सत्रहवीं लोकसभा के चुनाव परिणाम घोषित होने में कुछ ही घंटे शेष बचे हैं. ईवीएम के खुलने के साथ ही देश के करोड़ों मतदाताओं के फैसले से तमाम जनप्रतिनिधियों के भाग्य का निर्णय हो जायेगा. मतगणना में प्राप्त सीटों के आधार पर नयी लोकसभा का गठन और सरकार बनाने का रास्ता साफ होगा.
एक महीने से अधिक समय तक चली मतदान प्रक्रिया में जहां करोड़ों नागरिकों ने उत्साह के साथ भाग लिया, वहीं मतदान में लगे अधिकारियों, कर्मचारियों और सुरक्षाबलों ने इसे संपन्न कराने में कअपना योगदान दिया.
पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले इस बार 8.4 करोड़ अधिक मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन, मतदान तथा मतगणना प्रक्रिया और मशीनरी की कार्यशैली की विस्तृत जानकारी के साथ प्रस्तुत विशेष पेज…
इनकी निगरानी में होती है मतों की गिनती
चुनाव तिथि की घोषणा होने के एक सप्ताह बाद मतगणना का स्थान और तिथि तय की जाती है. चुनाव समाप्त होने के बाद पूरी सुरक्षा के साथ तय स्थान पर वोटिंग मशीनें ले जायी जाती हैं. जब देशभर के चुनाव समाप्त हो जाते हैं, तो नियत तिथि पर मतगणना केंद्रों पर मतों की गिनती शुरू होती है. चुनाव होने के बाद विशिष्ट और सुरक्षित बूथ पर निर्वाचन क्षेत्र के रिटर्निंग अॉफिसर, चुनाव में खड़े उम्मीदवार और उसके एजेंट की निगरानी में मतगणना शुरू की जाती है.
इस पूरी प्रक्रिया की निगरानी और मतगणना प्रक्रिया के पूरी तरह से पारदर्शी बने रहने के लिए चुनाव आयोग अपने पर्यवेक्षक नियुक्त करता है. इन सब के अलावा, चुनाव आयोग मतगणना करने वाले कर्मचारियों (काउंटिंग स्टाफ) की नियुक्ति करता है. मतगणना के सफलतापूर्वक पूरा हो जाने के बाद रिटर्निंग ऑफिसर उसके परिणाम घोषित करता है.
मतगणना केंद्र पर रिटर्निंग ऑफिसर, काउंटिंग स्टाफ, चुनाव में खड़े उम्मीदवार और उनके एजेंट, ड्यूटी पर तैनात पब्लिक सर्वेंट और चुनाव आयोग द्वारा अधिकृत अन्य लोगों के अलावा किसी भी व्यक्ति को प्रवेश की अनुमति नहीं होती है.
काउंटिंग हॉल के भीतर ऐसी होती है व्यवस्था
मतगणना केंद्र के भीतर पहले से तय की गयी योजना के अाधार पर टेबल को व्यवस्थित किया जाता है. एक मतगणना केंद्र पर टेबलों की संख्या कितनी होगी, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वहां कितने पोलिंग स्टेशनों के मतों को गिना जाना है और जगह कितनी बड़ी है.
यहां सुरक्षा भी एक बड़ा मसला होता है. आमतौर पर एक हॉल में 14 से अधिक टेबल नहीं लगाये जा सकते, लेकिन विशेष परिस्थितियों में इस संख्या में बदलाव किया जा सकता है.
प्रत्येक टेबल पर ईवीएम के सील खोलने के लिए एक पेपर चाकू, परिणाम की घोषणा के लिए एक लाउडस्पीकर और एक ब्लैकबोर्ड होता है, जिस पर मीडिया के लिए मतगणना के रुझानों को लिखा जाता है.
मतगणना केंद्र के भीतरी हिस्से के सुरक्षा की जिम्मेदारी केंद्रीय सुरक्षा बलों के पास होती है, जबकि इसके बाहरी हिस्से के सुरक्षा के लिए राज्य पुलिस की तैनाती होती है. हालांकि इन सुरक्षा बलों को मतगणना हॉल के भीतर जाने की अनुमति नहीं होती है.
