बिपिन सिंह/राजकुमार लाल
रांची : वर्ष 2010 तक राज्य में मात्र 14 लाख बिजली उपभोक्ता थे. मौजूदा वक्त में राज्य में बिजली उपभोक्ताओं की संख्या 55 लाख से ज्यादा हो चुकी है. ऐसे में प्रतिमाह 1000 करोड़ यूनिट से ज्यादा बिजली की खपत हो रही है. जरूरत की 90 फीसदी बिजली झारखंड सरकार को अलग-अलग कंपनियों से खरीदनी पड़ रही है.
जिस तरह झारखंड की आबादी बढ़ रही है, उसे देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा है कि आनेवाले एक-दो साल में राज्य को रोजाना कम से कम 2500 मेगावाट बिजली की जरूरत होगी.
हालांकि, बिजली की बढ़ती मांग के अनुरूप नये पावर प्लांट लगाने की रफ्तार काफी सुस्त है. हालत यह है कि पिछले दस साल में झारखंड बिजली वितरण निगम लिमिटेड (जेबीवीएनएल) के खाते में एक मेगावाट भी बिजली का अतिरिक्त उत्पादन दर्ज नहीं हुआ है. राज्य के अन्य जिलों की बात बाद में करेंगे, पहले राजधानी रांची में बिजली की स्थिति पर नजर डालते हैं.
इन दिनों रांची में बिजली कट के आंकड़े हैरान करनेवाले हैं. राजधानी रांची को पीक आवर में 260 से 290 मेगावाट बिजली की जरूरत होती है और जेबीवीएनएल के पास 315 मेगावाट बिजली उपलब्ध है. इसके बावजूद राजधानी के लोगों को पर्याप्त बिजली नहीं मिल रही है.
इसकी वजह है संचरण लाइन पर अतिरिक्त दबाव. मेंटेनेंस और अन्य कार्यों की वजह से लिये जा रहे लंबे शट डाउन के कारण लोगों को घंटों बिजली के अभाव में रह रहे हैं. इसके ट्रांसफार्मर पर पड़ने वाले अतिरिक्त दबाव और खराब मौसम में तार टूटने और उपकरणों के खराब होने से भी घंटों बिजली गुल रहती है.
रांची की योजना पर 395.26 करोड़ खर्च
केंद्र सरकार ने वर्ष 2013 में रांची सहित राज्य के 30 शहरों की बिजली वितरण व्यवस्था सुधार के लिए री-स्ट्रक्चर एक्सीलरेटेड पावर डेवलपमेंट रिफॉर्म प्रोग्राम पार्ट-बी योजना को मंजूरी दी गयी थी. उस वक्त अकेले रांची के लिए यह योजना 395.26 करोड़ की लांच की गयी थी.
आरएपीडीआरपी के तहत अंडरग्राउंड केबलिंग, एचटी और एलटी केबल को बदला गया है. ट्रांसफार्मर की क्षमता बढ़ायी गयी और लोड ट्रांसफर भी किया गया. हर ट्रांसफर्मर पर 50 प्रतिशत ही लोड डाला जा रहा है. इसके बावजूद अकेले रांची में 50 से ज्यादा फ्यूज कॉल दर्ज किया जा रहा है.
विश्व बैंक ने दिये हैं 2,563 करोड़
विश्व बैंक राज्य में ऊर्जा के उपयोग को बढ़ाने और क्षमता विस्तार के लिए 2,563 करोड़ रुपये खर्च कर रही है. इस राशि से राज्य भर में 3,744 किलोमीटर सर्किट ट्रांसमिशन लाइन बनाने की योजना है.
ब्रेक डाउन से निजात नहीं
सब स्टेशन के अंदर 33 व 11 केवी लाइन की दूरी कम होने के बाद भी कभी लो, तो कभी हाई वोल्टेज की शिकायत मिल रही है. ब्रेक डाउन से निजात पाने के लिए तीन शहरों में रांची, धनबाद एवं जमशेदपुर में स्कॉडा ऑपरेशन सिस्टम को अमल में लाने की बात कही गयी. इस सिस्टम के लग जाने के बाद सेंट्रलाइज्ड कंट्रोल ब्रेक डाउन को आसानी से चेक किया जा सकता है. इसके बावजूद ब्रेकडाउन जारी है.
40 शहरों में 731.73 करोड़ की योजना
राज्य के अंदर शहरी क्षेत्र के उपभोक्ता को 18 से 23 घंटा बिजली मिल भी जा रही है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र के उपभोक्ताओं को महज 10 से 15 घंटा ही बिजली मिल पा रही है. बिजली कम मिलने के कारण ग्रामीण इलाके के उपभोक्ताओं को रोटेशन पर बिजली नसीब हो रही है.
