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एक साल में नरेंद्र मोदी सरकार के कामकाज का लेखा जोखा

प्रधानमंत्री की आधिकारिक वेबसाइट में बदलाव बतौर प्रधानमंत्री कार्यभार संभालने के तुरंत बाद नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री की आधिकारिक साइट को पूरी तरह परिवर्तित कर दिया. आज इस साइट से प्रधानमंत्री और उनके कार्यालय की तमाम गतिविधियों की विस्तृत जानकारी प्राप्त की जा सकती है. इस पर सोशल मीडिया में प्रधानमंत्री के अपडेट्स के लिए […]

प्रधानमंत्री की आधिकारिक वेबसाइट में बदलाव

बतौर प्रधानमंत्री कार्यभार संभालने के तुरंत बाद नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री की आधिकारिक साइट को पूरी तरह परिवर्तित कर दिया. आज इस साइट से प्रधानमंत्री और उनके कार्यालय की तमाम गतिविधियों की विस्तृत जानकारी प्राप्त की जा सकती है. इस पर सोशल मीडिया में प्रधानमंत्री के अपडेट्स के लिए भी जगह बनी हुई है. इतना ही नहीं, इस साइट के माध्यम से प्रधानमंत्री से संवाद भी कायम किया जा सकता है.
सरकार से जनता के सीधे संवाद के लिए वेबसाइट
सत्ता में दो महीने पूरे होने पर सरकार द्वारा शुरू किये गये पोर्टल ‘माइ गोव’ से देश की जनता सरकार के कामकाज की जानकारी प्राप्त कर सकती है और अपनी प्रतिक्रिया तथा सुझावों से सरकार को अवगत करा सकती है. इस वेबसाइट पर मोदी सरकार की हर योजना से संबंधित महत्वपूर्ण सूचनाएं उपलब्ध हैं और इसमें लोगों की सक्रिय भागीदारी के लिए पर्याप्त संभावनाएं हैं.
डिजिटल इंडिया कार्यक्रम
देश के कोने-कोने तक इंटरनेट पहुंचाने के संकल्प के साथ प्रधानमंत्री ने अपने स्वतंत्रता दिवस संबोधन में ‘डिजिटल इंडिया कार्यक्रम’ की घोषणा की थी. इस कार्यक्रम के तहत गांव-गांव तक ब्रॉडबैंड पहुंचाने के लिए परियोजनाएं चलायी जा रही हैं. इसमें 2019 तक 2.5 लाख गांवों और विद्यालयों तक ब्रॉडबैंड पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है. सूचना तकनीक के प्रसार के लिए चल रहे सभी कार्यक्रम डिजिटल इंडिया के अंतर्गत रखे गये हैं और इनका बजट 1.13 लाख करोड़ का है.
हर भारतीय के लिए डिजिटल क्लाउड
इस महत्वाकांक्षी योजना के तहत हर भारतीय के लिए एक डिजिटल लॉकर स्थापित किया जाना है, जहां उसके शैक्षणिक, आवासीय, स्वास्थ्य आदि से संबंधित प्रमाण-पत्र संग्रहित होंगे. इसके कार्यान्वयन के बाद लोगों को सरकारी दफ्तरों, कॉलेजों आदि में प्रमाण-पत्रों और दस्तावेजों की कॉपियां लेकर भाग-दौड़ नहीं करनी होंगी. यदि कोई छात्र किसी संस्थान में दाखिले के लिए आवेदन करेगा, तो उसे दस्तावेजों की प्रतियां नहीं देनी होंगी और वह संस्थान उस क्लाउड से वांछित दस्तावेज हासिल कर लेगा.
सरकार की ओर से सोशल मीडिया का भरपूर इस्तेमाल
प्रधानमंत्री, उनका कार्यालय और विभिन्न मंत्रलय सोशल मीडिया पर अपनी सक्रियता के जरिये लोगों से संवाद स्थापित करते रहते हैं. यह सर्वविदित है कि प्रधानमंत्री मोदी सोशल मीडिया में लंबे समय से सक्रिय हैं और उसे खूब पसंद करते हैं. इस माध्यम से न सिर्फ वे सूचनाओं और गतिविधियों की जानकारी नागरिकों तक पहुंचाते हैं, बल्कि लोगों की प्रतिक्रियाओं से भी अवगत होते हैं. डिजिटल इंडिया कार्यक्रम में उन्होंने सोशलमीडिया की कंपनियों से भी सहभागिता का आह्वान किया है.
