<figure> <img alt="निर्मला सीतारमण" src="https://c.files.bbci.co.uk/1297F/production/_110795167_gettyimages-1197905257.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने हालिया बजट में सरकारी कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) का आईपीओ लाने की घोषणा की है.</p><p>सरकार ने ये क़दम साल 2020- 21 में अपने विनिवेश लक्ष्य 2.11 लाख करोड़ को ध्यान में रखते हुए उठाया है. कुछ विश्लेषक इसे सरकार का साहसी क़दम बता रहे हैं लेकिन एलआईसी के कर्मचारी सरकार के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ हैं. बीते मंगलवार को उन्होंने इस मुद्दे पर अपना विरोध जताया.</p><p>पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने भी कहा है कि अगर सरकार ये कहती है कि हम पैसा जुटाने के लिए एलआईसी का विनिवेश करना चाहते हैं तो हम इसका विरोध करेंगे. लेकिन ये पहला मौक़ा नहीं है जब किसी सरकार को विनिवेश का फ़ैसला लेने पर विरोध का सामना करना पड़ा हो. </p><p>इससे पहले मनमोहन सिंह सरकार ने भी जब-जब ऐसे फ़ैसले लेने की कोशिश की तो उन्हें भी विरोध का सामना करना पड़ा. इस नीति के इतिहास में देखें तो ब्रिटेन की पूर्व प्रधानमंत्री मार्गरेट थेचर को भी अपनी विनिवेश नीति को लेकर विरोध का सामना करना पड़ा था. लेकिन जानकारों की मानें तो थेचर के उस फ़ैसले ने ही ब्रितानी अर्थव्यवस्था को भारी नुक़सान से बचाया था.</p><p>ऐसे में वर्तमान सरकार के फ़ैसले को लेकर भी पक्ष और विपक्ष की ओर से कई तर्क आ रहे हैं. लेकिन इन तर्कों के बीच इंटरनेट पर लोग इस विषय से जुड़े मूल सवालों के जवाब तलाश रहे हैं.</p><p><strong>बीबीसी संवाददाता अनंत प्रकाश </strong>ने इस मुद्दे पर <strong>आर्थिक मामलों की जानकार</strong><strong> पूजा मेहरा </strong>से बात की. पढ़िए उनका नज़रिया. </p><figure> <img alt="एयर इंडिया" src="https://c.files.bbci.co.uk/1779F/production/_110795169_gettyimages-1167644700.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p><strong>पढ़िए पूजा मेहरा का नज़रिया</strong><strong>..</strong></p><p>सरकार अपनी कंपनियां क्यों बेचती है? इसके तीन प्रमुख कारण हैं. एक कारण यह है कि कुछ कंपनियां ऐसी होती हैं जिन्हें निजी क्षेत्र बहुत बेहतर ढंग से चला सकता है और सरकार को इन कंपनियों को चलाने की ज़रूरत नहीं होती है. उदाहरण के लिए, मॉडर्न ब्रेड नाम की एक सरकारी कंपनी हुआ करती थी. लेकिन जब कई अन्य छोटी-बड़ी कंपनियां भी ब्रेड बना रही हैं तो सरकार को ब्रेड बनाने की ज़रूरत नहीं है.</p><p>दूसरा कारण ये है कि सरकार अपनी संरचना और काम करने के ढंग की वजह से कुछ कंपनियों की हालत ख़राब कर देती है. </p><p>इसका सबसे ताज़ा उदाहरण एयर इंडिया है. जब तक टाटा समूह इस कंपनी को चलाया करता था तब तक इसे विश्व की सर्वोत्तम एयरलाइंस कंपनियों में से एक माना जाता था. लेकिन आज हालत ये है कि कोई इसे ख़रीदने को तैयार नहीं है. सरकार को ये कंपनी बेचने के लिए एक बार फिर कोशिश करनी पड़ रही है.</p><p>तीसरा कारण ये है कि सरकार के पास अपनी योजनाओं आदि को सुचारू ढंग से चलाने के लिए पर्याप्त धन नहीं होता है तो सरकार अपनी कंपनियों की हिस्सेदारी बेचकर पैसे हासिल करती है. </p><p>इसका ताज़ा उदाहरण एलआईसी है. सरकार एलआईसी में पांच से दस फ़ीसदी हिस्सेदारी का आईपीओ लॉन्च कर सकती है.