्टर की ओर से लिखी जाती हैं, उनमें बहुत कम ही दवाएं दवा वितरण काउंटर से मिलती हैं, बाकी दवाएं बाहर से ही खरीदनी पड़ रही हैं.
दवा वितरण काउंटर पर अफरा-तफरी
दवा वितरण काउंटर पर मरीजों की लंबी लाइन लगी थी. यहां दिव्यांग, महिला व पुरुष काउंटर कुल तीन काउंटरों की सुविधा दी गयी है. लेकिन महिला व पुरुष काउंटर पर ही दवाएं मरीजों को मिल रही हैं. दिव्यांग काउंटर को यहां बंद कर दिया गया है. दिव्यांग मरीज खुद लाइन में लग कर दवाएं लेते हुए देखे गये. इतना ही नहीं, अलग-अलग काउंटर पर महिला व पुरुषों की लंबी लाइन लगी थी. दवा लेने के लिए हंगामा भी हो रहा था.

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