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दिवाली भारत की दौलतमंद हो रहा चीन

।। रमेश कुमार दुबे ।। दिवाली रोशनी का त्योहार है. इस दिन घरों ही नहीं, तमाम स्थानों की रोशनी से सजावट करने की परंपरा है. लेकिन इस मौके पर रोशनी के लिए अब चीन निर्मित सामानों का व्यापक इस्तेमाल होने लगा है. दिवाली पर पटाखे जलाने की परंपरा का भी चीन खूब लाभ उठा रहा […]

।। रमेश कुमार दुबे ।।
दिवाली रोशनी का त्योहार है. इस दिन घरों ही नहीं, तमाम स्थानों की रोशनी से सजावट करने की परंपरा है. लेकिन इस मौके पर रोशनी के लिए अब चीन निर्मित सामानों का व्यापक इस्तेमाल होने लगा है.
दिवाली पर पटाखे जलाने की परंपरा का भी चीन खूब लाभ उठा रहा है. दिवाली पर विभिन्न वस्तुओं के कारोबार में चीन में की बढ़ती हिस्सेदारी और इस मामले में भारत के पिछड़ने के कारणों सहित इसके विभिन्न पहलुओं पर नजर डाल रहा है आज का नॉलेज..
वैसे तो भारत में हर त्योहार का अपना खास महत्व है, लेकिन दिवाली को धूमधड़ाके के साथ मनाने की खास परंपरा रही है. कारोबार की दृष्टि से भी यह त्योहार अहम माना जाता है. यही कारण है कि दीपावली पर चीन में बने सामानों की धमक कुछ ज्यादा ही दिखाई देती है. पिछले कुछ वर्षो की तरह इस बार भी दिवाली पर बाजार चीन में बने सामानों से अटे पड़े हैं. लक्ष्मी-गणोश, उनके वस्त्र और श्रृंगार, डिजाइनर दीये, बिजली की लड़ियां समेत अन्य इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं से बाजार भरा पड़ा है.
चीनी माल सस्ता होने के कारण इनके खरीदारों की कमी नहीं है. तीज-त्योहारों पर चीन के बने सामानों कीबढ़ती घुसपैठ से चिंतित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने इस बार दिवाली पर चीनी सामानों के बहिष्कार का आह्वान किया है.
केंद्र सरकार ने भी पहली बार एक्सप्लोसिव एक्ट, 2008 के प्रावधानों का इस्तेमाल करते हुए विदेशी पटाखों की खरीद-बिक्री को दंडनीय बना दिया है. लेकिन, सरकारी प्रतिबंधों के बावजूद चीन के पटाखों की बिक्री धड़ल्ले से की जा रही है. गैर- कानूनी तरीके से भारत आने के कारण चीन में बने पटाखे असंगठित श्रेणी में बिक रहे हैं, जिसके कारण देसी पटाखों की बिक्री में गिरावट आयी है. चीन में बने सामानों की सबसे बड़ी विशेषता है कि ये बिना किसी गारंटी के आसानी से बिक जाते हैं.
‘यूज एंड थ्रो’ यानी ‘इस्तेमाल करो और फेंक दो’ की संस्कृति में चीन में बने सामान पूरी तरह फिट बैठ रहे हैं. यही कारण है कि दुकानदार द्वारा ‘बिके हुए सामान की कोई गारंटी नहीं’ का बोर्ड लगाये जाने के बावजूद खरीदारों की संख्या कम नहीं हो रही.
चीन के सामानों के भारतीय बाजारों में छा जाने की एक वजह हमारी खामियां भी हैं. भले ही हम देशभक्त होने का दम भरते हों, लेकिन एक ग्राहक के रूप में हमारा व्यवहार ठीक इसके उलट है. दुकानदार चीन में बने सामानों का कोई बिल नहीं देते और सामान के वापसी की गारंटी भी नहीं लेते, फिर भी ग्राहक इन सामानों की ज्यादा मांग करते हैं.
