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बिहार: हत्या के आरोप में पति और सास-ससुर जेल में, ज़िंदा लौटी महिला

<figure> <img alt="अपने पति रंजीत पासवान और बच्चों के साथ सोनिया" src="https://c.files.bbci.co.uk/AD5C/production/_110508344_5eba5ab8-4390-4627-877b-c16b1460a86e.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Neeraj priyadarshy /BBC</footer> </figure><p>&quot;ये मायके जा रही थी. रास्ते से गायब हो गई. हम लोग थाना में शिकायत किए. दो दिन बाद पुलिस को एक लाश मिली. इसी की लाश मानकर मुझ पर और मेरे माता-पिता पर हत्या का मुकदमा […]

<figure> <img alt="अपने पति रंजीत पासवान और बच्चों के साथ सोनिया" src="https://c.files.bbci.co.uk/AD5C/production/_110508344_5eba5ab8-4390-4627-877b-c16b1460a86e.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Neeraj priyadarshy /BBC</footer> </figure><p>&quot;ये मायके जा रही थी. रास्ते से गायब हो गई. हम लोग थाना में शिकायत किए. दो दिन बाद पुलिस को एक लाश मिली. इसी की लाश मानकर मुझ पर और मेरे माता-पिता पर हत्या का मुकदमा डाल दिया गया. जेल में बंद कर दिया. जुर्म कबूल करवाने के लिए पुलिस ने हमें बहुत मारा-पीटा. लेकिन अंत तक यही कहते रह गए कि वो लाश इसकी नहीं थी. क्योंकि हमें उम्मीद थी कि ये एक न एक दिन ज़रूर आएगी.&quot;</p><p>बिहार के सुपौल जिले में राघोपुर थाना क्षेत्र के बेरदह गांव के रहने वाले रंजीत पासवान अपनी पत्नी की तरफ देखकर ये बातें कह रहे थे. जिसकी हत्या के आरोप में वे अपने बुजुर्ग माता-पिता के साथ छह महीने जेल में गुजार चुके हैं. </p><p>पुलिस की जांच रिपोर्ट के मुताबिक सोनिया यादव अपने ससुराल बेरदह से 24 मई 2018 को मायके जाने के लिए निकली थीं. उसके बाद उनका कोई पता नहीं चल पाया. दो दिनों के बाद पुलिस को एक अज्ञात लाश मिली.</p><p>सोनिया की गुमशुदगी का मामला परिवारवालों ने दर्ज कराया था. पुलिस ने सोनिया के पिता की निशानदेही पर लाश के पहचान सोनिया के रूप में की. इसके बाद पति रंजीत, ससुर विशुन देव पासवान और सास गीता देवी पर हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया. </p><p>सुपौल के तत्कालीन एसपी मृत्युंजय कुमार चौधरी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर 48 घंटे के अंदर हत्या की गुत्थी सुलझा लेने की बात कही. </p><p>आईपीसी की धारा 304 बी, 120 बी, 201/34 के तहत जेल गए रंजीत और उनके परिवार सहित कुल 8 लोगों पर हत्या के आरोप को सही बताया गया. इस दौरान पांच अभियुक्तों के फरार होने पर कुर्की जब्त करने का आदेश जारी हो गया.</p><p>मामले का ट्रायल चल रहा था. पुलिस चार्जशीट फाइल कर चुकी थी. साढ़े पांच महीने बाद 21 नवंबर 2018 को सोनिया पुलिस के सामने खड़ी हो गई. </p><p>लेकिन तब पुलिस ने उन्हें सोनिया मानने से इनकार कर दिया. क्योंकि पुलिस के मुताबिक उसने सोनिया की लाश को बरामद कर घरवालों के सुपुर्द कर दिया था. </p><figure> <img alt="सोनिया" src="https://c.files.bbci.co.uk/D46C/production/_110508345_424bd09e-3c94-4d9b-8ac4-84ce9a34633e.