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सियासत नहीं करते, फिर भी दूसरे के लिए इतना कुछ क्यों करते हैं ये लोग: वुसअत का ब्लॉग

<figure> <img alt="सियासत नहीं करते, फिर भी दूसरे के लिए इतना कुछ क्यों करते हैं ये लोग : वुसत का ब्लॉग" src="https://c.files.bbci.co.uk/6C3C/production/_110580772_c8c8b68e-e70b-421f-926e-c7d96cd65ed6.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><p>आज मुझे कुछ पागलों की बात करनी है. इरीना सेंडलर पोलैंड की राजधानी वारसा की नगरपालिका में एक आम-सी कर्मचारी थीं.</p><p>वो यहूदी भी नहीं थीं. जब हिटलर ने पोलैंड […]

<figure> <img alt="सियासत नहीं करते, फिर भी दूसरे के लिए इतना कुछ क्यों करते हैं ये लोग : वुसत का ब्लॉग" src="https://c.files.bbci.co.uk/6C3C/production/_110580772_c8c8b68e-e70b-421f-926e-c7d96cd65ed6.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><p>आज मुझे कुछ पागलों की बात करनी है. इरीना सेंडलर पोलैंड की राजधानी वारसा की नगरपालिका में एक आम-सी कर्मचारी थीं.</p><p>वो यहूदी भी नहीं थीं. जब हिटलर ने पोलैंड को रौंद डाला तब इरीना ने अपने हम ख्याल लोगों के साथ मिलकर एक ख़ुफ़िया नेटवर्क बनाया. </p><p>और जितने यहूदी बच्चों को थैलों में बंद करके या गंदे पानी के ज़रिए नाज़िओं की निगाह से बचाकर निकाल सकती थीं, निकाल लिया और ऐसे पोलिश ख़ानदानों को दे दिया जो उन्हें छिपा सकते थे. </p><p>इस तरह इरीना ने लगभग ढाई हज़ार बच्चों की जान बचाई. 2007 में पोलैंड की संसद ने इरीना सेंडलर को कौमी हिरोइन क़रार दिया. </p><p>इस मौक़े पर इरीना ने कहा, &quot;हर वो बच्चा, जिसे बचाने में मेरा थोड़ा बहुत भी हाथ है, वो इस बात का सबूत है कि इस धरती पर मेरा वजूद बेवजह नहीं रहा.&quot;</p><p>लेकिन इसमें सीना फूलाने वाली क्या बात है, ये तो सभी को करना चाहिए. </p><p>2008 में इरीना 98 साल की उम्र में इत्मीनान से इस संसार से रुख्सत हो गईं.</p><p>बिहार के दशरथ मांझी ने जिस तरह से पहाड़ काट डाला, उस पर फ़िल्म बन चुकी है और इस बारे में सभी को मालूम हो. </p><p>बंगाल के एम्बुलेंस दादा करीम उल हक़ के बारे में भी अब सभी जानते हैं. उनकी मां एम्बुलेंस ना होने की वजह से अस्पताल नहीं जा सकीं, इसके बाद करीम उल हक़ की सोच बदल गई. </p><p>एक टी कंपनी की मामूली कर्मचारी, जिसने किश्तों पर मोटरसाइकल ख़रीद ली और अबतक आस-पास के बीस गांवों के छह हज़ार मरीज़ों को मोटरसाइकल एम्बुलेंस पर अस्पताल पहुंचाकर जान बचा चुका है. </p><p>हज़ारों लोगों को फ़र्स्ट एड दे चुके हैं. उनका एक बेटा पान बेचता है और एक मोबाइल फोन. लेकिन करीम उल हक़ कहते हैं कि इस तरह का काम पैसे से नहीं दिल से होता है. </p><p>अक्टूबर 2009 में पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद की इंटरनेशनल इस्लामिक यूनिवर्सिटी में एक आत्मघाती चरमपंथी ने छात्राओं की कैंटीन में घूसने की कोशिश की. उस वक़्त कैंटीन में दो-ढाई सौ लड़कियां थीं.</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-45702065?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">ये इतिहास पढ़ाकर संबंध सुधारने की बात…!</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-42938674?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">क़त्ल की दो वारदातें जिन्होंने खोली पाकिस्तान की ज़ुबान</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-41219175?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">‘पाक में गौरी लंकेश जैसी दर्जनों मिसाल’</a></li> </ul><figure> <img alt="सियासत नहीं करते, फिर भी दूसरे के लिए इतना कुछ क्यों करते हैं ये लोग : वुसत का ब्लॉग" src="https://c.files.bbci.co.uk/1E1C/production/_110580770_89b9e042-b7a6-4c24-a199-6341b837716f.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> <figcaption>सांकेतिक तस्वीर</figcaption> </figure><p>कैंटीन के बाहर झाड़ू लगाने वाले परवेज़ मसीह ने चरमपंथी को रोकने की कोशिश की और हाथापाई शुरू हो गई और आत्मघाती चरमपंथी ने ख़ुद को उड़ा लिया.</p><p>इस घटना में तीन छात्राओं और परवेज़ मसीह की मौत हो गई. लेकिन दो-ढाई सौ लड़कियां बच गईं. </p><p>परवेज़ मसीह को एक हफ्ते पहले ही यूनिवर्सिटी में पांच हज़ार की तनख्वा पर सफाई कर्मचारी की नौकरी मिली थी. </p><p>परवेज़ का सात लोगों का परिवार एक कमरे के घर में रहता था.</p><p>परवेज़ मसीह को क्या पड़ी थी कि जिसकी क्रिश्चिन बिरादरी सबसे निचले समाजी पायदान पर समझी जाती है, वो अपनी बिरादरी को हिक़ारत से देखने वालों को बचाने के लिए जान दे दे. </p><p><a href="https://twitter.com/ImranKhanPTI/status/1218499812192026624">https://twitter.com/ImranKhanPTI/status/1218499812192026624</a></p><p>पिछले हफ्ते पूरा पाकिस्तानी, ख़ासकर बलूचिस्तान ज़ोरदार बर्फ़बारी की चपेट में रहा. सैंकड़ों गाड़ियां बड़ी-बड़ी सड़कों पर फंस गई. </p><p>क्वेटा के क़रीब रहने वाले सुलेमान ख़ान को बस ऐसे ही ख्याल आ गया कि फंसे हुए पीड़ितों के लिए कुछ किया जाए. </p><p>सुलेमान ख़ान ने अपने भाई और एक दोस्त को साथ लिया और अगले 24 घंटे के दौरान सौ से ज़्यादा लोगों को बर्फानी नर्क से निकालकर पानी और खाना दिया. वर्ना सरकारी मदद आने तक बहुत से नागरिक मर सकते थे. </p><p>इन सब पागलों में एक बात कॉमन है. इनमें से कोई भी किसी सियासी गुट में नहीं रहा. </p><p>क्योंकि ये और तरह के पागल हैं, वो और तरह के. </p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a><strong> और </strong><a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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