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मजबूत सुरक्षा के घेरे में इवीएम

जनादेश से यह स्पष्ट होने का वक्त आ गया है कि आखिर सत्ता की कुर्सी पर काबिज कौन होगा. नतीजों से पहले इवीएम सुरक्षा, हेरफेर और आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति के बीच चुनाव आयोग ने सभी आरोपों को बिंदुवार खारिज कर दिया है. सुरक्षा व्यवस्था, चुनावी प्रक्रिया में अपनाये जाने वाले मानकों और पोलिंग बूथ से […]

जनादेश से यह स्पष्ट होने का वक्त आ गया है कि आखिर सत्ता की कुर्सी पर काबिज कौन होगा. नतीजों से पहले इवीएम सुरक्षा, हेरफेर और आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति के बीच चुनाव आयोग ने सभी आरोपों को बिंदुवार खारिज कर दिया है. सुरक्षा व्यवस्था, चुनावी प्रक्रिया में अपनाये जाने वाले मानकों और पोलिंग बूथ से लेकर स्ट्रांग रूम तक कैसे होता है चुनाव आयोग का प्रबंधन, जैसे तमाम जिज्ञासाओं की विस्तृत पड़ताल के साथ प्रस्तुत है यह विशेष पेज..

कैसे होता है इवीएम का प्रबंधन
चुनाव का दौर आते ही इवीएम पर चर्चा गर्म हो जाती है. बीती 21 तारीख को मतगणना के लिए रखी गयी इवीएम में बदलाव संबंधी संदेह को लेकर 22 विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाया था. हालांकि, चुनाव आयोग ने विपक्षी दलों के संदेह को सिरे से खारिज कर दिया और कहा कि इवीएम की सुरक्षा पर कोई खतरा नहीं है.
इवीएम पर चर्चा के दौरान आमजन के जहन में यह प्रश्न उठना लाजिमी है कि जब चुनाव नहीं होता है, तब इवीएम कहां चली जाती हैं? चुनाव के दौरान ये मशीनें पोलिंग बूथ पर कैसे आती हैं और वापस स्ट्रॉन्ग रूम में कैसे ले जायी जाती हैं? इस दौरान सुरक्षा की क्या व्यवस्था होती है?
चुनावपूर्व कहां रखी जाती हैं इवीएम : एक जिले में जितनी भी इवीएम उपलब्ध होती हैं, आमतौर पर वे जिला चुनाव अधिकारी के सीधे नियंत्रण में होती हैं और उसे सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी भी उसी की होती है. चुनाव अधिकारी के निर्देश से इन मशीनों को किसी निर्दिष्ट गोदाम में संग्रहित किया जाता है.
जिस गोदाम में मशीनें रखी जाती हैं, वे कम से कम तहसील स्तर के होने चाहिए. इन गोदामों को सुरक्षित करने के लिए इनमें डबल लॉक का इंतजाम किया जाता है. सीसीटीवी कैमरे की निगरानी में रहनेवाले इन गोदामों को पुलिस या सुरक्षाकर्मी द्वारा चौबीस घंटे सुरक्षा प्रदान की जाती है.
जिन दिनों चुनाव नहीं होता, इवीएम गोदाम में ही रखी होती है. चुनाव आयोग के विशिष्ट निर्देशों के बिना इन्हें गोदाम से बाहर नहीं लाया जा सकता. इसी गोदाम में विशेषज्ञों/ इंजीनियरों द्वारा इवीएम के पहले स्तर की जांच होती है. जिस समय इंजीनियर इन मशीनों की जांच करते हैं, वहां राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि मौजूद रहते हैं.
चुनाव के दौरान विधानसभा क्षेत्र में होती हैं मशीनें
चुनाव तारीख नजदीक आते ही, गोदाम में रखी हुई इवीएम, साॅफ्टवेयर के माध्यम से लोकसभा सीट के विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में बिना किसी क्रम के (रैंडमली) आवंटित की जाती हैं. विधानसभा क्षेत्र के लिए इवीएम का आवंटन होते समय दलों के प्रतिनिधि मौजूद होते हैं.
