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बड़े-बुजुर्गों की सलाह की अनदेखी न करें

।। दक्षा वैदकर ।।एक विशाल पेड़ पर बहुत-से हंस रहते थे. उनमें एक हंस बुद्धिमान और बहुत दूरदर्शी था. सब उसे ताऊ कहते थे. एक दिन ताऊ ने नन्ही-सी बेल को पेड़ के तने पर बहुत नीचे लिपटते पाया. ताऊ ने युवा हंसों से कहा, ‘इस बेल को नष्ट कर दो. एक दिन यह बेल […]

।। दक्षा वैदकर ।।
एक विशाल पेड़ पर बहुत-से हंस रहते थे. उनमें एक हंस बुद्धिमान और बहुत दूरदर्शी था. सब उसे ताऊ कहते थे. एक दिन ताऊ ने नन्ही-सी बेल को पेड़ के तने पर बहुत नीचे लिपटते पाया. ताऊ ने युवा हंसों से कहा, ‘इस बेल को नष्ट कर दो.

एक दिन यह बेल हम सबको मौत के मुंह में ले जायेगी.’ एक हंस हंसते हुए बोला, ‘ताऊ, यह छोटी-सी बेल हमें कैसे मौत के मुंह में ले जायेगी?’ ताऊ ने समझाया, ‘यह बेल धीरे-धीरे इस पेड़ के तने से लिपटते हुए ऊपर तक आयेगी. फिर बेल मोटी होने लगेगी. एक तरह से यह बेल नीचे से ऊपर तक पेड़ पर चढ़ने के लिए सीढ़ी बन जायेगी. कोई भी शिकारी सीढ़ी के सहारे चढ़ कर हम तक पहुंच जायेगा और हम मारे जायेंगे. हंसों ने कहा, ‘ताऊ, तू तो एक छोटी-सी बेल को खींच कर ज्यादा ही लंबा कर रहा है.’

इस प्रकार किसी भी हंस ने ताऊ की बात को गंभीरता से नहीं लिया. समय बीतता रहा. बेल लिपटते-लिपटते ऊपर शाखों तक पहुंच गयी. पेड़ के तने पर सीढ़ी बन गयी. सबको ताऊ की बात याद आयी, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी, क्योंकि बेल इतनी मजबूत हो गयी थी कि उसे नष्ट करना हंसों के बस की बात नहीं थी.

एक दिन जब सब हंस दाना चुगने बाहर गये, तब एक बहेलिया उधर आया. पेड़ पर बनी सीढ़ी को देखते ही उसने पेड़ पर चढ़ कर जाल बिछाया और चला गया. सांझ को सारे हंस लौटे, तो जाल में फंस गये. जब वे फड़फड़ाने लगे. वे ताऊ की बात न मानने के लिए लज्जित थे और खुद को कोस रहे थे. ताऊ सबसे नाराज था और चुप बैठा था.

एक हंस ने हिम्मत करके कहा, ‘ताऊ, हम मूर्ख हैं, लेकिन अब हमसे मुंह मत फेरो. दूसरा हंस बोला, ‘इस संकट से निकालने की तरकीब तू ही हमें बता सकता हैं. आगे हम तेरी कोई बात नहीं टालेंगे.’ सभी हंसों ने हामी भरी. ताऊ बोले, ‘सुबह जब बहेलिया आयेगा, तब सब मुर्दा होने का नाटक करना. बहेलिया तुम्हें मुर्दा समझ कर जाल से निकाल कर जमीन पर रखता जाएगा. वहां भी मरे समान पड़े रहना. जैसे ही वह अंतिम हंस को नीचे रखेगा, मैं सीटी बजाऊंगा. मेरी सीटी सुनते ही सब उड़ जाना.’ सुबह बहेलिया आया. हंसों ने वैसा ही किया. बहेलिया अवाक होकर देखता रह गया.

– बात पते की
* बड़े-बुजुर्गों ने हमसे ज्यादा दुनिया देखी है. हम कितनी भी पढ़ाई कर लें, लोगों के व्यवहार को पहचानने के उनके अनुभव हमसे ज्यादा ही होंगे.
* खुद को तेज और बुजुर्गों को पुराने खयालात का समझना बेवकूफी है. कई बार जो चीजें वो देख सकते हैं, उन्हें हम नहीं देख पाते.

Prabhat Khabar Digital Desk
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