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स्टार्टअप: तकनीक की मदद से ग्रामीणों के जीवन स्तर में सुधार की पहल, किफायती बायोगैस प्लांट लगाते हैं ये युवा

नेशनल कंटेंट सेल आज जहां अधिकांश युवा तकनीकी और पेशेवर डिग्री लेकर किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी के चकाचक दफ्तर में बैठ कर अपने लैपटॉप पर असाइनमेंट्स पूरे करने के लिए मोटी तनख्वाह पाने का सपना देखते हैं, वहीं दक्षिण भारत के तीन युवा, गोबर-गैस पर तरह-तरह से काम कर, उसे ज्यादा से ज्यादा लोगों के लिए […]

नेशनल कंटेंट सेल

आज जहां अधिकांश युवा तकनीकी और पेशेवर डिग्री लेकर किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी के चकाचक दफ्तर में बैठ कर अपने लैपटॉप पर असाइनमेंट्स पूरे करने के लिए मोटी तनख्वाह पाने का सपना देखते हैं, वहीं दक्षिण भारत के तीन युवा, गोबर-गैस पर तरह-तरह से काम कर, उसे ज्यादा से ज्यादा लोगों के लिए उपयोगी बनाने की कोशिश कर रहे हैं.

कौशिक यनामंद्रम और पीयूष सोहानी ने तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में एक कंपनी की स्थापना की है, नाम है सस्टेन अर्थ एनर्जी सॉल्यूशंस़ सितंबर, 2013 में स्थापित इस कंपनी के जरिये ये लोग ग्रामीण इलाकों में पर्यावरण अनुकूल ईंधन मुहैया कराते हैं. 28 साल के कौशिक इस कंपनी में फील्ड ऑपरेशंस के निदेशक की जिम्मेवारी संभालते हैं. वहीं, पीयूष इस कंपनी के सीइओ हैं और वित्तीय व तकनीकी मामलों के लिए जवाबदेह हैं.

दिल्ली विश्वविद्यालय में एमटेक की पढ़ाई के दौरान कौशिक की मुलाकात पीयूष से हुई़ वहीं पर ये दोनों क्लासमेट और रूममेट बने़ कॉलेज के एक प्रोजेक्ट के लिए दिल्ली से लगभग 35 किमी दूर सिरोही गांव में इनका जाना हुआ़ वहां जाकर इन्होंने पाया कि गांव की 70 प्रतिशत आबादी चूल्हे पर गोबर के उपले जला कर खाना बनाती है़ इस तरह काम करनेवाली महिलाओं की धुएं से भला क्या हालत होती होगी, यह सोचनेवाली बात थी़ कौशिक बताते हैं कि शहरों में लोग बिजली, सड़क, वाइ-फाइ जैसी सुविधाओं का इस्तेमाल करते हैं और महज 35 किमी दूर गांव में रहनेवाले लोगों के लिए खाना बनाने के लिए भी ईंधन का कोई बेहतर स्रोत नहीं है़ कौशिक आगे कहते हैं कि हम तीन दोस्तों ने तभी फैसला किया कि तकनीक की मदद से इन लोगों के जीवनस्तर में सुधार लाने के लिए हरसंभव कोशिश करेंगे़.

लेकिन करें क्या? यह एक बड़ा सवाल था. तब इन्हें अपने कॉलेज प्रॉफेसर वीवीएम किशोर का मार्गदर्शन मिला. जैव-ईंधन के विशषज्ञ किशोर ने इन युवाओं को इसी क्षेत्र में काम करने की सलाह दी. फिर क्या था! अपने मकसद को पूरा करने और इस क्षेत्र में ज्यादा-से ज्यादाजानकारी जुटाने के लिए इन युवाओं ने गांवों का दौरा करने से लेकर टेरी (द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट) में इंटर्नशिप तक पूरा किया.