‘अच्छे दिन’ के वादे के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सत्तारूढ़ हुई भाजपानीत एनडीए सरकार का एक वर्ष पूरा हो रहा है. एक वर्ष किसी सरकार के कामकाज के मूल्यांकन के लिए पर्याप्त वक्त नहीं होता, लेकिन इस अवधि में उसकी दिशा का आभास तो हो ही जाता है. मैन्युफैक्चरिंग, रक्षा, विदेश, सामाजिक सुरक्षा, जनता के साथ संवाद आदि कई ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें नयी सरकार ने सराहनीय कदम उठाये हैं और जन आकांक्षाओं को पूरा करने का भरोसा पैदा किया है. हालांकि अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में प्रगति बहुत संतोषजनक नहीं दिख रही है. निर्यात में कमी, कम निवेश आदि के साथ महंगाई का बढ़ना चिंता के सबब बने हुए हैं. आज से एक विशेष श्रृंखला में अगले कुछ दिनों तक हम बहुचर्चित मुद्दों पर मोदी सरकार के एक साल के कामकाज के आकलन का प्रयास करेंगे. आज कुछ महत्वपूर्ण नीतिगत फैसलों और ‘मेक इन इंडिया’ के तहत रक्षा क्षेत्र में उठे कदमों पर नजर.
‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम से बदलेगी देश की तसवीर
स्वच्छ भारत अभियान
देश में साफ-सफाई को प्रोत्साहित करने और स्वच्छता को जीवन-मूल्य बनाने के उद्देश्य से पिछले वर्ष गांधी जयंती के मौके पर शुरू किया गया स्वच्छता अभियान मोदी सरकार के सबसे सफल और चर्चित अभियानों में शामिल रहा है, जिसमें सरकार के साथ समाज और प्रत्येक नागरिक की सहभागिता और सक्रियता की जरूरत है. प्रधानमंत्री मोदी ने लाल किले से अपील की थी कि महात्मा गांधी की 150वीं वर्षगांठ यानी 2019 तकहमें पूरे देश से गंदगी मिटा देनी है. इस अभियान का सकारात्मक असर पूरे देश में अभी से दिखाई देने लगा है. इस महती योजना पर 1.96 लाख करोड़ खर्च होने का आकलन है, जो शौचालयों के निर्माण पर खर्च किये जायेंगे. इस खर्च को केंद्र और राज्य सरकारें मिल कर वहन करेंगी तथा इसमें निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की सहायता भी ली जायेगी. कॉरपोरेट सोशल रेस्पॉन्सिबिलिटी के तहत इस कार्यक्रम में धन देनेवाले औद्योगिक संस्थाओं को उस धन पर 100 फीसदी कर छूट का प्रस्ताव है. स्वच्छ भारत अभियान में पूर्ववर्ती निर्मल भारत अभियान का विलय कर दिया गया है. निर्मल भारत अभियान ग्रामीण क्षेत्र में स्वच्छता के लिए निर्दिष्ट कार्यक्रम था. प्रधानमंत्री मोदी की दृष्टि में यह अभियान, जिसकी सफलता के लिए इसमें हर भारतीय का शामिल होना आवश्यक है, महात्मा गांधी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होने के साथ भारत को एक स्वस्थ राष्ट्र बनाने के लिए जरूरी कदम भी है.
भारतीय अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए निवेश और रोजगार में बढ़ोतरी अनिवार्य शर्त हैं. पिछले कुछ वर्षो से भारत में विदेशी निवेश बहुत धीमा रहा है और मैन्युफैक्चरिंग तथा इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में वृद्धि संतोषजनक नहीं रही थी. स्वाभाविक रूप से इसका कुप्रभाव आर्थिक विकास पर पड़ रहा था. देश में युवाओं की निरंतर बढ़ती संख्या को रोजगार की जरूरत है, जिसके लिए देश में नये कल-कारखानों की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी. इन कठिनाइयों को रेखांकित करते हुए मोदी सरकार ने महत्वाकांक्षी ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम की शुरुआत की है. इसके तहत विदेशी निवेश को आकर्षित करने के उद्देश्य से लालफीताशाही रवैये, पुराने पड़ गये श्रम कानूनों तथा कराधान की जटिलता आदि से जुड़ी बाधाओं को दूर करने के लिए नीतियों और नियमों में तेजी से बदलाव किये जा रहे हैं. निरंतर विदेश यात्रओं में मोदी दुनिया से निवेश के लिए आह्वान कर रहे हैं. इन्हीं कोशिशों का नतीजा है कि वैश्विक वित्तीय संस्थाएं और जाने-माने विशेषज्ञ देश के आर्थिक विकास की दर में उल्लेखनीय बढ़ोतरी की संभावनाएं जता रहे हैं.
