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महाश्वेता देवी : खामोश हो गयी शोषितों की आवाज

महान लेखिका, आदिवासियों और शोषित वर्ग की आवाज महाश्वेता देवी (90) का गुरुवार दाेपहर 3.16 बजे यहां निजी अस्पताल में निधन हो गया. वह लंबे समय से अस्वस्थ थीं. उन्हें 22 मई को भरती कराया गया था. शनिवार रात उन्हें दिल का दौरा पड़ा.तब से स्थिति लगातार बिगड़ती गयी. महाश्वेता के निधन से समूचा साहित्यिक […]

महान लेखिका, आदिवासियों और शोषित वर्ग की आवाज महाश्वेता देवी (90) का गुरुवार दाेपहर 3.16 बजे यहां निजी अस्पताल में निधन हो गया. वह लंबे समय से अस्वस्थ थीं. उन्हें 22 मई को भरती कराया गया था. शनिवार रात उन्हें दिल का दौरा पड़ा.तब से स्थिति लगातार बिगड़ती गयी. महाश्वेता के निधन से समूचा साहित्यिक और सांस्कृतिक जगत शोक में डूब गया है. उनका जन्म ढाका के संपन्न परिवार में हुआ था. पिता मनीष घटक प्रख्यात कवि थे. मां धारित्री देवी भी साहित्य की गंभीर अध्येता थीं. मशहूर रंगकर्मी विजन भट्टाचार्य से उनकी पहली शादी हुई थी.
शंकर
महाश्वेता देवी एक अद्भुत विद्रोही और मानवीय भावनाओं से परिपूर्ण लेखिका थीं. केवल अपने साहित्यिक रचनाओं के माध्यम से ही नहीं, वरन अपना पूरा जीवन शोषित, पीड़ित, पिछड़े वर्ग के लोधा संप्रदाय के कल्याण और विकास के लिए उत्सर्ग किया था. मेरा महाश्वेता देवी का लंबे समय से संबंध रहा है तथा उनके साथ कई यात्राएं भी की थी. लगभग सात-आठ दिनों तक एक यात्रा के दौरान फ्रांस में उनके साथ व्यतीत किया था. उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि साहित्यिक जगत की थी. उनके पिता मनीष घटक कवि और उपन्‍यासकार थे.
माता धारित्री देवी लेखन के साथ-साथ सामाजसेवा से भी गहराई से जुड़ी थीं. ऋतिक घटक उनके चाचा था. उनका पूरा वंश ही साहित्यिक पृष्ठभूमि का था. उन्होंने अपने पूरे जीवन को एक लेखक, साहित्यकार और आंदोलनधर्मी के रूप में विकसित किया था. विद्रोह और अांदोलन उनके साहित्य के साथ उनके जीवन में भी परिलक्षित होता है.
हालांकि महाश्‍वेता देवी का पारिवारिक जीवन बहुत ज्यादा सुखमय नहीं रहा था. उनका वैवाहिक जीवन बहुत ज्‍यादा स्‍थाई साबित नहीं हो सका था. पहले विजन भट्टाचार्य और फिर बाद में असीत गुप्त के साथ उनका वैवाहिक जीवन ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाया था. उनके पुत्र का भी कुछ दिन पहले निधन हो गया था, लेकिन दु:खमय पारिवारिक जीवन का भी उनकी साहित्य रचनाओं व जीवन पर बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा था. वास्तव में वह इनका ज्यादा परवाह नहीं करती थीं. वह बहुत ही कम उम्र से ही साहित्य और लेखन जगत से जुड़ गयी थीं. उनकी पहली रचना ‘झांसीर रानी’ को जिस ढंग से लिखा था, उसमें इतिहास के साथ-साथ नाटकीयता भी थी. उन्होंने लोकगीत, लोककथा और आम लोगों के गानों को अपने साहित्य में स्थान दिया था.
महाश्वेता देवी की रचनाएं कोलकाता में रह कर नहीं लिखी गयी थीं. विभिन्न स्थानों में घटित तमाम घटनाओं के साथ चलते हुए लिखा था. यह केवल कल्पना नहीं होती थी, वरन अलग दस्तावेज होता था. उनकी पुस्तकें ‘नटी’ ‘जली थी अग्निशिखा’ आदि भी ऐतिहासिक परिपेक्ष्य को ही ध्यान में रख कर लिखा गया था. उन्होंने अपनी रचनाओं में सामाजिक न्याय, किसान, खेतिहर मजदूर और इनका शोषण करने वाले वर्ग के बीच संघर्ष को उकेरा था.
