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सब्सिडी सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योगों के लिए

मित्रों,हम गांवों के देश में रहते हैं और कृषि हमारा बड़ा आर्थिक आधार है. बहुत बड़ी आबादी खेती पर निर्भर है, लेकिन आर्थिक विकास का एक बड़ा आधार उद्योग है. औद्योगिक विकास देश की आर्थिक प्रगति में बड़ी भूमिका निभाता है. इसमें सूक्ष्य, लघु और मध्यम उद्योगों की भूमिका और भी बड़ी है. ऐसे उद्योगों […]

मित्रों,
हम गांवों के देश में रहते हैं और कृषि हमारा बड़ा आर्थिक आधार है. बहुत बड़ी आबादी खेती पर निर्भर है, लेकिन आर्थिक विकास का एक बड़ा आधार उद्योग है. औद्योगिक विकास देश की आर्थिक प्रगति में बड़ी भूमिका निभाता है. इसमें सूक्ष्य, लघु और मध्यम उद्योगों की भूमिका और भी बड़ी है. ऐसे उद्योगों का देश भर में जाल है. यह जरूरत के सामानों का केवल निर्माण ही नहीं करते, बल्कि घरेलू जरूरतों को पूरा करते हैं. बहुत बड़ी आबादी को ये रोजगार देते हैं. सरकारी क्षेत्र में नौकरी के अवसर सीमित हैं.

हर
किसी को सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती है. शिक्षित बेरोजगारों को रोजगार चाहिए. रोजगार मांगने वालों की संख्या हर दिन बढ़ती है. घटती नहीं है. यह दबाव निरंतर बनता और बढ़ता है. नौकरी या रोजगार के अवसर हों या हमारी जरूरत के सामानों की मांग. केवल उपभोग से बात नहीं बनती. नौकरी और रोजगार के अवसर भी पैदा होने चाहिए और सामानों की उत्पादन भी बढ़ना चाहिए. यह काम सूक्ष्य, लघु और मध्यम उद्योगों के विकास से ही संभव है. इसलिए सरकार ऐसे उद्योग लगाने के लिए युवाओं को प्रेरित करती है. जिस तरह किसानों को खेती की नयी तकनीकों का प्रशिक्षण दिया जाता है. उन्हें आर्थिक मदद दी जाती है और अपने उत्पादों को बेचने के लिए बाजार मुहैया कराया जाता है.

ठीक
उसी तरह से नये लोगों को अलगअलग उत्पादन क्षेत्र में उद्योग लगाने के लिए सरकार प्रशिक्षण देती है. उन्हें उद्योग शुरू करने के लिए पूंजी मुहैया कराती है. इसमें व्यावसायिक कजर्, आसान ब्याज दर पर कर्ज और सब्सिडी शामिल है. जो उद्योग पहले से चल रहे हैं, उनकी क्षमता बढ़ाने और नयीनयी तकनीकों और मशीनों को अपनाने में भी मदद दी जा रही है. उनके उत्पादों को बजार मुहैया कराने में भी सरकारी की मददगार योजनाएं हैं. इनका लाभ गांवपंचायत के युवक आसानी से उठा सकते हैं. हम अपने यहां खेती और बागवानी से होने वाले पैदावार पर आधारित उद्योग भी लगा सकते हैं. इसमें सरकार की सब्सिडी, पूंजी और बाजार उपलब्ध कराने की योजना हमारी मदद करती है. इससे हम अपनी कृषि उपज पर आधारित ज्यादा लाभ प्राप्त कर सकते हैं. हम यहां ऐसी कुछ योजनाओं की चर्चा कर रहे हैं.

औद्योगिक क्षेत्र, खास कर सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने विभिन्न योजनाएं आरंभ की हैं, जिनके अंतर्गत सक्षम उद्यमों को सब्सिडी प्रदान की जाती है. ऐसी कुछ सब्सिडी योजनाएं विशिष्ट रूप से कुछ औद्योगिक क्षेत्रों के लिए हैं, जबकि ज्यादातर योजनाओं का लाभ विभिन्न प्रकार के सूक्ष्म, लघु और मध्यम दज्रे के उद्योगों को लाभ पहुंचाने के लिए.

वस्त्र उद्योग : प्रौद्योगिकी उन्नयन निधि योजना (टफ्स)

वस्त्रमंत्रालयने अप्रैल 1999 में वस्त्र और जूट उद्योग के लिए प्रौद्योगिकी उन्नयन निधि योजना शुरू की. इसका मकसद वस्त्र इकाइयों में नयी तकनीकों और उन पर आधारित उद्योगों को शुरू कराना है. इसके तहत लाभुक को वित्तीय सहायता के लिए कई विकल्प दिये जाते हैं, जिनमें से किसी एक का लाभ वह ले सकता है :

कर्ज देने वाली एजेंसी द्वारा सामान्य ब्याज दर पर 5} ब्याज की भरपाई की जाती है या

एफसीएल पर आधार दर से 5} लेन-देन के उतार चढ़ाव का लाभ.

लघु उद्योग क्षेत्र के लिए 15} कर्ज आधारित पूंजी सब्सिडी.

पावर लूम क्षेत्र के लिए 20} कर्ज आधारित पूंजी सब्सिडी.

विशिष्ट प्रसंस्करण मशीनर आदि के लिए 5} ब्याज की भरपाई तथा 10 प्रतिशत पूंजी सब्सिडी.

