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झारखंड@18 : बढ़ती संभावनाएं और उम्मीदें

गणेश मांझी सहायक शिक्षक, गार्गी कॉलेज, दिल्ली विवि झारखंड ने राज्य के रूप में अपना 18वां वर्ष पूरा कर लिया है. इस दौरान विकास की दिशा में कदम बढ़ाते हुए, झारखंड ने कई उल्लेखनीय पड़ाव पार किये हैं. राज्य स्थापना के बाद आर्थिकी, इंफ्रास्ट्रक्चर व सामाजिक सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में झारखंड की गति उत्तम रही […]

गणेश मांझी
सहायक शिक्षक, गार्गी कॉलेज, दिल्ली विवि
झारखंड ने राज्य के रूप में अपना 18वां वर्ष पूरा कर लिया है. इस दौरान विकास की दिशा में कदम बढ़ाते हुए, झारखंड ने कई उल्लेखनीय पड़ाव पार किये हैं. राज्य स्थापना के बाद आर्थिकी, इंफ्रास्ट्रक्चर व सामाजिक सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में झारखंड की गति उत्तम रही है, वहीं राज्य को गरीबी व खाद्य आपूर्ति जैसे क्षेत्रों में अभी बहुत-से सुधार करने की आवश्यकता बनी हुई है.
पलायन का मनोविज्ञान और अर्थशास्त्र
ऐतिहासिक रूप से देखा गया है की मनुष्य हमेशा से ही प्राकृतिक और भौगोलिक रूप से मुश्किल इलाकों से आसान इलाकों में पलायन करते गया है. पलायन करने के सबसे महत्वपूर्ण कारणों में जिंदा रहना और सहज जिंदगी जीने की कोशिश सबसे जरूरी है. झारखंड इस पलायन की विडंबना को झेलता रहा है. मानव द्वारा बनाये गये तमाम व्यवस्था में बाजार एक महत्वपूर्ण व्यवस्था है.
वर्तमान बाजार व्यवस्था यह है कि पृथ्वी की हर चीज वस्तु है और हर वस्तु का सौदा संभव है, जैसे आलू-शकरकंद का सौदा, कृषि का उद्योग और सेवा के साथ सौदा, शहर का गांव के साथ सौदा, सोच का सौदा, अपनी हंसी का सौदा, बेटी बहनें और बच्चों का सौदा, गुर्दे, आंख और शरीर के विभिन्न अंगों तक का सौदा.
वर्तमान बाजार व्यवस्था में मनुष्य अपने चेतन मन से निर्णीत सबसे शुद्ध फायदेमंद चीज का चुनाव और उपभोग करता है. इन तमाम चीजों में पलायन और मानव तस्करी का बाजार बहुत से पिछड़े राज्य झेल रहे हैं और इनमें साल 2000 में नवोदित राज्य झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड प्रमुख हैं. पलायन और तस्करी के दृष्टिकोण से इन तीन राज्यों में झारखंड सबसे आगे है, फिर छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड. ये तीनों राज्य आर्थिक दृष्टिकोण से अगर ठीक कर भी रहे हैं, तो कम-से-कम इतना तो निश्चित है की ये पलायन और तस्करी रोकने में असफल रहे हैं या यूं कहें की ये आर्थिक विकास के दुष्परिणाम हैं, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी.
पलायन और तस्करी के आर्थिक और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण को काफी चिंतकों द्वारा समझने का प्रयास भी किया गया है, सख्त कानून भी बनाये गये हैं, लेकिन स्थिति बदतर ही होती रही. पलायन और तस्करी के अर्थशास्त्र को समझने के लिए अर्थशास्त्र पढ़ने की जरूरत नहीं है. शहर की ओर खिंचाव और गांव से धक्काव के बहुत सारे कारण हैं, जिसे हर कोई आसानी से समझ सकता है, जैसे कि पहली अवस्था में- अवसर और आधुनिक सुविधाओं की पर्याप्तता, बेहतर जीवन की संभावना इत्यादि, वहीं पर दूसरी अवस्था में- अवसर की कमी, शिक्षा के प्रति उदासीनता और माध्यमिक शिक्षा में अत्यधिक असफलता प्रमुख हैं.
दिल्ली, मुंबई और कोलकाता जैसे बड़े शहरों में चमक-दमक और नियोन लाइट की दुनिया किसे आकर्षित नहीं करती है और एक लड़की जब किसी तरह इन शहरों में पहुंच जाती है, तो घर की हर अगली ट्रिप में दो-चार और सपनों को शहर ले आती है. धीरे-धीरे लौटना मुश्किल होता चला जाता है और कुछ तो हमेशा के लिए लौट नहीं पाते हैं.
