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वास्तु सूत्र : इन उपायों से घर में आयेगा धन-वैभव
कुछ अति महत्वपूर्ण वास्तु के उपाय हैं, जिन्हें अपना कर हम अपने घर को सुखद और उन्नतिदायक बना सकते हैं. बता रहे हैं आचार्य अरुण. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार वास्तुशास्त्र मुख्य: तीन सिद्धांतों पर आधारित है. पहला सिद्धांत भोगद्यम है, जिसके अनुसार जिस परिसर में वास्तुशास्त्र का उपयोग करना है, वह आपको अपना उपयोग करने […]
कुछ अति महत्वपूर्ण वास्तु के उपाय हैं, जिन्हें अपना कर हम अपने घर को सुखद और उन्नतिदायक बना सकते हैं.
बता रहे हैं
आचार्य अरुण.
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार वास्तुशास्त्र मुख्य: तीन सिद्धांतों पर आधारित है. पहला सिद्धांत भोगद्यम है, जिसके अनुसार जिस परिसर में वास्तुशास्त्र का उपयोग करना है, वह आपको अपना उपयोग करने की इजाजत दे. दूसरा सिद्धांत है सुख दर्शम, सुंदर और सुखदायी हो.
इसका अर्थ उस स्थान के रंग, साज-सज्जा, खिड़कियों-दरवाजों की बनावट से है. तीसरा सिद्धांत है रम्या, जिसका संबंध फेरबदल करने के बाद वह स्थान व्यक्ति को कितना सुकून दे रहा है, इससे है. इसके अलावा दिशाओं से जुड़े वास्तुशास्त्र के कुछ अहम सूत्र हैं, जिन्हें जानना आवश्यक है.
– देवों के देव कहे जानेवाले इन्द्र देवता का स्थान पूर्वी दिशा में है. इसलिए वास्तुशास्त्र के मुताबिक जब लोग अपना घर बनाते हैं, तो उन्हें ध्यान देना चाहिए कि घर का मुख्य द्वार पूर्व दिशा में हो. यह दिशा सौभाग्य लाती है.
– घर को आयताकार बनाना चाहिए. उत्तर से दक्षिण की ओर लंबाई रखनी चाहिए. दक्षिण और पश्चिम में मकान ऊंचा रखें.
– यदि पूर्व में द्वार बनाते हैं, तो पूर्वी दीवार को नौ भाग में बांटना उचित है, बायें दो भाग को छोड़ कर शेष तीन भाग में कहीं भी द्वार बना सकते हैं.
– यदि उत्तर में द्वार हो तो दायें चार भाग छोड़ें और बायें से तीन भाग छोड़ कर बीच में शेष दो भाग में कहीं भी द्वार लगा लें. वहीं दक्षिण में बीचोबीच द्वार रख लें. पश्चिम में बायें दो भाग छोड़ कर शेष तीन भाग में द्वार बना सकते हैं.
– ऊपर की मंजिल सदैव ग्राउंड फ्लोर से कम ऊंची होनी चाहिए.
– धन के देवता कुबेर उत्तर दिशा के अधिपति हैं, इसलिए धन, संपत्ति आदि से जुड़ा कमरा और स्थान उत्तर दिशा में होना चाहिए, ताकि धन के आगमन को अपनी ओर आकर्षित किया जा सके.
– उत्तर-पूर्वी दिशा धर्म और न्याय के देवता का स्थान है. वास्तुशास्त्र के अनुसार ध्यान, पूजा-पाठ और बच्चों की पढ़ाई का स्थान इसी दिशा में होना चाहिए.
– अग्नि का स्थान दक्षिण-पूर्व में होता है, इसलिए मान्यता है कि रसोई या खाने बनाने का स्थान इसी दिशा में होना चाहिए.
– घर को कदापि मंदिर बनाने की कोशिश न करें. घर और मंदिर बिल्कुल अलग चीज हैं. घर में मात्र श्रीगणोश जी और श्रीलक्ष्मी जी की छोटी प्रतिमा रख सकते हैं.
– मकान में जल का बोरिंग या टंकी उत्तर या ईशान कोण में लगाएं.
– जल निकास किसी भी कीमत पर दक्षिण या आग्नेय कोण पर न करें.
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