समेकित उर्जा विकास कार्यक्रम से भी नहीं बदली सूरत
झारखंड के 40 शहरों में आइपीडीएस के तहत 731.73 करोड़ की योजना चलायी गयी. यह कार्यक्रम चौबीसों घंटे और सातों दिन निरंतर बिजली उपलब्ध कराने के दिशा में एक बड़ा कदम बताते हुए बिजली विकास एवं सुधार कार्यक्रम के कार्य को पूरा किया जाना था.
इंटरलिंक्ड रहने के चलते इन इलाकों को थोड़ी राहत
राजधानी के एक बड़े इलाके को ग्रिड से इंटरलिंक्ड कर दिया गया है. आपस में जुड़े रहने के चलते आरएमसीएच, राजभवन, रातू रोड, अशोकनगर, ब्रांबे और कांके से जुड़े इलाकों को कम परेशानी होती है. इन्हें आपात स्थिति में दूसरे ग्रिड से पावर सप्लाई मिल जाती है.
ट्रांसपोर्टेशन एंड डिस्ट्रीब्यूटन लॉस पर नियंत्रण नहीं
राज्य में इस वक्त 30 प्रतिशत बिजली लोगों के घरों तक पहुंचने के पहले ही बर्बाद हो जाती है. ट्रांसमिशन लॉस (ऊर्जा क्षति) अब 41 प्रतिशत से घटकर 28 प्रतिशत तक हो गयी है. 2019 तक इसे और कम कर तय राष्ट्रीय लक्ष्य 15 प्रतिशत करने के प्रयास हैं.
नहीं मिल रहे सुधार के लाभ
वर्तमान में राज्य के ग्रिडों के इवैक्यूएशन क्षमता 6,000 मेगावाट है. झारखंड बनने के बाद पहली बार 2015-16 में पांच नये ग्रिड सब स्टेशन स्थापित किये थे. इस वक्त पूरे राज्य में 118 ग्रिड की जरूरत है, जबकि 40 ग्रिड ही चालू हालत में हैं.
डिमांड-सप्लाई में अंतर से परेशानी
राज्य में सामान्य दिनों में लगभग 1800 मेगावाट बिजली की डिमांड रहती है. गर्मी में डिमांड 300 से 500 मेगावाट बढ़ जाती है. मांग और उपलब्धता में अंतर लगातार बढ़ने के चलते कई इलाकों में कटौती जानबूझकर की जाती है.
- बेहतर बिजली देने के नाम पर हजारों करोड़ खर्च कर रही सरकार, लेकिन नहीं बदले हालात
- दस साल में जेबीवीएनएल के खाते में एक मेगावाट भी अतिरिक्त बिजली का उत्पादन दर्ज नहीं
- 90 फीसदी बिजली अलग-अलग कंपनियों से खरीदनी पड़ रही है झारखंड सरकार को
- 14 लाख बिजली उपभोक्ता थे वर्ष 2010 तक राज्य में, आज 55 लाखसे ज्यादा हो गये हैं
- 1000 करोड़ यूनिट से ज्यादा बिजली की खपत हो रही है प्रतिमाह झारखंड में आबादी के लिहाज से
- 13,550 सर्किट किलोमीटर ट्रांसमिशन लाइन की जरूरत है बेहतर बिजली आपूर्ति के लिए
राज्य के अन्य जिलों का हाल
सिमडेगा : रोज 3-4 घंटे कटती है बिजली
यहां लोगों ने सोचा था कि सिमडेगा में ग्रिड बनने से निर्बाध आपूर्ति होगी, पर निगम के ढीले रवैये के चलते इसमें ग्रहण लग गया है. यहां टॉउन फीडर से रोजाना तीन से चार घंटे बिजली की कटौती हो रही है. रविवार को शहर के पावर हाउस में 11 हजार लाइन के ब्रेकर खराबी आ गयी, जिससे दिन भर बिजली गुल रही.
कोडरमा : शहर में बस 12 घंटे बिजली
कोडरमा के शहरी इलाके में 12 घंटे बिजली मिल रही है. वहीं, ग्रामीण इलाकों में करीब दस घंटे ही बिजली सप्लाई हो रही है. जिले को पीक आवर में कुल 65 मेगावाट बिजली की जरूरत है. इसमें विभाग को सीधे बोर्ड से करीब 40 मेगावाट बिजली मिलनी है, पर वर्तमान में 34 मेगावाट उपलब्ध हो पा रही है.
लातेहार : पूरी बिजली मिल रही है
लातेहार जिले के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों को निर्बाध बिजली मिल रही है. रोजाना रिपोर्ट के मुताबिक महज दो से तीन घंटा ही पावर कट हो रहा है. रांची-हटिया से जुड़ने के बाद लातेहार को 20 से 23 घंटे बिजली मिल रही है. चंदवा, बालूमाथ, हेरहंज, बारियातू, मनिका व गारू प्रखंड में आपूर्ति थोड़ी प्रभावित रहती है.