झारखंड और छत्तीसगढ़ की लड़कियों का सौदा किया जाता है और एक ही घर के 4-5 भाई एक ही खरीदी गयी लड़की से शादी करते हैं. एक लड़की भागने के उपाय ही नहीं ढूंढ पाने और बच्चे को असहाय घर पर न छोड़कर जाने की अवस्था में घर से ही बच्चे को लेकर दिल्ली से राउरकेला से होते हुए सिमडेगा (झारखंड) पहुंच जाती है फिर उसे बच्चा तस्कर कहकर गिरफ्तार कर लिया जाता है.
विश्व में जिस्म और शारीरिक अंगों का व्यापार इतना बड़ा है कि इसका सिर्फ अनुमान ही लगाया जा सकता है, तथ्य नहीं जमा कर सकते. ये सब अर्थशास्त्र के काले हिस्से हैं, जिसका लेखा-जोखा फिलहाल तक संभव नहीं है. कुछ रिपोर्टों की मानें, तो मानव अंगों का व्यापार भारत के बड़े शहरों में ही नहीं मध्य-पूर्व के देशों में भी कुली और मजदूरी करने गये लोगों का किया जाता है.
जाहिर है कि तस्करी का जाल पूरे विश्व में है. कुछ अखबारों और रिपोर्टों की मानें तो, झारखंड और छत्तीसगढ़ के भोले-भाले आदिवासियों की मांग विदेशों में भी काफी ज्यादा है, पहला, क्योंकि ये ईमानदारऔर अंतर्मुखी होते हैं, दूसरा, इन लोगों में एड्स का प्रकोप कम है. अमर्त्य सेन और ज्यां द्रेज की मानें तो भारत में लगभग 3 करोड़ 70 लाख महिलाओं को पैदा ही नहीं होने दिया जाता है और पैदा होने के बाद गायब लोगों की संख्या मिला दें, तो दोगुने के करीब जरूर पहुंच जायेगा.
पैदा होने के बाद तस्करी के द्वारा झारखंड और छत्तीसगढ़ से गायब होनेवाले लोगों की तादाद लाखों में हैं. अब महत्वपूर्ण सवाल यह है कि समस्या तो इतने सारे हैं, तो इनका समाधान कैसे संभव है?
इसका वास्तविक समाधान जमीन पर ही संभव है कागजों पर नहीं. वैसे जब कभी भी किसी भी पलायन करने वाली लड़की से अगर बात की जाये, तो जवाब मिलता है कि आप ही मेरा खर्चा चला दीजिये. इससे दो चीजें साफ झलकती हैं- अभी का युवा हर चीज जल्दी पाना चाहता है, उसमें धैर्य की कमी है और ग्रामीण परिवेश में रहने की वजह से शायद शहरी चमक से जल्दी आकर्षित होती हैं.
दूसरी बात, सरकार का इसमें कोई सार्थक प्रयास नहीं िदखता है. भारतीय गणतंत्र में वैसे भी कृषि सिकुड़ती जा रही है और कृषि से बेरोजगार हुए लोगों को सस्ते मजदूर की तरह शहरी विकास में और उद्योग धंधों में लगाया जा रहा है, ताकि इनकी आय बढ़ सके. नवोदित राज्यों में उत्तराखंड शायद दिल्ली जैसे शहर के नजदीक में रहने की वजह से राज्य के मजदूरों की बढ़ती आय का ज्यादा फायदा ले पाया है, परंतु झारखंड और छत्तीसगढ़ की स्थिति में परिवर्तन नगण्य ही है. दूसरी ओर कृषि आय में शायद ही कोई वृद्धि है, क्योंकि कुछ सालों से झारखंड सुखाड़ झेल रहा है, इस मामले में छत्तीसगढ़ थोड़ा बेहतर माना जा सकता है.
जाहिर है, पहला समाधान खिंचाव और धक्काव विश्लेषण के द्वारा राज्यों में ज्यादा-से-ज्यादा अवसर उपलब्ध कराये जाने चाहिए, कृषि के साथ-साथ उद्योग धंधों में रोजगार सृजन की व्यवस्था, छोटे बांधों द्वारा सिंचाई की सुविधा, ग्रामीण कौशल योजना के तहत पर्याप्त रोजगार और ऋण का सृजन, शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ावा और राज्य शैक्षणिक बोर्ड को केंद्रीय बोर्ड के समकक्ष बनाया जाये, माध्यमिक परीक्षा में असफल छात्रों के लिए पर्याप्त काउंसलिंग और वैकल्पिक व्यवस्था होनी चाहिए, तकनीकी ज्ञान और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा, हर गांव को सड़क, बिजली से जोड़ने की जरूरत और साथ ही कानून-व्यवस्था को दुरुस्त करने की जरूरत. इन्हीं उपायों से झारखंड तरक्की कर सकता है.
