छोटी-छोटी वस्तुएं हमें कितनी गहरी सीख दे सकती हैं, इसका हम अंदाजा ही नहीं लगा पाते. पिछले दिनों मैंने इस कहानी को पढ़ा. यह कहानी है तो बहुत साधारण-सी, लेकिन अगर इन बातों को हम अपने जीवन में लागू कर लें, तो कई परेशानियों से हमें निजात मिल सकती है.
एक बालक ने अपनी मां को कुछ लिखते देखा, तो उसने पूछा, ‘मां आप पेंसिल से क्यों लिख रही हैं? पेन से क्यों नहीं लिखतीं?’ मां ने उसे बड़े प्यार से कहा, ‘बेटा पेंसिल से लिखना मुङो पसंद है. इसके कई गुण हैं.’ बालक चौंका और बोला, ‘लिखने के अलावा भला इस साधारण-सी दिखनेवाली पेंसिल में क्या गुण है?’ मां बोली, ‘यह जीवन से जुड़ी कई अहम सीखें हमें देती है. इसके पांच गुण तुम अपना लो, तो इस संसार में शांतिपूर्वक रह सकोगे.
मां ने कहा, यह हमें सीख देती है कि तुम्हारे भीतर बड़ी-से-बड़ी उपलब्धि हासिल करने की योग्यता है, लेकिन तुम्हें सही दिशानिर्देश चाहिए. पेंसिल तभी अच्छी तरह लिख सकेगी, जब उसे दिशा सही मिलेगी. ठीक इसी तरह मनुष्य भी है. हमें वह दिशानिर्देश ईश्वर देगा. वह हमेशा हमें अच्छी राह पर चलायेगा. दूसरा गुण- बेटा, लिखते-लिखते बीच में रुकना पड़ता है. पेंसिल की नोंक को पैना करना पड़ता है.
इससे इसे कष्ट होता है, लेकिन यह अच्छा लिख पाती है. इसलिए अपने दुख, हार को धैर्य से सहन करो. साथ ही समय-समय पर अपनी क्षमताएं जांचो. अगर लगे कि कोई चीज सीखने की जरूरत है, तो उसे सीख लो और अपनी प्रतिभा को पैना करो. तीसरा गुण- पेंसिल गलतियां सुधारने के लिए रबड़ के प्रयोग की इजाजत देती है. इसलिए कोई गलती हो, तो उसे सुधार लो. याद रहे, गलती तो हर कोई करता है, लेकिन समझदार वही है, जो इस गलती को स्वीकारे और इसे जल्द-से-जल्द सुधार ले. चौथा गुण- पेंसिल में महत्व बाहरी लकड़ी का नहीं, अंदर मौजूद ग्रेफाइट का है. इसलिए अपने बाहरी रूप से ज्यादा गौर अपने भीतर चल रहे विचारों पर गौर करें. पांचवा गुण- पेंसिल हमेशा निशान छोड़ जाती है. तुम भी अपने कामों से अच्छे निशान छोड़ो.’
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