महाश्‍वेता देवी की रचनाओं में जमीनी हकीकत इस कदर समाई है, जो सीधे-सीधे पाठकों को दिलोदिमाग पर असर छोड़े बिना नहीं रहती. उनका जीवन परिपूर्ण था और वह नियम तोड़ने पर विश्वास करती थीं. विद्रोह और समाज के पिछड़े वर्ग के लिए अाजीवन काम करती रहीं. उनकी रचनाएं किसी भाषा के दायरे में बंधी हुई नहीं थी, वरन भाषा और राज्य की सीमाओं को लांघ कर सर्वत्र ही वह विद्यमान थी.
लेखक, बांग्ला के वरिष्ठ साहित्यकार हैं. संवाददाता अजय विद्यार्थी से बातचीत पर आधारित.
बंगाल ने खाेया साहित्य की मां
कोलकाता. बंगाल की धरती ने साहित्य की मां को खो दिया. वह बंगाल की साहित्यिक जगत की मां थीं. निधन पर बंगाल के सभी साहित्यकारों ने कहा कि उन्होंने अपनी मां को खो दिया है. कहने को, तो महाश्वेता देवी एक बांग्ला साहित्यकार व सामाजिक कार्यकर्ता थीं. लेकिन लेखनी, उपान्यास सिर्फ बंगाल के लिए नहीं, बल्कि पूरे मानव समाज के लिए था. उनकी लेखनी ने समाज में एकता लाने व निचले तबके के विकास के लिए कार्य किया.
आदिवासियों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए उन्होंने कई संस्थाएं बनायीं. सफल संचालन किया. वहीं, बंगाल में कृषि जमीन के लिए सिंगूर, नंदीग्राम व लालगढ़ में हुए आंदोलन में उन्होंने किसानों का साथ दिया. उनका नाम ध्यान में आते ही उनकी कई-कई छवियां उभर जाती हैं. दरअसल उन्होंने मेहनत व ईमानदारी के बलबूते व्यक्तित्व को निखारा है. उन्होंने खुद को पत्रकार, लेखक, साहित्यकार और आंदोलनकारी के रूप में विकसित किया. उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उनका साहित्य, उनके जीवन में झलकता था.
महाश्वेता के चाचा ऋत्विक घटक प्रख्यात फिल्मकार थे. घटक को भारत में समानांतर सिनेमा का स्तंभ माना जाता है. उनकी स्कूली शिक्षा ढाका में हुई. भारत विभाजन के समय किशोरावस्था में ही उनका परिवार पश्चिम बंगाल में आकर बस गया. उन्होंने रवींद्रनाथ टैगोर के शिक्षण संस्थान शांतिनिकेतन में शिक्षा प्राप्त की. फिर कोलकाता विश्वविद्यालय में एमए अंगरेजी में किया. प्रसिद्ध नाटककार बिजन भट्टाचार्य से उनकी शादी हुई. बिजन, इंडियन पीपल्स थियेटर एसोसिएशन (इप्टा) के संस्थापक सदस्यों में से एक थे.
महाश्वेता के बेटे नवारूण भट्टाचार्य भी प्रख्यात कवि व उपन्यासकार थे और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित थे. उनका 2014 में निधन हो गया. महाश्वेता देवी ने न सिर्फ एक कॉलेज में अंगरेजी साहित्य की व्याख्याता के तौर पर काम किया, बल्कि विभिन्न अखबारों में ग्रामीण भारत के लोगों के सामने पेश समस्याओं के विषय में आलेख भी लिखे. तदुपरांत उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय में अंग्रेजी व्याख्याता के रूप में नौकरी भी की.
1984 में लेखन पर ध्यान केंद्रित करने के लिए उन्हाेंने रिटायर्टमेंट ले ली. कम उम्र से ही लेखन शुरू किया. साहित्यिक पत्रिकाओं के लिए लघु कथाओं में योगदान दिया. उनकी पहली उपन्यास, ‘नाती’, 1957 में अपनी कृतियों में प्रकाशित हुई थी. ‘झांसी की रानी’ महाश्वेता देवी की प्रथम रचना है, जो 1956 में प्रकाशित हुई. इसे महाश्वेता ने कलकत्ता में नहीं, बल्कि सागर, जबलपुर, पुणे, इंदौर, ललितपुर के जंगलों, झांसी, ग्वालियर, कालपी में घटित तमाम घटनाओं में इतिहास के मंच पर जो हुआ, उसके साथ-साथ लिखा.
