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जल संरक्षण के सरल उपाय

-मीनाक्षी अरोड़ा- देश में पेयजल की बढ़ती समस्या और आम लोगों तक साफ पेयजल पहुंचाने की कोशिश के कारण `जल संरक्षण´ का महत्व बढ़ता जा रहा है. अत: इसे सर्वोच्च प्राथमिकताओं में रखकर पूरे देश में कारगर जन-जागरण अभियान चलाने की आवश्यकता है. `जल संरक्षण´ के कुछ परंपरागत उपाय तो बेहद सरल और कारगर रहे […]

-मीनाक्षी अरोड़ा-

देश में पेयजल की बढ़ती समस्या और आम लोगों तक साफ पेयजल पहुंचाने की कोशिश के कारण `जल संरक्षण´ का महत्व बढ़ता जा रहा है. अत: इसे सर्वोच्च प्राथमिकताओं में रखकर पूरे देश में कारगर जन-जागरण अभियान चलाने की आवश्यकता है. `जल संरक्षण´ के कुछ परंपरागत उपाय तो बेहद सरल और कारगर रहे हैं. जिन्हें प्रयोग में लाकर हम आसानी से जल संरक्षण कर सकते हैं.
1. स्नान करते समय `बाल्टी´ में जल भरकर स्नान करना चाहिए. ऐसा करने से `शावर´ या `टब´ में स्नान की तुलना में बहुत जल बचाया जा सकता है. पुरूष वर्ग ढाढ़ी बनाते समय यदि नल का टैप बंद रखें तो बहुत जल बच सकता है. रसोई में जल की बाल्टी या टब में अगर बर्तन साफ करें, तो जल की बहुत बड़ी हानि रोकी जा सकती है.
2. टॉयलेट में लगी फ्लश की टंकी में प्लास्टिक की बोतल में रेत भरकर रख देने से हर बार `एक लीटर जल´ बचाने का कारगर उपाय उत्तराखण्ड जल संस्थान ने बताया है. इस विधि का तेजी से प्रचार-प्रसार करके पूरे देश में लागू करके जल बचाया जा सकता है.
3. पहले गांवों, कस्बों और नगरों की सीमा पर या कहीं नीची सतह पर तालाब अवश्य होते थे, जिनमें स्वाभाविक रूप में मानसून की वर्षा का जल एकत्रित हो जाता था. लेकिन दुर्भाग्यवश तालाब पाट दिये गये हैं. आज जरूरत है कि गांवों, कस्बों और नगरों में छोटे-बड़े तालाब बनाकर वर्षा जल का संरक्षण किया जाये.
4. नगरों और महानगरों में घरों की नालियों के पानी को गढ्ढे बना कर एकत्र किया जाये और पेड़-पौधों की सिंचाई के काम में लिया जाए, तो साफ पेयजल की बचत अवश्य की जा सकती है.
5. अगर प्रत्येक घर की छत पर ` वर्षा जल´ का भंडार करने के लिए एक या दो टंकी बनायी जायें और इन्हें मजबूत जाली या फिल्टर कपड़े से ढंक दिया जाये तो हर नगर में `जल संरक्षण´ किया जा सकेगा.
6. घरों, मुहल्लों और सार्वजनिक पार्कों, स्कूलों अस्पतालों, दुकानों, मंदिरों आदि में लगी नल की टोंटियां खुली या टूटी रहती हैं, तो अनजाने ही प्रतिदिन हजारों लीटर जल बेकार हो जाता है. इस बरबादी को रोकने के लिए नगर पालिका एक्ट में टोंटियों की चोरी को दंडात्मक अपराध बनाकर, जागरूकता भी बढ़ानी होगी.
7. विज्ञान की मदद से आज समुद्र के खारे जल को पीने योग्य बनाया जा रहा है, गुजरात के द्वारिका आदि नगरों में प्रत्येक घर में `पेयजल´ के साथ-साथ घरेलू कार्यों के लिए `खारेजल´ का प्रयोग करके शुद्ध जल का संरक्षण किया जा रहा है, इसे बढ़ाया जाये.
8. गंगा और यमुना जैसी बड़ी नदियों की नियमित सफाई बेहद जरूरी है. नगरों और महानगरों का गंदा पानी ऐसी नदियों में जाकर प्रदूषण बढ़ाता है, जिससे मछलियां आदि मर जाती हैं और यह प्रदूषण लगातार बढ़ता ही चला जाता है. बड़ी नदियों के जल का शोधन करके पेयजल के रूप में प्रयोग किया जा सके, इसके लिए शासन-प्रशासन को लगातार सक्रिय रहना होगा.
9. जंगलों का कटान होने से दोहरा नुकसान हो रहा है. पहला यह कि वाष्पीकरण न होने से वर्षा नहीं हो पाती और दूसरे भूमिगत जल सूखता जाता हैं. बढ़ती जनसंख्या और औद्योगीकरण के कारण जंगल और वृक्षों के अंधाधुंध कटान से भूमि की नमी लगातार कम होती जा रही है, इसलिए वृक्षारोपण लगातार किया जाना जरूरी है.
10. पानी का `दुरूपयोग´ हर स्तर पर कानून के द्वारा, प्रचार माध्यमों से कारगर प्रचार करके और विद्यालयों में `पर्यावरण´ की ही तरह `जल संरक्षण´ विषय को अनिवार्य रूप से पढ़ा कर रोका जाना बेहद जरूरी है.
जल संरक्षण कीजिए, जल जीवन का सार!
जल न रहे यदि जगत में, जीवन है बेकार!!
(साभार इंडिया वाटर पोर्टल)

Prabhat Khabar Digital Desk
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