रामगढ़ : ग्रामीण इलाकों में बदहाली
रामगढ़ शहर में विद्युत आपूर्ति की स्थिति अच्छी है. डीवीसी के चलते शहर में 20-22 घंटे विद्युत आपूर्ति की जाती है. ग्रामीण क्षेत्र गोला, दुलमी, चितरपुर व मांडू प्रखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिदिन लगभग छह से आठ घंटे तक विद्युत आपूर्ति में कटौती हो रही है. यही हाल कोलियरी क्षेत्रों का भी है.
लोहरदगा : बिजली की अनियमित आपूर्ति
जिले में बिजली की अनियमित आपूर्ति से लोग परेशान हैं. यहां 18 से 20 घंटे बिजली मिल रही है. पिछले तीन दिन में लोहरदगा शहर में 17 से 22 घंटे बिजली की आपूर्ति हुई. विभाग के अधिकारियों का कहना है कि ग्रामीण इलाकों में 20 से 22 घंटे बिजली की आपूर्ति की जा रही है. शहरी क्षेत्र में भी सुधार किया जा रहा है.
हजारीबाग : अाठ घंटे मिल रही है बिजली
हजारीबाग को 230 की जगह 140 मेगावाट बिजली मिल रही है. भीषण गरमी के कारण बिजली आपूर्ति की मांग और बढ़ी है. पिछले तीन दिनों में ग्रामीण क्षेत्रों में 24 घंटे में मात्र सात से आठ घंटा बिजली मिल रही है. हजारीबाग जिले के बडकागांव, केरेडारी प्रखंड में मात्र पांच से छह घंटा ही बिजली मिल रही है.
गुमला : सिर्फ 10-12 घंटे बिजली आपूर्ति
गुमला जिले को 10 से 12 घंटे बिजली मिल रही है. चेंबर सचिव हिमांशु केशरी के अनुसार बिजली नहीं रहने से हर रोज नौ से 10 लाख रुपये का व्यवसाय प्रभावित हो रहा है. अगर तीन दिन की बिजली आपूर्ति पर नजर डालें, तो 17 मई को 12 घंटा, 18 मई को 10 घंटा व 19 मई को 12 घंटा बिजली आपूर्ति हुई है.
खूंटी : लोड शेडिंग से परेशानी
खूंटी में लोग लोड शेडिंग से परेशान हैं. प्रतिदिन शाम और सुबह में लगभग दो घंटे आपूर्ति बंद रहती है. इसके अलावा दिन में विद्युत का लोड शेडिंग जारी रहता है. जिले में प्रतिदिन कुल 22 मेगावाट बिजली की आवश्यकता है. पर कामडरा ग्रिड से इन दिनों 12-13 मेगावाट बिजली ही खूंटी सबस्टेशन को मिल रही है.
मेदिनीनगर : ग्रिड है, फिर भी कटती है बिजली
पलामू नेशनल ग्रिड से जुड़ा हुआ है. इसलिए यहां जरूरत के हिसाब से बिजली मिल रही है. इसके बावजूद निर्बाध बिजली नहीं मिल रही है. वजह है मेंटेनेंस कार्य. जर्जर तार, ट्रांसफार्मर बदले जाने के कार्य के लिए घंटों बिजली गुल रहती है. पलामू में शहरी क्षेत्र में प्रतिदिन औसतन 15 से 18 घंटा बिजली मिल रही है.
सिर्फ 12-13 घंटे बिजली आपूर्ति
गढ़वा : गढ़वा जिले में बिजली की समस्या अब भी बरकरार है. जिला मुख्यालय में बिजली की आपूर्ति 12-13 घंटा औसत रह रही है. यूपी एवं बिहार की सीमा से लगे गढ़वा जिला की बिजली व्यवस्था यूपी एवं बिहार पर ही टिकी हुई है. यूपी के रिहंद से एवं बिहार के सोननगर से मिलनेवाली बिजली पर गढ़वा जिला रोशन होता है़
15-16 घंटे मिल रही बिजली
चतरा : चतरा जिले में अनियमित विद्युत आपूर्ति से लोग परेशान हैं. शहर को 24 घंटे की जगह 15-16 घंटे आपूर्ति ही मिल रही है. वहीं, जिले के हंटरगंज, प्रतापपुर, पत्थलगड्डा, सिमरिया, लावालौंग प्रखंडो में बिजली आपूर्ति की स्थिति बदतर हैं. इन प्रखंडो में 24 घंटे में मात्र तीन से चार घंटे ही वद्यिुत आपूर्ति की जा रही हैं.