हिंदी में कुछ कृतियां (सभी का बांग्ला से हिंदी में अनुदित)
अक्लांत कौरव, अग्निगर्भ, अमृत संचय, आदिवासी कथा, ईंट के ऊपर ईंट, उन्तीसवीं धारा का आरोपी, उम्रकैद, कृष्ण द्वादशी, ग्राम बांग्ला, घहराती घटाएं, चोट्टि मुंडा और उसका तीर, जंगल के दावेदार, जकड़न, जली थी अग्निशिखा, झांसी की रानी, टेरोडैक्टिल, दौलति, नटी, बनिया बहू, मर्डरर की मां, मातृछवि, मास्टर साब, मीलू के लिए, रिपोर्टर, श्रीश्री गणेश महिमा, स्त्री पर्व, स्वाहा और हीरो-एक ब्लू प्रिंट
2006 में मिला पद्मविभूषण : महाश्वेता देवी को 1979 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1986 में पद्मश्री, 1996 में ज्ञानपीठ पुरस्कार, 1997 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार और 2006 में पद्मविभूषण मिला.
महाश्वेता देवी ने कलम की ताकत का सही में प्रयोग किया. करुणा, समानता और न्याय की आवाज के निधन से शोकाहत हूं.
नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
देश ने एक महान लेखिका को खो दिया : ममता बनर्जी
कोलकाता : महान लेखिका व सामाजिक कार्यकर्ता महाश्वेता देवी की मौत ने साहित्य में एक ऐसा रिक्त स्थान छोड़ दिया है, जिसे भरना शायद ही संभव हो. समाज का हर वर्ग उस महान लेखिका को अपने स्तर व अनुभव से श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने महाश्वेता देवी की मौत पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की है. अपने ट्वीटर अकाउंट द्वारा महाश्वेता देवी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए मुख्यमंत्री ने लिखा है कि भारत ने एक महान लेखिका को खो दिया है. बंगाल ने एक गौरवमयी मां को गंवा दिया है. मैंने अपना एक निजी मार्गदर्शक खो दिया है. ‘महाश्वेता दी’ आप हमेशा शांति में रहें.
देश ने सचेतन अभिभावक व महान साहित्यकार खो दिया. लेखन से वह अन्याय, असमानता व पक्षपात के खिलाफ लड़ीं. आदिवासी जीवन से उन्हे प्यार था .
सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष
महादेवी वर्मा के समतुल्य मिला था महाश्वेता को सम्मान : आलोक धन्वा
साहित्य जगत में महाश्वेता देवी को महादेवी वर्मा के समतुल्य सम्मान मिला था. महाश्वेता देवी पत्रकार के साथ-साथ इतिहास की भी विशेषज्ञ थीं. उन्होंने बड़े मुद्दों को लेखन में उठाया.
वह जन आंदोलनों से जुड़ी रहनेवाली लेखिकाओं में एक थी. मुद्दों पर लड़ने के लिए वह सड़कों पर उतरने से भी नहीं चूकती थीं. बिहार-झारखंड जब एक था, तब वह अक्सर पलामू, जमशेदपुर, डाल्टेनगंज और खूंटी आती थीं. वीरभूमि से उनका गहरा जुड़ाव था. मुझे बंगाल में हुए विश्व पुस्तक-मेला में उनके साथ कई सेमिनारों में बैठने का सौभाग्य मिला. आज भी उन क्षणों के भूल नहीं पा रहा. वह भारत की एक मात्र लेखिका थीं, जिनकी लिखी किताबों का सभी भाषाओं में अनुवाद हुआ है. सिर्फ बांग्ला में ही नहीं, बल्कि हिंदी में भी महाश्वेता देवी का विशाल पाठक वर्ग था और है. वह विजन भट्टाचार्य, उत्पल दत्त, शंभू मित्रा, सुभाष मुखोपाध्याय, निरेंद्र नाथ चक्रवर्ती की पीढ़ी के बीच साहित्य जगत में आयी और उनसे भी आगे निकल गयीं. उन्होंने नक्सलवादी आंदोलन पर किताबें लिखी, जो चर्चा में रहीं.
