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प्रभु की रेल : बड़े बदलाव की राह पर भारतीय रेलवे

2015 से 2019 के बीच निवेश 285 फीसदी बढ़ाने की योजना भारतीय रेल हमारे देश की अर्थव्यवस्था की आधार-स्तंभ है. लेकिन, रेल नेटवर्क को विस्तार देने, सुरक्षित बनाने और सुविधाएं बढ़ाने के लिए जरूरी निवेश नहीं हो सका है. आजादी के करीब सात दशकों में रेल नेटवर्क को करीब 21 फीसदी ही बढ़ाया जा सका […]

2015 से 2019 के बीच निवेश 285 फीसदी बढ़ाने की योजना
भारतीय रेल हमारे देश की अर्थव्यवस्था की आधार-स्तंभ है. लेकिन, रेल नेटवर्क को विस्तार देने, सुरक्षित बनाने और सुविधाएं बढ़ाने के लिए जरूरी निवेश नहीं हो सका है. आजादी के करीब सात दशकों में रेल नेटवर्क को करीब 21 फीसदी ही बढ़ाया जा सका है. सस्ता होने के बावजूद माल ढुलाई में रेल सड़क मार्ग से पीछे है, क्योंकि भारी ट्रैफिक के बोझ से गति धीमी है.
ऐसे में 2015 से 2019 के बीच 132 अरब डॉलर के भारी निवेश की रेल मंत्री सुरेश प्रभु की योजना रेल सेवाओं का कायापलट कर सकती है, जिसका बहुत बड़ा सकारात्मक प्रभाव समूची अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा और इससे सकल घरेलू उत्पादन में बड़ी उछाल संभावित है. अंतरराष्ट्रीय निवेश की विशेषज्ञ संस्था मॉर्गन स्टेनली ने रेल मंत्री सुरेश प्रभु की योजनाओं और नीतिगत दृष्टिकोण का विस्तृत अध्ययन कर पिछले साल के अंत में एक रिपोर्ट दी थी. इस रिपोर्ट के प्रमुख तथ्यों पर आधारित है आज का विशेष…
रेल मंत्री सुरेश प्रभु भारतीय रेल में 2019 तक खर्च की सीमा 132 अरब डॉलर तक करने की दिशा में काम कर रहे हैं. पिछले पांच वर्षों में पूंजी खर्च मात्र 34 अरब डॉलर रहा है. निवेश की वैश्विक सलाहकार संस्था मॉर्गन स्टानली द्वारा नवंबर में जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि खर्च में 285 फीसदी की यह बढ़ोतरी एक सकारात्मक कदम है और इससे भारतीय रेल की दशा और दिशा में आमूल-चूल परिवर्तन होगा.
इस रिपोर्ट में जतायी गयी उम्मीद का मुख्य कारण रेल मंत्री सुरेश प्रभु द्वारा 1998 से 2004 के बीच ऊर्जा मंत्री के रूप में किये गये सुधारात्मक कार्य हैं. रेल मंत्री के रूप में कार्यभार संभालने के साथ ही प्रभु ने अतिक्षमता और गति सेसंबंधित विकास में बाधक तत्वों को चिह्नित किया और परियोजनाओं के लिए धन कीव्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए नवोन्मेषी रवैया अपनाया है.
मॉर्गन स्टेनली के भारतीय शोध विभाग के प्रमुख रिधम देसाई के अनुसार, ‘सड़कों की तुलना में रेल यातायात का एक महत्वपूर्ण और सस्ता माध्यम है, लेकिन माल ढुलाई में सड़कों का हिस्सा रेल से डेढ़ गुणा से भी अधिक है. इसका कारण रेल नेटवर्क में अधिक भीड़ और खराब नीतियां हैं.
रेल मंत्री इस लगभग मरणासन्न मंत्रालय में बदलाव की प्रक्रिया की दिशा में प्रयासरत हैं. उन्होंने 2015 से 2019 के बीच 132 बिलियन डॉलर खर्च करने का वादा किया है, जो 2009 से 2014 के बीच किये गये 34 बिलियन डॉलर के खर्च से 285 फीसदी अधिक है.’
इस रिपोर्ट के लेखक अक्षय सोनी के मुताबिक, आगामी पांच सालों में रेल में किये गये निवेश और अर्थव्यवस्था पर इसके बहुआयामी असर की वजह से सकल घरेलू उत्पादन में 12 फीसदी तक की वृद्धि होगी.