इन प्रतिनिधियों की उपस्थिति में प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र के लिए आवंटित की गयी इवीएम और वीवीपैट मशीनों की सूची पार्टी ऑफिस के साथ साझा की जाती है.
यहीं से रिटर्निंग ऑफिसर की भूमिका शुरू होती है. प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र के लिए नियुक्त रिटर्निंग ऑफिसर इन आवंटित मशीनों का प्रभार लेते हैं और उन्हें निर्दिष्ट स्ट्रॉन्ग रूम में पूरी सुरक्षा के साथ रखते हैं. यहां से एक बार फिर इन मशीनों को दल के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में बिना किसी क्रम के विशिष्ट मतदान केंद्रों के लिए अधिकृत किया जाता है.
ठीक इसी समय चुनाव में खड़े उम्मीदवार इवीएम की संख्या संबंधित पोलिंग एजेंट के साथ साझा करते हैं, ताकि मतदान शुरू होने से पहले वे इसका सत्यापन कर सकें. वास्तव में यह सबकुछ चुनाव आयोग के निर्देश पर ही किया जाता है. सभी मशीनों को उम्मीदवारों के नाम व चुनाव चिन्हों और बैलेट पेपर से लैस करने के बाद अधिकृत कर दिया जाता है.
इसके बाद दल के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में स्ट्रॉन्ग रूम सील कर दिया जाता है. अगर प्रतिनिधि चाहें, तो स्ट्रॉन्ग रूम में अपना सील भी लगा सकते हैं. रूम सील होने के बाद पुलिस के डिप्टी सुपरिंटेंडेंट रैंक के अधिकारी के निर्देशन में चौबीस घंटे स्ट्रॉन्ग रूम पर पहरा दिया जाता है. संभव होने पर केंद्रीय पुलिस बल के जवान भी पहरा दे सकते हैं.
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
स्ट्रॉन्ग रूम के एंट्री प्वाॅइंट पर सीसीटीवी कैमरा लगा होता है. यहां तैनात सुरक्षा बलों के पास एक लॉग बुक होती है, जिसमें हर एक एंट्री का टाइम, तारीख, अवधि और नाम का उल्लेख आवश्यक है.
स्ट्रॉन्ग रूम की सुरक्षा की जिम्मेदारी जिले के डीएम और एसपी के हाथों में होती है.
स्ट्रॉन्ग रूम में केवल एक तरफ से एंट्री होनी चाहिए और इसमें डबल लॉक सिस्टम होता है. इस रूम की एक चाबी रिटर्निंग ऑफिसर के पास होती है और दूसरी चाबी लोकसभा क्षेत्र के असिस्टेंट रिटर्निंग आॅफिसर के पास होती है.
अगर किसी स्ट्रॉन्ग रूम में कोई दूसरी एंट्री है, तो इसे सुनिश्चित करना होता है कि इस एंट्री से कोई भी व्यक्ति स्ट्रॉन्ग रूम तक न पहुंचे.
मतगणना हॉल और स्ट्रॉन्ग रूम के बीच ज्यादा दूरी होने पर दाेनों के बीच बैरिकेडिंग होनी चाहिए. बैरिकेडिंग के बीच से ही इवीएम काउंटिंग हॉल तक ले जाया जाना चाहिए.
मतों की गिनती के दिन अतिरिक्त सीसीटीवी कैमरे भी लगाये जा सकते हैं, ताकि स्ट्रॉन्ग रूम से काउंटिंग हॉल तक इवीएम ले जाने को रिकॉर्ड किया जा सके और इवीएम में कोई फेरबदल न हो सके.
स्ट्रॉन्ग रूम और काउंटिंग हॉल की लोकेशन में कोई बेसमेंट, छत, किचन या कैंटिन, पानी की टंकी या पंप रूम नहीं होना चाहिए.
नियत तिथि पर सौंपी जाती है मशीन
इवीएम को रखने के बाद नियत तिथि और समय पर स्ट्रॉन्ग रूम खोला जाता है, ताकि निर्दिष्ट मतदान केंद्रों तक मशीन पहुंचाने के लिए उसे पोलिंग पार्टी को सौंपी जा सके. जिस तिथि और समय पर स्ट्रॉन्ग रूम खोला जाना है, उसकी सूचना सभी उम्मीदवारों और उनके चुनाव एजेंटों को पहले ही दे दी जाती है.
