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बेहद खतरनाक है डेरा और राजनीति का नापाक गठजोड़..जानिए कहां तक फैला था इसका साम्राज्य

डेरा सच्चा सौदा के मुखिया राम रहीम गुरमीत सिंह प्रकरण ने एक बार फिर पंजाब और हरियाणा की राजनीति में स्वयंभू बाबाओं के दखल और उनके सामने सरकारों तथा राजनीतिक दलों की लाचारी को उजागर किया है. इन राज्यों के विभिन्न डेराओं की पकड़ राजस्थान और दिल्ली के आसपास के इलाकों में भी है. इनके […]

डेरा सच्चा सौदा के मुखिया राम रहीम गुरमीत सिंह प्रकरण ने एक बार फिर पंजाब और हरियाणा की राजनीति में स्वयंभू बाबाओं के दखल और उनके सामने सरकारों तथा राजनीतिक दलों की लाचारी को उजागर किया है. इन राज्यों के विभिन्न डेराओं की पकड़ राजस्थान और दिल्ली के आसपास के इलाकों में भी है. इनके करोड़ों चेले-चपाटों का वोट पाने के लिए राजनीतिक दल और उनके बड़े-बड़े नेता बाबाओं की चौखट पर माथा टेकते रहते हैं. इसके एवज में नेता उनके काले कारनामों पर पर्दा डालते रहते हैं. इस मुद्दे के विभिन्न पहलुओं पर विश्लेषणात्मक प्रस्तुति आज के संडे इश्यू में…
प्रो आशुतोष कुमार
चंडीगढ़ विश्वविद्यालय
अपने प्रमुख की दोषसिद्धि के बाद डेरा सच्चा सौदा समर्थकों द्वारा हिंसक घटनाओं को अंजाम देने और निकट आते उपद्रव के सभी साफ संकेतों के मद्देनजर न्यायपालिका के दृढ़ निर्देशों के बावजूद एहतियात के जरूरी कदम उठाने में हरियाणा सरकार एक बार फिर विफल रही. इस घटनाक्रम में एक अवसादजनक अनुभूति यह होती रही मानो हम सब ऐसे ही किसी पूर्व अनुभव से गुजर चुके हों. तीन साल पूर्व इसी तरह की हिंसक वारदात सतलोक आश्रम के एक अन्य ऐसे ही ‘गुरु’ रामपाल की गिरफ्तारी के वक्त भी हो चुकी है. पर इस बार की घटनाओं ने वृहत्तर पंजाब-हरियाणा क्षेत्र में ‘डेरों’ के इस हद तक बढ़ते प्रभुत्व पर ध्यान आकृष्ट किया है कि अपनी समस्त शक्ति तथा न्यायपालिका के स्पष्ट आदेश के बाद भी सरकार डेरा समर्थकों के वेश में उपद्रवियों के विरुद्ध कठोर एहतियाती कदम उठाने के प्रति अत्यंत अनिच्छुक नजर आयी. यह साफ है कि इस प्रक्रिया में वह कानून और व्यवस्था तथा सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करने के अपने संवैधानिक कर्तव्य पालन में पुनः चूक गयी.
इस क्षेत्र में ‘डेरों’ के चलन से कुछ प्रासंगिक प्रश्न पैदा होते हैं. इन डेरों/जत्थों/देवीस्थानों और इनके संतों/बाबाओं/गुरुओं के उदय के साथ ही उनके अनुयायियों की बढ़ती तादाद के निहितार्थ क्या हैं? मंदिरों, गुरुद्वारों में जाने अथवा प्राचीन गुरुओं, संतों के उपदेश सुनने की बजाय इतनी बड़ी संख्या में लोग इन ‘वैकल्पिक’ सामाजिक-आर्थिक आयामों और बाबाओं के प्रति क्यों इतने अधिक आकृष्ट हो रहे हैं? ऐसा क्यों है कि इन डेरा समर्थकों का बहुमत सामाजिक प्रतिष्ठा एवं आत्मसम्मान तलाशते हाशिये पर स्थित सामाजिक समूहों से ही निर्मित लगता है? क्यों सभी किस्मों की सियासी पार्टियां और सियासतदां इन डेरों के प्रभुत्व से डरे-सहमे उनकी शरण गहते रहे हैं? और समस्त संसाधन समर्थ दिखते इन डेरों की राजनीतिक अर्थव्यवस्था क्या है?