‘मेक इन इंडिया’ के तहत रक्षा क्षेत्र में की गयी कुछ बड़ी पहल
पिछले साल पंद्रह अगस्त को लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री ने महत्वाकांक्षी ‘मेक इन इंडिया’ की घोषणा की थी, जिसका उद्देश्य देश में मैन्युफैक्चरिंग को बड़े पैमाने पर बढ़ावा देना है. इस कार्यक्रम के अंतर्गत खास तौर पर रक्षा क्षेत्र में कई बड़ी पहल हुईं.
छह पनडुब्बियों का निर्माण
वर्ष 2007 से ही नौसेना के लिए युद्धक पनडुब्बियों की खरीद का प्रस्ताव लंबित था और पूर्ववर्ती सरकार अनेक कमेटियां बनाने के बावजूद पनडुब्बी निर्माताओं से प्रस्ताव आमंत्रित कर पाने में असफल रही थी. मोदी सरकार ने कार्यभार संभालने के साथ ही रक्षा-खरीद में त्वरित फैसले लेने का सिलसिला शुरू किया. इस दिशा में एक महत्वपूर्ण निर्णय छह युद्धक पनडुब्बियों को विदेशी निर्माताओं के सहयोग से भारत में ही किसी बंदरगाह पर बनाने का निर्णय लिया गया है. रक्षा मंत्रलय के अधिकारियों ने विभिन्न बंदरगाहों की क्षमता का जायजा लेना शुरू कर दिया है.
सात युद्ध पोतों का निर्माण
कई वर्षो की बातचीत के बाद यूपीए सरकार ने दक्षिण कोरिया से दो युद्धपोत खरीदने और तकनीक हस्तांतरण के बाद छह युद्धपोतों को भारत में ही निर्मित करने का करार किया था, लेकिन इस सौदे में बिचौलियों के शामिल होने के आरोपों के बाद इसे स्थगित कर दिया था. पिछले वर्ष नवंबर में मोदी सरकार ने गोवा शिपयार्ड को दक्षिण कोरियाई कंपनी से तकनीक लेकर सात युद्धपोतों को ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत बनाने का निर्देश दिया था.
हल्के उपयोगी हेलीकॉप्टर्स
भारतीय सेना को हल्के हेलीकॉप्टरों की बड़ी जरूरत है. अब तक हमारी सेना चीता और चेतक हेलीकॉप्टरों का उपयोग करती हैं, जो बहुत पुराने हैं और कई क्षेत्रों में उनकी सेवाएं ले पाना बहुत मुश्किल होता है. इस कमी को पूरा करने के लिए भारत और रूस में बातचीत अंतिम चरण में है. समझौते के तहत भारत अपने यहां 400 अत्याधुनिक रूसी केए-226 हेलीकॉप्टरों का निर्माण करेगा, जिसकी तकनीक रूस उपलब्ध करायेगा. इन हेलीकॉप्टरों को भारतीय सेना की खेप में शामिल किया जायेगा और शेष ईकाइयों को अन्य देशों को बेचा जायेगा. इस समझौते में एमआइ-17 मॉडल के मध्यम सैन्य हेलीकॉप्टरों के निर्माण का प्रस्ताव भी शामिल हो सकता है.
तोपों की खरीद और निर्माण
वर्ष 1987 में बोफोर्स की खरीद घोटाले के बाद भारत ने तोपों की खरीद नहीं की है. कारगिल युद्ध में बोफोर्स की कामयाबी के बावजूद सेना में तोपों की कमी है. वर्तमान सरकार ने इस ठहराव को तोड़ते हुए 814 तोपो ं की खरीद के बड़े प्रस्ताव को मंजूरी दी है. इस सौदे की कीमत करीब तीन बिलियन डॉलर है. इस सौदे के तहत 100 तैयार तोप आयात किये जायेंगे तथा शेष 714 को भारत में ही विदेशी कंपनी के सहयोग से तैयार किया जायेगा.
परमाणु पनडुब्बियों का निर्माण
हिंद महासागर में भारतीय नौसेना की उपस्थिति को मजबूती देने के इरादे से सरकार ने छह परमाणु पनडुब्बियों के निर्माण का निर्णय लिया है. नौसेना के पास परमाणु क्षमता से लैस अरिहंत श्रेणी की पनडुब्बियां और चक्र युद्धपोत है, जिसे रूस से लीज पर लिया गया है.
