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समाज में बदलाव के लिए जुटे विश्व के आदिवासी

दशमत सोरेन बिष्टुपुर स्थित गोपाल मैदान(जमशेदपुर) में संवाद-ए ट्राइबल कॉन्क्लेव में विश्वभर के आदिवासियों का जुटान हुआ. सबने समाज में हो रहे बदलावों व सकारात्मक बदलाव लाने पर 15 से 19 नवंबर तक गहन विचार-मंथन किया. वर्तमान मुद्दों, संस्कृति, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि पर विचारों का अादान-प्रदान किया. अपनी संस्कृति को अक्षुण्ण बनाये रखने के उपाय […]

दशमत सोरेन

बिष्टुपुर स्थित गोपाल मैदान(जमशेदपुर) में संवाद-ए ट्राइबल कॉन्क्लेव में विश्वभर के आदिवासियों का जुटान हुआ. सबने समाज में हो रहे बदलावों व सकारात्मक बदलाव लाने पर 15 से 19 नवंबर तक गहन विचार-मंथन किया. वर्तमान मुद्दों, संस्कृति, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि पर विचारों का अादान-प्रदान किया. अपनी संस्कृति को अक्षुण्ण बनाये रखने के उपाय भी तलाशे.

पांच दिवसीय संवाद-ए-ट्राइबल कॉन्क्लेव का आयोजन टाटा स्टील की ओर से किया गया था. इसमें देश के 25 राज्यों के 1700 आदिवासी प्रतिनिधि पहुंचे थे.

इसके अलावा युगांडा, मैक्सिको, कैमरून, साउथ अफ्रीका, केन्या, अॉस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, लाओस, म्यांमार आदि देशों के आदिवासी भी अपनी संस्कृति व सभ्यता को समेटे हुए पहुंचे थे. चिंतन-मंथन के बाद यह बात सामने आयी कि विश्व स्तर पर आदिवासियों की स्थिति एक जैसी है. वे हर जगह जल, जंगल व जमीन से बेदखल किये जा रहे हैं. विकास की कहानी उनके विनाश पर लिखी जा रही है.

उनके दुख व दर्द को समझने के बजाय उन्हें ही विकास में बाधक बताकर उनकी गलत तस्वीर लोगों को दिखलायी जा रही है. देश व विदेशों से आये आदिवासियों ने एकजुट होकर विकास की नयी गाथा लिखने का संकल्प लिया. अपनी समस्याओं का हल निकालने का भी प्रण लिया.

आदिवासी संस्कृतियों का संगम

संवाद-ए-ट्राइबल कॉन्क्लेव में 17 राज्यों के हैंडीक्राफ्ट के 75 स्टॉल लगाये गये. इनमें आदिवासी समुदाय द्वारा तैयार वस्तुओं को स्टॉल पर रखा गया था.कॉन्क्लेव मेें 11 राज्यों के 108 व युगांडा, मेक्सिको, कैमरुन, साउथ अफ्रीका के भी कई ट्राइबल हीलर (प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति से इलाज करने वाले) आये हुए थे. उन्होंने एक-दूसरे को जड़ी बूटियों की खूबियों से अवगत कराया.

इतना ही नहीं, उन्हाेंने एक-दूसरे को अपनी भाषा, संस्कृति व सांस्कृतिक पहचान से भी रूबरू कराया. देश व विदेश के आदिवासियों ने एक ही सुर व ताल में ‘रिदम ऑफ अर्थ’ कार्यक्रम के तहत सामूहिक नृत्य किया. यह कॉन्क्लेव आदिवासी संस्कृति का संगम स्थल बना, जहां विश्व के आदिवासियों की संस्कृति का मिलन हुआ.

टूटीं सरहद की लकीरें, एक मंच पर की चहलकदमी

आदिवासी फैशन श‍ो में देश व विदेश से आये आदिवासी युवा अपने-अपने पारंपरिक आउटफिट में रैंप पर उतरे. एक मंच पर उतरकर अनेकता में एकता का संदेश दिया. आपसी प्रेम व भाईचारे के बीच सरहद की लकीरें आड़े नहीं आयीं.

देश के 16 राज्यों से 32 जनजातियों समेत जांबिया, साउथ अफ्रीका, म्यांमार, युगांडा व इंडोनेशिया के ट्राइबल मॉडलों ने इसमें हिस्सा लिया. झारखंड से हो, मुंडा, संताल, खड़िया जाति के ट्राइबल मॉडल्स ने मेजबानी की. रैंप पर नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, असम, कर्नाटक, मेघालय, महाराष्ट्र, ओड़िशा, त्रिपुरा, मणिपुर, सिक्किम, युगांडा व साउथ अफ्रीका के ट्राइबल मॉडल्स ने भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया.

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