हरियाणा-पंजाब क्षेत्र में डेरों की बहुतायत और अपने समर्थकों की सियासी पसंद प्रभावित करने में उनकी भूमिका को न सिर्फ मान्यता मिलती रही है, बल्कि राजनीतिक दलों द्वारा उन्हें बढ़ावा भी दिया जाता रहा है. यह इस तथ्य से स्पष्ट होता है कि खासकर चुनावों के वक्त दलों की विभाजक रेखाएं लांघते सभी राजनीतिक दल और उनके उम्मीदवार विभिन्न डेरों के भ्रमण किया करते हैं. इस प्रवृत्ति की प्राथमिक वजह इस तथ्य में छिपी हो सकती है कि राज्य की राजनीतिक शक्ति का सामाजिक आधार आज भी अपरिवर्तित ढंग से कुलीन भूस्वामी जातियों/समुदायों के पक्ष में ही झुका है.
दूसरी ओर इन डेरों, खासकर डेरा सचखंड बल्लान जैसे दलित डेरों के ज्यादातर अनुयायी उस क्षेत्र के सामाजिक रूप से सीमांत मगर संख्यात्मक रूप से अत्यंत शक्तिशाली समुदाय से आते हैं. रविदास तथा कबीर के ग्रंथों के संदर्भ देते हुए ये डेरे जाति आधारित विभेदों की समाप्ति और एक समानता आधारित दर्शन पर जोर देते हैं तथा अपने समर्थकों से शराब और मादक पदार्थों का सेवन न करने और पर्यावरण की रक्षा करने का आह्वान करते हैं. गुरुओं तथा भक्ति आंदोलनों की इस भूमि में इन डेरों के बाबा या गुरु खुद को ईश्वर के ऐसे संदेशवाहक अथवा माध्यम के रूप में प्रस्तुत करने में सफल रहते हैं, जिनके सहारे उनके अनुयायी मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं.
उनके बारे में यह यकीन भी आम हुआ करता है कि उन्हें अपने अनुयायियों को रोगमुक्त करने अथवा उनका भाग्योदय करा देने की चमत्कारिक दैवी शक्तियों का वरदान प्राप्त है. इन डेरों की संसाधन संपन्नता और उनके द्वारा संचालित शिक्षण संस्थानों एवं अस्पतालों के साथ ही इनके बहुप्रचारित राहत कार्यक्रमों ने भी इन डेरों की प्रभाववृद्धि में खासा योगदान किया है.
सीमांत सामाजिक समूहों से सियासी शक्तियां साझी करने की अपनी अनिच्छा के बावजूद इन दोनों राज्यों में मतदान की अत्यंत ऊंची दर के मद्देनजर इन समूहों के निर्णायक मतों की हैसियत से सभी दलों का नेतृत्व इन डेरों की कृपा को ‘अधिक आसान’ विकल्प मानता रहा है. फिर ये डेरे अपने अनुयायियों को उनके समर्थन का फरमान जारी करते हैं और उनके अनुयायी अपनी आंखें मूंद उसका अनुपालन किया करते हैं.
हरियाणा-पंजाब में डेरों के इस माध्यम से खेला जाता दरअसल पहचान की सियासत का यह खेल चुनाव-दर-चुनाव चलता ही रहता है.
मसलन, 2014 के विधानसभा चुनावों में डेरा सच्चा सौदा ने सार्वजनिक रूप से भाजपा का समर्थन किया था और उसके प्रतिद्वंद्वी इनेलोद ने इसे अपनी हार का मुख्य कारण करार दिया था. इसके पूर्व 2007 में भी इस डेरे ने कांग्रेस का समर्थन कर उसे मालवा क्षेत्र में बढ़त दिलायी थी, हालांकि कांग्रेस वह चुनाव हार गयी थी. रिपोर्ट है कि 2017 के विधान सभा चुनावों में डेरा ने अकाली दल का समर्थन किया था.
