आशीष रंजन, राजनीतिक विश्लेषक
उत्तर प्रदेश के चुनावों को देखें, तो यहां द्विध्रुवीय मुकाबला हुआ है. भाजपा और महागठबंधन यहां सीधे तौर पर मुकाबले में थे और जाति गणित पूरी तरह से काम किया है. मुस्लिम, यादव और जाटव की जहां-जहां आबादी अधिक रही है, वहां वोट प्रतिशत सीटों में तब्दील हुआ है.
महागठबंधन के साथ उनके कोर समर्थक जुड़े रहे और उसके अलावा अन्य मतदाता भाजपा के पक्ष में लामबंद हुए. बिहार में सवर्ण, अत्यंत पिछड़ा वर्ग और दलितों का एक वर्ग भाजपा और जेडीयू के पक्ष में झुका है. कुल मिलाकर देखेंगे, तो एनडीए का वोट प्रतिशत अन्य दलों के मुकाबले अधिक है. भाजपा की रणनीति और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को जनता से स्वीकार किया है और अपने समर्थन की मुहर लगायी है. मुझे ऐसे कई लोग मिले, जो कहते हैं कि वे पहले इंदिरा को वोट करते थे, क्योंकि उनको आवास या अन्य सुविधाएं मिली. मतदाता बहुत ईमानदार होते हैं. जिनकी सरकार में या नेतृत्व में उनको कुछ मिलता है, तो उनको उसके बदले में अपना समर्थन देते हैं. उनको अगर सरकार से परेशानी होती है, तो उसका भी बदला वे सरकार से लेते हैं.

