– हरिवंश –
इकनोमिस्ट का अंक (28 जनवरी से 3 फरवरी) सामने है. एक युग के अवसान और एक नयी ताकत के उदय के संकेत देते हुए.
पत्र-पत्रिकाओं की भीड़ में द इकनोमिस्ट आज भी अलग खड़ा है. दुनिया में सर्वाधिक बिकनेवाली साप्ताहिक पत्रिका. हालांकि ऐतिहासिक कारणों से यह अपने को पत्रिका नहीं, अखबार मानता है. 1843 में इसका प्रकाशन शुरू हुआ. 2009 की सूचना के अनुसार फिलहाल इस पत्रिका के हर अंक की बिक्री16 लाख है. दुनिया के बदलाव की गति, संकेत व दिशा बतानेवाली पत्रिका. विचार, टिप्पणियों और विश्लेषण से संपन्न.
इस पत्रिका के अंक (28 जनवरी से 3 फरवरी ) में आमुख पर लिखा है. इंसाइड आवर न्यू वीकली सेक्शन आन चाईना (अंदर चीन के ऊपर हमारा खास हिस्सा). इस अंक में आमुख कथा भी चीन पर है. चाईना एंड द पाराडोक्स आफ प्रोसपेरिटी (चीन और संपन्नता का विरोधाभास). इस अंक में पहला संपादकीय (पेज-9) चीन पर ही है. इसमें बताया गया है कि 1942 में पहली बार हमने, यानी द इकनोमिस्ट ने सभी देशों के बीच से एक देश अमेरिका का चयन किया था.
वहां के बारे में विस्तार से खबरें (कवरेज) देने के लिए. चूंकि अमेरिका दुनिया की नयी महाशक्ति था. इस तरह इस पत्रिका के हर अंक में सिर्फ अमेरिका पर अधिक कवरेज होता था. दुनिया का अकेला देश, जिस पर इस पत्रिका का इतना कवरेज जाता था. क्योंकि वह सुपरपावर था. यह शुरूआत 1942 में हुई.
इस संपादकीय में बताया गया है कि 1942 से चली आ रही इस परंपरा (अमेरिका को खास कवरेज) को 2012 के इस अंक में द इकनोमिस्ट (28 जनवरी से 3 फरवरी) ने तोड़ा है. आगे से अब द इकनोमिस्ट के हर अंक में चीन पर भी व्यापक कवरेज होगा. द इकनोमिस्ट के अनुसार इसका मुख्य कारण है कि चीन अब एक आर्थिक महाशक्ति है. चीन बहुत तेजी से सैन्य महाशक्ति भी बन रहा है. यहां तक की अमेरिका को अस्थिर करने की क्षमता रखता है. इस तरह यह चीन आनेवाले समय में दुनिया को फेसीनेट (लुभायेगा) और एजीटेट (उद्वेलित) करेगा.
इस तरह अंतरराष्ट्रीय क्षितिज पर चीन का उदय हो चुका है. दुनिया की नयी महाशक्ति, आर्थिक शक्ति और सैन्य शक्ति के रूप में. दुनिया के रंगमंच पर. पिछले 20 वर्षों से चीन में सालाना 10 फीसदी से अधिक विकास दर दर्ज की है. दुनिया के आर्थिक विकास में यह अविश्वसनीय घटना है. इतना ही नहीं 44 करोड़ चीनी गरीबी रेखा से निकल गये. यह मानव इतिहास की अब तक की सबसे बड़ी घटना है. राज्य संचालित पूंजीवाद ने बाजार व्यवस्था (मार्के ट इकोनामी) को अपनाकर, दुनिया की आर्थिक प्रगति में एक नया अध्याय जोड़ दिया है.
90 के दशक में चीन के सार्वजनिक क्षेत्र के कल-कारखाने, किसी एक सामान्य सरकारी विभाग से अधिक हैसियत और पहचान नहीं रखते थे. आज चाईना सेंट्रल टेलीविजन का भवन 88 मंजिला है. दुनिया में अपने ढंग का अनूठा. चाईना मोबाईल के 60 करोड़ ग्राहक हैं. भारत के दूरदर्शन और बीएसएनएल की तुलना आप इनसे कर लीजिए. 2009 में चाइना मोबाइल और चाईना नेशनल पेट्रोलियम कारपोरेशन (सरकारी कंपनियां) ने 33 बिलियल डालर (लगभग 165000 करोड़ रु) मुनाफा कमाया. भारत में कौन-सी सरकारी कंपनी इस हाल में है? चीन की इंफ्रास्ट्रर कंपनियां पूरी दुनिया में कानट्रेक्ट और ठेके पा रही हैं या बोली या डाक में जीतती हैं.
