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मतभेदों को कम करना चीन के साथ भारत संबंधों का मुख्य सिद्धांत: प्रणब मुखर्जी

गुआंगचऊ: राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने चीन के शीर्ष नेतृत्व के साथ अपनी बातचीत से पहले आज कहा कि चीन के साथ भारत के संबंधों का मुख्य सिद्धांत समझौते वाले क्षेत्रों का विस्तार करना और मतभेदों को कम करना है.दक्षिणी चीन के औद्योगिक शहर गुआंगचउ से अपने चार दिवसीय चीन दौरे की शुरुआत करते हुए मुखर्जी […]

गुआंगचऊ: राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने चीन के शीर्ष नेतृत्व के साथ अपनी बातचीत से पहले आज कहा कि चीन के साथ भारत के संबंधों का मुख्य सिद्धांत समझौते वाले क्षेत्रों का विस्तार करना और मतभेदों को कम करना है.दक्षिणी चीन के औद्योगिक शहर गुआंगचउ से अपने चार दिवसीय चीन दौरे की शुरुआत करते हुए मुखर्जी ने कहा, ‘‘हम कभी भी मतभेदों को बढाने में शामिल नहीं है, बल्कि हमने मतभेदों को कम किया है और समझौते वाले क्षेत्रों का विस्तार किया है.” उन्होंने कहा, ‘‘यह भारतीय कूटनीति का मुख्य सिद्धांत है.” राष्ट्रपति यहां चीन में भारत के राजदूत विजय गोखले की ओर से आयोजित स्वागत समारोह में भारतीय समुदाय के लोगों को संबोधित कर रहे थे.

मुखर्जी ने संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक, आईएमएफ और ब्रिक्स जैसे बहुपक्षीय मंचों पर भारत और चीन के बीच बढते सहयोग की मिसाल दी और कहा कि दोनों देशों ने इन संस्थाओं में साथ मिलकर काम किया है. प्रतिष्ठित परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत की सदस्यता पर चीन का विरोध और जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी के तौर पर प्रतिबंधित करने के संयुक्त राष्ट्र के कदम को बाधित करने की चीन की कार्रवाई जैसे विषय मुखर्जी की गुरुवार को चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग समेत वहां के शीर्ष नेतृत्व से बातचीत में आ सकते हैं.
अपने लंबे राजनीतिक करियर में विभिन्न पदों पर रहते हुए चीन की कई यात्राएं कर चुके मुखर्जी की राष्ट्रपति के तौर पर चीन की यह पहली यात्रा है. सूत्रों के अनुसार वह उक्त मुद्दों पर भारत की चिंता प्रकट कर सकते हैं और इन पर भारत के रख को पुरजोर तरीके से पेश कर सकते हैं.
दक्षिण कोरिया में अगले महीने होने वाली 48 सदस्यीय परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह की बैठक के संदर्भ में परमाणु के मुद्दे पर नई दिल्ली के रख को महत्वपूर्ण माना जा रहा है. इस बैठक में भारत एनएसजी की सदस्यता की पुरजोर कोशिश कर सकता है.
सूत्रों ने कहा कि एनएसजी की भारतीय सदस्यता असैन्य परमाणु कार्यक्रम के शांतिपूर्ण उद्देश्यों का अनुसरण करने में उसके प्रयासों की तार्किक परिणति होगी और दूसरों से कोई तुलना नहीं की जा सकती.

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