आइडीबीआइ, सिडबी तथा आइएफसीआइ ऐसे संस्थान हैं, जो गैर-लघु उद्योग, लघु वस्त्र उद्योग तथा जूट उद्योग में नोडल एजेंसी के रूप में काम करते हैं. इसके अलावा टफ्स के अंतर्गत 13 और नोडल बैंक बनाये गये हैं.

खाद्य प्रसंस्करण उद्योग हेतु प्रौद्योगिकी उन्नयन, स्थापना व आधुनिकीकरण योजना

यह योजना खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में उद्योग लगाने, पहले से चल रहे उद्योगों को तकनीकी रूप से और बड़ा करने तथा उनमें आधुनिक यंत्र आदि लगाने में आर्थिक मदद के लिए है. ग्रामीण क्षेत्र में भी इस तरह के उद्योग लगाये जा सकते हैं या पहले से कोई औद्योगिक इकाई चल रही है, तो उसके विकास के लिए इस योजना की मदद ली जा सकती है. इसके तहत फल तथा सब्जी, दूध से बनने वाली खाद्य सामग्री, मांस, मुर्गी पालन, मछलीपालन, तेलहन तथा अन्य कृषि-बागवानी क्षेत्र में उद्योग लगाने में आप इस योजना का लाभ ले सकते हैं. आप खेती और बागबान से पैदा होने वाले कृषि उत्पाद से खाने-पीने के सामान, मसाले आदि बनाने के उद्योग लगा सकते हैं. गन्ना, नारियल और मशरूम के उत्पादों को भी इसमें शामिल किया गया है. योजना के तहत आपको अनुदान के रूप में सहायता मिल सकती है. यह अनुदान संयंत्र और मशीनरी तथा तकनीकी निर्माण कार्य के लिए दिया जाता है, जिसकी राशि सामान्य क्षेत्र में कुल लागत का 25} या अधिकतम 50 लाख का हो सकती है, जबकि कठिन क्षेत्र में 33} या अधिकतम 75 लाख रुपये तक हो सकती है. इनमें से जो राशि कम होगी, वही उद्यमी को मिलेगी.

जेनेरेटर सेट व डीजल इंजन हेतु वित्तीय सहायता योजना
योजना रवर, जूट और नारियल के फाइवर तैयार करने वाले उद्योगों को बिजली के संकट से निजात दिलाने के लिए शुरू की गयी है. इसके तहत ऐसे सूक्ष्य, लघु और मध्यम श्रेणी के उद्योगों को जेनेरेटर और डीजल से चलने वाली इंजन की खरीद के लिए एकमुश्त सब्सिडी दी जाती है, जो बिजली की कमी या कम वोल्टेज जैसी समस्या ङोल रहे हैं. इसका मकसद है कि ऐसी औद्योगिक इकाइयां बेहतर उत्पादन दे सकें. इसमें रस्सी, मैट, धागा और अन्य उपयोगी सामान आते हैं.

कितनी सब्सिडी
एक इकाई को जेनेरेटर और इंजन की खरीद पर कुल लागत का 25} या अधिकतम 50 हजार रुपये तक की सब्सिडी मिलती है.

किसे मिलता है लाभ

इस सब्सिडी का लाभ उन इकाइयों को मिलता है, जो

इकाई कॉयर बोर्ड के साथ कॉयर उद्योग (आर एंड एल) नियम 1958 के तहत रजिस्टर्ड हो.

इकाई राज्य के उद्योग विभाग के साथ पंजीकरण हो.

राज्य विद्युत बोर्ड ने जेनेरेटर लगाने के लिए अनापत्ति प्रमाण-पत्र दे दिया हो.

जो जेनेरेटर आप लगाना चाहते हैं, उसकी क्षमता बिजली की आपकी जरूरत के अनुपात में हो.

इकाई में पहले से थ्री फेज बिजली कनेक्शन दिया गया हो.

कहां दें आवेदन

जेनेरेटर के लिए आवेदन जिला उद्योग केंद्र के महाप्रबंधक को भी दी जा सकती है. सब्सिडी के लिए उनकी अनुशंसा जरूरी है.

केंद्र सरकार की खास सब्सिडी योजना

कर्ज आधारित औद्योगिक पूंजी सब्सिडी योजना
केंद्र सरकार ने प्रौद्योगिकी उन्नयन के लिए कर्ज आधारित पूंजी सब्सिडी योजना (सीएलसीएसएस) की शुरुआत 2005 में की. इस योजना का लाभ सूक्ष्म और लघु उद्यमी उठा रहे हैं. इस योजना के पहले भी सरकार इस तरह की मदद दे रही थी, लेकिन तब मदद की राशि कम थी. लघु और सूक्ष्म उद्योग लगाने वालों को पहले कुल संस्थागत वित्त पर सरकार 12} पूंजी अनुदान देती थी. अब इसे बढ़ा कर 15} कर दिया गया है. किसी इकाई की कुल कैपिटल सब्सिडी की गणना मशीन और अन्य संयंत्रों की खरीद की कीमत के आधार पर की जाती है. इस गणना में कर्ज की उच्चतम सीमा पहले 40 लाख रुपये थी. इसे बढ़ा कर एक करोड़ कर दिया गया है. भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) तथा राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) इस योजना के कार्यान्वयन के लिए नोडल एजेंसी के रूप में कार्य कर रहे हैं.

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