दुनिया चीन के इस उभार से चमत्कृत है. सहमा भी. चीन की इफिशियेंसी (दक्षता, निपुणता, कौशल), मैनुफेरिंग कैपेसिटी (उत्पादन क्षमता) और अर्बन ट्रांसफारमिंग प्रोजेक्ट (नागर बदलाव योजना) से दुनिया हतप्रभ और स्तब्ध है. पिछले साल से चीन का भारत से बरताव, उसकी इस उभरती ताकत का संदेश रहा है. आक्रामक. बात-बात पर अपमानकारी रवैया और हाल में (28 जनवरी 2012 को) अरूणाचल पर चीन का दावा.
संक्षेप में कहें, तो चीन नयी महाशक्ति है और हम (भारत) कहां है? कोई मुकाबला है? क्या चीन के इस नये स्वरूप या रूप से हम वाकिफ भी हैं? महज तीस वर्षों में दुनिया का इतिहास पलट देने वाला मुल्क. 1989 में तियानमेन चौराहे पर चीनी छात्र भून दिये गये थे. तब लगा कि दुनिया में चीन अलग-थलग पड़ गया है. वह करवट नहीं ले पायेगा. उन्हीं दिनो देंग सियाओ पेंग ने दक्षिण चीन की यात्रा की. सेज (स्पेशल इकोनामिक जोन) की शुरूआत की.
यह घटना मास्टर स्ट्रोक थी. इसने आधुनिक चीन की नींव डाल दी. कम्युनिस्ट पार्टी ने सुधार और खुलेपन (रिफार्म एंड ओपेननेस) की शुरूआत की. घरेलू, सामाजिक, राजनीति और आर्थिक नीतियों को बदला. देंग ने माना, अगर आर्थिक संपन्नता नहीं आयी, तो चीन में भी साम्यवाद की कब्र बनेगी. इसलिए उनका नारा था, जब तक बिल्ली चूहे को पकड़ती है, तब तक इसका कोई अर्थ नहीं कि वह काली है या सफेद? इसका आशय था कि व्यवस्था, साम्यवादी हो या पूंजीवादी या बाजार व्यवस्था, कोई फर्क नहीं. मूल सवाल है कि इससे, समाज या देश संपन्न हो रहा है कि नहीं?
देंग ने समूचा साम्यवादी दर्शन ही बदल दिया. कहा, पावर्टी इज नाट सोशलिज्म. टू बी रिच इज ग्लोरियस (गरीबी समाजवाद नहीं है, संपन्न होना शानदार है, प्रतापी और यश का प्रतीक). इसका परिणाम हुआ कि 2011 आते-आते आज चीन में कोलोनेज सैंडर्स और केएफसी (केंटुकी फ्राइड चिकन), चेयरमेन माओ और चीन से अधिक लोकप्रिय और मशहूर है. देंग ने उन दिनों ही कहा था, लेट् सम पीपल गेट रिच फर्स्ट. यंग लीडिंग कैडर्स हैव राइजेन अप बाइ हेलीकाप्टर. दे शूड रियली राइज बाइ स्टेप बाइ स्टेप. (पहले कुछ लोगों को धनवान होने दो. पार्टी के नये युवा कार्यकर्ता हेलीकाप्टर से ऊपर उठ गये हैं. उन्हें एक-एक कदम करके आगे बढ़ना चाहिए). यानी देंग ने देखा कि उनकी पार्टी के लोग किस गति और तेजी से समृद्ध हुए. पर उनकी कामना थी, वे धीरे-धीरे समृद्ध होते.
बहरहाल चीन आज दुनिया की नयी और बड़ी ताकत है. इस ताकत की आराधना और स्तुति शुरू हो गयी है. विश्व रंगमंच पर. अमेरिका समेत बड़े यूरोपीय देश भी चीन से सहमने लगे हैं. पर चीन, भारत का पड़ोसी है. अतीत के कड़वे अध्याय को स्मरण कराता. आज भी देश के लिए सोचनेवाले 1962 की पराजय नहीं भूल पाते. भारत की मौजूदा स्थिति देखकर क्या लगता है?