डेरा से राजनीतिकों के गठबंधन सियासी शादियों से भी शक्ति हासिल करते रहे हैं. मिसाल के तौर पर बादल परिवार के संबंधी एवं अकाली दल के एक मुख्य नेता बिक्रम सिंह मजीठिया की शादी इस क्षेत्र के एक अन्य मुख्य डेरे, राधास्वामी सत्संग के प्रमुख के एक निकट संबंधी से हुई है. इसी तरह, पूर्व कांग्रेसी विधायक हरमिंदर जस्सी डेरा सच्चा सौदा प्रमुख के एक निकट संबंधी हैं.
संदेहास्पद चाल-चरित्र वाले डेरों एवं उनके समर्थकों की करतूतों के शमन के लिए यह जरूरी है कि मुख्यधारा के सियासी दल एवं उनके नेता डेरों के आश्रय ग्रहण करने के बजाय इस क्षेत्र में हाशिये पर स्थित जातियों एवं समुदायों के सशक्तीकरण से संबद्ध मूलभूत मुद्दे संबोधित करने को इच्छुक हों.
निःस्वार्थ सेवा की नेक राह पर प्रतिबद्ध ‘सदाशयी डेरों’ तथा उनके प्रमुखों की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि वे सिख, भक्ति तथा सूफी परंपराओं के इस सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक-सांस्कृतिक क्षेत्र के मौलिक गुरुओं, स्वामियों तथा संतों की सीख पर दृढ़ रहें. उनसे यह अपेक्षा भी की ही जानी चाहिए कि वे अपने समर्थकों को जिस तरह का उपदेश देते हैं, स्वयं भी ठीक उसी तरह का आचरण भी करें.
जब तक यह नहीं होता, संदेहों की धुंध में घिरे डेरे और उनके ‘परम पवित्र गुरु’ थोक मतों की तलाश में लगे राजनीतिकों के प्रछन्न सहयोग तथा संरक्षण में फलते ही फूलते रहेंगे और सामाजिक-आर्थिक वंचित वर्गों को एक ‘वैकल्पिक सामाजिक-सांस्कृतिक तथा आध्यात्मिक जगत’ की मरीचिका से भरमाते रहेंगे.
(अनुवाद: विजय नंदन)
राजनीति और डेराें का मेल-जोल
पंजाब में असंख्य डेरे हैं, जिनमें डेरा सच्चा सौदा, डेरा राधा सौमी बीअस, डेरा सचखंड बल्लान, डेरा रूमी वाला, डेरा हंसली वाले, निरंकारी मिशन और दिव्य ज्योति संगठन प्रमुख डेरे माने जाते हैं. इन डेराें के अनुयायियों की संख्या लाखों-करोड़ों में है. यही कारण है कि यहां की राजनीति में डेराें का अहम स्थान है और चुनाव से पहले सभी राजनीतिक दल डेरा प्रमुखों से नजदीकी बढ़ाना शुरू कर देते हैं और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर इनका समर्थन करते रहते हैं.
ये राजनेता इन डेरा प्रमुखों से क्यों मिलते हैं, यह किसी से छुपा नहीं है. डेरा प्रमुखों का उनके अनुनायियों पर प्रभाव को देखते हुए उन्हें खुश करने के लिए राजनीतिक दल व राजनेता किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं, उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनके इस कदम की कितनी निंदा हो सकती है. उन्हें तो बस अपने फायदे से मतलब होता है. इस वर्ष पंजाब में जो विधानसभा चुनाव हुए, उस दौरान पंजाब में सक्रिय सभी राजनीतिक दल के बड़े नेता अलग-अलग डेरा प्रमुखों के साथ मंच शेयर करते और नजदीकी बढ़ाते नजर आये थे.
हरियाणा की राजनीति में अहम है डेरा सच्चा सौदा
डेरा सच्चा सौदा एकमात्र ऐसा डेरा है, जिसका प्रमुख आश्रम हरियाणा में है. यह अकेला ऐसा संप्रदाय है, जिसकी पंजाब के साथ ही हरियाणा की राजनीति में सक्रिय भागीदारी है. अपने करोड़ों अनुयायियों के कारण ही इस डेरे की राजनीतिक तौर पर इतनी पूछ है. डेरा सच्चा सौदा प्रमुख पर कई अापराधिक मामले दर्ज होने के बावजूद राजनीतिक दलों में इसका महत्व बना हुआ है. राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें, तो 2014 में हरियाणा में होनेवाले विधानसभा चुनाव में डेरा सच्चा सौदा ने भाजपा का साथ दिया था. यह पहली बार था, जब यह डेरा हरियाणा की चुनावी राजनीति में खुलकर शामिल हुआ था. इसस पहले डेरा सच्चा सौदा पंजाब के कई चुनावों में अनेक राजनीतिक दलों को अपना समर्थन दे चुका है.
