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नेता और शासक खत्म हो जायेंगे मगर कविता कभी खत्म नहीं होगी

पिछले पचास वर्षों से लगातार किसानों और मजदूरों के जीवन संघर्ष को अपनी कविताओं में जगह देने वाले कवि अरुण कमल निस्संदेह आधुनिक हिंदी कविता के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं. उनकी कविताओं में बच्चे, जवान, स्त्रियां सभी शामिल हैं. कोई जूट या लोहे की मिलों में काम करता है, तो कोई होटल का नौकर है, […]

पिछले पचास वर्षों से लगातार किसानों और मजदूरों के जीवन संघर्ष को अपनी कविताओं में जगह देने वाले कवि अरुण कमल निस्संदेह आधुनिक हिंदी कविता के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं. उनकी कविताओं में बच्चे, जवान, स्त्रियां सभी शामिल हैं. कोई जूट या लोहे की मिलों में काम करता है, तो कोई होटल का नौकर है, पुल बनाने वाले मजदूर, नक्सली समझकर मौत के घाट उतार दिये जाने वाले मजदूर, दरजिन, स्कूल मास्टर, अगरबत्ती बनाने वाले आदि सभी उनकी कविताओं के विषय-वस्तु रहे हैं.साहित्य सोपान के इस अंक में हमने उनसे उनके साहित्यिक जीवन और कविता की वर्तमान स्थिति पर बातचीत की है.

बातचीत- पुष्यमित्र

Q’अपनी केवल धार’ से शुरू हुई किसानों-मजदूरों के पक्ष में लिखी जाने वाली आपकी कविताओं का सिलसिला आज तक जारी है. मेहनतकश जीवन का इतना सजीव चित्रण आप कैसे कर पाते हैं?

आदमी उन्हीं चीजों के बारे में लिखता है, जिसके बारे में वह जानता है, जिसका वह अनुभव कर चुका होता है. वह जो देखता है, सुनता है, वह उसकी रचनाओं में उतर जाता है. हालांकि कई दफा कवि वह भी लिखता है, जिसे उसने नजदीक से नहीं देखा है. महान नाटककार शेक्सपीयर ने टेम्पेस्ट में लिखा है, आई हैव सफर्ड विथ दोज दैट आइ शो सफर्ड. (मैं जिसे परेशान होता देखता हूं, उसके लिए मैं परेशान होता हूं.) इसके अलावा, जिसे हम कल्पना कहते हैं वह भी यथार्थ पर ही आधारित होती है. कथा-पुराणों के जो अजूबे पात्र हैं, वे भी एक तरह से यथार्थ पर ही आधारित हैं. इसलिए यथार्थ का कोई बदल नहीं है. मेरी कविताओं में अलग-बगल के लोगों का जीवन है. क्योंकि मैं गांवों-कस्बों में रहा, पटना भी एक बड़ा गांव ही है. इन्हीं के साथ पला-बढ़ा हूं. यही लोग हमारे अपने थे और हैं भी.

Qआपके जीवन में कविता की शुरुआत कैसे हुई?

कविता की शुरुआत कविता पढ़ने से हुई. स्कूली पाठ्यक्रम में कविताएं थीं. घर में साहित्यिक और दूसरी तरह की पत्रिकाएं आती थीं. फिर अपने इलाके में कुछ भोजपुरी कवि सम्मेलनों को देखा-सुना. दसवीं कक्षा में एक बार भिखारी ठाकुर को देखा, उनका आयोजन हो रहा था. वहां काफी भीड़ थी. और पास-पड़ोस से जो जहां था, वहीं से दौड़ा आ रहा था. इस घटना ने मेरे मन में इस धारणा को पुख्ता किया कि कवि भी कोई भारी चीज होता है.

Qआपने कविताओं के लिए हिंदी माध्यम ही क्यों चुना, आप अंगरेजी के प्राध्यापक हैं. अंगरेजी में भी लिख सकते थे, जिसकी अलग किस्म की प्रतिष्ठा और बाजार है.

अंगरेजी लेखन से जो पहचान बनती है, नकली होती है. और वैसे भी कविताएं सिर्फ अपनी मातृभाषा में ही संभव है. आप हमेशा अपनी भाषा में ही कविता लिखते हैं. दुनियाभर के सभी कवियों ने मातृभाषा में कविता लिखी. क्योंकि कविता लिखने के लिए शब्दों के साथ जो अंतरंगता होनी चाहिए, वह बाहरी भाषा में संभव नहीं है. शब्दों का केवल अर्थ नहीं होता, उनका रोम हास भी होता है. यह अपनी भाषा में हो पाता है.

