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वसंत पंचमी : समस्त पापों, कष्टों को दूर करने का दिन, ऐसे करें मां की आराधना

मार्कण्डेय शारदेय (ज्योतिष व धर्मशास्त्र विशेषज्ञ) लो कमत से माघ जाड़े का बुढ़ापा है, ‘आधा माघे कम्मर कान्हे’. उत्तरायण सूर्य में दिन की वृद्धि के साथ ही मौसम में माधुर्य आने लगता है, जो वसंत का संकेतक है. माघ का शुक्लपक्ष शुरू हुआ और इधर वसंत अपना साजो-सामान पसारने लगा. शिशिर को सिकोड़कर रख दिया […]

मार्कण्डेय शारदेय (ज्योतिष व धर्मशास्त्र विशेषज्ञ)

लो कमत से माघ जाड़े का बुढ़ापा है, ‘आधा माघे कम्मर कान्हे’. उत्तरायण सूर्य में दिन की वृद्धि के साथ ही मौसम में माधुर्य आने लगता है, जो वसंत का संकेतक है. माघ का शुक्लपक्ष शुरू हुआ और इधर वसंत अपना साजो-सामान पसारने लगा. शिशिर को सिकोड़कर रख दिया इसने. तीसी फूली, सरसों फूली और रबी की सभी जवान फसलें खेतों में अठखेलियां करने लगीं.

आम की डालियों पर बच्ची-बच्ची मंजरियां अपनी हाजिरी दर्ज कराने लगीं. आखिर ऋतुराज है वसंत! ब्रह्माजी की सांस से जनमा है न! रसाधिराज श्रीकृष्ण को कुंजबिहारी बनाता है न! आखिर भगवान को बहुत प्रिय नहीं होता तो क्यों कहते-‘ऋतूनां कुसुमाकरः’(मैं ऋतुओं में वसंत हूं). जो वृंदावनविहारी को भाये, उसे कौन भगाये? कामदेव और इसमें अटूट मैत्री है. इन दोनों की संगति देवराज इंद्र को भी खूब भाती है.

यों तो कार्तिक, वैशाख की तरह माघ का भी बड़ा माहात्म्य है, पर शुक्ल-प्रतिपदा से नवमी तक शक्ति की उपासना का भी अत्युत्तम काल है. इसे माघी नवरात्र कहा जाता है. इस नवरात्र में त्रिगुमात्मिका दुर्गा के एक रूप सरस्वती की विशेष आराधना व ज्ञान-विज्ञान की सिद्धि के लिए माघ शुक्ल पंचमी का यह दिन सर्वोत्तम माना गया है. समस्त पापों, कष्टों, दोषों, दुखों को दूर करनेवाला दिन है यह-‘वसंत-पंचमी नाम सर्वपाप-प्रमोचनी’. इसे वागीश्वरी-जयंती तो कहते ही हैं, श्रीपंचमी भी कहते हैं. ‘श्री’ यों तो लक्ष्मी का बोधक समझा जाता है, परंतु यह सरस्वती का भी पर्याय है.

भगवती सरस्वती समस्त विद्याओं, कलाओं तथा रचना-धर्मिताओं की अधिष्ठात्री हैं. इनकी साधना से अज्ञान का अंधकार दूर हो जाता है-‘मूर्खो भवति पण्डितः’. यह कितनी दयालु हैं कि महापण्डित देवदत्त का पुत्र उतथ्य (बाद का नाम-सत्यव्रत) अपनी मूढ़ता के कारण घर से बहिष्कृत हो गया.

वह एकांत में सरस्वती के बीजमंत्र ‘ऐं’ का अनुस्वार-रहित ‘ऐ-ऐ’ जपता रहा. इस अशुद्ध मंत्रजप के बावजूद वह महान ऋषि हो गया. पुराणादि में इनकी महिमा के अनेक आख्यान भरे पड़े हैं. यह सबकी मां हैं. इनकी कृपा के बिना विद्या, बुद्धि, वाणी का लाभ संभव नहीं.