मतगणना की प्रक्रिया
मतगणना हॉल में एक से ज्यादा स्थान और एक से ज्यादा टेबल पर एक ही समय मतों की गिनती चलती रहती है. पोस्टल बैलेट की गिनती सबसे पहले होती है. इसके तीस मिनट के बाद गणना के लिए ईवीएम लायी जाती हैं. हालांकि इस बार पोस्टल बैलेट और ईवीएम की गिनती एक साथ ही शुरू होगी. पोस्टल बैलेट की गिनती खत्म हो जायेगी और ईवीएम की गिनती चलती रहेगी. ईवीएम को खोलने से पहले काउंटिंग स्टाफ और एजेंट इसका निरीक्षण करते हैं.
इसके बाद मतों की गिनती प्रारंभ होती है. मतों की गिनती प्रारंभ करने के लिए ईवीएम को संचालित किया जाता है और परिणाम बटन पर लगे सील में छेद कर दिया जाता है. इसके बाद इस बटन को दबाया जाता है. ईवीएम का बटन दबाने पर संबंधित पोलिंग स्टेशन के प्रत्येक उम्मीदवार के लिए दर्ज किये गये कुल मत प्रदर्शित होने लगते हैं.
एक राउंड की गिनती समाप्त हो जाने के बाद ईवीएम को फिर से सील कर दिया जाता है. इसके बाद रिटर्निंग आॅफिसर दो मिनट तक प्रतीक्षा करता है, ताकि अगर किसी उम्मीदवार को मतगणना में किसी प्रकार की कोई विसंगति लगती है, तो वह पुन: मतगणना के लिए कह सकता है.
हालांकि रिटर्निंग ऑफिसर ही यह निर्णय लेता है कि फिर से मतों के गिनती की मांग वैध है या नहीं? विसंगतियों के निराकरण के बाद, रिटर्निंग ऑफिसर पर्यवेक्षक की मंजूरी मांगता है और उसके बाद परिणाम घोषित कर दिया जाता है. ठीक इसी समय रिटर्निंग ऑफिसर चुनाव आयोग को परिणाम से अवगत कराता है.
ऐसे काम करती है ईवीएम
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है, जो मतों को दर्ज करने का काम करती है. एक ईवीएम दो यूनिट से मिल कर बनी होती है, कंट्रोल यूनिट और बैलेटिंग यूनिट. ये दोनों यूनिट पांच मीटर लंबे तार से आपस में जुड़े होते हैं.
कंट्रोल यूनिट प्रिजाइडिंग ऑफिसर या पोलिंग ऑफिसर के पास रखा जाता, जबकि बैलेटिंग यूनिट मतदान कक्ष (वोटिंग कंपार्टमेंट) के भीतर रखा जाता है. मतदाता को बैलेट पेपर जारी करने की बजाय कंट्रोल यूनिट का प्रभारी पोलिंग ऑफिसर कंट्रोल यूनिट के बैलेट बटन को दबा कर बैलेट जारी करता है.
बैलेट जारी होने के बाद मतदाता मतदान कक्ष में रखे बैलेटिंग यूनिट के ब्लू बटन (अपने पसंदीदा उम्मीदवार के चुनाव चिह्न के सामने वाला) को दबा कर अपना मत दर्ज करा सकता है. एम2 ईवीएम के मामले में एक ईवीएम में नोटा सहित अधिकतम 64 उम्मीदवार शामिल किये जा सकते हैं, जबकि एम3 ईवीएम के मामले में एक ईवीएम में नोटा सहित अधिकतम 384 उम्मीदवार शामिल किये जा सकते हैं.
ईवीएम को दो सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, भारत इलेक्ट्रॉनिकक्स लिमिटेड, बैंगलोर और इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, हैदराबाद के सहयोग से चुनाव आयोग की तकनीकी विशेषज्ञ कमेटी ने डिजाइन और तैयार किया है.