कौशिक बताते हैं कि कुल मिली जानकारी के आधार पर हमने तय किया कि हम बायोगैस के क्षेत्र में काम करेंगे. चूंकि अपनी ट्रेनिंग के दौरान हमने यह जाना था कि पशुधन के मामले में हमारा देश दुनिया में सबसे आगे है. अब अगर इन पशुओं के गोबर से बायोगैस बनाया जाये, तो कितना अच्छा हो!

लोगों को एक बेकार की चीज से बड़े काम की चीज मिल जायेगी और लोगों को खाना बनाने के लिए जरूरी ईंधन के साथ-साथ रोशनी का भी सस्ता, टिकाऊ, बेहतर और पर्यावरण अनुकूल स्रोत मिल जायेगा़ हमने एक विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनायी और विलग्रो इनोवेशन फाउंडेशन से संपर्क किया़ वहां लोगों को हमारा कंसेप्ट पसंद आया और हमें बुलाया गया़ विलग्रो ने हमें प्रोडक्ट डेवलपमेंट के लिए तीन लाख रुपये की पूंजी के साथ 25 हजार रुपये का स्टाइपेंड भी दिया़

कौशिक बताते हैं, इस तरह सितंबर, 2013 में सस्टेन अर्थ एनर्जी सॉल्यूशंस के नाम से हमारे स्टार्टअप की शुरुआत हुई़ लेकिन, जिस बायोगैस की तकनीक पर हमें काम करना था, वह पहले से प्रचलित थी़ इसमें सबसे बड़ी मुश्किल थी, इसमें लगनेवाला खर्च़ पारंपरिक बायोगैस प्लांट लगाने में ईंट, बालू, सीमेंट और मिस्त्री पर बड़ा खर्च आता है़ और अगर टंकी में दरार आ जाये, तो सब बरबाद हो जाता है़ ऐसे में हमने फ्लेक्सिबल बैग की डिजाइन में बायोगैस प्लांट का प्रोटोटाइप डिजाइन किया़ इसकी खासियत यह थी कि यह तुलनात्मक रूप से सस्ता था और इसे कोई अकेला आदमी भी तैयार कर सकता था़.

कौशिक बताते हैं कि हमारे बनाये बायोगैस प्लांट के लिए 25 हजार रुपये का खर्च आता है और दो-तीन मवेशीवाले परिवार के लिए खाना बनाने और रोशनी के लिए जरूरी ईंधन इससे आराम से मिल जाता है़ इसे हमने गौ-गैस का नाम दिया है़ इसे बनाने के लिए जरूरी सामग्री हम तिरुपति के अलावा चीन से मंगवाते हैं और इसे चेन्नई और नासिक में स्थित कंपनियों में तैयार किया जाता है़ एक बार लगा देने पर यह नये तरह का बायोगैस प्लांट 10 साल तक आराम से चल सकता है़.

कौशिक बताते हैं कि इसके बाइ-प्रोडक्ट के रूप में निकलनेवाला पदार्थ जैविक खाद का काम करता है, जिसे किसान अपने खेतों में डालकर अच्छी उपज पा सकते हैं. बताते चलें कि गौ-गैस सालोंभर लगातार काम कर सकता है, जबकि पारंपरिक बायोगैस प्लांट बरसात के दिनों में काम नहीं करते़ कौशिक बताते हैं कि धीरे-धीरे गांवों में इसकी लोकप्रियता बढ़ रही है और हमारा लक्ष्य देश के हर गांव तक इसे पहुंचाने का है़ यही नहीं, हमारी योजना अगले वित्त वर्ष तक गौ-गैस की 500 इकाइयां और अगले दो-तीन वर्षों में इसकी पांच हजार इकाइयां लगाने की है़ कौशिक बताते हैं कि हमारे देश में गांवों में रहनेवाले 16 करोड़ 60 लाख परिवारों में आठ करोड़ के पास मवेशी है. इस तरह हम ढाई से तीन करोड़ परिवारों को बायोगैस आसानी से मुहैया करा सकते हैं. अब आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि इस क्षेत्र में संभावनाएं कितनी बड़ी हैं.

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