रामदुलार
बोकारो जिला के ललपनिया स्थित लुगुबुरु घांटाबाड़ी धोरोमगढ़ संतालियों की धार्मिक, सामाजिक व सांस्कृतिक पहचान से जुड़ी है. मान्यता है कि हजारों-लाखों वर्ष पूर्व इसी स्थान पर लुगु बाबा की अध्यक्षता में संतालियों का जन्म से लेकर मृत्यु तक का रीति-रिवाज यानी संताली संविधान की रचना हुई थी.
इस प्रकार, लुगुबुरु घांटाबाड़ी दुनिया के सभी संतालियों के लिए गहरी आस्था का केंद्र है. सभी अनुष्ठान में संताली लुगुबुरु का बखान करते हैं.
मैैराथन बैठक में पूर्ण हुई संविधान रचना : संताली जानकारों के मुताबिक, लाखों वर्ष पूर्व दरबार चट्टानी में लुगुबुरु की अध्यक्षता में संतालियों की 12 साल तक मैराथन बैठक हुई.
इसके बाद संतालियों की गौरवशाली संस्कृति और परंपरा की नींव डाली गयी. लंबे समय तक चली इस बैठक के दौरान संतालियों ने इसी स्थान पर फसल उगायी और धान कूटने के लिए चट्टानों का प्रयोग किया. आज भी आधा दर्जन ओखल के रूप में उसके चिह्न यहां मौजूद हैं. बगल से बहने वाले पवित्र सीता नाला के पानी का प्रयोग किया. अंत में यह नाला करीब 40 फीट नीचे गिरता है.
संताली इसे सीता झरना कहते हैं. छरछरिया झरना के नाम से भी सुप्रसिद्ध है. निकट की गुफा को संताली लुगु बाबा का छटका कहते हैं.मान्यता के अनुसार, लुगुबुरु यहीं नहाते थे और इसी गुफा से होकर वे सात किमी ऊपर घिरी दोलान (गुफा) जाते थे. कहा जाता है कि लुगुबुरु के सच्चे भक्त इस गुफा के जरिये ऊपर गुफा तक पहुंच जाते थे.
सात देवी-देवताओं की होती है पूजा : दरबार चट्टानी स्थित पुनाय थान (मंदिर) में सबसे पहले मरांग बुरु और फिर लुगुबुरु, लुगु आयो, घांटाबाड़ी गो बाबा, कुड़ीकीन बुरु, कपसा बाबा, बीरा गोसाईं की पूजा की जाती है.
संतालियों का गौरवशाली पन्ना है लुगुबुरु : लुगुबुरु घंटाबाड़ी धोरोमगढ़ से संतालियों का गौरवशाली अतीत जुड़ा हुआ है. बोकारो जिले के बेरमो अनुमंडल अंतर्गत गोमिया प्रखंड के ललपनिया स्थित इस धर्मस्थल के प्रति संतालियों की असीम आस्था है.
मान्यता है कि हजारों वर्ष पूर्व उनके पूर्वजों ने लुगु पहाड़ की तलहटी स्थित दोरबारी चट्टान में लुगुबाबा अर्थात भगवान शिव की अध्यक्षता में निरंतर 12 वर्ष तक बैठक कर उनके सामाजिक संविधान एवं संस्कृति की रचना की थी.
इसका पालन आज भी संताली समुदाय के लोग करते हैं. संतालियों का मानना है कि अन्य समुदाय के जो लोगों की भी मनोकामना यहां पूरी होती है. संतालियों के हर विधि-विधान एवं कर्मकांडों में लुगुबुरु का जिक्र होता है. इस समुदाय के लोकनृत्य एवं लोकगीत बिना घंटाबाड़ी के पूर्ण नहीं होता. यह परंपरा हजारों वर्षों से प्रचलित है.
दोरबारी चट्टान है प्राचीनता का साक्षी : बुजुर्ग बताते हैं कि लुगुबुरु घंटाबाड़ी धोरोमगढ़ के आसपास चट्टानों की भरमार है, जो संताली समुदाय के बीच दोरबारी चट्टान के नाम से विख्यात है. कहा जाता है कि इन्हीं चट्टानों को आसन के तौर पर इस्तेमाल कर इनके पूर्वज हजारों वर्षों से यहां दरबार लगाते थे.