पीड़ितों के लिए सदा किया संघर्ष : प्रसून भौमिक
आज विपदा की घड़ी है, जब स्वाभाविक बोध और बुद्धि को बनाये रख पाना संभव नहीं है. महाश्वेता देवी ने जीवन भर उनके लिए लड़ाई की, जो जमीन स्तर पर काम करते हैं. उनके साथ समय बिताया, जो खानों में काम करते हैं. जिनके लिए जंगल व खान देवता के समान हैं. वह पुरुलिया के पीड़ितों, आसनसोल और नंदीग्राम के पीड़ितों के साथ खड़ी रहीं.
उन्होंने केवल साहित्य रचना कर अपना कर्तव्य पूरा नहीं करना समझा, बल्कि उन्होंने पिछड़े और आदिवासी लोगों के साथ जीवन जिया. उनके दर्द को जिया और उनके के लिए पुलिस, प्रशासन से लोहा लिया. वह उन लोगों के साथ खड़ी रहीं, जिन्हें पुलिस बंदूक के नोंक पर रखते थे. वास्तव में उन्होंने अपना सेनापति खो दिया है. उन्होंने वाम मोरचा शासन के अत्याचार के खिलाफ उन लोगों के साथ मिल कर आंदोलन किया था. वाममोरचा सरकार से लोहा लिया था.
-लेखक प्रसिद्ध बांग्ला कवि है.
‘हजार चौरासी की मां’ के जाने से साहित्य बिरादरी में छाया शोक
महाश्वेता देवी ने आदिवासियों के जीवन को बहुत गहराई से देखा और चित्रित किया. मैंने उनके कथा साहित्य को हिंदी में पढ़ा है और मुझे दो दफा उनसे मिलने का भी अवसर मिला. मैं उनके शांत और सरल व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित रहा हूं. शब्द और कर्म दोनों ही स्तरों पर सक्रिय और समर्पित रहीं. महाश्वेता देवी जैसी लेखिका शताब्दियों में पैदा होती हैं.
विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, अध्यक्ष
महाश्वेता जी बहुत बडी लेखिका थीं और उन्होंने भारतीय साहित्यकारों को बहुत सारे रास्ते दिखाये.आम तौर ऐसी जगहों (कल्पनाशीलता और जीवन की सच्चाई) से हम इससे पहले अनजान थे.
सामाजिक जीवन के उनके अनुभव उन्हें एक बड़ी लेखिका बनाते हैं, जो उनके रचना संसार को विशाल रूप दे देते हैं. लेखक और लेखिका के समझने और उसे वर्णन करने में बहुत अंतर होता है. लेखकों ने जिन चीजों को नहीं उभारा था, महाश्वेता जी उस जगह तक पहुंच सकीं. यही उन्हें बड़ा रचनाकार बनाती है. अक्सर रचनाकार सत्ता और समाज के संतुलन बनाते हुए अपनी बात लिखता है, लेकिन बहुत कम लेखक महाश्वेता देवी की तरह बेखौफ होकर अपनी बात कहते हैं.
कृष्णा सोबती
महाश्वेता देवी न केवल एक अच्छी लेखिका थीं, बल्कि एक सक्रिय समाजकर्मी भी थीं. बांग्ला साहित्य में उनका बहुत बड़ा योगदान है. विशेषकर आदिवासियों के हित में उन्होंने काफी बड़ा आंदोलन किया. किसी समय में वह आशुतोष कॉलेज में पढ़ाती भी थीं व छात्रों से काफी नजदीक रहती थीं. नंदीग्राम, सिंगूर आंदोलन में भी मैं उनके साथ था.
वह आमलोगों के हक के लिए आंदोलन करने के लिए हमेशा सक्रिय रहती थीं.उनके नेतृत्व में ही बुद्धिजीवियों का मंच सिंगूर आंदोलन के लिए तैयार हुआ था. उनके चले जाने से साहित्य व संस्कृति को बहुत बड़ी क्षति हुई है. उनके योगदान को दुनिया कभी नहीं भुला सकती. नयी पीढ़ी के लिए भी उनका जीवन प्रेरणादायी रहेगा. ईश्वर से उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं.
प्रो तरुण सान्याल, कवि, फोरम ऑफ आर्टिस्ट कल्चरल एक्टिविस्ट इनटेलैक्च्युअल के उपाध्यक्ष व सेफ एजुकेशन कमेटी के राज्य अध्यक्ष हैं)

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