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इस्लाम और रोजा को समझें

मोहम्मद जकीउल्लाह इस्लाम को समझने के चार स्रोत हैं कुरआन, हदीस, इजमा-ए-उम्मत (सामुदायिक सहमति) और कयास (अनुमान). इस्लाम की शिक्षा, विचार, विचारधारा और तथ्य के स्रोत यही चार हैं. इन्हीं चार स्रोतों से जो साबित है, वही इस्लाम है और इस्लामी चीज है. बाकी चीजें मानव पैदावार हैं, जिनको उसने अपने फायदा के लिए गढ़ […]

मोहम्मद जकीउल्लाह

इस्लाम को समझने के चार स्रोत हैं कुरआन, हदीस, इजमा-ए-उम्मत (सामुदायिक सहमति) और कयास (अनुमान). इस्लाम की शिक्षा, विचार, विचारधारा और तथ्य के स्रोत यही चार हैं. इन्हीं चार स्रोतों से जो साबित है, वही इस्लाम है और इस्लामी चीज है. बाकी चीजें मानव पैदावार हैं, जिनको उसने अपने फायदा के लिए गढ़ लिया है.

इस्लाम के मानने वाले को मुस्लिम या मुसलमान कहा जाता है. जिसके अर्थ समाज में अमन व शांति स्थापित करनेवाला, अमन पसंद और सुलह सफाई करने वाला इत्यादि है. यह सिर्फ दावा नहीं, बल्कि एक सच्चाई है. कुरआन के सूरा-ए-माइदा की आयत 32 में कहा गया है कि जिसने नाहक किसी जान को मारा या फसाद या गड़बड़ी पैदा करने के लिए किसी को मारा, तो उसने मानो पूरे इंसानों को मारा और जिस किसी ने एक जान को बचाया, तो मानो उसने पूरे इंसानों को बचाया. जो इस्लाम के नाम पर अतिवाद या आतंकवाद की कोई कार्रवाई करता है, उसका इस्लाम, मुस्लिम या मुसलमान से कुछ लेना-देना नहीं है.

इस्लाम अपनी मान्यता को किसी पर जबर्दस्ती थोपता नहीं है. कुरआन के सूरा-ए-बकरा की आयत 256 में है, धर्म के बारे में किसी पर कोई जबर्दस्ती नहीं है. इसी तरह कुरआन के सूरा-ए-अलकाफिरून की आयत छह में है, तुम्हारे लिए तुम्हारा धर्म है और मेरे लिए मेरा धर्म है. इसलिए इस्लाम को मानने की इच्छा और पसंद पूरी तरह व्यक्ति की समझ पर छोड़ा गया है, क्योंकि इस्लाम धर्म एक दिव्य धर्म है, जिसमें पूरी तरह से ज्ञान और बुद्धि का संगम है.

जिस रब ने इस्लाम को दिया, उसका गुण रहमान और रहीम है. यानी लोगों पर दया और करुणा करनेवाला. कुरआन के सूरा-ए-अन्नहल की आयत 58 में फरमाया गया है, जब उनमें से किसी को बच्ची की पैदाइश जन्म की खुशखबरी दी जाती है, तो उनका चेहरा क्रोध से लाल-पीला हो जाता है.

कुरआन के सूरा-ए-अत्तकवीर की आयत आठ और नौ में फरमाया है, और जब जिंदा दफन कर दी जानेवाली बच्ची से पूछा जायेगा कि तुम्हें किस गुनाह में मारा गया. उन दोनों आयतों में मां की कोख में कन्या भ्रूण हत्या की निंदा करते हुए हराम कहा गया है और बच्ची के जन्म को शुभ और खुशखबरी कहा गया है.

रोजा (उपवास) उर्दू भाषा का शब्द है. अरबी भाषा में इसे सौम या सियाम कहा जाता है. कुरआन और हदीस में यही शब्द आये हैं, जिसका अर्थ रुकना है. लेकिन पारिभाषिक शब्द में सुबह-ए-सादिक (पहली सुबह) से लेकर सूरज डूबने तक खाने, पीने और यौन संबंधी चीजों से रुकने को रोजा कहा जाता है.

हर उस चीज से रुकना, जिससे किसी को कोई तकलीफ न हो और न शरीर के किसी अंग से कोई गलत काम हो, यही सही मायने में रोजा है. इस तरह रोजा हमें सहिष्णुता, सहनशीलता, सहानुभूति और समानुभूति की पाठ पढ़ाता है.

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