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Neeraj priyadarshy /BBC</footer> <figcaption>सोनिया</figcaption> </figure><p>सोनिया ने अदालत का दरवाजा खटखटाया. मजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज कराए गए और इसी के आधार पर रंजीत और उनके माता-पिता को करीब छह महीने बाद ज़मानत मिल सकी. </p><p>अब मामले पर अदालत का फैसला आ गया है. सुपौल सिविल कोर्ट में अपर जिला एवं सत्र न्यायधीश तृतीय रवि रंजन मिश्र ने कांड के तीनों अभियुक्तों को हत्या के आरोप से बरी कर दिया है. </p><p>अदालत ने यह भी आदेश दिया है कि रंजीत और उनके परिवार को ‘पीड़ित प्रतिकर योजना’ के तहत कम से कम छह लाख रुपए मुआवज़े के रूप में केस के जांच अधिकारी के वेतन से काटकर दिए जाएं.</p><p>रंजीत अब अपने घर में पत्नी, बच्चे और माता-पिता के साथ रह रहे हैं. </p><h3>आखिर सोनिया इतने दिनों तक थीं कहां? </h3><figure> <img alt="अपने पति रंजीत पासवान और बच्चों के साथ सोनिया" src="https://c.files.bbci.co.uk/F8C0/production/_110508636_8f2d5183-6247-4de6-af4a-7e57399d3e19.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Neeraj priyadarshy /BBC</footer> <figcaption>[बाएं से] सामाजिक कार्यकर्ता अनिल कुमार सिंह, रंजीत पासवान, पिता विशुनदेव पासवान, माता गीता और सोनिया बच्चे के साथ</figcaption> </figure><p>मजिस्ट्रेट के समक्ष दिए गए बयान के अनुसार &quot;सोनिया जब अपने ससुराल से मायके जाने के लिए निकली थीं, तब बीच में रास्ता भूल गयीं. परेशान होकर वो रोने लगीं. उन्हें रोती देख एक महिला ने घर छोड़ने के बहाने फुसलाकर अपनी गाड़ी मे बिठा लिया और फिर गाजियाबाद लेकर चली गयीं.&quot;</p><p>सोनिया बताती हैं कि &quot;जिस जगह मुझे ले जाया गया था वहां पहले से 14-15 लड़कियां थीं. जो महिला हमें ले गई थी उसका नाम किरण देवी है. उसकी बेटी का नाम कामिनी है. वे लोग लड़कियों को खरीदने-बेचने का धंधा करते हैं. एक ही कमरे में सारी लड़कियों को बंद करके रखते थे.&quot;</p><p>वे आगे कहती हैं, &quot;जब तक मैं वहां रही, वहां कई लड़कियां आयीं और गयीं. कुछ लड़कियां वहां से किसी तरह भागने में भी सफल हो गई थीं. वो लोग मुझे कुछ नहीं कर रहे थे और मैं चाहकर भी भाग नहीं पा रही थी. क्योंकि मुझे तब बच्चा हो गया था.&quot;</p><p>सोनिया के मुताबिक जब उन्हें लगा कि अब बच्चे को लेकर भाग सकती हैं, तो वह किसी तरह वहां बच निकलीं. सोनिया कहती हैं, &quot;थोड़ी देर के लिए घर खुला था. मैं बाहर निकल गई. दूसरे के फ़ोन से पति के नंबर पर फ़ोन किया. फ़ोन बंद था. पूछते-पूछते दिल्ली स्टेशन पहुंच गई और वहां से ट्रेन पकड़कर चली आयी.&quot;</p><p>लेकिन सोनिया के मुश्किलें यहीं कम नहीं हुईं. जब वो गांव पहुंचीं तब पता चला कि परिवार के तीनों लोग जेल में बंद थे. </p><figure> <img alt="सोनिया की सास गीता" src="https://c.files.bbci.co.uk/11FD0/production/_110508637_a9db7cad-fa05-45a8-9bff-4dcc2a1c8517.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Neeraj priyadarshy /BBC</footer> <figcaption>सोनिया की सास गीता</figcaption> </figure><p>सोनिया का कहना है कि उन्होंने जेल में पति से मिलने की कोशिश की लेकिन किसी ने मिलने नहीं दिया. इसके बाद वो खुद सुपौल सदर थाना में पहुंच गई लेकिन वहां भी पुलिस ने मानने से इनकार कर दिया. </p><p>रंजीत बताते हैं कि अनिल कुमार सिंह नाम के एक सामाजिक कार्यकर्ता ने सोनिया की मदद की. अदालत तक लेकर गए. उन्हीं के प्रयासों से वे दोषमुक्त हो सके हैं और उन्हें न्याय मिल सका है.