काठमांडो : अगले महीने होने वाली नेपाल के प्रधानमंत्री के. पी. ओली की भारत यात्रा से पहले वहां की सरकार ने वर्ष 1950 की रणनीतिक शांति एवं मैत्री संधि समेत भारत के साथ के वर्तमान द्विपक्षीय समझौतों की समीक्षा के लिए प्रतिष्ठित व्यक्तियों के चार सदस्यीय समूह के गठन का फैसला किया है.सूचना एवं संचार मंत्री शेरधन राय ने बताया कि सरकार ने कल मंत्रिमंडल की एक बैठक के दौरान प्रतिष्ठित व्यक्तियों के समूह के गठन के लिए चार व्यक्तियों के नामों का प्रस्ताव रखा है.
वैसे इस संबंध में कोई औपचारिक निर्णय नहीं हुआ. प्रधानमंत्री बनने के बाद ओली विदेश की अपनी किसी पहली यात्रा के रुप में भारत आएंगे. पूर्व वित्त मंत्री और भारत में नेपाल के पूर्व राजदूत भेष बहादुर थापा, जांच आयोग प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष सूर्य नाथ उपाध्याय, पूर्व संयुक्त राष्ट्र सहायक महासचिव कुल चंद्र गौतम और सीपीएन-यूएमएल सांसद राजन भट्टराई के नाम ईपीजी के लिए प्रस्तावित किए गए हैं. राय ने बताया कि अगली कैबिनेट बैठक में इस संबंध में औपचारिक निर्णय लिया जाएगा.
वर्ष 1950 की शांति एवं मैत्री संधि में दोनों देशों के बीच लोगों एवं सामानों की निर्बाध आवाजाही तथा रक्षा एवं विदेश नीति के मामलों में घनिष्ट संबंध एवं सहयोग की व्यवस्था है. ईपीजी गठन का प्रस्ताव ऐसे समय में आया है जब सरकार फरवरी के दूसरे सप्ताह में प्रधानमंत्री की प्रस्तावित भारत यात्रा की तैयारी में जुटी है. ओली की भारत यात्रा द्विपक्षीय संबंध में बड़ी असहजता के बीच हो रही है और इस असहजता की वजह भारतीय मूल के मधेसियों द्वारा महीनों से नेपाल पर लगायी गयी नाकेबंदी है. मधेसी नेपाल के नये संविधान का विरोध कर रहे हैं. जुलाई, 2014 में नेपाल भारत संयुक्त आयोग ने अपनी तीसरी बैठक में नेपाल के अनुरोध पर ईपीजी के गठन का फैसला किया था जिसमें दोनों पक्षों से चार चार सदस्य होंगे.
इस फैसले पर पिछले साल नरेंद्र मोदी की नेपाल यात्रा के दौरान भी मुहर लगी थी। समझा जाता है कि भारत पहले ही चार सदस्यीय ईपीजी बना चुका है. ईपीजी नेपाल भारत संबंध के पूरे दायरे पर गौर करने के लिए अधिकृत होगा. ईपीजी के पास किसी भी उस विषय पर समग्र रिपोर्ट देने के लिए दो साल का वक्त होगा जिसमें द्विपक्षीय संधियों के सिलसिले में संशोधन की जरुरत है.