वर्ष 2002 में पंजाब में कांग्रेस की सरकार बनवाने में डेरा सच्चा सौदा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी. अपने राजनीतिक समितियों के माध्यम से डेरा प्रमुख ने स्पष्ट तौर पर कांग्रेस को अपनी पसंद बताया था. 2007 में भी इसकी मदद से कांग्रेस ने मालवा के 11 जिलों में 35 सीटें जीती थी. यही कारण है कि 2012 के चुनाव में सभी राजनीतिक दलों ने डेरा को लुभाने की भरपूर कोशिश की. वहीं, 2014 के लोकसभा चुनाव में इसने किसी एक दल की बजाय अलग-अलग दल के प्रत्याशियों को समर्थन दिया था.
इन संप्रदायों के भी रहे हैं राजनीतिक घरानों से संबंध
दिव्य ज्योति जागृति संस्थान (डीजेजेएस), निरंकारी मिशन और नामधारी जैसे संप्रदाय भी विशेष समुदाय के साथ संघर्ष को लेकर अनेक विवादों में लिप्त रहे हैं. लेकिन इसके बावजूद इनकेराजनीतिक घरानों से संबंध रहे हैं और इनके प्रमुखों के साथ राजनेताओं का मेल-जोल रहा है. हालांकि जब डेरों के साथ विवादों ने ज्यादा तूल पकड़ लिया, तो राजनेताओं ने इन डेरों में जाना बंद कर दिया. लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि इनका समर्थन पाने के लिए अंदरखाने इन डेरों को राजनेताओं का समर्थन मिलता रहा है.
भटिंडा में डेरा रूमी वाला और फतेहगढ़ में डेरा हंसली वाले की भी पंजाब की राजनीति में पैठ रही है. कांग्रेस और शिरोमणी अकाली दल दाेनों के शीर्ष नेताओं की इन डेरों से समान निकटता रही है.
डेरा सचखंड बल्लान, जो कि रविदास समुदाय के बीच खासा लाेकप्रिय है, की बसपा और अकाली दल के साथ निकटता रही है. वहीं, पंजाब का सबसे बड़ा डेरा राधा साैमी बीअस, जिसके अनुयायी सभी समुदायों से हैं और देश-विदेश में लाखाें की संख्या में अनुयायी हैं, वह कभी भी किसी राजनीतिक गतिविधियों में शामिल नहीं रहा है, बावजूद इसके पंजाब की राजनीति में हमेशा से ही उसका महत्व रहा है और राजनेताओं की कोशिश इस डेरे के प्रमुख गुरिंदर सिंह ढिल्लों के साथ मेल-जोल की रही है. हालांकि, डेरा प्रमुख गुरिंदर सिंह का झुकाव अकाली दल की तरफ हाेने की खबरें इस वर्ष आयी थीं और डेरा प्रमुख के बेहद करीबी व्यक्ति को पंजाब सरकार में तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का सलाहकार नियुक्त किया गया था.
रामपाल महाराज : यह स्वयंभू संत गुरु बनने से पहले हरियाणा सिंचाई विभाग में कनिष्ठ अभियंता के तौर पर कार्यरत था. माना जाता है कि हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में इसके लाखों अनुयायी हैं, जिनके दम पर यह राजनीति और प्रशासन में अपनी दखल रखता था. दो दिन की मशक्कत के बाद अर्द्धसैनिक बलों की मदद से उसे उसके आश्रम से नवंबर, 2014 में गिरफ्तार किया जा सका था. अदालती वारंट को लागू करने के लिए पुलिस को रामपाल के सतलोक आश्रम में जाने से रोका जा रहा था. उस पर हत्या के षड्यंत्र के साथ कई संगीन आरोप हैं. गिरफ्तारी के समय हुई झड़प के बाद उस पर राजद्रोह का मुकदमा किया गया है. इस घटना में छह लोग मारे गये थे और अनेक सुरक्षाकर्मी घायल हुए थे. उक्त घटना के मुकदमे का फैसला 29 अगस्त को आना है.