रिपोर्ट में कहा गया है कि निवेश और क्षमता परिवर्द्धन के द्वारा रेल में बदलाव की प्रभु की योजना से भारत के लॉजिस्टिक खर्च में 10 फीसदी की, कॉरपोरेट सेक्टर के मुनाफे में 15 फीसदी की और व्यापार में पांच फीसदी की बढ़ोतरी होगी. रिपोर्ट के अनुसार रेलवे के पतन के मुख्य कारण जरूरत से कम निवेश, धन का खराब उपयोग और भारी सब्सिडी देना है.
रेल मंत्री को ‘परिवर्तन का चालक’ बताते हुए रिपोर्ट ने मंत्रालय द्वारा पिछले बजट में 7,000 किलोमीटर लंबी पटरियों के त्वरित दोहरीकरण, 87 बिलियन डॉलर के निवेश, 962 बिलियन डॉलर के निवेश से दोहरीकरण की 77 नयी परियोजनाओं तथा भारी यातायात के मौजूदा गलियारों में भीड़ कम करने पर ध्यान देने की घोषणाओं की प्रशंसा की है.
इस संस्था ने यह भी रेखांकित किया है कि रिपोर्ट की उम्मीद का मुख्य कारक निवेश जुटाने के नवोन्मेषी उपायों को लागू करने की कोशिश है. इसमें जीवन बीमा निगम द्वारा 24 अत्यधिक भीड़ वाले गलियारों के विस्तार के लिए 25 बिलियन के कर्ज, विश्व बैंक तथा जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी द्वारा माल ढुलाई के लिए समर्पित गलियारे के लिए निवेश, पब्लिक-प्राइवेट पार्टनशिप के तहत आठ हजार स्टेशनों के विकास का प्रस्ताव तथा रेल नेटवर्क के विस्तार के लिए नये व्यावसायिक मॉडल लागू करना शामिल हैं.
इसलिए जरूरी है रेलवे में निवेश
इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में यातायात सबसे महत्वपूर्ण तत्व है. विश्व बैंक का आकलन है कि भारत में लॉजिस्टिक का खर्च (जो बिक्री का 10 से 14 फीसदी है) बेहतरीन मानकों से दो-तीन गुणा अधिक है. इससे मैन्यूफैक्चरिंग में प्रतिस्पर्द्धा में भारत को नुकसान हो रहा है.
इसका मुख्य कारण सड़कों के मुकाबले रेल के लिए कम निवेश और बजट आवंटन है. यह वैश्विक मानकों से कम है. सड़कों की तुलना में रेल है यातायात का सस्ता साधन (20 फीसदी तक), फिर भी भारतीय माल ढुलाई में सड़कों का हिस्सा (57 फीसदी) रेल से डेढ़ गुना अधिक है, क्योंकि रेल नेटवर्क में भीड़ है और नीतियां लचर हैं. रिपोर्ट का मानना है कि निवेश और खर्च में, विशेष रूप से मालढुलाई में, सही रवैया उत्पादन, रोजगारऔर सकल घरेलू उत्पादन बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभायेगा.
योजना के 75 फीसदी तक पूरा होने की उम्मीद
भारत के सकल घरेलू उत्पादन से संबंधित संभावनाओं और उठाये गये कदमों के अनुरूप मॉर्गन स्टेनली की रिपोर्ट का आकलन है कि इन पांच वर्षों में 95 बिलियन डॉलर खर्च किये जायेंगे. वर्ष 2015 के वित्त वर्ष में खर्च की गयी राशि को अलग रख दें, तो यह आकलन लक्ष्य के 75 फीसदी (2016-19) बैठता है.
इस आधार पर कहा जा सकता है कि इस निवेश से 2015 से 2019 के बीच सकल घरेलू उत्पादन में 12 फीसदी की वृद्धि होगी. साथ ही, उत्पादन में बढ़त का लाभ भारत में मैन्यूफैक्चरिंग प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ायेगा और माल ढुलाई से होनेवाले कार्बन उत्सर्जन को कम करेगा, जिससे भारत 2030 के संबंधित लक्ष्य को पा सकेगा. इसके अतिरिक्त रेल की गति बढ़ने से माल संरक्षण में लाभ होगा.