चीनी सजावटी सामान सस्ता और आकर्षक
देखा जाये तो चीन में बने पटाखों और सजावटी सामानों की लोकप्रियता का कारण उनका सस्ता और आकर्षक होना भी है. उदाहरण के लिए देश में बनने वाले ब्रांडेड और वैध पटाखों की तुलना में चीन में बने पटाखे सस्ते पड़ते हैं. यही कारण है कि चीन से आने वाले पटाखों को टक्कर देने के लिए पटाखों का अवैध निर्माण तेजी से फल-फूल रहा है. इसे विडंबना ही कहा जायेगा कि जहां चीनी पटाखों से भारतीय बाजार अटा पड़ा है, वहीं भारत से पटाखों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा है.
दूसरी बाधा यह है कि पटाखा उद्योग में इस्तेमाल किये जाने वाले कई रसायनों की खरीद पर रोक लगी है. गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने 1992 में एक अधिसूचना जारी कर ऐसे किसी भी तरह के विस्फोटक के उत्पादन, भंडारण, इस्तेमाल और खरीद-बिक्री को प्रतिबंधित कर दिया गया था, जिसमें क्लोरेट के साथ सल्फर या सल्फ्यूरेट का प्रयोग किया गया हो.
इसके बाद एक्सप्लोसिव एक्ट 2008 के तहत अब तक पटाखों के आयात के लिए लाइसेंस की मंजूरी नहीं दी गयी है. इसीलिए भारत में परंपरागत किस्म के पटाखे ही बनते हैं. दुनिया के बाजार में इन पटाखों की सीमित मांग है. सबसे बड़ी बात यह है कि देश में पटाखा बनाने का लाइसेंस हासिल करने की प्रक्रिया बहुत कठिन है. इसीलिए पटाखे बनाने का अवैध कारोबार तेजी से फल-फूल रहा है. यहां पर्यावरण से लेकर श्रम कानूनों तक का घोर उल्लंघन किया जाता है. समय-समय पर पटाखों की अवैध फैक्ट्रियों में होनेवाले विस्फोट इसके प्रमाण हैं.
चीन में पटाखा उद्योग को बढ़ावा
इसके विपरीत चीन में पटाखा उद्योग पर किसी प्रकार की कोई बंदिश नहीं है. वहां की सरकार दुनिया की बदलती मांग के अनुसार पटाखों के उत्पादन को बढ़ावा देती है, ताकि विदेशी बाजार पर कब्जा किया जा सके. इसी का नतीजा है कि चीन में सरकारी संरक्षण में पटाखा उद्योग दिन-दूनी रात-चौगुनी रफ्तार से प्रगति कर रहा है. चीन के पटाखा उद्योग का आकार 30,000 करोड़ रुपये है और वह दुनिया का सबसे बड़ा पटाखा उत्पादक देश है.
सबसे बड़ी बात यह है कि यहां पटाखा की घरेलू खपत नाममात्र की है और कुल उत्पादन का 95 फीसदी निर्यात किया जाता है. इससे सालाना 5,000 करोड़ रुपये की आमदनी होती है. इससे स्पष्ट है कि चीन के लिए पटाखा उद्योग दुधारू गाय की तरह है.
पटाखों की काशी शिवकाशी
तमिलनाडु के शिवकाशी जिले को ‘पटाखों की काशी’ के नाम से पुकारा जाता है. इसका कारण है कि यहां पूरे देश में बिकने वाले 90 फीसदी पटाखों और 75 फीसदी माचिस यानी दियासलाई का उत्पादन होता है. यहां के हर गली-मुहल्ले और गांव में पटाखे बनाने का कारोबार होता है. इस काम के लिए यहां का सूखा मौसम मुफीद है. जिले में चार लाख लोग इस कारोबार में जुड़े हैं, जिनमें एक बड़ी संख्या महिलाओं और बच्चों की है. लेकिन चीन के सस्ते पटाखों ने शिवकाशी की रंगत को फीका कर दिया है. यहां के पटाखा उत्पादक सरकार से लंबे समय से मांग कर रहे हैं कि चीनी पटाखों पर प्रतिबंध लगाया जाए.
दीवाला निकलता भारत का
भले ही भारत-चीन सीमा पर तनातनी कभी कम नहीं होती, लेकिन दोनों देशों के बीच कारोबार तेजी से बढ़ रहा है. इस कारोबार से भारत को मोटी चपत लग रही है. चीन भारत से सस्ती कच्ची सामग्री आयात कर उससे उत्पाद तैयार कर भारतीय बाजारों में पाट रहा है और हम हैं कि चीन के सस्ते माल से खुशहाली आने का ख्वाब देख रहे हैं.