निर्दिष्ट मतदान केंद्रों के लिए आवंटित इवीएम के अलावा अतिरिक्त इवीएम भी साथ में ले जायी जाती हैं, ताकि आवंटित इवीएम में तकनीकी खराबी आने पर उसे बदला जा सके. इन अतिरिक्त मशीनों को विधानसभा क्षेत्र के मध्य स्थित किसी सुरक्षित स्थान पर रखा जाता है.
मतदान के बाद सील हो जाती है इवीएम
मतदान खत्म होने के बाद इवीएम को तुरंत ही स्ट्रॉन्ग रूम नहीं भेजा जाता, बल्कि पीठासीन अधिकारी द्वारा इसमें दर्ज मतों का लेखा-जोखा तैयार किया जाता है. लेखा-जोखा तैयार होने के बाद प्रत्येक उम्मीदवार के पोलिंग एजेंट को इसकी सत्यापित प्रति उपलब्ध करायी जाती है.
इसके बाद इवीएम सील कर दी जाती है. इस सील पर उम्मीदवार और उसके एजेंट को हस्ताक्षर की अनुमति होती है, ताकि किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ का पता लगाया जा सके.
इन सभी प्रक्रियाओं के पूरा होने के बाद इवीएम को मतदान केंद्र से स्ट्रॉन्ग रूम लाया जाता है. यहां उस स्ट्रॉन्ग रूम को वरीयता दी जाती है, जो मतगणना केंद्र के नजदीक होते हैं. इवीएम के साथ ही उम्मीदवार या उसके प्रतिनिधि भी स्ट्रॉन्ग रूम आते हैं. सभी इवीएम के स्ट्रॉन्ग रूम पहुंचने के बाद रूम को सील कर दिया जाता है.
यहां भी उम्मीदवार और उसके प्रतिनिधि को रूम में अपना सील या ताला लगाने की अनुमति होती है. साथ ही स्ट्रॉन्ग रूम की देखरेख की अनुमति भी उन्हें होती है. स्टोरेज रूम के चारों तरफ तीन स्तर पर सुरक्षा बलों की तैनाती होती है, जिसमें आंतरिक कक्ष पर केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों का पहरा होता है. परिणाम के दिन, उम्मीदवार या उसके पोलिंग एजेंट द्वारा मशीन नंबर और सील की जांच की जाती है. इसके बाद ही मतगणना शुरू होती है.
मतगणना की सुबह खुलता है स्ट्रॉन्ग रूम
एक बार सील हो जाने के बाद स्ट्रॉन्ग रूम मतगणना वाले दिन सुबह खुलता है. अगर किसी कारणवश इस कमरे को मतगणना वाले दिन से पहले खोलने की जरूरत पड़े, तो उसी उम्मीदवार या उसके प्रतिनिधि के सामने उसे खोला जा सकता है, जिसे इस कमरे में सील या ताला लगाने की अनुमति मिली होती है.
इवीएम और मौजूदा विवाद
निर्धारित सुरक्षा मानकों के विपरीत इवीएम को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने से जुड़ी रिपोर्ट और वीडियो के वायरल होने से इवीएम विवाद एक बार फिर से चर्चा के केंद्र में आ गया है. इवीएम बदलने की आशंका जताते हुए लोगों ने सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े किये हैं. अंतिम चरण के मतदान के संपन्न होने के बाद तमाम विपक्षी दलों ने केंद्रीय चुनाव आयोग से मिलकर अपनी चिंता से अवगत कराया है.
आयोग ने सवालों को किया खारिज : इवीएम को लेकर आ रही रिपोर्ट और तमाम सवालों को केंद्रीय चुनाव आयोग ने सिरे से खारिज कर दिया है. आयोग के मुताबिक मतदान के लिए इस्तेमाल की गयी सभी इवीएम को सुरक्षित स्ट्रांग रूम में पहुंचा दिया गया है, जहां 24 घंटे सुरक्षा और सीसीटीवी से निगरानी हो रही है. साथ ही आयोग का दावा है कि वीडियो में ‘रिजर्व’ इवीएम को दिखाया जा रहा है, जिसे किसी कारणवश वोटिंग के लिए इस्तेमाल की जा रही इवीएम के खराब होने पर प्रयोग में लाया जाता है.