</p><p>अब सवाल उठता है कि क्या सरकारी कंपनियों का बिकना घर के गहने बिकने जैसा है? </p><p>ये विनिवेश को समझाने का एक बहुत ही ग़लत उदाहरण है. ये एक राजनीतिक बयान है. </p><p>अगर एलआईसी को लेकर बात की जाए तो सरकार ने इसका आईपीओ लाने का ऐलान किया है. ऐसा होने पर आम लोग एलआईसी का शेयर ख़रीदकर अपना लाभांश हासिल कर सकते हैं. इस कंपनी के लिस्ट होने की वजह से इसके बाज़ार मूल्य में वृद्धि होगी. आने वाले सालों में कंपनी के लाभ कमाने पर शेयरों के दाम बढ़ने की संभावना भी है. </p><figure> <img alt="एलआईसी" src="https://c.files.bbci.co.uk/4307/production/_110795171_gettyimages-1198176332.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h1>कंपनी बेचने की नीति क्या है?</h1><p>एक अन्य उदाहरण सरकारी बैंकों का है, सरकार ने एसबीआई के शेयर आम शेयर धारकों के लिए खोले हैं. ऐसे में क्या एसबीआई सरकारी बैंक नहीं रही है. या इससे बैंक को फ़ायदा नहीं हुआ? या कंपनी के लाभ कमाने की स्थिति में सरकार को कोई फ़ायदा नहीं होगा?</p><p>ऐसे में ये बात बिलकुल ग़लत है कि ये घर के गहने बेचे जाने जैसा मामला है. </p><p>सरकारी कंपनियां बेचने को लेकर सरकार की अपनी विशेष नीतियां हैं. सरकार के पास अलग-अलग समय पर बनाई गईं तमाम कंपनियां हैं. इनमें से कई कंपनियां बेहतर ढंग से चल रही हैं. वहीं कुछ कंपनियों की आर्थिक हालत समय के साथ ख़राब हो चुकी है. </p><p>नब्बे के दौर में जब उदारवाद की शुरुआत हुई थी तो सरकार ने गीता कृष्णन आयोग का गठन किया था. इस आयोग ने सरकारी कंपनियों को अलग-अलग श्रेणियों में बांटा था. एक श्रेणी उन कंपनियों की थी जो लगातार घाटे में चल रही थीं. </p><p>वहीं, कुछ कंपनियां ऐसी थीं जिनमें कंपनियां और उत्पादन बंद हो चुका है लेकिन दफ़्तर चल रहे हैं. लोग काम नहीं कर रहे हैं लेकिन तनख़्वाह हर महीने दी जा रही है. </p><p>वहीं, तीसरी श्रेणी उन कंपनियों की है जो काफ़ी लाभ कमाने की स्थिति में हैं. इनमें ओएनजीसी और एलआईसी जैसी बड़ी कंपनियां हैं. </p><p>हाल ही में नीति आयोग ने एक बार फिर इन कंपनियों की सूची को देखकर विश्लेषण किया है कि कौन सी कंपनियां ऐसी हैं जिन्हें कोई ख़रीदना नहीं चाहेगा. कौन सी कंपनियां ऐसी हैं जिनमें निजी क्षेत्र अपनी रुचि दिखाएगा. और वो कौन सी कंपनियां हैं जिन्हें न बेचने की स्थिति में सरकार को भारी नुक़सान होगा. </p><p>अब इनमें से एयर इंडिया तीसरी श्रेणी की कंपनी है जिसे चलाने के लिए सरकार को पैसा पानी की तरह बहाना पड़ रहा है लेकिन कुछ काम नहीं बन पा रहा है. </p><p>लेकिन सवाल यह भी उठता है कि सरकार उन कंपनियों का चुनाव कैसे करती है जिनकी हिस्सेदारी बेची जा सकती है या जिन्हें पूरा का पूरा बेचा जा सकता है?</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-51345940?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">दूसरों को ख़रीदने वाली LIC ख़ुद क्यों बिकने लगी</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-51291609?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">कुणाल कामरा पर बैन नियमों के हिसाब से ठीक है?</a></li> </ul><figure> <img alt="एयर इंडिया" src="https://c.files.bbci.co.uk/9127/production/_110795173_bdf6e582-6ce9-4752-8cf8-54aa470a75cf.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h1>क्या कंपनियां बेचने से सरकार को फ़ायदा?</h1><p>दरअसल, सरकार ये बात कंपनियों की सेहत देखकर तय करती है. कुछ कंपनियां ऐसी होती हैं जिन्हें पूरा का पूरा बेचने में सरकार को लाभ होता है. इसका ताज़ा उदाहरण एयर इंडिया है. इससे पहले भी ऐसी तमाम कंपनियां रह चुकी हैं जिन्होंने सरकार को फ़ायदा पहुंचाने की जगह ज़बरदस्त घाटा दिया है. </p><p>वहीं, कुछ कंपनियां ऐसी होती हैं जिनकी कुछ हिस्सेदारी बेचकर सरकार को आर्थिक मदद मिल सकती है क्योंकि सरकार को अपनी योजनाएं चलाने के लिए धन चाहिए होता है और कंपनियों को भी इसका लाभ मिलता है.