</p><h3>पुलिस की कार्यशैली पर सवाल</h3><p>फिल्मी लग रहे इस मामले ने बिहार पुलिस की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठा दिए हैं. </p><p>अपने फैसले में अदालत ने भी कहा है कि &quot;सुपौल पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठते हैं. मामले की सही से जांच नहीं की गई. यह बिहार पुलिस के लिए शर्मनाक है.&quot;</p><p>अदालत ने फैसले में यह भी लिखा है कि &quot;यह घटना बिल्कुल हास्यास्पद और कानून की नज़र में मज़ाक सा बन गया. जो व्यक्ति जीवित है जांच अधिकारी ने उसकी मृत्यु का आरोप पत्र कोर्ट में दिया है. इससे लगता है कि बिहार पुलिस जिस तरह उदासीन होकर केस की जांच करती है, उससे सवाल खड़े हो रहे हैं.&quot;</p><figure> <img alt="सोनिया का घर" src="https://c.files.bbci.co.uk/146E0/production/_110508638_60723bdd-6811-4483-a0d6-2231bbcc2b19.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Neeraj priyadarshy /BBC</footer> <figcaption>सोनिया का घर</figcaption> </figure><p>कोर्ट के फैसले में एक सवाल भी है कि सुपौल पुलिस को 26 मई 2018 को जो अज्ञात लाश मिली थी, आखिर वो किसकी थी? अदालत ने कहा है कि पुलिस अब उस हत्या के मामले की जांच करे.</p><p>सुपौल के एसपी मनोज कुमार ने बीबीसी को बताया, &quot;पुलिस ने उस अज्ञात लाश और संभावित हत्या की जांच के लिए अलग से एक मामला दर्ज किया है. फिर से पुराने रिकार्ड्स चेक कर रहे हैं. हमारे पास अभी भी उस लाश से जुड़े सारे सबूत हैं.&quot;</p><p>लेकिन क्या केस के जांच अधिकारी हरेन्द्र मिश्रा के ख़िलाफ़ कोई एक्शन लिया जाएगा? </p><p>एसपी मनोज कुमार कहते हैं, &quot;उसकी भी जांच चल रही है कि कहां ग़लती हो गई. जांच अधिकारी से जवाब मांगा गया है.&quot;</p><p>हालांकि सुपौल पुलिस अब भी अपनी जांच का पक्ष ले रही है. एसपी ने कहा, &quot;सोनिया के पिता जनार्दन पासवान की निशानदेही पर ही लाश की पहचान की गई थी. अब अगर लड़की के पिता खुद कह रहे हैं कि हमारी बेटी की लाश है तो कौन यकीन नहीं करेगा? वैसे उस वक़्त मैं सुपौल में नहीं था इसलिए मुझे पूरे मामले को बारीकी से देखना होगा.&quot;</p><figure> <img alt="अपने पति रंजीत पासवान और बच्चों के साथ सोनिया" src="https://c.files.bbci.co.uk/16DF0/production/_110508639_a6c9414a-742c-43e1-b2b7-241a8e9fd184.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Neeraj priyadarshy /BBC</footer> </figure><p>रंजीत पासवान सुपौल पुलिस के जवाब से संतुष्ट नहीं हैं. वो कहते हैं कि &quot;अगर किसी महिला के पिता कह रहे हों कि मेरी बेटी की लाश है और पति कह रहा हो कि ये मेरी पत्नी की लाश नहीं है. तो पुलिस की क्या जवाबदेही बनती है? पुलिस को जांच करनी चाहिए कि लाश किसकी है लेकिन पुलिस ने कुछ नहीं किया.&quot; </p><p>उन्होंने कहा, &quot;मुझे और मेरे माता-पिता को जिस तरह टॉर्चर किया गया है उसकी भरपाई छह लाख रुपये के मुआवजे से नहीं होगी.&quot;</p><p>रंजीत पासवान दिहाड़ी मजदूर हैं. उनके बुजुर्ग पिता कहते हैं, &quot;केस में फंसने से सब कुछ बर्बाद हो गया. जेल में चले गए तो पूरा घर तहस नहस हो गया. एक साल से तो अदालत में लड़ रहे हैं. इतनी तारीखें, इतना चक्कर.&quot; </p><p>&quot;इसी फेर में ज़मीन भी बिक गई. काम कुछ मिल नहीं रहा है. बहू तो आ गयी है मगर उसको खिलाएं क्या, पहनाएं क्या?&quot;</p><p><strong>(</strong><strong>बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a><strong> और </strong><a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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