सुरक्षा प्रक्रिया :
हैकिंग : इवीएम का सॉफ्टवेयर नहीं बदला जा सकता है और न ही इसे किसी अन्य उपकरण से जोड़ा जा सकता है.
छेड़छाड़ : मतदान में इस्तेमाल की गयी मशीन से छेड़छाड़ इवीएम तक पहुंचकर ही संभव है.
मतदान : मशीन में ‘क्लोज’ बटन दबाने के बाद कोई मतदान संभव नहीं है.
सुरक्षा व्यवस्था : प्राथमिक स्तर की जांच से लेकर मतगणना तक इवीएम को कड़ी सुरक्षा और निगरानी में रखा जाता है.
प्रत्येक चरण में पार्टियां/ उम्मीदवार शामिल होते हैं.
इवीएम/ वीवीपैट की ढुलाई कंटेनर ट्रक या सील्ड ट्रक से ही होती है.
इवीएम/ वीवीपैट को ढो रहे वाहनों को बंद और पेपर सील किया जाता है.
स्थानांतरण सुरक्षाबलों की निगरानी में होता है, जिसकी वीडियोग्राफी और वाहनों की जीपीएस से निगरानी की जाती है.
इवीएम का प्रबंधन चुनाव आयोग के इवीएम मैनेजमेंट सॉफ्टवेयर (इएमएस) से किया जाता है.
इवीएम/ वीपीपैट वेयरहाउस को खोलने और बंद करने की पूर्व सूचना पार्टियों को दी जाती है.स्रोत : िनर्वाचन आयोग
विवादों से नाता
इवीएम से छेड़छाड़ और विवादों से नाता बहुत पुराना है. इवीएम पर सबसे पहले सवाल वर्तमान में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने ही उठाया था. आज भाजपा इवीएम की विश्वसनीयता पर उठने वाले हर सवाल को सिरे से खारिज कर रही है. हालांकि, बाद में यह मामला तमाम राजनीतिक दलों ने भी उठाना शुरू कर दिया.
वीवीपैट मैचिंग : बीते कुछ वर्षों से इवीएम में मतदान के बाद किसी अन्य पार्टी को वोट जाने को लेकर सवाल खड़ा किया जा रहा है. विपक्षी दल बड़े स्तर पर वीपीपैट (वोटर वेरिफायबल पेपर ऑडिट ट्रेल) सत्यापन की मांग कर रहे हैं.
हालांकि, चुनाव आयोग ने प्रत्येक चुनाव क्षेत्र में एक बूथ पर पूर्ण रूप से वीवीपैट वेरिफिकेशन का प्रस्ताव रखा था. बीते अप्रैल माह में सर्वोच्च न्यायालय ने इसे पांच बूथों तक लागू करने का आदेश दिया था. विपक्ष अब 33 से 50 प्रतिशत बूथों पर वीवीपैट मैचिंग की मांग कर रहा है.
मतदान का इटीपीबीएस सिस्टम : इलेक्ट्रॉनिकली ट्रांसमिटेड पोस्टल बैलेट सिस्टम (इटीपीबीएस) को सीडैक की सहायता से चुनाव आयोग ने सर्विस वोटरों के लिए बनाया है. इसमें दो स्तरीय सुरक्षा है.
ओटीपी और पिन के इस्तेमाल के दौरान सुरक्षा का विशेष प्रबंध होता है. यूनीक क्यूआर कोड की वजह से इसमें हेराफेरी नहीं की जा सकती है. अपने मतदान क्षेत्र से दूर किसी भी जगह से मतदाता इस इ-पोस्टल बैलेट सिस्टम का इस्तेमाल करते हुए मतदान कर सकता है. सर्विस वोटर, सर्विस वोटर की पत्नी और ओवरसीज वोटर इस इटीपीबीएस सिस्टम का इस्तेमाल कर सकते हैं.

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