डेरों का विरोधाभासी चरित्र
पंजाब का सामाजिक और धार्मिक ताना-बाना लंबे अरसे से बदलाव के दौर से गुजर रहा है. हाल के वर्षों में आम जनता के बीच स्वयं को भगवान बताकर तमाम संगठनों और डेरों के प्रमुखों ने आम जनमानस के बीच अपनी जड़ें मजबूत कर ली हैं. इन डेरों की सक्रियता के कारण सिखों समेत कई समुदायों के बीच तनाव बढ़ रहा है.
क्या है डेरा सच्चा सौदा
डेरा सच्चा सौदा की शुरुआत शहंशाह मस्ताना नाम के एक धार्मिक गुरु ने 1948 में की थी. शुरुआत में उन्होंने आध्यात्मिक कार्यक्रमों और सत्संगों के माध्यम से अनुयायियों को जोड़ना शुरू किया. शाह मस्ताना महाराज के बाद शाह सतनाम महाराज ने डेरा प्रमुख की कमान संभाली. वर्ष 1990 में गुरुमीत राम रहीम के डेरा प्रमुख की गद्दी संभालने के बाद से डेरा सच्चा सौदा एक के बाद एक विवादों का पर्याय बन गया.
विदेशों तक फैला है साम्राज्य
डेरा सच्चा सौदा का प्रमुख आश्रम हरियाणाके सिरसा जिले में स्थित है. डेरे के अनुयायियों की तादाद करोड़ों में बतायी जाती है, जिनमें बड़ी संख्या में सिख, हिंदू और पिछड़े व दलित वर्ग के लोग हैं. संगठन को खेती और समाज सेवा के नाम पर काफी आय होती है.
रहस्यमयी दुनिया का कारोबारी राम रहीम
मई, 2002 : डेरा सच्चा सौदा की एक साध्वी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को पत्र लिखकर डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत सिंह पर यौन शोषण का आरोप लगाया. इसके अलावा पंजाब एवं हरियाणा हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से भी चिट्ठी भेजकर न्याय की गुहार लगायी गयी थी.
जुलाई, 2002 : डेरा सच्चा सौदा पर अपने ही प्रबंधन समिति के सदस्य रणजीत के मर्डर का आरोप लगा.
सितंबर, 2002 : उच्च न्यायालय ने साध्वी के यौन शोषण मामले की जांच के लिए सीबीआइ को आदेश दिये.
अक्तूबर, 2002 : सिरसा के एक स्थानीय समाचार पत्र के संपादक रामचंद्र छत्रपति पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसायी गयीं. रामचंद्र की 21 नवंबर, 2002 को दिल्ली के अपोलो अस्पताल में मौत हो गयी.
दिसंबर, 2003 : पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश पर सीबीआइ ने एफआइआर दर्ज कर छत्रपति और रणजीत हत्याकांड की जांच शुरू कर दी. फैसले के बाद डेरा सच्चा सौदा ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर दी.
नवंबर, 2004 : सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर सीबीआइ ने मामले की दोबारा जांच शुरू की और डेरा प्रमुख समेत कई को आरोपी बनाया.
मई, 2007 : गुरु गोबिंद सिंह की नकल किये जाने के विरोध में सिखों ने विरोध प्रदर्शन किया. सिखों और डेरा अनुयायियों के बीच हुए टकराव में सिख युवक कोमल सिंह की मौत हो गयी. बड़े आंदोलन के कारण पंजाब में डेरा प्रमुख के जाने पर पाबंदी लगा दी गयी.
जुलाई, 2007 : प्रशासनिक पाबंदी के बावजूद सिरसा के एक गांव में नामचर्चा कार्यक्रम के दौरान सिखों और डेरा सच्चा सौदा के अनुयायियों के बीच टकराव हो गया. दोनों तरफ से हुए पथराव में दोनों पक्षों के कई लोग घायल हुए. इसके अलावा मल्लागांव में एक डेरा अनुयायी द्वारा फायरिंग की गयी, जिसमें तीन पुलिसकर्मियों समेत आठ सिख घायल हो गये.