घंटाबाड़ी स्थित दोरबारी चट्टान के लगभग आधा दर्जन हिस्से में संतालियों के पूर्वजों ने गड्ढा कर ओखली के रूप में उपयोग किया था. यह आज भी मौजूद है. इनमें कुछ देखरेख के अभाव में भर गये हैं, पर कई आज भी अपने मूल रूप में मौजूद हैं. इन्हीं ओखलियों में संतालियों के पूर्वज धान आदि कूटा करते थे. बंगलादेश, नेपाल, भूटान, इंडोनेशिया और श्रीलंका से आये संताली समुदाय हर साल यहां मत्था टेकते हैं.
प्रकृति ने दिया है अद्भुत छटा का वरदान : लुगू पहाड़ में गुफा, ऋषि नाला, इंद्र गुफा, शिव-पार्वती मंदिर, साधु डेरा, चिरका, छरछरिया झरना के अलावा गगनचुंबी लुगू पहाड़ देख कर श्रद्धालु इसे लुगू बाबा की देन मानते हैं.
कहते हैं कि लुगू पहाड़ में आज तक किसी को ठेस तो क्या कांटा तक पैर में नहीं चुभा. संताली धर्म गुरुओं का कहना है कि हजारों साल पूर्व उनके पूर्वज इस जगह जुटे थे. वे कई माह तक चट्टान पर बैठकर अपनी संस्कृति व सभ्यता पर मंत्रणा किया करते थे. इसे ही चट्टानी दरबार के नाम से जाना जाता है. यहां चट्टान में ओखल बनाकर अनाज की कुटाई होती थी.
जड़ी-बुटियों में है स्वास्थ्य का वरदान : लुगू पहाड़ में रोजाना श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है. विशेष कर शिवरात्रि, कार्तिक पूर्णिमा, मकर सक्रांति के मौके पर भव्य मेला लगता है. पूजा स्थल में दूर दराज से भजन मंडली भी पहुंचकर बाबा का गुणगान करती है. लुगू पहाड़ व उसके आसपास किसी भी प्रकार की हिंसा, शराब आदि नशा का सेवन निषिद्ध रहता है. यहां गुणी ओझा का भी जमावड़ा लगता है.
लुगू पर्वत में जड़ी-बूटी का भंडार भरा है. पहाड़ से निरंतर बहने वाले स्वच्छ जल का सेवन करने से पेट व गैस की बीमारी नहीं रहती. छरछरिया झरना के निकट विशालकाय बरगद के पेड़ की जड़ से टपकने वाली बूंद का भी लोग सेवन करते हैं. लोगों का विश्वास है कि उक्त पानी के सेवन से पेट की बीमारियां दूर होती हैं.
2001 में हुई घंटाबाड़ी की स्थापना : अपने वजूद के संरक्षण व श्रद्धालुओं की सुविधा को लेकर सन 2001 में घंटाबाड़ी की स्थापना की गयी. स्थानीय बुद्धिजीवी संताली बबुली सोरेन व लोबिन मुर्मू ने अपने साथियों के साथ मिलकर झारखंड के कोने-कोने में जाकर इसका जबर्दस्त प्रचार-प्रसार किया.
आलम ये है कि 2001 में 30 गुना 30 के पंडाल से शुरू सम्मेलन आज 600 गुना 200 के पंडाल में बदल चुका है और देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु यहां अपने गौरवशाली अतीत से रूबरू होने आते हैं. पूरी श्रद्धा से लुगुबुरु की पूजा करते हैं.
ऐसे पहुंचें ललपनिया
ललपनिया स्थित लुगुबुरु घांटाबाड़ी धोरोमगाढ़ रांची से 90, दुमका से 218 व बंगाल के मिदनापुर से 307 किमी की दूरी पर स्थित है. ललपनिया पहुंचने के दो सड़क मार्ग हैं. पेटरवार-गोमिया रूट और रामगढ़-नयामोड़ रूट. रेलवे के जरिये बोकारो रेलवे स्टेशन पहुंचा जा सकता है.