भ्रष्टाचार, अक्षमता (इफिसियेंसी), युवकों का आदर्श विहीन होना, आर्थिक प्रगति की कम रफतार… हम कहां जा रहे हैं? क्या होंगे अभी? लगता है हम इतिहास बनानेवाले कौम नहीं हैं? छोटी-छोटी बातों में रस लेना, परनिंदा, परचर्चा में डूबना. अकर्म में रत. समय काटनेवाले लोग. क्या हम कोई इतिहास बनायेंगे? इस नये दौर में चीन की स्तुति होगी. आरती और पूजा भी, क्योंकि दुनिया शक्ति को ही पूजती है. शक्ति संचय के अलावा दुनिया में मजबूत होने का और कोई दूसरा रास्ता नहीं है.
हालांकि छात्र रहा, अर्थशास्त्र का, पर कविता और साहित्य ने पग-पग पर ताकत दी है. प्रिय कविताओं में से एक है, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की लंबी कविता. राम की शक्ति पूजा. आश्चर्य है कि यह कविता भी 23 अक्तू बर 1936 को एक दैनिक अखबार में छपी. इलाहाबाद से, भारत अखबार में.
साहित्य का आकलन सामाजिक पृष्ठभूमि में होना चाहिए. इस कविता का आकलन 1936 के भारत की स्थितियों से जोड़ कर करने से कवि की दूरदृष्टि (विजन) और सपने की झलक मिलती है. द्रष्टा कवि एक कमजोर गुलाम देश में कवि राम की शक्तिपूजा के बहाने संदेश देता है कि शक्ति संचय के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है. लंबी कविता है. एक जगह जांबवंत जी किंकर्तव्यविमूढ राम को कहते हैं.
शक्ति की करो मौलिक कल्पना, करो पूजन !
छोड़ दो समर जब तक न सिद्धि हो, रघुनंदन,
राम को यह शक्ति पूजा क्यों करनी पड़ी? क्योंकि दुर्गर, रावण से आमंत्रण पाकर उधर चली गयी थीं.
बोले रघुमणि – मित्रवर, विजय होगी न समर,
यह हीं रहा नर-वानर का राक्षस से रण,
उतरीं पा महाशक्ति रावण से आमंत्रण,
अन्याय जिधर है, उधर शक्ति
फिर आगे राम मानते हैं कि –
रावण, अधर्मरत भी, अपना, मैं हुआ अपर
यह रहा शक्ति का खेल समर, शंकर शंकर !
राम युद्ध से विरत होकर महाशक्ति की पूजा में लगते हैं. बड़ा मार्मिक वर्णन है. कई दिनों तक एक ही आसन पर पूजा करते हैं. पर दुर्गा पीछे से अर्घ्य पूजा के फूल चुरा लेती हैं. पर निश्चय के अडिग राम, राजीव नयन कहे जाने वाले राम! अपनी आंख रूपी दोनों नीलकमल लिए राम एक आंख चढ़ाने को तैयार होते हैं कि दृश्य बदल जाता है.
यह कविता एक प्रतीक है. अद्भुत है. एक कमजोर मानस के मुल्क में आत्मविश्वास पैदा करनेवाली कविता. एक गुलाम कौम को साबुत खड़ा होने के लिए ऊर्जा भरनेवाली कविता. यह प्रेरक कविता 1936 में लिखी गयी और छपी एक अखबार में.
आज की दुनिया में, 30 वर्षों में मुल्क अपनी तकदीर बदल रहे हैं. जिन तीस वर्षों में ही चीन नीचे से शिखर पर पहुंचा. उस दौर में हमारी यात्रा कैसी रही? प्राइवेट सेक्टर से बढ़े साफ्टवेयर उद्योग पर मत इतराइए. हमारे मुल्क के अखबार आज क्या कर रहे हैं? इस नयी महाशक्ति चीन के उदय के बारे में भारतीय राजनीति क्या कर रही है? याद रखिएगा, 1962 से ही भारत के बड़े भूभाग पर कब्जा कर चीन बैठा है. शायद तीसरी संसद ने शपथ ली थी कि भारतीय जमीन वापसी के बिना, चीन से रिश्ता नहीं. पर वही चीन अब अरूणाचल भी मांग रहा है. समय हो, तो इन सवालों पर जरूर सोचें.
दिनांक : 05.02.2012
