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स्मार्टफोन से फोटो के लिए मददगार तकनीक पोर्ट्रेट मोड

स्मार्टफोन्स में डीएसएलआर (डिजिटल सिंगल-लेंस रिफ्लेक्स) कैमरा के मुकाबले छोटे सेंसर्स और लेंस हो सकते हैं, लेकिन हमारे पॉकेट में जो कैमरा है, उसके हार्डवेयर की खामियों को कभी-कभार वह सॉफ्टवेयर और कंप्यूटिंग पावर के जरिये सुधारने में सक्षम हो सकता है. अधिकतर स्मार्टफोन्स में कॉमन फीचर के तौर पर अब पोर्ट्रेट मोड का इस्तेमाल […]

स्मार्टफोन्स में डीएसएलआर (डिजिटल सिंगल-लेंस रिफ्लेक्स) कैमरा के मुकाबले छोटे सेंसर्स और लेंस हो सकते हैं, लेकिन हमारे पॉकेट में जो कैमरा है, उसके हार्डवेयर की खामियों को कभी-कभार वह सॉफ्टवेयर और कंप्यूटिंग पावर के जरिये सुधारने में सक्षम हो सकता है. अधिकतर स्मार्टफोन्स में कॉमन फीचर के तौर पर अब पोर्ट्रेट मोड का इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन यह वास्तव में करता क्या है?

क्या फोन की अधिक कीमत हासिल करने का महज यह एक फीचर है या फिर वास्तव में इसके जरिये बेहतर तस्वीर ली जा सकती है? दरअसल, कैमरे की तकनीक स्मार्टफोन से बिल्कुल इतर होती है. पोर्ट्रेट मोड कंप्यूटेशनल फोटोग्राफी का एक प्रारूप है, जो स्मार्टफोन को स्नैपशॉट्स लेने में मदद करता है. आज के इन्फो टेक में जानते हैं

इससे जुड़े विविध तथ्यों के बारे में …

क्या है पोर्ट्रेट मोड

पोर्ट्रेट मोड कुछ खास स्मार्टफोन्स में उपलब्ध एक विशिष्टता है, जो शार्प और बेहतर बैकग्राउंड के साथ स्पष्ट तस्वीर मुहैया कराता है. किसी व्यक्ति के क्लोज-अप फोटो को बेहतर बनाने के संदर्भ में इसे खास तौर पर इस्तेमाल में लाया जाता है. पोर्ट्रेट मोड एक सामान्य कैमरे पर आम तौर पर मिलने वाले दृश्य मोड में से एक के रूप में शुरू हुआ, लेकिन अब यह सुविधा स्मार्टफोन फोटाेग्राफी में भी मुहैया करायी जा रही है. हालांकि, डिजिटल कैमरा के साथ ही स्मार्टफोन के जरिये भी अब पोर्ट्रेट मोड फोटो लिया जा सकता है, लेकिन दोनों के इमेज में बड़ा फर्क देखा जा सकता है.

कैमरा सेटिंग का खास महत्व

इसमें कैमरा सेटिंग का खास महत्व है. एपर्चर यानी लेंस का मुख बैकग्राउंड को ब्लर करता है. ब्लर बैकग्राउंड वहां मौजूदा विकृतियों को कम करता है. धीरे-धीरे इसमें अतिरिक्त चीजों को जोड़ा गया, जिससे यह ज्यादा स्पष्ट होता गया है. इसे ऑटोफोकस के तौर पर समायोजित भी किया गया है, ताकि किसी तरह की विकृति को पहचाना जा सके और उसे निकाला जा सके.

अासान नहीं स्मार्टफोन में इसका फिट होना

हालांकि, स्मार्टफोन निर्माताओं ने इस दिशा में प्रयास किया है, लेकिन इसमें बड़े डीएसएलआर सेंसर को फिट करना आसान नहीं है. लेकिन, डीएसएलआर के मुकाबले स्मार्टफोन की कंप्यूटिंग क्षमता अधिक है. यह बड़ा फर्क है, जो स्मार्टफोन के पोर्ट्रेट मोड को लोकप्रिय बनाता है.

स्मार्टफोन में पोर्ट्रेट मोड कंप्यूटेशनल फोटोग्राफी का एक रूप है, जिसकी पृष्ठभूमि कृत्रिम रूप से धुंधली होती है, ताकि डीएसएलआर की धुंधली पृष्ठभूमि की नकल की जा सके.स्मार्टफोन पोर्ट्रेट मोड सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर के मिश्रण पर निर्भर करता है.

हालांकि, किसी फोटो के बैकग्राउंड को धुंधला करना आसान नहीं होता है. इसे अनेक तरीकों से अंजाम दिया जाता है. यदि आप इस बारे में ज्यादा जानना चाहते हैं, तो फिर इसमें इनेबल किये गये फीचर में बहुत सी चीजों पर गौर करना होगा.

बैकग्राउंड धुंधला करने के विविध तरीके

टू-लेंस डेप्थ मैपिंग

ऑरिजनल स्मार्टफोन पोर्ट्रेट मोड के लिए एक डुअल-लेंस कैमरा की जरूरत होती है. ‘डेप्थ मैपिंग’ के लिए टेलीफोटो लेंस का इस्तेमाल किया जाता है और स्मार्टफोन के जरिये परीक्षण के लिए वाइड एंगल लेंस का इस्तेमाल किया जाता है. ये दो अलग-अलग व्यूप्वॉइंट आपस में मिल कर ‘डेप्थ मैप’ का निर्माण करते हैं या फिर यह अनुमान लगाते हैं कि खींची गयी तस्वीर वास्तव में कितनी दूरी पर है. इसी डेप्थ मैप से स्मार्टफोन यह पता लगाता है कि बैकग्राउंड में क्या है और क्या नहीं है.

पिक्सेल स्प्लिटिंग

पिक्सेल विभाजन के लिए दो लेंस के बजाय एक खास प्रकार के कैमरा सेंसर और महज एक लेंस की जरूरत होती है. दो अलग-अलग लेंस का इस्तेमाल करके गहराई का नक्शा बनाने के बजाय, यह तकनीक एक ही पिक्सेल के दो अलग-अलग किनारों से गहराई का नक्शा बनाती है. गूगल पिक्सेल 2 की तरह डुअल-पिक्सेल ऑटोफोकस वाले स्मार्टफोन में एक सिंगल पिक्सेल में वास्तव में दो फोटोडायोड्स होते हैं.

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