सात नये युद्धपोतों का निर्माण
हाल में सरकार ने प्रोजेक्ट 17ए के तहत सात नये युद्धपोतों के निर्माण का निर्णय लिया है. इनमें से चार का निर्माण मझगांव और तीन का कोलकाता में किया जायेगा. यहां युद्धपोत निर्माण की क्षमता है और कुछ समय पहले ही यहां तीन 6,100 टन भारी पोत तैयार किये गये हैं. परमाणु पनडुब्बियों और इन पोतों को बनाने में करीब एक लाख करोड़ रुपये भारत में खर्च होंगे.
मनोभावों में परिवर्तन स्पष्ट दिख रहा है
मई, 2014 में चर्चा के केंद्र में एक सरकार थी, जिसके पास इच्छाशक्ति का अभाव था और वह डूबने के कगार पर थी. आज वर्तमान सरकार की आलोचना यह है कि उसकी गति और भी तेज होनी चाहिए. सुर्खियों से घोटाले गायब हो गये हैं. मनोभाव में परिवर्तन स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है. दरअसल, मोदी ने जो बड़ा बदलाव लाया है, वह है निराशा के माहौल से निकल कर काम करने तथा उसके नतीजे को लेकर बनी बेसब्री है. बढ़ती महत्वकांक्षाओं से विभूषित, पर क्षमता की कमी से बाधित- जिसमें कौशल का अभाव और निजी तथा सार्वजनिक क्षेत्र की अपूर्णता भी शामिल हैं- तथा कुछ नहीं करने की अजीब धुन की भारत की वास्तविकता किसी भी सरकार के लिए चुनौती है, भले ही उसके पास स्पष्ट बहुमत ही क्यों न हो. अब तक मोदी ने लंबी दौड़ के लिए आधार तैयार किया है और गति पकड़ रहे हैं. विदेश नीति में तो उन्होंने जोरदार गति बनायी है, लेकिन भारत के भीतर उन्हें अभी कई अवरोधों का सामना करना पड़ रहा है- पुराने तौर-तरीकों को कायम रखने की चाहत रखनेवाली नौकरशाही, एक जिद्दी पुरानी व्यवस्था और न बदल सकनेवाले मीडिया का विद्वेष. इन चुनौतियों के मद्देनजर उनकी उपलब्धियां बहुत अच्छी हैं. पर, यह तो अभी शुरुआत है.
– स्वप्न दासगुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार
(लेखक के ब्लॉग पर जारी लेख का अंश)
कल्याणकारी तंत्र का भविष्य अनिश्चित
पिछले एक साल के दौरान मोदी सरकार का आर्थिक प्रदर्शन निराशाजनक रहा है. प्रधानमंत्री के भाषणबाजी के उलट सरकार ने शायद ही ऐसा कोई निर्णय लिया है, जिसे साहसी कहा जा सके. वृद्धावस्था पेंशन और बीमा जैसी हाल में की गयीं कुछ कल्याणकारी निर्णय जरूरी हैं. लेकिन यूपीए सरकार की योजनाओं की तुलना में ये प्रयास बेहतर नहीं हैं. सब्सिडी व्यवस्था में सुधार (पेट्रोल के अलावा, जो यूपीए सरकार के समय शुरू किया गया था) शुरू नहीं किये गये हैं. बेहतर कल्याणकारी राज्य के लिए आवश्यक आधार के जारी रहने को छोड़ दें, तो कल्याणकारी तंत्र का भविष्य अब भी अनिश्चित है.
गरीबी रेखा के अलावा विद्युत और इंफ्रास्ट्रक्चर समेत समावेशी सरकारी दिशा उचित है. लेकिन, सामाजिक क्षेत्र में खर्च के मामले में सरकार भ्रमात्मक प्रशासनिक और वित्तीय संकेत दे रही है. इससे उसके राजनीतिक प्रभाव पर नकारात्मक असर पड़ेगा. ग्रामीण क्षेत्रों में आय में ठहराव की मौजूदा स्थिति में ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना एक मात्र सरकारी पहल थी, जो कृषि-संकट को कुछ समय के लिए टाल सकती है. मांग में ठहराव है, और बिना ग्रामीण आय में वृद्धि के इसे बढ़ाया नहीं जा सकता है.
