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बेहतर संबंधों की दिशा में भारत एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया

पुष्परंजन ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक भारत और आसियान देशों के बीच लगातार बेहतर हो रहे संबंधों को नयी दिशा देने के इरादे से आयोजित साझा सम्मेलन में भाग लेने के लिए इन देशों के नेता देश में हैं. सभी 10 राष्ट्राध्यक्ष और शासनाध्यक्ष गणतंत्र दिवस समारोह के विशिष्ट अतिथि भी हैं. एशिया के […]

पुष्परंजन
ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक
भारत और आसियान देशों के बीच लगातार बेहतर हो रहे संबंधों को नयी दिशा देने के इरादे से आयोजित साझा सम्मेलन में भाग लेने के लिए इन देशों के नेता देश में हैं. सभी 10 राष्ट्राध्यक्ष और शासनाध्यक्ष गणतंत्र दिवस समारोह के विशिष्ट अतिथि भी हैं. एशिया के विकास में आसियान के साथ भारत के 25 सालों के रिश्ते बहुत अहम हैं. नेताओं के मौजूदा दौरे और बहुपक्षीय संबंधों के विविध आयामों पर एक नजर आज के इन-डेप्थ में…
परिणाम चाहे जो हो, पर मोदी डिप्लोमेसी का अंदाज आक्रामकता ही रही है, जो इस समय अमेरिका को भा रही है. अमेरिका के लिए साउथ चाइना सी और पूर्वी एशिया केंद्रित कूटनीति की कई वजहें हैं.
पहली वजह, एशिया-प्रशांत के इलाके में एक-तिहाई व्यापार दक्षिण चीन सागर के रास्ते होता है. दूसरी वजह, दक्षिण-पूर्व एशिया के दस देशों का संगठन ‘आसियान’, 10 करोड़ 40 लाख आबादी का प्रतिनिधित्व करता है, और 2.57 खरब डॉलर की मुक्त व्यापार अर्थव्यवस्था है. आसियान का दूसरे छह क्षेत्रीय संगठनों से फ्री ट्रेड एग्रीमेंट है. ऐसे प्रभावशाली ब्लॉक पर चीनी प्रभामंडल को कैसे निस्तेज करना है, यह अमेरिकी कूटनीति का कोर एजेंडा रहा है. प्रेसिडेंट ट्रंप को शायद इसलिए पीएम मोदी का ‘एक्ट ईस्ट’ भाने लगा है.
सुकर्णो थे पहले अतिथि
भारतीय कूटनीति का प्रस्थान बिंदू पूर्वी एशिया रहा है, पर पता नहीं किन वजहों से इन तथ्यों को पर्दे से बाहर लाने का प्रयास नहीं हुआ. उस समय तक आसियान (एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशंस) की आधारशिला भी नहीं रखी गयी थी, जब 1950 में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो भारत के पहले गणतंत्र दिवस के अवसर पर मुख्य अतिथि के बतौर भारत आये थे. सुकर्णो, नेहरू, मिस्र के शासनाध्यक्ष नासिर और घाना के पहले प्रधानमंत्री क्वामे नकरूमा के तार ऐसे मिले कि 11 साल बाद, 1961 में गुटनिरपेक्ष आंदोलन की बुनियाद रखी गयी. कूटनीति में जो कुछ बोया जाता है, उसकी फसल कई बार, बहुत सालों बाद कटती है.
आसियान का उदय 1967 में उसी अवधारणा के अनुरूप हुआ. एशिया-प्रशांत के देश इंडोनेशिया, मलयेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड, फिलीपींस उपनिवेशवाद से मुक्त हुए थे, और वियतनाम कम्युनिस्ट गुरिल्लों के विरुद्ध अमेरिकी युद्ध से त्रस्त थे. इन्हें राजनीतिक स्थिरता और विकास चाहिए था. 51 सालों में आसियान से पांच और सदस्य कंबोडिया, लाओस, म्यांमार, वियतनाम, ब्रुनेई जुड़े, और इन सबों ने वह कर दिखाया, जो लक्ष्य इन्होंने निर्धारित किया था.
भारत-आसियान पार्टनरशिप के 25 साल पूरे हो गये हैं. मगर, लक्ष्य आधे–अधूरे हैं. उसका सबसे बड़ा उदाहरण एक हजार 980 किमी ‘इंफाल-मंडाले-बैंकाक राजमार्ग’ का अब तक पूरा नहीं होना है. 25 जनवरी, 2018 को नयी दिल्ली में ‘शेयर्ड वैल्यू-कॉमन डेस्टिनी’ नारे के साथ बहुत सारे इवेंट होने हैं. भारत, आसियान देशों का चौथा सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है.
मगर, वर्ष 2000 से अब तक निवेश की गति 12.5 प्रतिशत ही रही है. 17 सालों में आसियान देशों से 514.73 अरब डॉलर का निवेश भारत में हुआ है. इसके बरक्स भारत से आसियान देशों में 38.672 अरब डॉलर का निवेश अप्रैल, 2007 से मार्च, 2015 के बीच रहा है. एक जुलाई, 2015 को आसियान-भारत के बीच मुक्त व्यापार समझौता संभव हुआ है. चार-पांच जुलाई, 2017 तक आसियान-भारत के बीच थिंक टैंक स्तर के ‘दिल्ली डायलाग’ नौ बार हो चुके हैं. 44 महीनों में प्रधानमंत्री मोदी दस में से नौ आसियान देशों का दौरा कर चुके. इससे यह संदेश तो गया कि पीएम मोदी ‘एक्ट एशिया’ नारे के अनुरूप एक्शन मोड में रहे हैं.
नयी कूटनीति
68 साल बाद 10 देशों के शासन प्रमुखों को एक साथ बुलाने की वजह क्या हो सकती है? प्रथम दृष्टया यही लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी अपने शासन के आखिरी पायदान पर कूटनीति का वह कार्ड खेलना चाहते हैं, जिसे किसी ने नहीं खेला. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समय 1968 में दो शासन प्रमुख सोवियत संघ के पीएम अलेक्सेई कोसिगिन और युगोस्लाविया के राष्ट्रपति टीटो आये थे. कूटनीति में दो शासन प्रमुखों को गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि बनाने का यह पहला प्रयोग था. 1974 में इंदिरा गांधी ने एक बार फिर से गणतंत्र दिवस पर युगोस्लाविया के राष्ट्रपति टीटो और श्रीलंका की प्रधानमंत्री सिरिमाओ भंडारनायके को बतौर मुख्य अतिथि बुलाया था.
मोदी कूटनीति का मयार उसी अंदाज में कुछ हट कर करने की रही है. यह उनके शपथ के समय ही स्पष्ट हो गया था, जब दक्षेस देशों के सभी शासन प्रमुख नयी दिल्ली आकर उस समारोह के साक्षी बने थे. मगर, पौने चार साल बाद दक्षेस कहां खड़ा है? यह एक ऐसा सवाल है, जिससे लगता है कि केवल अतिथियों को बुला भर लेने से कूटनीति के लक्ष्य पूरे नहीं हो जाते.
कारोबारी तालमेल
भारत का आसियान देशों से समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग की अपेक्षा
कई कारणों से है. एशिया-प्रशांत के इलाके में व्यापार को विस्तार
देना है, तो आसियान से तालमेल जरूरी है. मगर, क्या जो कुछ साउथ
चाइना सी में चल रहा है, वह भारत की राह को आसान करती है? इस सवाल का उत्तर हां, और ना दोनों में है. चीन और वियतनाम के बीच साउथ चाइना सी को लेकर अड़ंगेबाजी हुई, उसका लाभ भारत को मिला है. 2020 तक वियतनाम से 15 अरब डॉलर का ट्रेड टारगेट संंभवत: भारत हासिल कर ले. भारत-वियतनाम के बीच 2016–17 में 10.14 अरब डॉलर का व्यापार हुआ है.
अमेरिका और चीन का वर्चस्व
अमेरिका इस इलाके में उस पासे को दोबारा से खेल रहा है, जिससे चीन की भृकुटियां तन गयी हैं. इसकी वजह नथूना आइलैंड बना है, जिसे अमेरिकी प्रतिरक्षा मंत्री जिम मैटिस ने ‘नार्थ नथूना सी’ नामकरण किया है.
ट्रंप की कोशिश है कि कुछ आइलैंड समूहों, जल-डमरूमध्य के नाम बदले जाएं, ताकि साउथ चाइना सी में चीन के अखंड अधिकार को संकुचित किया जा सके. चीन साउथ चाइना सी पर हेग के फैसले को जिस तरह से ठेंगा दिखा चुका है, उस कपट विद्या को तोड़ने के वास्ते अमेरिका ने नयी कूटनीति आरंभ की है. भारत इस रणनीतिक रचना का हिस्सा कहां तक बनेगा, 25-26 जनवरी के विमर्श में साफ हो जायेगा!
