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क्या चीन का अपने ‘छोटे भाई” पाकिस्तान से हो रहा है मोहभंग?

नयी दिल्ली : हाल के दिनाें में चीन की ओर से आये कुछ बयान संकेत देते हैं कि चीन की पाकिस्तान पॉलिसी बदल रही है. चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने पिछले दिनों पहली बार पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले कश्मीर को पाक अधिकृत कश्मीर लिखा, जिसे वह अबतक पाकिस्तान शासित कश्मीर लिखता रहा […]

नयी दिल्ली : हाल के दिनाें में चीन की ओर से आये कुछ बयान संकेत देते हैं कि चीन की पाकिस्तान पॉलिसी बदल रही है. चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने पिछले दिनों पहली बार पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले कश्मीर को पाक अधिकृत कश्मीर लिखा, जिसे वह अबतक पाकिस्तान शासित कश्मीर लिखता रहा है. चीन ने पहली बार भारतीय शब्दावली का प्रयोग किया. इससे पहले इस साल जून में चीन की सरकारी चैनल सीसीटीवी 9 ने पहली बार एक डॉक्यूमेंट्री का प्रसारण किया, जिसमें मुंबई पर 26 नवंबर 2008 को हुए आतंकी हमले में पाकिस्तान के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा की भूमिका रेखांकित की गयी.

चरमपंथ से चिंतित चीन

विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान में बढ़ता चरमपंथहीवह कारण हैजिससेचीन उससे दूरियां बना रहा है. ध्यान रहे कि अमेरिकासे भी इसी कारण उसकीदूरियां बनी. चीनएकउभरती वैश्विक ताकत है औरपाकिस्तान के अातंकवादपर आंखें मूंदनेया उसे आंखबंदकर समर्थन देने से उसकी वैश्विक प्रतिष्ठाको आघात पहुंच सकता है. ऐसे में जब पूरी दुनिया आतंकवाद से एक साथ मिल कर लड़ने को लेकर संकल्पित हो रही है, तब विश्व नेता बनने की उसके सपनों को पाकिस्तानकेअंध समर्थन से आघातपहुंच सकता है. ध्यान रहे कि चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने अपने इस्लामाबाद दौरे को भाई के घर आने जैसा करार दिया था.

मोदी डिप्लोमेसी के संकेत

स्वतंत्रता दिवस संबोधन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालकिला से अपने संबोधन में पहली बार बलूचिस्तान का जिक्र किया और वहां के लोगों द्वारा खुद को दी जा रही शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद कहा. प्रधानमंत्री मोदी ने इस दौरान पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर व गिलगित का उल्लेख भी किया.बलूचिस्तान पर लिये मोदी के स्टैंड की तुलनाएकवर्ग बांग्लादेश पर इंदिरा गांधी द्वारा लिये गये स्टैंड से कर रहा है. इंदिरा गांधी ने भी दुनियकेकई प्रमुख देशों का दौरा करने के बादतबके पूर्वी पाकिस्तान रहे बांग्लादेश में मानवाधिकार हनन को कूटनीतिक रूप से मुद्दा बना दिया था और नरेंद्रमोदी ने भी अपने दो साल में दुनिया के सभी प्रमुख देशों की विदेश यात्रा केबादबलूचिस्तान पर यह स्टैंड लिया है, जो संसाधनकेदृष्टिकोण से पाकिस्तान का सबसेसंपन्न राज्य है,पर वहां के लोगोंकामानवाधिकार एक अहम मुद्दा है. द वाल स्ट्रीट जनरल में रणनीतिक मामलों के जानकार हर्ष वी पंज द्वारा लिखे गये एक लेख के अनुसार, मोदी ने ऐसा कर पाकिस्तान व चीन दोनों के लिए जटिल कूटनीतिक लाइन खींच दी. चीन के सहयोग से 45 बिलियन डॉलर की लागत से चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर बन रहा है. चीन इसी कॉरिडोर के एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में बलूचिस्तान के ग्वादर में बंदरगाह विकसित कर रहा है. इससे चीन की अरब सागर तक पहुंच हो जायेगी. पर, बीजिंग व इस्लामाबाद के इस महत्वपूर्ण साझा प्रयास को पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरना है और भारत अगर इस मुद्दे पर अवरोध पैदा करेगा तो चीन के लिए मुश्किलें बढ़ जायेंगी.


