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पगड़ी को बनाया बिरयानी का ब्रांड

डी नागासामी की दादी का बिरयानी बनाने का अंदाज बिल्कुल ही अलग था. वह बिरयानी में कई तरह के मसालों के मिश्रण, परक्कम सिट्ट चावल (चावल का एक प्रकार) और कन्नीवाड़ी बकरे के मीट (कन्नीवाड़ी डिंडिगुल जिले का छोटा-सा शहर है) का प्रयोग करती थीं. अलग तरीके से बनाये जाने के कारण उसका स्वाद भी […]

डी नागासामी की दादी का बिरयानी बनाने का अंदाज बिल्कुल ही अलग था. वह बिरयानी में कई तरह के मसालों के मिश्रण, परक्कम सिट्ट चावल (चावल का एक प्रकार) और कन्नीवाड़ी बकरे के मीट (कन्नीवाड़ी डिंडिगुल जिले का छोटा-सा शहर है) का प्रयोग करती थीं. अलग तरीके से बनाये जाने के कारण उसका स्वाद भी अलग होता था. जिसके कारण उनकी बिरयानी काफी प्रसिद्ध थी. उनके दादा (नागासामी नायडू) को इस बात का अंदाज था कि बिरयानी का यह स्वाद उन्हें सफल जरूर बनायेगा.

दादी के हाथों का स्वाद और दादा की इच्छा जब आपस में मिली, तब वर्ष 1957 में रेस्टोरेंट की शुरुआत हुई. इसका नाम आनंद विलास बिरयानी होटल रखा गया. समय के साथ मटन बिरयानी की प्रसिद्धि सारे शहर में धीरे-धीरे फैल रही थी. बहुत जल्द ही इसके स्वाद का विस्तार नजदीक के शहरों में भी होने लगा. लोगों के बीच रेस्टोरेंट अपने मूल नाम से अलग ‘थालापक्कट्टी’ के नाम से जाना जाने लगा. थालापक्कट्टी अर्थात पगड़ी.

* ऐसे हुआ नामकरण
थालापक्कट्टी अर्थात पगड़ी को लोग नागासामी नायडू से जोड़ कर देखते थे. जो हमेशा कैश काउंटर में बैठते थे. वे हमेशा सफेद शर्ट, धोती और सफेद पगड़ी पहनते थे. पगड़ी, स्वतंत्रता सेनानी व कवि सुब्रमन्या भारती से प्रेरित था. उनके पगड़ी पहने जाने के कारण ही रेस्टोरेंट थालापक्कट्टी के नाम से लोगों के बीच प्रसिद्ध हुआ.

1978 में जब नागासामी नायडू की मृत्यु हुई तब उनके बेटे ने नये नामकरण के साथ पुन: रेस्टोरेंट की शुरुआत की. उन्होंने पुराने नाम के साथ ‘थालापक्कट्टी’ शब्द जोड़ते हुए थालापक्कट्टी अन्नदा विलास नाम दिया. थालापक्कट्टी शब्द बिरयानी के साथ जुड़ कर उसके पर्याय के रूप में सामने आया. इस तरह से थालापक्कट्टी बिरयानी लोगों के बीच आया. डिंडिगुल के आसपास प्रसिद्धि मिलते ही उन्होंने कोयंबटूर में 3000 वर्गफु ट में रेस्टोरेंट को विस्तार दिया. उन्होंने कारीगर भी डिंडिगुल के ही रखे, ताकि स्वाद में किसी तरह का अंतर नहीं मिले.

* होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई की : डी नागासामी बताते हैं कि – उस समय मैं मेंगलुरु से होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई कर रहा था. चूंकि मैंने अपनी आरंभिक शिक्षा डिंडिगुल से ही ली है. अत: घर में प्राय: हर दिन बिरयानी खाता था. स्वाद तो अच्छा लगता था पर मैं कभी भी अपने पारिवारिक व्यवसाय में नहीं आना चाहता था. कालांतर में पारिवारिक बिरयानी व्यवसाय की प्रसिद्धि का मुझ पर असर पड़ा. मैंने हॉस्पिटेलिटी मैनेजमेंट में मास्टर की डिग्री ली थी. अत: मेरे दोस्तों ने मुङो लंदन में इसकी शुरुआत करने की सलाह दी. मगर मैं लापरवाह था. मैं वहां के बाजार से परिचित भी नहीं था. अगले चार साल मैंने उधेड़बुन में काटे.

* नये प्रबंधन के साथ मिला विस्तार : डी नागासामी के अनुसार – वर्ष 2000 में मैं वापस भारत आया और पिताजी के साथ काम शुरू किया. मैं हमेशा कुछ अपना करना चाहता था. एक मित्र की मदद से कोडाइकनाल के निकट वातालागुंडू में 10 लाख रुपये का निवेश करते हुए रेस्टोरेंट को विस्तार दिया. यहां मैंने ‘डिंडिगुल थालापक्कट्टी’ के नाम से बिरयानी लोगों के बीच उतारा. जल्द ही हमारा रेस्टोरेंट छह महीने के अंदर लगभग 350 प्लेट बिरयानी हर दिन बेचने लगा.

2008 में विवाह के बाद चेन्नई के अन्नानगर में इसकी नयी शाखा खोली. लोगों ने कहा कि बासमती के बगैर चेन्नई के लोग बिरयानी को स्वीकार नहीं करेंगे. पर मैं निश्चिंत था. लगभग एक महीने तक एक भी ग्राहक नहीं मिला. मैंने सोचा कि हम सफल नहीं हो पायेंगे.

* पगड़ी को ही बनाया ब्रांड : पगड़ी को केंद्रित करते हुए विज्ञापन की शुरुआत की. इसके साथ ही लोगों ने आना भी आरंभ कर दिया. इस तरह थालापक्कट्टी या पगड़ी बिरयानी के ब्रांड के रूप में सामने आया. प्रसिद्धि का परिणाम यह हुआ कि नकलची लोग भी इस दौड़ में शामिल हो गये. कई रेस्टोरेंट इसी नाम का या इससे मिलते-जुलते नाम का इस्तेमाल कर रहे थे.

आखिरकार विवश हो कर कानून की शरण में गया. जहां बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड ने नाम के इस्तेमाल के संदर्भ में फैसला मेरे पक्ष में सुनाया. कानूनी पेंच के दौरान मैंने महसूस किया कि यह मेरे ट्रेडमार्क की लड़ाई थी. यह नाम मैंने नहीं चुना था, बल्कि यह नाम लोगों के द्वारा दिया गया था.

आज वेलाचेरी को जोड़ते हुए पूरे चेन्नई में हमारी 14 ब्रांच हैं जहां सात हजार प्लेट बिरयानी हर रोज परोसी जाती है. अगले कुछ दिनों में मेड़ावक्कम, थोराइपक्कम व कोरेमपेट्ट में तीन ब्रांच खोलने के साथ सात हजार प्लेट को 10 हजार प्लेट हर दिन करना है. इसके साथ ही भारत का सर्वाधिक बिरयानी बेचने वाला ब्रांड भी बनना है.
( साभार : ‘द हिंदू’ )
प्रस्तुति: राहुल गुरु

* 14 शाखाएं, सात हजार प्लेट रोज की खपत, बिरयानी के स्वाद का अलग अंदाज और एक राज्य चेन्नई. यही है डी नागासामी के डिंडिगुल जिले स्थित थालापकट्टी या ‘पगड़ी’ वाले रेस्टोरेंट की सफलता का आधार. यह रेस्टोरेंट चेन्नई में बिरयानी के स्वाद के अलग अंदाज के लिए मशहूर है. वर्तमान में डी नागासामी इस रेस्टोरेंट के संचालक हैं.

Prabhat Khabar Digital Desk
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