इसे विडंबना ही कहा जायेगा कि दिवाली हम मनाते हैं और जीडीपी चीन की बढ़ती है. यह स्थिति केवल पटाखों तक सीमित नहीं है. आज जीवन का शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र हो जहां चीन में बने सामानों ने घुसपैठ न की हो. पतंग, मंझा, अगरबत्ती, माचिस, घड़ी, बैटरी, कैलकुलेटर, साइकिल, चॉकलेट, ट्रांजिस्टर, बल्ब, पंखा, तार, फैंसी सामान, ताला, खिलौने, रेडिमेड वस्त्र जैसे हजारों उत्पाद हैं, जो भारत के गांवों से लेकर महानगरों तक के बाजारों में छाये हुए हैं. भारत में विदेशी सामानों की मांग हमेशा से रही है. ताइवान, जापान, कोरिया के सस्ते सामानों की भारतीय बाजार में मौजूदगी तो लंबे समय से रही है, लेकिन हाल के वर्षो में चीन ने इन सबको पछाड़ दिया है.
दरअसल, अनुकूल सरकारी नीतियों, मुद्रा अवमूल्यन, निर्यात सब्सिडी जैसी सुविधाओं के कारण चीनी वस्तुएं स्थानीय वस्तुओं की तुलना में सस्ती पड़ रही हैं. चीन के इस आर्थिक हमले का अध्ययन करने के लिए भारत सरकार ने एक समिति का गठन किया था. इस समिति के मुताबिक, देश का 26 प्रतिशत औद्योगिक उत्पादन चीन से आयातित इनपुट पर निर्भर हो चुका है. बिजली, दवा, दूरसंचार और सूचना तकनीक के क्षेत्रों में तो उसका हस्तक्षेप चिंताजनक स्तर तक बढ़ गया है. समिति के अनुसार, अगले पांच सालों में चीन हमारे 75 प्रतिशत विनिर्माण उत्पादन को नियंत्रित करने लगेगा.
समिति का निष्कर्ष है कि भारत में दूरसंचार उद्योग अपनी जरूरत के 50 प्रतिशत उपकरण आयात करता है, जिसमें चीन का हिस्सा 62 प्रतिशत है.
ऊर्जा क्षेत्र में भी चीन का दबदबा
बिजली परियोजनाओं में इस्तेमाल किया जाने वाला एक-तिहाई ब्वॉयलर व टरबाइन जेनरेटर चीन से आ रहा है, जो भारत के मुकाबले 20 फीसदी तक सस्ते बताये जाते हैं. दूरसंचार और बिजली के क्षेत्र में चीन के हस्तक्षेप को लेकर भारत में सुरक्षा से जुड़ी चिंता बढ़ गयी है. यही चिंता सूचना तकनीक उत्पादों को लेकर भी है, जिनके आयात का आकार 2020 तक पेट्रोलियम आयात से ज्यादा हो जायेगा. चीन इन उत्पादों का दुनिया में सबसे बड़ा निर्यातक है. जैसे-जैसे चीन निर्मित वस्तुएं भारतीय बाजार पर आधिपत्य जमाती जा रही हैं, वैसे-वैसे भारत का व्यापार घाटा बढ़ता जा रहा है. 2001-02 में चीन से होने वाला व्यापार घाटा एक अरब डॉलर था, जो 2013-14 में बढ़ कर 35 अरब डॉलर हो गया.
आखिर चीन से क्यों पिछड़ा भारत!
यहां सबसे अहम सवाल यह है कि चीन जैसी परिस्थितियों वाला देश भारत दिवाली के बाजार में हिस्सेदारी रेस में पिछड़ क्यों रहा है. इसका कारण यह है कि दुनिया की बदलती मांग के अनुरूप हम खुद को बदल पाने में नाकाम रहे हैं. चीन ने दुनिया के बाजारों पर कब्जा करने के लिए सुनियोजित रणनीति तैयार की. सबसे पहले उसने विभिन्न देशों के बाजारों से निकलनेवाली मांग का अध्ययन किया और फिर देशभर में पांच लाख से अधिक औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आइटीआइ) की स्थापना की और इन्हें हर प्रकार की सुविधा मुहैया करायी गयी. इन आइटीआइ में बदलते समय के अनुसार शिक्षण-प्रशिक्षण की व्यवस्था की गयी, जिससे यहां के कामगार दुनिया का सबसे सस्ता सामान बनाने में सफल हुए.
