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भारतीय नौसेना दिवस: चलती-फिरती बम होती है पनडुब्बी, जान जोखिम में डाल की देश सेवा

रंजन पांडेयसिंधु रक्षक पनडुब्बी में तैनात थे जेएनएसी के सिटी मैनेजरजमशेदपुर अक्षेस (जेएनएसी) में सिटी मैनेजर के पद पर तैनात रंजन पांडेय पूर्व नौ सैनिक हैं, 1999 में उन्हाेंने नेवी में याेगदान दिया था. भारतीय नौसेना की पनडुब्बी शाखा में पेटी ऑफिसर मैकेनिकल इंजीनियर के पद पर तैनात रंजन पांडेय की नौकरी की शुरुआत प्रशिक्षण […]

रंजन पांडेय
सिंधु रक्षक पनडुब्बी में तैनात थे जेएनएसी के सिटी मैनेजर

जमशेदपुर अक्षेस (जेएनएसी) में सिटी मैनेजर के पद पर तैनात रंजन पांडेय पूर्व नौ सैनिक हैं, 1999 में उन्हाेंने नेवी में याेगदान दिया था. भारतीय नौसेना की पनडुब्बी शाखा में पेटी ऑफिसर मैकेनिकल इंजीनियर के पद पर तैनात रंजन पांडेय की नौकरी की शुरुआत प्रशिक्षण के उपरांत विमानवाहक पोत आइएनएस विराट में सन् 2000 से हुई. बाद में उनका चयन पनडुब्बी शाखा में हो गया और आईएनएस सात वाहन विशाखापट्नम से पनडुब्बी का कोर्स उत्तीर्ण करने के बाद 2001 में आइएनएस सिंधु रक्षक मुंबई में आ गये. 2014 में रंजन पांडेय रिटायर हुए और इसके बाद नगर विकास एवं आवास विभाग, झारखंड सरकार में सिटी मैनेजर के रूप में उनका चयन हुआ तथा जेएनएसी में सिटी मैनेजर के पद पर काम कर रहे हैं.

धूप के नहीं हाेते हैं दर्शन, 45-50 दिन नहीं नहाते पनडुब्बी के जवान
रंजन पांडेय बताते हैं कि पनडुब्बी की नौकरी बड़ा जोखिम भरा है. पनडुब्बी चलता-फिरता एक बम है. पनडुब्बी बैटरी से चलती है. बैटरी के रसायन मेटल से मिल कर हाइड्रोजन छोड़ते हैं. हाइड्रोजन को अगर समय पर बाहर नहीं निकाला जाये तो ये हाईड्रोजन बम जैसी बन जाती है. पनडुब्बी में हर वक्त 80-85 क्रू मेंबर होते हैं. पनडुब्बी 50-55 दिनों के गोपनीय मिशन पर समुद्र में निकलती है. इतने दिनों तक सभी को पानी में अंदर रहना होता है. इस दौरान पानी में 300 मीटर तक नीचे होती है. पानी के अंदर सोनार (साउंड ऑपरेटेड नेवीगेशन एंड रेंजिंग) यंत्र के सिग्नल के सहारे ही पनडुब्बी आगे बढ़ती है. पनडुब्बी में बेहद कम जगह होती है. एक कंपार्टमेंट से दूसरे में जाने के लिए छोटी खिड़की होती है. आधा बदन झुका कर इसमें घुस कर जाना होता है. पनडुब्बी में पानी की बेहद किल्लत होती है. पानी सिर्फ पीने के लिए होता है. नहाने या धोने के लिए नहीं. इसमें सभी नौ सैनिक डेढ़ दो महीने बिना नहाये ही रहते हैं. नौ सैनिक डिस्पाेजल कपड़े पहनते हैं. सभी सैनिकों को सूती हाफ-पैंट और टी-शर्ट पहनने काे मिलती है, जिसे दो दिनाें बाद उतार कर फेंकना अनिवार्य है. इसमें गर्मी भी बहुत होती है. धूप नहीं मिलने की वजह से सैनिकों में विटामिन डी की कमी हो जाती है. इससे उनकी हड्डियां कमजोर हो जाती हैं.

-2013 में एक विस्फाेट में तबाह होने वाली पनडुब्बी आइएनएस सिंधुरक्षक में भी रंजन पांडेय अपनी सेवा दे चुके हैं. 2013 में वे विशाखापत्तनम के पोत निर्माण केंद्र में थे. इस पनडुब्बी में विस्फाेट होने से 18 जवान शहीद हो गये थे. सिटी मैनेजर रंजन पांडेय बताते हैं कि जब उन्हें इस पनडुब्बी विस्फाेट की खबर मिली ताे उनके रोंगटे खड़े हो गये. रंजन पांडेय ने बताया कि 2008 में 26/11 को जब मुंबई हाेटल ताज में हमला हुआ तो वे मुंबई में ही तैनात थे. उनका दफ्तर कोलाबा में था. वो हमले से आधा घंटे पहले ही दफ्तर से निकल कर ताज होटल के सामने से गुजरे थे. उस समय भी उनके नाै सैनिकाें काे हाई अलर्ट पर कर दिया गया था.

Prabhat Khabar Digital Desk
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