ईवीएम से आसान हुए हैं चुनाव
वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में ईवीएम से मतदान शुरू होने के बाद पुराने पेपर बैलेट सिस्टम की तुलना में मतदान और मतगणना प्रक्रिया दोनों ही काफी आसान हो गये हैं. ईवीएम से मतदान के कारण चुनाव परिणाम भी पहले की तुलना में अब जल्द निकल आते हैं. हालांकि इस बार के चुनाव में ईवीएम से वीपीपैट स्लीप के मिलान को लेकर चुनाव परिणाम घोषित होने में थोड़ी देरी होने की आशंका जतायी जा रही है.
पोस्टल बैलेट और इवीएम की गणना एक साथ होगी
निर्वाचन आयोग ने पूर्ववर्ती नियमों में संशोधन करते हुए इस बार पोस्टल बैलेट और वोटिंग मशीन के मतों की गणना साथ-साथ कराने का निर्णय लिया है. पोस्टल बैलेट के इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसफर सिस्टम होने और चुनाव करा रहे कर्मचारियों के पोस्टल बैलेट डालने के कारण इस श्रेणी के मतों की संख्या बहुत बढ़ गयी है. इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसफर सिस्टम में क्यूआर कोड का मिलान भी करना पड़ता है. इसके अलावा हर विधानसभा क्षेत्र के पांच मतदान केंद्रों के वीवीपैट पर्ची की गिनती अनिवार्य है.
किन्हीं अन्य कारणों से उन्हें दुबारा भी गिनना पड़ा सकता है. पूरे देश में कुल 4215 विधानसभा क्षेत्र हैं. सर्वोच्च न्यायालय ने अप्रैल में आयोग को निर्देश दिया था कि लोकसभा क्षेत्र के तहत आनेवाले विधानसभा क्षेत्रों की कम-से-कम पांच मशीनों की वीवीपैट पर्चियों की गिनती हो. इससे पहले हर विधानसभा क्षेत्र की सिर्फ एक मशीन की पर्ची का मिलान होता था.
उल्लेखनीय है कि इस आम चुनाव में 17 लाख से अधिक वीवीपैट इकाइयों का इस्तेमाल किया जा रहा है. इन कारणों से अब काम बढ़ गया है. इसलिए आयोग ने कहा है कि मशीनों के मतों की गिनती होती रहेगी और उस पर पोस्टल बैलेट गिनती से कोई असर नहीं होगा. मशीन के मतों की गिनती पूरी होते ही स्थापित प्रक्रिया के अनुसार वीवीपैट पर्चियों को गिना जायेगा. यदि मशीन की गणना और वीवीपैट पर्ची में अंतर पाया जाता है, तो पर्चियों की संख्या को सही माना जायेगा.
रद्द पोस्टल बैलट के बारे में नये निर्देश
आयोग ने नियमों में संशोधन करते हुए निर्दिष्ट किया है कि यदि हार-जीत का अंतर अवैध घोषित हुए पोस्टल बैलेट की संख्या से कम होता है, तो परिणाम की घोषणा से पहले उन मतों को रिटर्निंग अफसर को फिर से सत्यापित करना होगा. इस प्रक्रिया की भी वीडियोग्राफी कराने के निर्देश दिये गये हैं. वैसे, पूरी मतगणना प्रक्रिया की वीडियो रिकॉर्डिंग का प्रावधान है.
2014 से बड़ा चुनाव रहा 2019
पिछले आम चुनाव में 81.5 करोड़ मतदाताओं के लिए नौ लाख मतदान केंद्र बनाये गये थे और कम-से-कम 17 लाख वोटिंग मशीनों का इस्तेमाल हुआ था. इस दफा लगभग 8.4 करोड़ मतदाता बढ़े हैं और मतदान केंद्रों की संख्या में भी 10 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.
उस साल नौ चरणों में मतदान हुए थे, पर उसमें 35 दिन ही लगे थे. इस बार सात चरण थे और प्रक्रिया पूरी होने में 38 दिन का समय लगेगा. साल 2014 में सिर्फ आठ लोकसभा क्षेत्रों- लखनऊ, जाधवपुर, रायपुर, गांधीनगर, बंगलुरु दक्षिण, चेन्नई मध्य, पटना साहिब, मिजोरम- में ही वीवीपैट लगाये गये थे. नोटा के विकल्प को भी पहली बार 2014 में ही वोटिंग मशीन पर जोड़ा गया था.