जुलाई, 2007 : साध्वी यौन शोषण और दोनों हत्या के मामलों की जांच पूरी हुई, जिसमें तीन मामलों में गुरमीत सिंह को मुख्य आरोपी बनाया गया. हत्या और रेप जैसे संगीन मामलों में डेरा प्रमुख को जमानत दे दी गयी और अन्य आरोपी जेल में बंद हो गये. तब से यह मामला पंचकूला स्थित सीबीआइ की विशेष अदालत में विचाराधीन था.
दिसबंर, 2012 : सिरसा में नामचर्चा के दौरान सिखों और डेरा अनुयायियों के बीच पत्थरबाजी हुई. प्रशासन अनुयायियों पर मामला दर्ज कर लिया और शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया.
जुलाई, 2012 : हाइकोर्ट में दाखिल याचिका में डेरा प्रमुख पर 400 साधुओं को नपुंसक बनाने का आरोप लगाया गया.
25 अगस्त, 2017 : राम रहीम को रेप मामले में सीबीआइ की विशेष अदालत ने दोषी करार दिया.
नौ हजार से अधिक डेरे हैं पंजाब में
सिख धर्म में ऐसे डेरों को मान्यता नहीं दी गयी है. इसके बावजूद पंजाब में हजारों की संख्या में डेरे संचालित होते हैं. इन डेरों के बड़ी संख्या अनुयायी होते हैं. इन डेरों की पिछड़े और दलित समुदायों के बीच अच्छी खासी पैठ बन चुकी है. माना जाता है कि इनमें से निर्मल, रविदासिया और टकसाल जैसे कई डेरे सिख धर्म जितने पुराने हैं. डेरा सच्चा सौदा जैसे डेरों ने कॉमर्शियल डेरे के रूप में अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज की है. माना जाता है कि 60 और 70 के दशक में इन डेरों ने पंजाब और राज्य के बाहर भी अपनी तेजी से पैठ बनायी.
प्रमुख डेरे
डेरा सच्चा सौदा : दलित सिखों समेत पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में बड़ी तदाद में डेरा सच्चा सौदा के अनुयायी हैं. डेरा प्रमुख राम रहीम को रेप मामले में दोषी ठहराया गया है. इसके अलावा उस पर हत्या जैसे संगीन आरोप भी लगे हैं. इस संगठन को कई राजनीतिक दलों का खुला समर्थन है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरमिंदर सिंह जस्सी डेरा प्रमुख के करीबी रिश्तेदार हैं. सिखों और डेरा अनुयायियों के बीच लंबे समय से तनाव चल रहा है. कई बार दोनों समूहों के बीच हिंसक झड़पें भी हुई हैं.
राधा स्वामी सत्संग (व्यास) : इस डेरे की दोआबा और मांझा इलाके में मजबूत पकड़ है. वर्ष 1891 में यह संगठन पहले गुरु बाबा जयमाल सिंह के नेतृत्व में प्रभाव में आया. देश भर के विभिन्न हिस्सों में इसकी शाखाएं हैं और कई राजनीतिक संगठनों का इसे समर्थन मिलता है. डेरे के साथ कई राजनीतिक दलों के नेताओं की रिश्तेदारी भी है. इसमें कई धर्मों के लोग शामिल हैं और इसके अनुयायी दुनिया के विभिन्न हिस्सों में फैले हुए हैं.
डेरा सचखंड : जालंधर के बल्लान गांव में करीब 70 वर्ष पहले इस डेरे का गठन संत पीपल सिंह ने किया था. इस डेरे से ज्यादातर अनुयायी दलित सिख समुदाय के हैं. अनुयायी 14वीं सदी के महान संत गुरु रविदास के आदर्शों को मानने का दावा करते हैं. डेरे द्वारा पवित्र धर्मग्रंथ गुरुग्रंथ साहिब रखने का सिख विरोध करते हैं. पंजाब के कई गांवों में दो गुरुद्वारे होते हैं.
दिव्य ज्योति जागरण संस्थान (डीजेजेएस) : वर्ष 1983 में इस संगठन की शुरुआत जालंधर के नूरमहल कस्बे में हुई थी. इसके अनुयायी देश के विभिन्न हिस्सों समेत अमेरिका, कनाडा और जर्मनी तक फैले हुए हैं. आशुतोष महाराज ने इस संगठन की लंबे अरसे तक अगुवाई की. यह संगठन कई बार विवादों में घिर चुका है.
(प्रस्तुति : ब्रह्मानंद मिश्र एवं आरती श्रीवास्तव)

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