नशीली दवाओं और उसकी अवैध तस्करी के खिलाफ उठायें आवाज
रांची: आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में मां-बाप के पास बच्चों के लिए पर्याप्त समय नहीं होता. इसी कारण बच्चों को उचित घरेलू शिक्षा नहीं मिल पाती और वे रास्ता भटक कर गलत संगत में पड़ जाते हैं. मादक पदार्थों का सेवन करने लगते हैं. पहले इसका सेवन फैशन या शौक से किया जाता है. धीरे-धीरे नशा के आदी हो जाते हैं. निकोटीन, कोकीन, कैफीन, कैनाबिस, हीरोइन जैसे नशीले और खतरनाक पदार्थ की चपेट में आ जाते हैं. राजधानी के युवा और बच्चे भी इससे अछूते नहीं हैं.
झारखंड में भी बढ़ रही है ड्रग तस्करी
झारखंड भी ड्रग्स की चपेट से दूर नहीं है़ रांची में ड्रग्स व अन्य नशीले पदार्थ बिना किसी डर के खुले में बेचे जा रहे हैं. शहर के कई इलाकों में इसकी बिक्री हो रही है. इसकी चपेट में छोटे बच्चे और युवा आ चुके हैं.शहर के विभिन्न जगहों पर युवाओं को नशा का सेवन करते अक्सर देखा जा सकता है. आश्चर्य की बात है कि 08-10 वर्ष के बच्चे भी पेंट, नेल पॉलिश रिमूवर, डिओडरेंट जैसी चीजों का सेवन कर रहे हैं.
रिनपास में प्रतिदिन आ रहे युवा
सीआइपी और रिनपास के डॉक्टरों का कहना है कि हर दिन लगभग पांच से छह मरीज नशामुक्ति केंद्र में नशे की लत छुड़ाने के लिए भर्ती किये जा रहे हैं. प्रतिदिन इतने ही मरीजों की काउंसेलिंग भी की जा रही है. उन्होंने बताया कि पांच नयी और विभिन्न प्रकार के ड्रग्स हमारी सोसाइटी में उत्पन्न हो गयी है. इस वजह से किसी भी उम्र के लोग अब इसकी गिरफ्त से दूर नहीं है़ं लोगों को इस लत से बचाने के लिए रिनपास, सीआइपी में नशामुक्ति केंद्र खोले गये हैं.
युवाओं को बचाना हम सब की जिम्मेदारी
डॉ विनोद कुमार महतो कहते हैं कि आज का यह विशेष दिन हमें समझाने के लिए है कि हम सब की जिम्मेदारी है कि युवा पीढ़ी को नशा से दूर करें. इसमें सरकार और समाज दोनों का योगदान जरूरी है. सरकार को नशीली पदार्थों की तस्करी करने और बेचने वालों पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए. विद्यालयों और कॉलेजों में समय-समय पर इससे होनेवाले नुकसान और खतरों काे बताना चाहिए. सबसे बड़ी जिम्मेदारी मां बाप की बनती है कि वे अपने बच्चों को पर्याप्त समय दें.
अल्कोहल का कर रहे ज्यादा सेवन
डॉ आशीष सोय कहते हैं कि रांची में अल्कोहल लेनेवालों की संख्या अधिक है. काफी युवा इनके शिकार होते जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि एक युवक ड्रग और अल्कोहल के चक्कर में मानसिक संतुलन खो बैठा. उसके परिवार को काफी परेशानी हुई. जानकारी के मुताबिक उसने नशे की शुरुआत तंबाकू से की. धीरे-धीरे गांजा और भांग की लत लग गयी. इसकी वजह से उसकी मानसिक स्थिति काफी बिगड़ गयी. उसे सीआइपी में दाखिला करया गया.
मनोचिकित्सक कहते हैं
औसतन पांच मरीज आ रहे प्रतिदिन
डॉ निशांत गोयल (सीआइपी) का कहना है की 2017 के मुकाबले 2018 में बच्चों और युवाओं में ड्रग्स की खपत और मांग में काफी वृद्धि हुई है खासतौर पर उनका कहना है कि एक ऐसे मरीज़ों का ग्रुप ज्यादातर देखने को मिल रहा जो अफीम से बने पदार्थ की लत की चपेट में है़ और इनके अलावा नशीला दवाई जैसे स्पासमोप्रोक्सिवॉन भी ले रहे है़वह वोलेटाइल साल्वेंट जैसे पदर्थों का इस्तमाल तेज़ी से कर रहे है इन पदार्थो में डेनड्राइट , थिनर,पेट्रोल जैसे उत्पाद शामिल है बच्चो में कफ सिरप पिने की लत भी काफी बढ़ती जा रही है़ उनका कहना है इन मादक पदार्थो का असर सीधा शरीर और मस्तिष्क पर पड़ता है जिनसे उनका दिमागी संतुलन बिगड़ जाता है.
डॉ पवन कुमार बर्णवाल कहते हैं कि उनके पास औसतन प्रतिदिन पांच नशा पीड़ित आते हैं. एक मरीज के बारे में बताया कि नशे की लत की वजह से उसके परिवार को काफी परेशानी हो रही है. नशे की चंगुल में फंसा व्यक्ति सरकारी अधिकारी है. वह 10 वर्षों से नशे का सेवन कर रहा है. उसे डेलिरियम ट्रेमेंस की शिकायत हो गयी है. यह एक ऐसी बीमारी है, जिसमें मरीज में समय, स्थान और इंसान को पहचानने की शक्ति खत्म को जाती है़ उस मरीज को अजीब आवाज सुनायी देती है़ जांच के बाद यह भी पता चला उस मरीज के लिवर और फेफड़े को काफी नुकसान पहुंचा है.
नशा से बचाने का उपाय
स्कूलों में अभियान चलाया जाये
घर में बच्चों के हाव-भाव को देखें
बच्चों पर पूरा समय दें, ताकि उसकी एक्टिविटी को देखा जाये
बच्चों के दोस्तों पर भी नजर रखना जरूरी है