वीवीपैट क्या है
वोटर वेरिफाएबल पेपर ऑडिट ट्रेल यानी वीवीपैट ईवीएम से जुड़ी एक स्वतंत्र प्रणाली है. यह प्रणाली मतदाताओं को इस बात को सत्यापित करने की अनुमति देती है कि जो मत उसने ईवीएम के जरिये दर्ज कराये हैं, वे उसी उम्मीदवार को गये हैं या नहीं, जिनके चुनाव चिह्न का बटन दबाया गया है.
जब मतदाता अपना मत दर्ज कराता है तो ईवीएम के बगल में रखे एक पारदर्शी विंडो में सात सेकेंड के लिए एक पर्ची दिखायी देती है, जिसमें क्रमांक, उम्मीदवार का नाम और चुनाव चिह्न मुद्रित होता है. इसके बाद यह मुद्रित पर्ची स्वत: ही कट जाती है और वीवीपैट के सील किये हुए ड्रॉप बॉक्स में गिर जाती है.
ईवीएम की मशीनरी पूरी तरह निष्पक्ष
प्रो जगदीप छोकर, सह-संस्थापक, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स
कंप्यूटर इंटरनेट से जुड़े हुए होते हैं, इसलिए इनमें कहीं से भी किसी प्रकार की छेड़छाड़ या हैकिंग की जा सकती है, लेकिन एक ईवीएम का किसी दूसरी ईवीएम तक से कोई तकनीकी संबंध नहीं है और न ही किसी तार से कई मशीनों को जोड़ने की जरूरत होती है, यानी हर ईवीएम अपने आप में एक स्वतंत्र इकाई है. ऐसे में अगर कोई चाहे कि वह ईवीएम में गड़बड़ी करे, तो उसे लाखों मशीनों में गड़बड़ी करनी पड़ेगी, जो कि असंभव है.
अगर कोई दो-चार मशीनों में गड़बड़ी करता भी है, तो इससे सिर्फ उन्हीं मशीनों से पड़नेवाले वोटों पर फर्क आयेगा और यह भी संभव है कि मशीन में छेड़छाड़ से वोटों की प्रक्रिया ही कुछ और हो जाए, जिससे छेड़छाड़ करनेवाले को भी कोई फायदा न हो.
इसलिए ईवीएम पर सवाल उठाना अनुचित है. ईवीएम की मशीनरी पूरी तरह से निष्पक्ष है और फिलहाल इस पर संदेह का कोई ठोस आधार नजर नहीं आता. केंद्रीय चुनाव आयाेग ने आइआइटी मद्रास के डायरेक्टर की अध्यक्षता में कुछ साल पहले एक कमेटी बिठायी थी, जिसने ढेर सारी ईवीएम मशीनों की जांच की थी और पाया था कि उनमें से एक में भी किसी प्रकार की गड़बड़ी नहीं थी.
आधुनिक चुनावी व्यवस्था के लिए ईवीएम का इस्तेमाल बहुत अच्छा है और यह कोई जरूरी नहीं कि इसमें कुछ सुधार नहीं होगा, बल्कि आगे आनेवाले दिनों में ईवीएम और भी सशक्त विकल्प दे सकता है, जिससे इसमें छेड़छाड़ का आरोप लगाने के बारे में सोचना भी नामुमकिन होगा.
- पहली बार केरल में हुआ था ईवीएम का इस्तेमाल : ईवीएम का पहली बार प्रयोग वर्ष 1982 में केरल के 70-परुर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में किया गया था.
- नागालैंड में पहली बार हुआ था वीवीपैट का प्रयोग : ईवीएम के साथ वीवीपैट का प्रयोग पहली बार नागालैंड के 51-नोकसेन (अनुसूचित जनजाति) विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के उप-चुनाव में हुअा था.