विकास दर में सेक्टर वार हिस्सेदारी
2,79,451 करोड़ रुपये रहा झारखंड का जीएसडीपी यानी सकल राज्य घरेलू उत्पाद (मौजूदा कीमतों पर) वर्ष 2017-18 के दौरान.
6.7 प्रतिशत की दर के साथ आर्थिक विकास और 5.2 प्रतिशत के साथ प्रति व्यक्ति आय बढ़ने का अनुमान रहा वित्त वर्ष 2017-18 में.
56 प्रतिशत औसतन हिस्सेदारी रही तृतीयक क्षेत्रों की सलाना विकास दर में वर्ष 2011-12 से 2016-17 के दौरान. इस दौरान राज्य के अार्थिक विकास में प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रों की हिस्सेदारी क्रमश: 18 से 26 प्रतिशत रही.
39 प्रतिशत हिस्सा रहा औद्योगिक क्षेत्रों का राज्य के सालाना विकास दर में इस अवधि के दौरान. राज्य के विकास में विनिर्माण
और खनन का योगदान क्रमश: 22 और 13 प्रतिशत रहा.
मनरेगा के तहत रोजगार
16.4 लाख लोगों को मनरेगा के तहत बीते वर्ष (दिसंबर, 2017 तक) रोजगार मिला, जो 12.5 लाख परिवारों से थे.
28 प्रतिशत कुल रोजगार में से अनुसूचित जनजाति परिवारों को और 11 प्रतिशत अनुसूचित जाति परिवारों को मिला.
26,759 परिवारों को इस योजना के तहत 100 दिनों से अधिक का रोजगार प्राप्त हुआ.
ग्रामीण विकास
25,200 गांव कुल 36,827 गांवों में पक्के सड़क मार्गों (सभी मौसमों के लिए) से जोड़े जा चुके हैं मौजूदा वित्त वर्ष तक.
कृषि और रोजगार
66.5 प्रतिशत रोजगार के लिए लोग कृषि कार्यों पर निर्भर हैं राज्य में.
76 प्रतिशत कुल आबादी झारखंड में ग्रामीण क्षेत्रों की निवासी है.
12.17 प्रतिशत हिस्सेदारी रही जीएसडीपी में कृषि एवं पशुपालन क्षेत्र की 2016-17 में, आर्थिक एवं सांिख्यकीय निदेशालय झारखंड के अनुसार.
25.6 लाख हेक्टेयर बुआई क्षेत्र राज्य में कुल भौगोलिक क्षेत्र (79.0 लाख हेक्टेयर) का 32 प्रतिशत है.
29.2 प्रतिशत क्षेत्र वनाच्छादित है राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र में, जबकि 7.2 प्रतिशत क्षेत्रफल बंजर है.
राज्य में कुल कृषि उत्पादन
फसल 2015-16 2016-17
क्षेत्रफल उत्पादन उपज क्षेत्रफल उत्पादन उपज
(हेक्टेयर) (टन) (किग्रा/हे) (हेक्टेयर) (टन) (किग्रा/हे)
कुल दलहन 553 495 895 805 844 1049
कुल खाद्यान्न 2631 3768 1432 3054 6730 2204
कुल तिलहन 283 188 665 361 264 732
औद्योगिक क्षेत्र
20-25 प्रतिशत इस्पात उत्पादन देश के कुल उत्पादन का झारखंड से होता है. झारखंड में प्रस्तावित स्टील प्लांट के शुरू हो जाने के बाद राज्य स्टील हब बनने की क्षमता रखता है.
40 प्रतिशत खनिज और 29 प्रतिशत कोयला भंडार झारखंड में है. राज्य देश के सर्वाधिक समृद्ध खनिज क्षेत्रों में से एक है.
खनिज भंडार
कोयला 27.3 प्रतिशत (देश के कुल भंडार का)
लौह अयस्क 26.0 प्रतिशत
तांबा 18.5 प्रतिशत
अन्य खनिज : यूरेनियम, अभ्रक, बाक्साइट, ग्रेनाइट, चूना पत्थर, चांदी, ग्रेफाइट, मैग्नेटाइट, डोलोमाइट आदि.
झारखंड पूरे देश में सर्वाधिक टसर सिल्क उत्पादन करनेवाला राज्य है.
11.3 करोड़ डॉलर का विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) आया राज्य में अप्रैल 2000 से जून 2017 के बीच औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग (डीआईपीपी) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार.
24 प्रतिशत आबादी शहरी क्षेत्रों में निवास करती है झारखंड में, राज्य में शहरीकरण की व्यापक संभावनाएं मौजूद हैं.
राज्य के शहरीकृत प्रमुख जिले
धनबाद (58.13 प्रतिशत)
पूर्वी सिंहभूमि (55.56)
बोकारो (47.70 प्रतिशत)
रामगढ़ (44.13 प्रतिशत)
रांची (43.14 प्रतिशत)
Prabhat Khabar Digital Desk
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