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बिहार विधानसभा चुनाव तय करेगा नेता पुत्रों का भविष्य

पटना : कहा जाता है कि देश में राजनीतिक बदलाव की पहली बयार बिहार से ही बहती है. ऐसे में कहा जा रहा है कि बिहार विधानसभा चुनाव भविष्य की राजनीति तय करेगा. कहते हैं बिहार चुनाव में कई दिग्गज नेताओं के पुत्र इस बार अपनी किस्मत आजमाने उतर रहे हैं. राजनीति की राह पर […]

पटना : कहा जाता है कि देश में राजनीतिक बदलाव की पहली बयार बिहार से ही बहती है. ऐसे में कहा जा रहा है कि बिहार विधानसभा चुनाव भविष्य की राजनीति तय करेगा. कहते हैं बिहार चुनाव में कई दिग्गज नेताओं के पुत्र इस बार अपनी किस्मत आजमाने उतर रहे हैं. राजनीति की राह पर कई नये हैं तो कई कम अनुभवों के बावजूद भी बिहार चुनाव में पार्टी की दिशा तय कर रहे हैं. नेता पुत्रों की नयी पीढ़ी लीक से हटकर युवाओं को लुभाने और अपने प्रचार के लिए उन नये तरीकों से भी परहेज नहीं कर रहे हैं, जिससे पुरानी पीढ़ी अनजान है. लालू यादव के भैंस का तबेला अब हाइटेक हो चुका है.

सोशल मीडिया पर पार्टी का प्रचार जोरों से किया जा रहा है. लालू की सादगी को सोशल मीडिया की चासनी में डूबोकर नये अंदाज में पेश किया जा रहा है. राजनीतिक युद्ध में ये नये हथियार नयी पीढ़ी की ही देन है. कुल मिलाकर बिहार का विधानसभा चुनाव न सिर्फ बिहार के भविष्य की दिशा तय करेगा, बल्कि नेताओं की आने वाली नयी पीढ़ी पर भी मुहर लगाकर यह साफ कर देगा कि बिहार की राजनीति का भविष्य कौन होगा.

रामविलास पासवान के चिराग में है कितना दम

भारतीय जनता पार्टी से अलग होकर चल रही रामविलास पासवान की पार्टी लोकजनशक्ति पार्टी को एक बार फिर भाजपा के साथ लाकर खड़ा करने में चिराग पासवान की अहम भूमिका है. पार्टी अध्यक्ष रामविलास पासवान ने भी माना कि उनके बेटे चिराग पासवान के कहने पर ही उन्होंने भाजपा के साथ गंठबंधन का मन बनाया. रामविलास पासवान को उनके विरोधी अच्छा मौसम वैज्ञानिक कहते हैं, लालू यादव ने कई बार मीडिया से बातचीत के दौरान रामविलास को मौसम वैज्ञानिक की संज्ञा दी है. यह नाम उन्हें इसलिए दिया गया है क्योंकि पासवान जरूरत के अनुसार पाला बदलने में माहिर माने जाते हैं. उन्होंने कई बार ऐसे दल के साथ गंठबंधन किया जो सत्ता में आयी. अब चिराग पासवान में भी पिता के गुण दिखाये देने लगे हैं. उन्होंने समय रहते भाजपा के साथ गंठबंधन करके लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला लिया और आज बाप और बेटे दोनों सांसद है. रामविलास पासवान खाद्य और सुरक्षा मंत्रालय संभाल रहे हैं.

चिराग पासवान की दूरदर्शिता के कारण पार्टी आज राजग गंठबंधन के साथ केंद्र की सत्ता में है. अब बिहार विधानसभा चुनाव की कमान भी चिराग पासवान संभाल रहे हैं. सीटों का बंटवारा हो या उम्मीदवारों का एलान चिराग खुलकर मीडिया के सामने बयान दे रहे हैं. सगे संबंधी को टिकट देने का फैसला हो या टिकट ना मिलने के कारण सगे संबंधियो की नाराजगी सब पर चिराग अपनी बात रख रहे हैं. साफ है कि चिराग बिहार की राजनीति में भविष्य के नेता के रूप में उभर रहे हैं. हाल में ही एक सर्व में भी चिराग पासवान को युवा नेता में उच्च श्रेणी पर रखा गया था. पिछले कुछ सालों में न सिर्फ बिहार में बल्कि पूरे देश में उनकी लोकप्रियता बढ़ी है.

लालू के दो लाल क्या करेंगे कमाल?

राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव का व्यक्तित्व राजनीति में एक अलग ही स्थान रखता है. ठेठ गांव और गंवई अंदाज में वह अपनी बात रखते आये हैं. उनके दोनों बेटे तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव इस बार के विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. दोनों बेटों के टिकट का एलान कर दिया गया है. लालू यादव ने लोकसभा चुनाव के दौरान सोशल मीडिया पर होने वाले चुनावी प्रचार का मजाक उड़ाया था, लेकिन इस बार उनके दोनों बेटे सोशल मीडिया पर चुनावी कमान संभाले हुए हैं. लालू यादव के भैंस के तबले अब हाइटेक हो चुके हैं. सोशल मीडिया पर राजद को लाने का फैसला उनके दोनों बेटों का ही था. तेजस्वी कई जगहों पर अपने पिता के उत्तराधिकारी के रूप में रैली में उपस्थित रहे हैं. लालू यादव ने भी मीडिया में यह साफ कर दिया है कि अब उनकी जगह उनका बेटा तेजस्वी उनका उत्तराधिकारी होगा. लालू के बेटे तेजस्वी कई जगहों पर चुनावी रैलियों को भी संबोधित कर चुके हैं. पार्टी की अहम बैठकों में भी वह अपनी अहम भूमिका निभाते हैं. लालू ने तेज प्रताप को महुआ और तेजस्वी को राघोपुर से उतारा है. अगर उनके दोनों बेटे लालू की उम्मीदों में खरे उतरते हैं और जनता उन्हें पसंद करती है तो बिहार का भविष्य इन दोनों नेताओं के हाथ से भी आगे गढ़े जाने की संभावना है.

क्या मांझी की नैया पार लगायेंगे उनके बेटे?

हिंदुस्तान आवाम मोरचा के मुखिया जीतन राम मांझी को बिहार के मुख्यमंत्री पद की कुर्सी चंद महीनों के लिए नसीब हुई, फिर उन्हें कुर्सी से उतार दिया गया. कुर्सी छोड़ने के बाद मांझी बागी हो गये और जनता दल यूनाइटेड ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया. इस पूरी उथल-पुथल ने जीतन राम मांझी का कद बिहार में काफी बढ़ा दिया. मांझी के साथ हुए व्यवहार को दलितों के साथ किया गया दुर्व्यवहार बताया गया और मांझी धीरे – धीरे भाजपा के करीब आ गये. भाजपा भी दलित वोटों को समटने के चक्कर में मांझी को गले लगाना नहीं भूली. जीतन राम मांझी भी अपने छोटे बेटे संतोष कुमार सुमन का राजतिलक कर दिया है. उन्हें कुटुंबा से टिकट दिया गया है. हालांकि अन्य युवा नेताओं की तुलना में बिहार में संतोष की पहचान उतनी नही है. मांझी ने दूसरी पीढ़ी के रूप में अपने बेटे को आगे कर दिया है.

इसके अलावा भी कई नेता पुत्र हैं मैदान में

बिहार के पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह अपने बेटे अजय प्रताप और सुमित मैदान में हैं. हाल ही में आरजेडी से अलग हो चुके रघुनाथ झा अपने बेटे अजीत कुमार झा के लिए भी किसी सुरक्षित सीट की तलाश मेंहैं.सांसद जनार्दन सिंह बेटे प्रमोद सिग्रीवाल के लिए टिकट के जुगाड़ में है, तो शिवहर की सांसद रमा देवी अपनी बेटी रागिनी गुप्ता के लिए टिकट मांग रही है. भाजपा सांसद छेदी पासवान सासाराम की चेनारी सीट से अपने बेटे रवि के लिए टिकट मांग रहे हैं, इसके अलावा एक और नेता सी़पी़ ठाकुरके बेटे कोको भी भाजपा ने टिकट दिया है. इसके अलावा भाजपा के अश्विनी चौबे और सीपी ठाकुर के बेटों को भी टिकट दिया गया है. चौबे के बेटे अजीत शाश्वत चौबे भागलपुर से चुनाव लड़ेंगे.

कुल मिलाकर बिहार विधानसभा चुनाव में नेता अपनी दूसरी पीढ़ी को खड़ा करने में लगे हैं. कोई अपनी राजनीतिक विरासत उन्हें सौंप कर विधायक बनते देखना चाहता है तो कोई पार्टी की पूरी जिम्मेदारी देकर एक नया विकल्प कार्यकर्ताओं के लिए खड़ा करने में लगा है. बिहार का विधानसभा चुनाव कई मायनों में अहम है. बिहार के सभी दिग्गज नेता एक साथ ये मानते हैं कि यह सिर्फ बिहार का चुनाव नहीं है बल्कि पूरे देश का मुड इससे पता चलेगा. बिहार चुनाव पर नजदीक से नजर रखने वालों की मानें तो बिहार चुनाव नेता पुत्रों के भविष्य की दिशा भी तय करेगा.

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