।। दक्षा वैदकर।।
कई बार हम आसान-सी तरकीब अपना कर दुखों को पल भर में दूर कर सकते हैं. पिछले दिनों किसी ने मुङो इसका बेहतरीन उदाहरण दिया. दरअसल हम सारे फ्रेंड्स एक ही चाट वाले की दुकान से चाट खाते हैं. पिछले दिनों जब सारे दोस्तों में केवल हम दो दोस्त चाट खाने गये, तो चाट खाने के बाद दुकानदार ने मेरी दोस्त से कहा कि पिछली बार के चाट के रुपये आप देना भूल गयी थी. 20 रुपये और दे दीजिए. दोस्त ने कहा, ऐसा हो ही नहीं सकता कि मैं रुपये देना कभी नहीं भूलती. चाट वाला अपनी बात पर अड़ा था. मैंने कहा कि क्यों बहस कर रही हो. 20 रुपये में क्या हो जायेगा. बेवजह तमाशा बन रहा है. उसने 20 रुपये दे दिये. रास्ते भर वह चिड़चिड़ाते रही कि चाट वाले ने 20 रुपये एक्स्ट्रा कैसे ले लिये. नुकसान हो गया.
ऑफिस पहुंच कर भी वह दुखी दिख रही थी. तभी तीसरी दोस्त ने वजह पूछी. पूरा किस्सा सुनने के बाद वह बोली, अरे टेंशन मत ले. चाट वाले ने एक्स्ट्रा रुपये नहीं लिये है. दरअसल मैंने वहां परसो चाट खायी थी और चेंज नहीं होने के कारण रुपये नहीं दिये थे. उसने वही रुपये तुझसे मांगे हैं. चेहरे में कंफ्यूज होगा वह. अब मेरी इस दोस्त ने राहत की सांस ली. अब वह खुश थी कि उसे नुकसान नहीं हुआ. बाद में मैंने अपनी दोस्त से पूछा कि अकेले चाट खाने क्यों गयी तुम? वह हंस कर बोली, ‘अरे यार, नहीं खायी चाट. वो तो मैंने झूठ कहा. ऐसा नहीं बोलती, तो वह न जाने कितने दिन तक दुखी रहती. मैंने बस उसका सोचने का एंगल चेंज कर दिया.
दोस्त की यह बात मुङो जंच गयी. मैंने सोचा कि हम खुद भी तो इस तरह अपने दिमाग को अलग डायरेक्शन दे कर दुखों से दूर हो सकते हैं. चोरी हो जाने पर दुखी होने के बजाय हम सोच सकते हैं कि हमने किसी गरीब को इतने रुपये दान दे दिये. अब उसके बच्चे पेट भर खाना खायेंगे. किसी लड़की ने रिजेक्ट कर दिया, तो सोच सकते हैं कि वह पहले से शादी-शुदा है इसलिए प्रपोज करना ही बेकार था. आपको ये थोड़ा अजीब लगेगा, लेकिन जब आप ये कर के देखेंगे, तो पायेंगे कि दुख कम करने का यहतरीका बहुत कारगर है.
बात पते की..
कोई भी चीज हमें तब तक दुखी नहीं कर सकती, जब तक हम खुद न चाहें. हम जब चाहें, अपने आप को दुख से बाहर निकाल सकते हैं.
परिस्थितियों, घटनाओं को देखने का नजरिया बदलें. इस तरह आप खुश रह सकते हैं और बुरी घटनाओं को बड़ी आसानी-से भूल सकते हैं.