</p><p>सरकारी कंपनियों को पूरी तरह शेयर धारकों के लिए उपलब्ध कराने या उनके कुछ हिस्से को बेचने का नुक़सान किसी को नहीं होता है. क्योंकि इससे कंपनी की शेयर आम लोग ख़रीद सकते हैं. </p><p>शेयर के प्रदर्शन के लिहाज़ से बाहरी तत्व कंपनी की आर्थिक स्थिति का आकलन करते हैं. कंपनी की आर्थिक सेहत के लिहाज़ से नेतृत्व और नीतियों में सुधार किए जाते हैं. कंपनी के फ़ैसलों की समीक्षा की जाती है. हालांकि, कंपनी के पूरी तरह बिक जाने की स्थिति में काम करने वाले कर्मचारियों को अपने काम करने के ढंग में बदलाव करना होता है.</p><p>सरकारी कंपनी में हिस्सेदारी बेचने का फ़ायदा बहुत ज़्यादा है. अगर आप इसे एलआईसी के उदाहरण से समझना चाहें तो आईपीओ आने के बाद सरकार को एलआईसी की आर्थिक हालत से जुड़े दस्तावेज़ सूचकांक को उपलब्ध कराने होंगे. इस तरह दुनिया भर में बैठी संस्थाएं और स्वतंत्र विश्लेषक बिना किसी शुल्क के एलआईसी की आर्थिक सेहत का विश्लेषण कर सकती हैं. </p><p><a href="https://www.youtube.com/watch?v=JdQJqx3NPKA">https://www.youtube.com/watch?v=JdQJqx3NPKA</a></p><p>एक अन्य बात ये है कि अक्सर एलआईसी को सरकारी कंपनी होने की वजह से दिल्ली से आए आदेशों का पालन करना पड़ता है. </p><p>ये आदेश किसी डूबते बैंक, कंपनी या उपक्रम को ख़रीदने से जुड़े होते हैं. कई बार ये आदेश एलआईसी के हित में नहीं होते हैं. लेकिन एलआईसी को सरकारी दबाव के चलते ऐसे निर्णय लेने होते हैं. लेकिन आने वाले समय में जब पूरी दुनिया को एलआईसी की आर्थिक सेहत का ज्ञान होगा. तब एलआईसी ऐसे फ़ैसले लेने की स्थिति में नहीं होगी. </p><p>क्योंकि उसे पता होगा कि इसके फ़ैसलों का कंपनी के दस फ़ीसदी शेयर पर क्या असर होगा. अगर कंपनी बेहतर आर्थिक फ़ैसले लेगी तो कंपनी की कुल मार्केट वैल्यू में बढ़ोतरी होगी. ग़लत फ़ैसले लेने से मार्केट वैल्यू में गिरावट होगी.</p><p><strong>ये भी पढ़ें</strong><strong>:</strong></p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-51374117?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">एयर इंडिया की टाटा के पास ‘घर वापसी’ होने वाली है?</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-51261849?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">एयर इंडिया बेचने के ख़िलाफ़ कोर्ट जाएंगे सुब्रमण्यम स्वामी </a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50448482?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">वित्त मंत्री ने कहा, ‘एयर इंडिया और भारत पेट्रोलियम को मार्च तक बेच देंगे'</a></li> </ul><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a><strong> और </strong><a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.</strong><strong>)</strong></p>
BREAKING NEWS
LIC: सरकार किसी कंपनी को क्यों और कैसे बेचती है, क्या होती है इसकी प्रक्रिया?
<figure> <img alt="निर्मला सीतारमण" src="https://c.files.bbci.co.uk/1297F/production/_110795167_gettyimages-1197905257.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने हालिया बजट में सरकारी कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) का आईपीओ लाने की घोषणा की है.</p><p>सरकार ने ये क़दम साल 2020- 21 में अपने विनिवेश लक्ष्य 2.11 लाख करोड़ को ध्यान में रखते हुए उठाया है. कुछ […]
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement