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निंदनीय है चीन का रवैया
शशांक पूर्व विदेश सचिव मसूद अजहर के आतंकवादी सरगना होने का चीन पर कोई सीधा असर नहीं पड़ता है. ऐसा नहीं है कि चीन आतंकवाद के खिलाफ नहीं है, हालांकि उसने ऐसे फैसले लिए हैं जिससे भारत हीं नहीं, पूरे विश्व के मन में उसके खिलाफ ऐसी धारणा बन जाती है कि वह आतंकवाद के […]
शशांक
पूर्व विदेश सचिव
मसूद अजहर के आतंकवादी सरगना होने का चीन पर कोई सीधा असर नहीं पड़ता है. ऐसा नहीं है कि चीन आतंकवाद के खिलाफ नहीं है, हालांकि उसने ऐसे फैसले लिए हैं जिससे भारत हीं नहीं, पूरे विश्व के मन में उसके खिलाफ ऐसी धारणा बन जाती है कि वह आतंकवाद के खिलाफ खड़ा है. ऐसी स्थिति में साफ लगता है कि पाकिस्तान ही चीन के ऊपर दबाव डाल रहा है. चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर का सबसे अधिक फायदा पाकिस्तान की सेना, उनके हुक्मरानों और पंजाब क्षेत्र को होनेवाला है, वहीं चीन के लिए सामरिक दृष्टि से यह परियोजना महत्वपूर्ण है . इसलिए, पाकिस्तान की सेना व हुक्मरान चीन के ऊपर दबाव बनाने में कामयाब होते हैं और मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित नहीं होने.
पाकिस्तान चीन को बार-बार कहता है कि सारी परियोजनाओं के लिए यह बहुत जरूरी है कि चीन पाकिस्तान के खिलाफ न जाये. चीन ने खुद को ऐसी स्थिति में फंसा लिया है. हमने अमेरिका, यूरोपीय संघ के मामले में भी देखा है कि जब इनके रिश्ते पाकिस्तान के साथ अच्छे थे, तब पाकिस्तान इन्हें भी तरह-तरह के दबाव में लाता था और अपने खिलाफ वोट नहीं होने देता था. पाकिस्तान अपनी स्थिति का हमेशा फायदा उठाता रहा है. पाकिस्तान के लिए इस समय भारत में आतंकवाद फैलाना प्राथमिकता बनी हुई है. सारे देश मना कर रहे हैं, लेकिन वह नहीं मानता.
चूंकि, चीन उसके कब्जे में है, इसका वह फायदा उठाता है. चीन की भी अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं. चीन अगले 20 वर्षों में दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति बनने का सपना देख रहा है. ‘वन बेल्ट वन रोड’ के बाद अब ‘चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर’ चीन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो गया है, जिससे चीन को तेल के संसाधन मिलने में आसानी होगी, बाकायदा कॉलोनी बसायी जा रही है जिससे चीन खाड़ी देशों के बहुत करीब हो जायेगा.
इसलिए, पाकिस्तान को साथ रखना चीन के लिए बहुत आवश्यक है. जहां तक आतंकवाद की बात है, चीन खुद ही आतंकवाद से पीड़ित है. पाकिस्तान में जैश-ए-मोहम्मद के अलावा भी अलकायदा जैसे जितने आतंकी संगठन हैं, उनसे चीन न चाहते हुए भी संबंध बनाकर रखना चाहता है, जिससे वे चीन को तंग न करने लग जायें. ये संगठन कहीं और आतंकवाद फैला रहे हैं, तो चीन इनकी मदद करने को भी तैयार है. यह बहुत कुटिल और निंदनीय रवैया है कि चीन अपने देश में आतंकवाद के खिलाफ है, लेकिन कहीं और आतंक फैले तो उसे कोई परवाह नहीं होती है और आतंकवादियों को बचा लेता है.
भारत के अंदर चीन के खिलाफ अभियान छिड़ा हुआ है. लेकिन, हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि आनेवाले 15-20 सालों में हमें भी दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्तियों में उभरकर आना है. चीन के साथ भी हमें दो तरह के रिश्ते निभाने पड़ेंगे.
हमें कुछ मामलों में उनका सहयोग करना पड़ेगा, वहीं कुछ में प्रतिस्पर्धा में शामिल होना पड़ेगा और खिलाफ जाना पड़ेगा. हम यह पूरी तरह से मानकर नहीं चल सकते कि चीन हमारा दुश्मन है और उसे सबक सिखाना है. हालांकि, देश में सबक सिखाने की यह भावना घर कर गयी है. लेकिन, हमें अपने आपको संभालना होगा. पाकिस्तान आतंक फैलाकर निरंतर यही कोशिश कर रहा है कि भारत अपने रास्ते से भटक जाये और चीन भी उसे नहीं रोकता कि भारत धीमी चाल से बढ़ेगा तो चीन अव्वल बना रहेगा.
इसलिए, भारत को प्रगति के रास्ते से हटना नहीं चाहिए और इसी के अनुसार दूरगामी नीतियों को साथ लेकर चलना चाहिए. हमारी वैश्विक साख बढ़ती देखकर चीन में खलबली मच जाती है. हमें इसी नीति को आगे बढ़ाना चाहिए और दुनिया की अन्य शक्तियों के साथ संबंध मजबूत करते रहना चाहिए.
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