Qआप भोजपुरी भाषी हैं, भिखारी ठाकुर से प्रभावित भी हैं, भोजपुरी में भी लिख सकते थे, जिसके आप अधिक करीब थे?

भोजपुरी और हिंदी में ज्यादा फर्क नहीं है. वैसे भी मेरी मातृभाषा मगही है, भोजपुरी तो पितृभाषा है. भिखारी ठाकुर जब भोजपुरी में रच रहे थे तब और जमाना था. उस वक्त रचनाएं और नाटक लोगों तक पहुंचने का, अपनी बात कहने का एकमात्र माध्यम था. आज बहुत सारे माध्यम हैं, जो आपके बेडरूम तक अपनी पहुंच रखते हैं.

पूंजीवाद ने सभी अव्यावसायिक माध्यमों को कमजोर कर दिया है. जैसे किसी अखबार ने क्या कभी अपने मुख्य पृष्ठ पर कविता छापी है? कोई कविता क्यों नहीं छपी. पूंजीवाद हमारे संस्कारों और संस्कृति को नष्ट कर डालता है.

Qनये जमाने और नये माध्यम के इस दौर में कविता को आप किस हाल में पाते हैं? इसका भविष्य क्या है?

नये लोग नये माध्यम से जुड़ रहे हैं. वहीं रच रहे हैं और ई-बुक के रूप में प्रकाशित भी हो रहे हैं.

और जहां तक कविता के भविष्य और इस पर आसन्न संकट की बात है वह हर वक्त में रही है. कविता के भविष्य को लेकर हमेशा चिंता रही है, पर पता नहीं कविताएं क्यों बच जाती हैं. नये कवि आ जाते हैं और कविताएं पढ़ी भी जाने लगती हैं. नेता और शासक खत्म हो जाएंगे, मगर कविता कभी खत्म नहीं होगी.

Q आपने कहा था कि कवि वही हो सकता है, जो मन से स्त्री हो. इसका आशय क्या है?

मैंने ऐसा नहीं कहा था. मैंने कहा था कि कवि को उभयलिंगी होना चाहिए. ताकि वह दोनों लिंग की भावनाओं को व्यक्त कर सके. यह मेरी उक्ति नहीं, वर्जीनिया वुल्फ की उक्ति है. वैसे हमारे यहां अर्ध-नारीश्वर का प्रतीक पहले से है. जो संपूर्ण सृष्टि को जनता है और संपूर्ण सृष्टि का कर्ता है.

क्योंकि मनुष्य जाति का मूल विभाजन तो यही है, स्त्री और पुरुष. लेकिन विभाजित रहकर सृष्टि नहीं हो सकती. इसमें यह बात भी शामिल है कि कवि सब कुछ होता है, सारे मनुष्य उसमें होते हैं, जीव जंतु भी.

Q अभी के राजनीतिक समय में आप कवि और कविता को कितना प्रासंगिक मानते हैं?

इस दुनिया की कई गतियां हैं, खगोलीय गति अलग है. पृथ्वी की अपनी दो गतियां हैं. चंद्रमा की अपनी गति है. इन गतियों के बीच एक व्यक्ति का अस्तित्व धूल के बराबर है. इसलिए व्यक्ति को अपना अवलोकन करते रहना चाहिए.

वैसे कविता की गति बाकी सांसारिक गतियों से भिन्न होती है. राजा रानी आते जाते रहते हैं. वे सिर्फ इसलिए जाने जाते हैं कि उन्होंने कितने लोगों का कत्ल किया. जबकि कविताएं इसलिए जानी जाती हैं कि उसने कितने लोगों को जीवन और जीने की शक्ति दी.

॥ अरुण कमल एक परिचय ॥

15 फरवरी, 1954 को नासरीगंज, रोहतास में जनमे अरुण कमल पिछले पचास सालों से कविताएं लिख रहे हैं. फिलहाल पटना विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के अध्यापक हैं.

प्रकाशित पुस्तकें:

कविता संग्रह- अपनी केवल धार, सबूत, नये इलाके में, पुतली में संसार तथा मैं वो शंख महाशंख.

आलोचना- कविता और समय, गोलमेज.

साक्षात्कार – कथोपकथन

अनुवाद – वियतनामी कवि तो हू की कविताओं और मायकोव्स्की की आत्मकथा का.

सम्मान: भारत भूषण अग्रवाल स्मृति पुरस्कार, सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड, श्रीकांत वर्मा स्मृति पुरस्कार, रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार, शमशेर सम्मान और नये इलाके में पुस्तक के लिए 1998 का साहित्य अकादमी पुरस्कार.

Prabhat Khabar Digital Desk
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