जािनए : चीन की तुलना में भारत में इंफ्रास्ट्रक्चर का बेहद कम विकास
भारत में इंफ्रास्ट्रक्चर का असंतोषजनक विकास बेहद चिंताजनक है. आम तौर पर इस क्षेत्र में भारत और चीन समेत अन्य देशों की खर्च की तुलना की जाती है, लेकिन निरंतर कम निवेश से जो अंतर बढ़ा है, उसे भी रेखांकित करने की जरूरत है.
ऐसी स्थिति में प्रतिस्पर्द्धा में बने रहने के लिए भारत को अपना निवेश बढ़ाना है, बल्कि उसे अन्य अर्थव्यवस्थाओं से ज्यादा खर्च करने की जरूरत है, ताकि अंतर को कम किया जा सके.
रेलवे में निवेश का ऐतिहासिक सर्वेक्षण
अंगरेजों के भारत से चले जाने के बाद 1951 में भारतीय रेल नेटवर्क 53,596 किलोमीटर था. लेकिन 63 साल बीत जाने के बाद इसमें मात्र 21 फीसदी की ही बढ़ोतरी हुई है. वर्तमान में रेल नेटवर्क की मौजूदा लंबाई 65,436 किलोमीटर है. वर्ष 1951 में भारतीय रेल का नेटवर्क चीन की तुलना में 2.3 गुणा अधिक था, लेकिन आज चीन का नेटवर्क भारत से 1.6 गुणा बड़ा है.
रिपोर्ट का मानना है कि सड़क और रेल के आकार में समुचित परिवर्द्धन से लॉजिस्टिक खर्च में 10 फीसदी की कमी आयेगी, जिससे सकल घरेलू उत्पादन में बड़ी बचत होगी, व्यापार में 5-6 फीसदी की बढ़त होगी तथा विभिन्न उत्पादों के निर्यात में 100 से 120 फीसदी तक की वृद्धि होगी.
क्या आकांक्षा फिर निराशा में बदल सकती है?
जहां तक इंफ्रास्ट्रक्चर (रेल समेत) की बात है, भारत पारंपरिक तौर पर संभावनाओं का देश रहा है – बड़े-बड़े वादे और अनुपालन में निम्न स्तर. इस कारण वादों को लेकर शंका का वातावरण बना है.
लेकिन हमारा मानना है कि रेल के लिए अगले पांच-दस साल बहुत अलग होंगे, क्योंकि योजनाओं का पालन ठोस रूप से होगा. नयी समझ और प्रयास को देखते हुए हम चीन की ओर नजर कर सकते हैं, जहां सफलतापूर्वक योजनाएं लागू की गयी हैं. भारत अपने सकल घरेलू उत्पादन का 0.5 फीसदी खर्च करता है, जो चीन में 2004 में स्थिति थी.
चीन ने 2008 में यह अनुपात बढ़ा कर 1.3 फीसदी कर लिया. फिर कुछ कमी के बाद वह 2011-14 में 2008 के स्तर पर आ गया. वर्ष 2009-10 के उछाल के पहले चीन में 2004-08 के बीच जो हुआ, उसे हमने भारत में 2015-19 के बीच के लिए आदर्श माना है. सकल घरेलू उत्पादन में वृद्धि के आधार पर ही हमने 95 बिलियन डॉलर के खर्च का आकलन किया है. लक्ष्य के 75 फीसदी तक पूरा होने का हमारा आकलन योजना में मजबूत भरोसे का सूचक है.
पांच वर्षों (2015-19) की योजनाएं
-11,100 किमी रेलमार्गों के दोहरीकरण की योजना.
-4,000 किमी रेलमार्गों का होगा आमान परिवर्तन.
-17,200 किमी नयी रेल लाइनों को शुरू किया जायेगा.
-पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा की राजधानी अगरतला को बड़ी रेल लाइन से जोड़ने की तैयारी.
-मिजोरम और मणिपुर राज्य को बड़ी रेल लाइन से जोड़ा जायेगा.
-रेलवे ट्रांसमिशन नेटवर्क का विकास.
-10,000 रूट किमी नये रेलमार्ग के विद्युतकीरण की मंजूरी.
-40,000 रेल डब्बों में बायो-टॉयलेट का इंतजाम.
-मुंगेर में गंगा नदी पर पुल की शुरुआत. मोकामा के निकट राजेंद्र पुल के पास नये पुल को हाल ही में मंजूरी दी गयी, लेकिन इसका निर्माण कार्य 2019 के बाद ही पूरा होने की उम्मीद.

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