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#GuruNanakJayanti : मानवता के पुंज गुरुनानक देव जी

जसबीर सिंह गुरुनानक देव जी का आविर्भाव बाबर के शासनकाल में हुआ, जब समाज बुरी तरह से बिखंडित हो चुका था. समाज वर्ण-विभाजन एवं जात-पात, ऊंच-नीच की भावना से बुरी तरह से ग्रसित था और लोगों का आत्मबल प्राय: समाप्त हो चुका था. गुरुनानक देव जी एक दिव्य ज्योति की तरह अवतरित हुए और आपने […]

जसबीर सिंह
गुरुनानक देव जी का आविर्भाव बाबर के शासनकाल में हुआ, जब समाज बुरी तरह से बिखंडित हो चुका था. समाज वर्ण-विभाजन एवं जात-पात, ऊंच-नीच की भावना से बुरी तरह से ग्रसित था और लोगों का आत्मबल प्राय: समाप्त हो चुका था. गुरुनानक देव जी एक दिव्य ज्योति की तरह अवतरित हुए और आपने कहा –
‘‘सब में जो, जोत है सोये, तिसके चानन, सब में चानन होये’’
सब में उस परमात्मा की लौ प्रज्वलित हो रही है, कोई छोटा-बड़ा नहीं है. किसी को हेय दृष्टि से देखना उस परमात्मा का निरादर है. आपने फरमाया-
‘‘नीचा अंदर नीच जात नीची हु अत नीच, नानक तिनके संग साथ वाडियां सियों क्या रीस’’
दरिद्रनारायण के भाव को प्रकट करते हुए आपने कहा कि मैं तो जो सबसे निम्न है उसके संग हूं, मुझे वैसे बड़े लोगों से क्या लेना-देना जो येन केन प्रकारेण धन अर्जित कर बड़े बन बैठे हैं. इसीलिए अापने ‘लालो’ की सुखी रोटी बड़े प्रेम भाव से खायी और ‘मलक भागो’ के मीठे पकवान को स्वीकार नहीं किया. इसी प्रसंग में आपने कहा –
‘‘जो रत लगे कपड़े जामा होय पलीत, जो रत पीवे मानसा तिन क्यों निर्मल चित’’
अापने ये भी स्पष्ट किया कि मनुष्य छोटा या बड़ा अपने कर्मों से है, न कि जाति से.
‘‘आगे जात रूप न जाये, तेहा होवे जेहे करम कमाए’’
नारी की बुरी दशा और ‘दासी’ जैसी अवस्था देख कर अापने समाज के ठेकेदारों की आलोचना करते हुए कहा कि जो नारी विद्वानों, महापुरुषों और राजाओं को जन्म देती है, उसको हेय दृष्टि से देखना कहां तक उचित है? आपके कथन हैं –
‘‘सो क्यों मंदा आखिए जित जमें राजन’’
अंतर मनन से ही मनुष्य स्वयं का उत्थान और अपने में परिवर्तन ला सकता है. अपनी बुराइयां और दूसरे की अच्छाइयां देखनी चाहिए. आपने कहा –
‘‘हम नहीं चंगे बुरा नहीं कोय, प्रनवत नानक तारे सोय’’
मनुष्य को ईमानदारी से परिश्रम कर अपना धन अर्जित करना चाहिए और उसमें से कुछ अंश समाज-सेवा एवं आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्ग के लोगों की सहायता में लगाना चाहिए. आपके कथन हैं-
‘‘घाल खाए किछु हथों दे, नानक राह पछानें सोय’’
गुरुनानक देव जी स्वयं भी मेहनत कर खेती करते रहे और दूसरों की सहायता आजीवन की.हमारे सारे कार्य व्यर्थ हैं अगर हम सरल, निर्मल जीवन सत्यता के मार्ग पर चल कर व्यतीत नहीं करते. सत्य के मार्ग से विचलित होकर प्रभु की प्राप्ति नहीं हो सकती. इसीलिए आप का कथन है कि सत्य स्वयं में ऊंचा है, परंतु उससे भी ऊंचा है सत्य के मार्ग पर चलना.
‘‘सच उरे सबको, उपर सच आचार’’
आवश्यकता है गुरुजी के दर्शाये मार्ग पर चल कर अपने जीवन में उत्थान लाने की अन्यथा ये बातें मात्र कोरी ही रह जायेंगी. जरूरत है विचार करने की, कि मात्र वर्ण विभाजन से, जात-पात, ऊंच-नीच की भावना से हम देश को कितना कमजोर बना रहे हैं और देश की अनंत ऊर्जा व्यर्थ जा रही है.
देश अत्यंत शक्तिशाली और ऊर्जावान होकर उभरेगा अगर हम जाति-प्रथा को सदैव के लिए समाप्त कर दें. गुरुनानक देव जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए प्रसिद्ध उर्दू शायर इकबाल अपने ख्यालात इस तरह बयां करते हैं-
‘‘फिर उठी आखिर सदा तौहीद की पंजाब से, हिंद को इक मर्दे-कामिल ने जगाया ख्वाब से’’
(लेखक एसबीअाइ के सेवानिवृत्त महाप्रबंधक हैं)
Prabhat Khabar Digital Desk
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