भारत में लचर औद्योगिक प्रशिक्षण
दूसरी ओर भारत में औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आइटीआइ) की संख्या मात्र 8,000 है. इनमें से 53 प्रतिशत आइटीआइ तो पिछले पांच वर्षो में खुले हैं. कई राज्य आइटीआइ फंड की कमी से जूझ रहे हैं और प्रशिक्षित ट्रेनरों का अभाव है. हमारे यहां पाठ्यक्रम उपकरणों की बदलती जरूरतों के अनुरूप न होकर बाबा आदम के जमाने के हैं. राज्य सरकारें भी आइटीआइ और इसके जरिये श्रम कौशल को विकसित करने में कोई रुचि नहीं ले रही हैं.
यही कारण है कि भारतीय श्रमिक बल में प्रत्येक वर्ष जुड़ने वाले करीब 1.28 करोड़ नये लोगों में 80 प्रतिशत को कौशल प्रशिक्षण का कोई अवसर नहीं मिलता है. आज जरूरत इस बात की है कि आइटीआइ से जुड़ी विधाओं में कामगारों की संख्या बढ़ाई जाए. ज्यादा चिंता की बात यह है कि केवल दो प्रतिशत कार्यबल को कौशल प्रशिक्षण हासिल है. इसी का परिणाम है कि एक ओर देश में बेरोजगारी चरम पर है, तो दूसरी ओर कुशल श्रमिकों की भारी कमी है. निजी क्षेत्र कौशल विकास पर अपनी ओर से पहल नहीं कर रहा है. वह औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों के सहारे कुशल श्रमिकों की मांग पूरी होने की उम्मीद कर रहा है.
आबादी को संपदा बनाने में अक्षम रहा देश
भारत में दूसरी गलती यह हुई कि उसने विकास की प्रक्रिया में अपनी विशाल आबादी को संपत्ति के बजाय विपत्ति समझा और लगातार ऐसे मशीनी विकास को बढ़ावा दिया, जिसमें मानव श्रम की भूमिका गौण होती गयी. उदारीकरण के दौर में भारत ने कृषि आधारित अर्थव्यवस्था से सेवा कें द्रित अर्थव्यवस्था में छलांग लगा दी, जबकि आधुनिक विश्व में आर्थिक विकास का पहिया कृषि, विनिर्माण से होते हुए सेवा क्षेत्र तक पहुंचा. यह कहा गया कि सेवा क्षेत्र से पैदा हुई समृद्धि जब नीचे तक पहुंचेगी तो गरीबी, बेरोजगारी, असमानता, कृषि पर जनभार जैसी समस्याओं का खुद ही समाधान हो जायेगा.
लेकिन हमारे यहां रिसन का सिद्धांत वाष्पन में बदल गया और गरीबी के समुद्र में अमीरी के टापू उतराने लगे. इसके अलावा, विकास प्रक्रिया के कुछेक क्षेत्रों और महानगरों तक सिमटे रहने के कारण ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन को बढ़ावा मिला.
आर्थिक अनुशासन से बढ़ा चीन
भारत ने चीन से मुकाबला करने की तैयारियां भी खूब की, लेकिन बिजली, सड़क, भूमि अधिग्रहण, पर्यावरणीय मंजूरी, कानून-व्यवस्था जैसे मोरचों पर हम पिछड़ते गये. दूसरी ओर चीन ने पूरे देश में आर्थिक अनुशासन लागू किया और लघु उद्योगों और उत्पादकों को कच्चा माल से लेकर बिक्री तक सारी जरूरी सुविधाएं मुहैया करायी. उदाहरण के लिए चीन में किसी भी औद्योगिक इकाई को 48 घंटे में जमीन का पट्टा मुहैया करा दिया जाता है और उसके 24 घंटे के भीतर बिजली का कनेक्शन. लेकिन हमारे यहां इसमें वर्षो लग जाते हैं. स्पष्ट है जब तक भारत अपने उत्पादकों को हर प्रकार की सुविधाएं मुहैया नहीं करायेगा, तब तक चीन में बने सामानों की घुसपैठ नहीं थमेगी.

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