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हूटिंग मामला : यह अनुशासनहीनता है

अनुज कुमार सिन्हा भाजपा के कुछ अति उत्साही कार्यकर्ताओं ने अपनी करतूत से अपनी ही पार्टी, अपने ही नेताओं के सामने गंभीर संकट पैदा कर दिया है. गुरुवार को रांची में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जब बोल रहे थे, उनकी हूटिंग की गयी. नारेबाजी की गयी. मंच पर प्रधानमंत्री […]

अनुज कुमार सिन्हा

भाजपा के कुछ अति उत्साही कार्यकर्ताओं ने अपनी करतूत से अपनी ही पार्टी, अपने ही नेताओं के सामने गंभीर संकट पैदा कर दिया है. गुरुवार को रांची में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जब बोल रहे थे, उनकी हूटिंग की गयी.

नारेबाजी की गयी. मंच पर प्रधानमंत्री और कई केंद्रीय मंत्री थे. खुद नरेंद्र मोदी ने हुड़दंग करनेवालों को मना किया. मुख्यमंत्री मंच पर बगैर किसी प्रतिक्रिया के, संयमित तरीके से बोलते रहे. प्रतिक्रिया बाद में आने लगी. इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि यह सरकारी कार्यक्रम था, जिसमें पार्टी के कार्यकर्ताओं की बड़ी भागीदारी थी. लेकिन कार्यकर्ताओं ने मर्यादा का उल्लंघन किया.

वहां हेमंत सोरेन नहीं बोल रहे थे, झारखंड के मुख्यमंत्री बोल रहे थे, राज्य का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. इस दौरान उन्हें बोलने से रोकना, हूटिंग करना सिर्फ शिष्टाचार का उल्लंघन नहीं है, बल्कि घोर अनुशासनहीनता है. हो सकता है कि भाजपा के नेता यह दलील दें कि हुड़दंग करनेवाले उनकी पार्टी के कार्यकर्ता नहीं थे, लेकिन कौन इस पर विश्वास करेगा? हरियाणा में भी ऐसी ही घटना घटी थी. रांची में भी आशंका थी. आशंका सही साबित हुई.

भले ही चंद कार्यकर्ताओं ने ऐसी हरकत की, सीमा को लांघा, लेकिन इसके दूरगामी असर दिखेंगे. देश के फेडरल स्ट्रर पर यह आघात है. ऐसी घटनाओं से इस बात की आशंका है कि भविष्य में जहां-जहां गैर-भाजपा या गैर-एनडीए की सरकार है, वहां प्रधानमंत्री के सरकारी कार्यक्रम में उन राज्यों के मुख्यमंत्री मंच पर न जायें. नागपुर में प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में मुख्यमंत्री का न जाना इसी बात को पुष्ट करता है. हर राज्य में अगर ऐसा ही होने लगे, तो देश का यह दुर्भाग्य होगा. भाजपा अगर समय रहते इस कमी को दूर नहीं करती है, तो संकट में फंस सकती है.

ठीक है, कार्यकर्ता उत्साहित होते हैं, लेकिन राजनीति में ऐसी अनुशासनहीनता स्वीकार्य नहीं है. कार्यकर्ता अगर अधैर्य होने लगें, असंयमित होने लगें, अनुशासनहीन होने लगें, अनियंत्रित होने लगें, तो इसे ठीक करने का काम नेताओं का है. अभी झारखंड में चुनाव होनेवाला है.

ऐसी घटनाओं से राजनीतिक टकराव की आशंका बढ़ सकती है. किसी दल की नीतियों से आपके वैचारिक मतभेद हो सकते हैं, लेकिन उसका विरोध करने का तरीका होता है. वह डेमोक्रेटिक तरीका होता है. समय और स्थान का ख्याल किया जाना चाहिए. हरियाणा, झारखंड की घटनाओं की अगर देश के उन राज्यों में प्रतिक्रिया होने लगे, जो गैर-एनडीए शासित राज्य हैं, तो क्या होगा. अराजकता फैलने लगेगी.

केंद्र में भाजपा अब सत्ता में है. अन्य राजनीतिक दलों से स्वयं को भाजपा अलग मानती रही है, लेकिन तमाम कमियां अब भाजपा में भी दिख रही हैं. झारखंड में बड़ी संख्या में दूसरे दलों से नेता-कार्यकर्ता भाजपा में आ रहे हैं. हो सकता है कि इसका क्षणिक लाभ (लहर बनाने में) भले दिख रहा हो, लेकिन इन सबों को नियंत्रित करना भाजपा के नेताओं के लिए बड़ी चुनौती साबित होने जा रही है. आज की घटना ने एक नया विवाद पैदा कर दिया है.

झामुमो आंदोलन से उपजा एक संघर्षशील दल है. हो सकता है कि इस घटना की प्रतिक्रिया में भविष्य में झामुमो उग्र तेवर के साथ इसका जवाब देने के लिए उतर जाये. अगर ऐसा होता है, तो चुनाव में असली मुद्दे गौण हो जायेंगे और टकराव-संघर्ष की राजनीति आरंभ हो जायेगी. यह राज्य के हित में नहीं होगा.

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