– प्रताप भानु मेहता, अध्यक्ष, सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च
(द इंडियन एक्सप्रेस में छपे लेख का अंश साभार)
नीतिगत स्तर पर की गयी दूरगामी पहल
मोदी सरकार ने पिछले एक वर्ष में नीतिगत स्तर पर कई ऐसे कदम उठाये हैं, जिनके सकारात्मक और दूरगामी परिणाम भारत की तसवीर बदल सकते हैं. कुछ प्रमुख और चर्चित पहल :
आर्थिक सुधारों और नीतियों के अमल पर बल
सत्ता में आने के साथ ही मोदी सरकार ने रक्षा और इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में अनेक ऐसे निर्णय लिये हैं, जो आनेवाले वर्षो में अर्थव्यवस्था में निर्णायक परिवर्तन का आधार बनेंगे. रक्षा के क्षेत्र में आयात में कटौती करने और देश में ही निर्माण गतिविधियों को बढ़ावा देने से खर्च में कमी आयेगी और आय भी बढ़ेगी. इसी तरह उच्च गति की रेल सेवा, औद्योगिक गलियारों, राजमार्गो का विस्तार और स्मार्ट शहरों की स्थापना जैसे निर्णय आर्थिक तरक्की की दिशा में उल्लेखनीय कदम हैं. सरकार का स्पष्ट मानना है कि बिना समुचित इंफ्रास्ट्रक्चर के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता है और न ही भारी मात्र में निवेश को आकर्षित किया जा सकता है. इसलिए इस दिशा में नीतिगत स्तर पर सुधार की दिशा में भी खासा जोर दिया जा रहा है.
योजना आयोग की जगह नीति आयोग
प्रधानमंत्री ने दशकों पुरानी संस्था योजना आयोग को समाप्त कर उसके स्थान पर नीति आयोग का गठन किया है. अब तक योजना आयोग ही सरकारी वित्त और योजनाओं का प्रबंधन और नियमन करता था. उसकी केंद्रीकृत व्यवस्था तथा अधिकारों की व्यापकता के कारण केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रलयों तथा राज्य सरकारों को अनेक शिकायतें थीं. इससे विकास पर पड़ रहे नकारात्मक असर और विकेंद्रीकरण की व्यवस्था के तहत राज्यों को अधिक अधिकार देने के इरादे से समावेशी और लोकोन्मुखी नीति आयोग की स्थापना की गयी है. इसका मुख्य काम योजनाओं और नीतियों से संबंधित सुझाव और समन्वय का है. हालांकि कुछ मामलों में नीति आयोग की भूमिका अभी स्पष्ट नहीं हो सकी है.
देश के पूवरेत्तर इलाके की संभावनाओं और क्षमता पर ध्यान
मोदी सरकार के दो बजटों में पूवरेत्तर के लिए अधिक धन का आवंटन, रेल व सड़क का विस्तार, उच्च शिक्षा और कौशल-विकास के संस्थान खोलना, नये टेलीविजन चैनल की शुरुआत जैसे कदमों से पूवरेत्तर को भारत के विकास से जोड़ने के एक नये अध्याय का सूत्रपात हुआ है. पूवरेत्तर के राज्यों में हर महीने एक केंद्रीय मंत्री का दौरा निर्धारित किया गया, ताकि वहां की समस्याओं का त्वरित समाधान हो सके.
नयी विदेश व्यापार नीति
मोदी सरकार ने 2015 से 2020 तक की पंचवर्षीय विदेश व्यापार नीति में ‘मेक इन इंडिया’ और ‘डिजिटल इंडिया’ जैसे महत्वपूर्ण अभियानों को जोड़ा है, ताकि निवेश, व्यापार और रोजगार-सृजन को बढ़ावा मिले. इसमें आगामी पांच वर्षो में वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात को दोगुना कर 900 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है. इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए अनेक नये प्रोत्साहनों और संस्थागत प्रणालियों की घोषणा की गयी है. इसी संदर्भ में अंतरराष्ट्रीय व्यापार में भारत की भागीदारी दो फीसदी से बढ़ाकर 3.5 फीसदी तक ले जाने के लिए सरकार शुल्कों और करों को तर्कसंगत बनाने पर भी विचार कर रही है.
विश्व व्यापार संगठन में सरकार का प्रतिबद्ध रवैया
देश में खाद्यान्न सुरक्षा कानून और विश्व व्यापार संगठन की शर्तो के बीच टकराव की स्थिति में मोदी सरकार का अडिग रवैया उसकी राजनीतिक इच्छाशक्ति और राष्ट्रीय हितों के प्रति ठोस प्रतिबद्धता का परिचायक है. पिछले वर्ष जुलाई में खाद्यान्न व्यापार को लेकर विभिन्न शर्तो पर गतिरोध बन गया था, पर अब भारत की बातें मान ली गयी हैं.

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