जब गुरुश्राप से ज्ञानहीन याज्ञ्यवल्क्य इनकी दया से शुक्ल यजुर्वेद के रचयिता हो गये, वाल्मीकि रामायण रच गये तो क्या हम विद्यार्थी, शोधार्थी, कलार्थी व किसी क्षेत्र में साधनारत इनकी करुणा से कामयाबी नहीं पा सकते? समस्त मातृकाओं की देवी, सभी वर्णात्मक लिपियां, वाणी के सभी भेद (परा, पश्यन्ती, मध्यमा एवं वैखरी), विश्वजननी तथा लक्ष्मी के साथ ही विष्णुप्रिया यह भी हैं-‘श्रीश्च ते लक्ष्मी…’. पुस्तकधरा, हंस-वागीश्वरी, ब्राह्मी, वर्णेश्वरी, शब्दब्रह्म, आदि कितने ही रूपों और नामों से इनका ध्यान, पूजन, जप करके असंख्य लोगों ने मनोरथ-सिद्ध किया तथा आज भी करते हैं.

खासकर इस सारस्वतोत्सव को व विद्यारंभ के दिन इनकी पूजा को भगवान ने सर्वार्थ सिद्धिप्रद होने का वरदान दिया है.

विशेष : सत्व-प्रधान होने से सरस्वती जी को सफेद वस्तुएं विशेष प्रिय हैं, इसलिए शंख, श्वेत वस्त्र, सफेद चंदन, श्वेत पुष्प के साथ-साथ दही, नारियल जल, सफेद तिल के लड्डू, मक्खन, मूली, आदी, बेल, बेर, पका केला, जौ की बाली, दूब, धान का लावा, ईख, सफेद अक्षत, चूड़ा, खीर, घी में भुना और चीनी-मिश्रित जौ-गेहूं का चूरन एवं अन्य ऋतुफलों के साथ घी और सेंधा नमक में बने शुद्ध हविष्य अर्पित करने चाहिए.

निषिद्ध : किसी व्रत एवं देव-पूजा में गाजर का प्रयोग वर्जित है, इसलिए गाजर तो चढ़ाएं ही नहीं, इसके अतिरिक्त गुमा और दुपहरिया फूल भी न चढ़ाएं.

कैसे करें मां की आराधना

सुबह उठ कर नित्य कृत्य से निवृत्त हो शुद्ध वस्त्र धारण करें. पूजा-सामग्री संकलित कर पूजा स्थान में बैठ जाएं. संक्षेपतः पुस्तक, कलम-दवात को आसन पर रखें. उसके आगे आटा, रोली, अबीर, हल्दी चूर्ण से षट्कोण बना लें और छहों कोणों में रोली-मिश्रित अक्षत रखें. बायीं ओर घी का रक्षादीप जला लें. अब शुद्ध जल अपने पर, आसन पर एवं पूजा-सामग्री पर छोड़कर शुद्धि कर तिलक लगा लें. हाथ में यथासंभव सुपारी, फूल, अक्षत, रोली, पैसा और जल लेकर संकल्प करें-

‘ऊँ विष्णुः विष्णुः विष्णुः नमः परमात्मने अद्य माघ-शुक्ल-पंचम्यां सोमवारे …गोत्रे उत्पन्नः/उत्पन्ना अहं …नामाहं/नाम्नी अहं श्रुति-स्मृति-पुराणोक्त फल-प्राप्तये सरस्वती-प्रीतये च यथाशक्ति षड्देवता-पूजन-पूर्वकं सरस्वत्याः, लक्ष्म्याः, काम-वसन्तयोःच पूजनं करिष्ये’

इतना बोलकर षट्कोण के पास संकल्प के जलादि को रख दें. अब षट्कोण के छहों कोष्ठको में क्रमशः ‘ऊँ गं गणपतये नमः, ऊँ सूर्याय नमः, ऊँ अग्नये नमः, ऊँ विष्णवे नमः, ऊँ महेश्वराय नमः, ऊँ शिवायै नमः’ कहकर क्रमशः गणेश, सूर्य, अग्नि, विष्णु, शिव एवं पार्वती का जल, रोली, फूल, धूप, दीप, प्रसाद चढ़ाकर पंचोपचार से पूजन करें व मां का ध्यान करें. यदि प्रतिमा-पूजन करना हो तो कलश के साथ षोडश-मातृका एवं नवग्रह की पूजा कर आचार्य की सम्मति से सरस्वत्यादि की पूजा पूर्वोक्त प्रकार से करें

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