आसियान के साथ सांस्कृतिक संबंध बनेंगे संस्थागत : सुषमा स्वराज
दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ सांस्कृतिक संबंधों को संस्थागत रूप देने की दिशा में भारत आगे बढ़ रहा है. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा कि भारत और आसियान देशों के बीच सांस्कृतिक संबंध सदियों पुराना है.
अब हमारी जिम्मेदारी है कि हम इस विशेष संबंधों को दोनों क्षेत्रों के युवाओं के बीच आगे बढ़ायें. बौद्ध धर्म और रामायण द्वारा भारत तथा दक्षिण-पूर्वी देशों के जुड़ाव का जिक्र करते हुए सुषमा स्वराज ने कहा कि भारतीय सभ्यता की जड़ें इस क्षेत्र में अनेक स्थानों पर पायी जाती हैं. भारतीय युवाओं को दक्षिण एशियाई देशों का दौरा कर वहां भारतीय संस्कृति के प्रभावों को समझना चाहिए.
राजनीतिक सहयोग
आसियान सिक्योरिटी डायलोग के लिए आसियान रीजनल फॉरम एक प्रमुख फॉरम है. वर्ष 1996 से भारत इसकी वार्षिक बैठकों में शामिल होता रहा है और इसकी विविध गतिविधियों में सक्रियता से भागीदारी निभाता है. आसियान रक्षा मंत्रालयों की बैठकों में भारत समेत चीन, जापान व कुछ अन्य देश भी शामिल होते हैं.
आर्थिक सहयोग
भारत-आसियान व्यापार और निवेश संबंधों में धीरे-धीरे तेजी आ रही है. एक जुलाई, 2015 से सर्विस और इनवेस्टमेंट में कारोबार के लिए आसियान-भारत एग्रीमेंट प्रभाव में आया. अब वह भारत का चाैथा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन चुका है.
70 अरब डॉलर का कारोबार हुआ भारत का आसियान देशों के साथ वर्ष 2016-17 के दौरान.
65 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था आसियान देशों के साथ भारत का वर्ष 2015-16 के दौरान.
32.07 अरब डॉलर मूल्य का निर्यात किया गया आसियान को भारत से वर्ष 2016-17 में.
25 अरब डॉलर मूल्य की वस्तुओं का निर्यात किया गया आसियान को हमारे यहां से वर्ष 2015-16 के दौरान.
40.63 अरब डॉलर मूल्य की सामग्रियों का आयात किया गया आसियान देशों से वर्ष 2015-16 की अवधि में, जिसमें बीते वित्तीय वर्ष यानी 2016-17 में 1.8 फीसदी की बढ़ोतरी हुई.
12.5 फीसदी बढ़ाेतरी हुई आसियान से होने वाले इनवेस्टमेंट फ्लो में वर्ष 2000 के बाद से.514.73 अरब डॉलर की एफडीआई यानी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हासिल हुआ है आसियान से अप्रैल, 2000 से अगस्त, 2017 की अवधि के दौरान.
38.672 अरब डॉलर का एफडीआई आउटफ्लो हुआ है भारत से आसियान को अप्रैल, 2007 से मार्च, 2015 की अवधि के दौरान.
सामाजिक-सांस्कृतिक सहयोग
भारत और आसियान के बीच इंटरेक्शन प्रोग्राम को बड़े स्तर पर आयोजित किया जा रहा है. इसमें आसियान के छात्रों को भारत बुला कर खास सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं.
आसियान- भारत कोआॅपरेशन फंड
वर्ष 2009 में सातवें आसियान-भारत समिट के दौरान भारत ने आसियान- भारत कोऑपरेशन फंड में पांच अरब डॉलर की रकम के योगदान की घाेषणा की थी, ताकि आसियान- भारत प्लान ऑफ एक्शन को कार्यान्वित किया जा सके.
आसियान- भारत प्रोजेक्ट्स
आसियान और भारत के बीच कृषि, साइंस टेक्नोलॉजी, अंतरिक्ष, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन, मानव संसाधन विकास, क्षमता निर्माण, अक्षय ऊर्जा आदि के सहयोग पर बल दिया जा रहा है.

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