नरम होता रुख

यह अनायास नहीं है कि पिछले दिनों चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने दक्षिण चीन सागर पर भारत के स्टैंड की सराहना की. भारत अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर न्यूट्रल रुख अपनाता रहा है जो चीन के लिएएकसंकेतकी तरह है कि वह भारत के मामलों व उसके पाकिस्तान से रिश्तों व अन्य मुद्दों पर बीच में न पड़े. ग्लोबल टाइम्स ने चीनी विदेश मंत्री के भारत दौरे का संदर्भ देते हुए लिखा था कि हम सच्चे दोस्त न बन सकें, लेकिन दुश्मन बनना हममें से किसी के हित में नहीं है. अखबार ने लिखा था कि नयी दिल्ली व बीजिंग ने आर्थिक व व्यापारिक सहयोग के लिए उम्मीद जतायी है.

पिछले सप्ताह चीन के विदेश मंत्री वांग यी व सुषमा स्वराज के बीच नयी दिल्ली में हुई बैठक में भी भारत ने एनएसजी व अातंकवादी मसूद अजहर का मुद्दा उठाया. वार्ता में यह तय किया गया कि दोनों देश के बीच विदेश सचिव स्तर की एक नयी व्यवस्था बनायी जाये. इतना ही नहीं सुषमा ने उस बैठक में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर का मुद्दा भी उठाया.

नवाज ने आर्थिक गलियारे की समीक्षा की

बदलते कूटनीतिक रिश्तों और नरेंद्र मोदी की नयी नीति से दबाव में आये पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से गुरुवार को चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की प्रगति की समीक्षा की और सरकार की आेर से इस संबंध में देर रात बयान जारी किया गया. इसमें 2017-18 के बीच परियोजना के पहले चरण को पूरा कर लेने का संकल्प जताया गया और कहा गया कि इससे पाकिस्तान के सभी हिस्सों को लाभ होगा. इस परियोजना का लक्ष्य पाकिस्तान के ग्वादर शहर को चीन के शिनजियांग क्षेत्र से राजमार्ग और रेलमार्ग द्वारा जोड़ना है. इससे चीन के पास अरब सागर तक जाने का रास्ता सुलभ हो जाएगा.

पाकिस्तान का ऊहापोह

पाकिस्तान के अंदर अपनी भूमिका व भविष्य को लेकर काफी ऊहापोह की स्थिति है. इसका प्रकटीकरण तरह-तरह से होता रहा है. इसी साल जून में पाकिस्तान में इज पाकिस्तान आइसोलेटेड? विषय पर सेमिनार हुआ. इस सेमिनार में पाकिस्तान के सरकार में पूर्व व वर्तमान की सरकारों में भूमिका निभा रहे अहम लोगों ने हिस्सा लिया. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के विदेश मामलों के सलाहाकार तारीक फातिमी भी इसमें शामिल हुए, जो अपने पद के अनुरूप सरकार की विदेश नीतियों को सही करार देते रहे और वक्त की जरूरत बताते रहे. उनके अनुसार चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा पाक के लिए एक गैमचेंजर होगा. लेकिन, दूसरे वक्ताओं ने अब सरकार के अहम पदों पर नहीं थे, ने इस बात पर चिंता जाहिर की कि जहां पड़ोसी चीन व भारत की कूटनीति अर्थव्यवस्था से संचालित होती है, वहीं हमारी कूटनीति सुरक्षा से संचालित होती है. इस सेमिनार में इस बात पर भी चिंता जाहिर किया गया कि भारत जहां आठ प्रतिशत व चीन जहां सात प्रतिशत विकास दर के साथ आगे, बढ़ रहा है वहीं पाकिस्तान मात्र तीन प्रतिशत विकास दर के साथ आगे बढ़ रहा है. इतना ही नहीं विशेषज्ञों ने कहा कि कई मानकों पर हम श्रीलंका व बांग्लादेश से भी पीछे रह गये हैं.

Prabhat Khabar Digital Desk
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